किसी ने नहीं सुना
-प्रदीप श्रीवास्तव
भाग 20
मुझे अंदर भाग कर नीला को बताने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी वह पहले ही सब सुनकर भाई को फ़ोन लगा चुकी थी। भाई ने इंस्पेक्टर से बात कराने को कहा तो उसने बहुत घुड़कियां देते हुए मुश्किल से बात की, ‘थाने तो लेकर जाना ही पड़ेगा। रेप का मामला है उसे मारने की कोशिश भी की गई है चोट के निशान हैं उसकी बॉडी पर। सॉरी यह नहीं हो सकता मैं इन्हें ले जा रहा हूं।’
नीला रोने लगी। वह हक्का-बक्का कभी मुझे तो कभी पुलिस को देखती, शोर सुनकर बच्चे भी जागकर बाहर आए और घबरा गए। साले के फ़ोन का फ़र्क यह हुआ कि मुझे कपड़े चेंज करने का वक़्त दे दिया गया। लेकिन जीप में मुझे खींचतान कर धकेलते हुए ऐसे ठूंसा की मानों मैं कोई हत्यारा हूं। मेरे मन में इस समय साले को भी लेकर उधेड़बुन चल रही थी। जिसे मैं अब तक टप्पेबाज, छुट्भैया नेता समझता था उसके प्रति अब नजरिया बदल गया था। पहले नौकरी को लेकर उसने जो किया फिर अब उसके फ़ोन से पुलिस टीम जिस तरह से नरम पड़ी उससे मेरे मन में उसके लिए सम्मान पैदा हो गया। वह भावनात्मक भाव तब एकदम सातवें आसमान पर पहुँच गया जब मैंने देखा वह अपने दर्जन भर साथियों के साथ थाने पर मुझसे पहले ही पहुंच कर बैठा हुआ है। एक तरफ कोने में संजना बैठी थी। उसके कपड़े अजीब से मुड़े-तुड़े खीचें ताने हुए अस्त-व्यस्त से लग रहे थे। चेहरे पर एक जगह स्याह धब्बा भी दिख रहा था। साले के कारण मुझे भी कुर्सी पर बैठने दिया गया।
इंस्पेक्टर के सामने संजना सुबुकते हुए बोली,
‘सर यही है जिन्होंने मेरे साथ रेप किया।’
उसके इस आरोप को सुनकर मैं आवाक रह गया। मेरा मुंह खुला का खुला रह। कोई बोल न निकल सके। उसने आरोप लगाया कि मैं उसे धोखे से ले गया और नशीली कोल्ड-डिंªक पिलाकर मैंने रेप किया। मैंने हक्का-बक्का उसके आरोप को इंकार करते हुए और सिलसिलेवार उसके साथ सारे संबंधों के बारे में खुलकर बताया और यह भी कि आज यह मुझे इंकार करने के बाद जबरदस्ती लेकर वहां गई थी।
इंस्पेक्टर बोला यह तो इन सब से इंकार कर रही हैं। इसी बीच यह देखकर मैं हैरान रह गया कि लतखोरी लाल दो मोटर साइकिल पर चार लोगों के साथ आ धमका। आंखें मेरी खुली की खुली रह गईं जब बॉस को कार से उतरते देखा तो मैंने सोचा शायद यह मामले को रफा-दफा कराने के लिए आए होंगे जिससे ऑफ़िस की बदनामी न हो। लेकिन उन्होंने भी उसकी एकतरफा तारीफ करते हुए यहां तक कह डाला कि मैं संजना को महीनों से परेशान कर रहा हूँ उसके पीछे पड़ा हुआ था और मौका देखते ही मैंने रेप किया।
उसके इस झूठ पर मैं चीख पड़ा तो इंस्पेक्टर ने मुझे डपट दिया। मैंने साले की तरफ देखा तो उसने बातें शुरू कीं लेकिन तभी इंस्पेक्टर के लिए कोई फ़ोन आ गया। दो मिनट तक उसने बातें कीं लेकिन इतनी देर में उसने सिर्फ चौदह-पंद्रह बार यस सर, यस सर ही कहा। रिसीवर रखते ही मुझे हवालात में डलवा दिया। साले ने विरोध किया तो उसकी भी एक न सुनी। साफ कहा ‘देखिए मैं मज़बूर हूं। कानून जो कहेगा वही होगा। ये अपराधी हैं या नहीं ये अदालत तय करेगी।‘ साले ने कई फ़ोन लगाए लेकिन बात नहीं बनी।
बात एकदम साफ थी कि लतखोरी और बॉस ने जबरदस्त साजिश रची थी। इतना बड़ा जैक लगाया कि उसके सामने मेरे साले का वह जैक बौना साबित हुआ था जिसके जरिए उसने मेरा सस्पेंशन खत्म करा दिया था, प्रमोशन तक करा दिया था। बॉस को मेरे कदमों में खड़़ा कर दिया था। मैं हवालात में पड़ा, सोचने लगा कि क्या अब मेरे साले से कंपनी को कोई काम नहीं पड़ेगा। या कंपनी ने उसका कोई विकल्प ढूंढ़ लिया है।
