किसी ने नहीं सुना
-प्रदीप श्रीवास्तव
भाग 19
मेरा सस्पेंशन और उसका कंफर्मेंशन रुकना अपने आप में इस ऑफ़िस की पहली घटना थी। और उससे भी ज़्यादा यह कि मेरा सस्पेंशन चौथे दिन न सिर्फ़ खत्म हो गया बल्कि पांचवें दिन ही संस्पेंड करने वाले बॉस ने ही बुला कर प्रमोशन लेटर भी थमा दिया। इस आर्श्चयजनक घटना पर खुशी व्यक्त करने वालों में लतखोरी लाल सबसे आगे था। उसके दोगलेपन पर मैं भीतर-भीतर कुढ़ा जा रहा था। मगर साथ ही मन में नीला के भाई को धन्यवाद भी देता जा रहा था। पक्षताता हूं आज इस बात पर कि तब मैंने अपनी झूठी शान, अकड़ दंभ के चलते उसको एक फ़ोन तक नहीं किया।
इस घटना के अगले ही दिन यह रियुमर दिन भर उड़ी कि संजना की नौकरी जा रही है। एक बात और कि लतखोरी लाल तक ने मुझे बधाई दी लेकिन संजना भूलकर भी न आई। अचानक एक दिन उसे मैंने लतखोरी के साथ बॉस के घर के सामने देखा। मैं वहां रुका रहा, फिर आधे घंटे बाद लतखोरी को वहां से जाते देखा। संजना उसके साथ नहीं थी। मेरा माथा ठनका मैं रुका रहा। देर तक जब वह न आई तो भीतर ही भीतर जलता-भुनता घर चला आया। इधर नीला पहले से कहीं ज़्यादा मुझ पर ध्यान दे रही थी और बच्चे तो मानो दसियों साल बाद मिले हों मुझ से। अब मैं भी पहले सा नीलामय होता जा रहा था। यह नीला इफेक्ट था।
बॉस के घर जिस दिन संजना मुझे दिखी थी, उसके हफ्ते भर बाद एक दिन गेट पर उससे आमना-सामना हो गया। मुझे आश्चर्य में डालते हुए वह एकदम हहा के मिली। मुझे बोलने का मौका दिए बिना न जाने क्या-क्या बोल गई। आखिर में बेलौस मेरा हाथ अपने हाथ में लेते हुए बोली,
‘मैं जानती हूं कि तुम बहुत गुस्सा हो। लेकिन मैं बहुत मुशीबत में हूं। तुमसे मैं किसी दिन फुरसत में सारी बातें करूंगी।’
इसके बाद सैटर डे को शाम को कहीं बैठ कर बात करना तय हो गया। मैं उसके समक्ष जैसे चेतना शून्य हो गया था। रिमोट चालित खिलौना सा। जिसका रिमोट उसके हाथ में था। यह मैं लाख न चाहते हुए भी तमाम कोशिशों के बावजूद कर बैठा था। पुनः नीलामय होने के बावजूद। बदलकर फिर संजनामय हो गया। फिर पहले की तरह सारे संबंध बहाल हो गए। और फिर यंत्रवत सा उस रक्षाबंधन के दिन तय समय पर हम मिले वह अपने भाई को राखी बांध कर आई थी। और मैं अपनी बहन से राखी बंधवा कर आया था।
उसके ही बताए शहर के अलग-थलग से एरिया में स्थित एक रेस्त्रां में, घंटे भर की बातचीत में उसने दुनियाभर की पंचायत बता डाली। दसियों बार माफी मांगी। कहा धोखे से लोगों ने गलतफहमी पैदा की। मैंने झूठ पकड़ लिया है, मतलब समझ गई हूं। मैं फिर पहले जैसे संबंध रखूंगी।
इस बार फर्क सिर्फ़ इतना रहा कि नीला से मैं विमुख न होने पाऊं इसका पूरा ध्यान रखा। पूरी कोशिशों के बावजूद इसमें मैं पूर्णतः सफल नहीं था। असफल मैं लतखोरी और बॉस की साजिश के सामने भी हुआ। नीला का भाई भी चारो खाने चित हो गया। सच केवल ननकई निकली। उसकी सारी बातें अक्षरशः सच साबित र्हुइं। संजना एंड कंपनी ने जो डसा तो मैं वाकई आज तक पानी न मांग सका। उसके साथ अंतरंग क्षण बिताने उसकी ही बताई जगह लखनऊ के प्रसिद्ध पिकनिक स्पॉट कुकरैल के पास पहुँच गया। वह मकान वन विभाग की जमीन पर बने अवैध निर्माणों में था। जिसके लिए संजना ने बताया कि यह उसके एक रिश्तेदार का है जिसे उसने किराए पर लिया है। अगले बृहस्पति को यहां शिफ्ट करेगी। दो घंटे वहां बिताने के बाद हम दोनों वहां से निकले। करीब पचास कदम चलने पर ही संजना ने रोक दिया। उसने धीरे से कहा आगे देखो लतखोरी खड़ा है। मैंने देखा लतखोरी दो और लोगों के साथ खड़ा हैं। मैंने कहा क्या फ़र्क पड़ता है चलते हैं। मगर वह नहीं मानी और मैं कुछ कहूं उसके पहले ही बाइक से उतरकर चली गई वापस। जाते-जाते फुसफुसाकर बोली कल मिलूंगी।
मैं खुशी के मारे अंदर-अंदर फूलता पिचकता घर आ गया। थोड़ा वक़्त बच्चों के साथ बिताया। खाया-पिया बेडरूम में आ गया। नीला ने बताया जब मैं अपने बहनोई के यहां गया था तब उसका भाई अपनी पत्नी संग आया था। मैंने छूटते ही कहा,
‘अहसान जताने आया होगा।’ वह बिदकते हुई बोली,
‘हमेशा उल्टा ही क्यों बोलते हो। उन दोनों ने इस बारे में बात तक नहीं की।’
इसके बाद हम इधर-उधर की बातें करते हुए सोने की तैयारी में थे। नींद आने लगी थी। बारह बजने ही वाले थे कि कॉल बेल बज उठी। हम दोनों चौंके इतनी रात में कौन आ गया। नीला बिन बताए आने वाले मेहमान की बात सोचकर भनभना उठी कि इतनी रात को खाना-पीना करना पडे़गा। अब दो बजे के पहले सोना मुश्किल है। मैंने कपड़े पहने और हाथ में मोबाइल लेकर बाहर निकला। बाहर पुलिस जीप और गेट पर तीन-चार पुलिस वाले देखकर मैं एकदम सकपका गया। अंदर ही अंदर तेज़ी से कैलकुलेशन चलने लगी। गेट पर पहुंचकर मैं कुछ पूछता कि इसके पहले ही इंसपेक्टर ने पूछा,
‘आप ही नीरज हैं?’
मेरे हां कहते ही वह कड़क स्वर में बोला,
‘आपके खिलाफ रेप करने की एफ.आई.आर. है। थाने चलिए।’
मुझे यह सुनते ही ऐसा शॉक लगा कि पल में पसीने से तरबतर हो गया। गला एकदम सूख गया आवाज़ नहीं निकल रही थी। इस पर इंस्पेक्टर ने गेट का ताला तुरंत खोलने को कहा। मैं घिघियाया हुआ कुछ कहना चाह रहा था। लेकिन वह कड़क बोला,
‘ताला खोलो।’
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