मेरा ये अनुमान बाद के दिनों में सच निकला था। कंपनी के मालिकान ने साले की सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती जा रही कमीशन खोरी से आज़िज आकर उससे बड़ा जैक ढूढ़ लिया था। संयोग से उन्हें यह जैक सस्पेंशन की घटना के बाद जल्दी ही मिल गया था जिसका उन्होंने तुरंत उपयोग कर डाला। एक तीर से दो निशाने साधे एक तो साले से मुक्ति पाई दूसरे मुझे ठिकाने लगा दिया। इसमें मशीन बने बॉस, लतखोरी लाल एवं उनकी टीम। मालिकान एवं इस टीम दोनों ने एक दूसरे को यूज किया। बल्कि इन सबमें सबसे स्मार्ट निकली संजना। जिसकी नौकरी जा रही थी उसने इन सब को यूज किया। न सिर्फ़ नौकरी बचाई मुझे सदैव के लिए ठिकाने लगा दिया। बॉस और लतखोरी जैसे लोगों को भी हमेशा के लिए अपनी मुठ्ठी में कर लिया।
हवालात में मैं बच्चों, नीला के चेहरे, मालिकान और बाकियों की गणित, साले के हश्र आदि के बारे में सोच-सोचकर हतप्रभ हो रहा था। दिमाग की नशें फटने लगीं थीं। मुझे कानून की जितनी जानकारी थी उससे भी मुझे साफ पता था कि मुझे अब अदालत में सजा पाने से कोई ताकत नहीं बचा सकती। क्योंकि एफ.आई.आर. से पहले मैंने ही उससे संबंध बनाए थे। साजिशन यह सब किया गया था। इसलिए गलती की कोई गुंजाइश नहीं दिख रही थी। निकलने का कोई रास्ता नहीं दिख रहा था। बस एक बात मेरी समझ में नहीं आई कि संजना के शरीर पर चोटें कहां से आईं थीं।
खैर मुकदमा चला। दोनों पक्षों के वकीलों की जमकर बहस हुई। मेरे साले ने ऐसे मामलों के नामी-गिरामी वकील को किया था। जिनका इस बात के लिए नाम था, कि वह मुकदमा हारते नहीं लेकिन मेरे मामले में वह भी असफल हुए। उन्होंने कोर्ट में संजना से एक से बढ़कर एक हिला देने वाले प्रश्न किए मगर संजना मंजी हुई खिलाड़ी निकली। उसके वकील ने उसेे और पॉलिश कर दिया था। वकील ने डिगाने उसे तोड़ने के लिए जितने ही ज़्यादा खुलकर प्रश्न किए उसने उतने ही ज़्यादा बेखौफ जवाब दिया। उसकी हिम्मत उसकी बातें सुनकर जज, वकील कोर्ट, उपस्थित सारे लोग दंग रह जाते थे। केस लोअर कोर्ट में हारने के बाद हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट तक गया लेकिन हर जगह हार मिली। पेपर वालों ने केस को खूब स्पाइसी न्यूज़ की तरह यूज किया।
मेरे वकील की सारी कोशिशों का अंजाम यह हुआ कि केश कुछ लंबा खिंचा। छः साल में सुप्रीम कोर्ट से भी फैसला आ गया। मैं मुकदमा हार गया। रेप करने और हत्या के प्रयास में दस साल की सजा हुई। मेरा जीवन मेरा घर सब बर्बाद हो गया। आर्थिक, सामाजिक, मानसिक तौर से कहीं का नहीं रहा। बेटी की शादी के लिए जो पैसे जोडे़ थे वह भी खत्म हो गए थे। मैं भी पूरी तरह टूट कर बिखर गया था।
कुछ बचा था तो नीला की दृढ़ता। उससे संबंध सुधरने के बावजूद फिर संबंध बनाए संजना से इतनी बड़ी बदनामी हुई सब कुछ तहस-नहस हो गया। और नीला ने अपने भाई के सहयोग से यह शहर भी छोड़ दिया। मायके भी नहीं गई। तीर्थ राज प्रयाग चली गई। कई लोगों की सलाह के बावजूद उसने टीचिंग जॉब या अन्य कोई नौकरी नहीं की।
बल्कि भाई के साथ बिजनेस किया। सारा पैसा साले ने लगाया था। असल में उसने भी कमाई का अपना एक और केंद्र बनाया था। पूरा डिपार्टमेंटल स्टोर चलाने की ज़िम्मेदारी नीला की थी। क्यों कि पैसा सारा साले का था तो दुकान से होने वाले प्रॉफ़िट पर पिचहत्तर प्रतिशत हिस्सा उसका निश्चित हुआ। कोई अपनी मेहनत से सारी दुनिया न सही अपनी दुनिया कैसे बदल देता है यह नीला ने कर दिखाया था। दो साल बीतते-बीतते उसने लखनऊ का मकान बेच दिया। मेरे लाख मना करने पर भी जेल में उसने मुझ पर खूब दबाव डालकर मुझे राजी कर लिया। जितना पैसा मिला उतने ही पैसे में प्रयाग में ही थोड़ा सा छोटा मकान ले लिया। किराए का मकान छोड़कर अपने मकान में रहने से पहले उसने सारा सामान कामभर का नया लिया। किचेन, ड्रॉइंगरूम, डाइनिंगरूम आदि के लिए, टी.वी., म्यूजिक सिस्टम आदि सब। पहले वाला उसने सारा सामान लखनऊ में ही बेच डाला। उसमें बहुत सा ऐसा सामान था जो मैंने बड़े प्यार से खरीदा था।
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