किसी ने नहीं सुना - 18 Pradeep Shrivastava द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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किसी ने नहीं सुना - 18

किसी ने नहीं सुना

-प्रदीप श्रीवास्तव

भाग 18

मैं ऑफ़िस की ऐसी ही तमाम घटनाओं में डूबता-उतराता सारी रात जागता रहा। और नीला में लंबे समय बाद एकदम से उभर आई हनक और उसकी शान भी देखता रहा। इस लंबी बात के बाद उसने मानो बरसों से ढो रहे किसी बोझ को उतार फेंका था। विजयी भाव उसके चेहरे पर तारी था। अपनी विजय का उसने जश्न भी अपनी तरह खूब मनाया था।

बच्चों के न होने का भरपूर फायदा उठा लेने में कोई कोर कसर उसने नहीं छोड़ी थी। बरस भर की अपनी प्यास उसने जीभर के बुझाई,। बेसुद्ध पड़ी थी। उस दिन नीला इस कदर निश्चिंत और बेधड़क थी कि हमेशा की तरह नाइट लैंप ऑफ करने पर जोर देने की बात तो दूर उसने ट्यूब लाइट जलाए रखी। ये नहीं कहा कि अरे! घर में बच्चे हैं जल्दी पहनने दो कपड़े। आज उसके कपड़े किनारे ही पड़े थे। मेरी नज़र उसकी आंखों पर गई जिसके गिर्द अब काले घेरे साफ दिख रहे थे। जिसके लिए मैं ज़िम्मेदार था। मैं खुद तो मस्त था संजना और नैंशी जैसी औरतों के साथ और नीला रोती थी, जागती थी। अंदर ही अंदर घुलती थी। इस घुलन ने आंखों के गिर्द स्याह धब्बों के रूप में अपने परिणाम छोड़ दिए थे और मैं अंधा आज तब उसको देख रहा था जब उन बाजारू औरतों द्वारा दुत्कारा जा चुका था।

अब मुझे नीला फिर पहले की तरह दुनिया की सबसे खूबसूरत महिला लग रही थी। सबसे प्यारी। उसने जो तकलीफें झेलीं उसको सोचते-सोचते मेरी आंखें भर आईं। मैं एकटक ट्यूब लाईट की दूधिया रोशनी में उसके तन को मंत्र मुग्ध सा देखता रहा। उसे देख ऐसा लग रहा था कि मानो कोई मुर्तिकार अपनी कला को चरमोत्कर्ष देने के लिए अपनी स्वप्निल योजना पर काम कर रहा है। और उसकी मॉडल सौंदर्य देवी उसे सहयोग के लिए अपना योगदान मॉडल बनकर कर रही है। वह अपने अछूते सौंदर्य को समर्पित कर निश्चिंत पड़ी है। कि मुर्तिकार अपना कार्य सौंदर्य देवी की प्रतिमा खूबसूरती से बना सके। मैं सौंदर्य देवी को देखते-देखते कब ठीक उसके चेहरे के ऊपर था पता नहीं चला। अचानक नीला ने चिहंुक कर आंखें खोल दीं। फिर जल्दी-जल्दी कई बार पलकें झपकाते हुए हाथ से अपने गालों को छुआ और उठ बैठी। दोनों हथेलियों में मेरा चेहरा लेते हुए बोली,

‘ये क्या! तुम रो रहे हो? हिम्मत से काम लो। मैंने कहा न सब ठीक हो जाएगा। कुछ होने वाला नहीं। पहले कभी तुम इतने कमजोर नहीं दिखे।’

उस वक़्त नीला मुझे अक्षतयौवना सी दिखी। न जाने तब उसका कैसा सम्मोहन था मुझपे कि वह मुझे धरा पर ईश्वर द्वारा भेजी ऐसी सौंदर्य प्रतिमा लगी जिसे ईश्वर शायद वस्त्र पहनाना भूल गया था। क्योंकि वह अपनी ही बनाई कृति के सौंदर्य में खुद ही सुध-बुध खो बैठा। और मैंने उस ईश्वर की अनुपम कृति पर कई बूंद आंसू टपका दिए थे जिसने उसमें प्राण डाल दिए थे। जीवित हो उठी वह प्रतिमा अब मुझे सांत्वना दे रही थी। समझा-बुझा रही थी फिर अपनी बांहो में समेट लिया। मेरे सब्र की सारी सीमा तब टूट गई और मैं फूटकर रो पड़ा था। वह कुछ न बोली। बांहों में लिए-लिए ही लेट गई। फिर उसने मुझेे कुछ न सोचने दिया। सुबह दोनों ही तब उठे जब मोबाइल पर घंटी बजी। बेटी ने मां को फ़ोन किया था।

ऑफ़िस में दिन भर मैं असाधारण रूप से शांत रहा। संजना दिमाग में ऐसी छायी रही कि निकल ही न सकी। उसके साथ बिताए एक-एक पल याद करता फिर उसको कई भद्दी गालियां देता। कुछ बातें ऐसी थीं जिनके मतलब मैं अब समझ पा रहा था। लतखोरी से उसकी जुगलबंदी, बॉस की कुछ ज़्यादा ही तारीफ। जबकि पहले उसी बॉस को गाली देती थी।

जिस-जिस दिन उसने मुझसे जो-जो कहा था वह अब ऐसे याद आ रहे थे कि लगता है जैसे आंखों के सामने मानो उन्हीं बातों पर केंद्रित फ़िल्म चल रही हो। मैं तब भी उसकी धूर्तता पकड़ नहीं सका जब वह घटना से दो-तीन महीने पहले से मुझसे बेरूखी दिखाने लगी थी। बुलाने पर भी नहीं सुनती थी। तब कुछ लोगों ने संकेतों में कहा भी था कि यह बड़ी धूर्त है, मतलब परस्त है, अपने स्वार्थ के लिए कुछ भी कर सकती है। संभल कर रहो। यह सब काम से मतलब रखने वाले लोग थे। अपने पति की जगह चपरासी की नौकरी करने वाली जीवन के करीब पांच दशक जी चुकी ननकई ने तो एक दिन अपने ठेठ अंदाज में कहा था,

‘साहब बुरा न मानो तो एक बात कही ?’

‘कहो।’

‘आप पढे़-लिखे हो, सब जानत हो। मुला हमहू पचास बरीस से दुनिया द्याखित है। हमरे हिआं ऐसी मेहुरूआ का नगिनया ब्वालत हैं। जेहिका डसा पानिऊ न मांगै।’

‘तुम किसकी बात कर रही हो ?’

‘अब साहब रिसियाओ न, सिजनवा कंहिआ सबै ऐइसे कहत हैं। जब आप रहत हों तौ आपसे बाझि रहत है नाहिं तो अऊर कई जन हैं उन्हसे बाझि रहत है। कइओ जने कै साथ तौ ऑफ़िसिया के बाद हीआं हुआं घूमा करत है। अबहिं पाछै महिनवा मा तौ यहू जानि पड़ा कि इ तोमर साहब कै साथ कहूं घूमत रहै तौ हुवैं उन क्यार बीवी पहुंच गई जिहिसे ऊबोलिन रहे घरै मां कि ऑफ़िस मां काम बहुत हवैं तो आय न पहिएं।’

‘अच्छा ठीक है। तुम जाओ।’

तब ननकई ने और कई बातें कहीं थी वह विस्तार से बताना चाहती थी। लेकिन मैं उस वक़्त उसकी बातें बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था। और उसे भगा दिया था। हालांकि उसने जो बताया था, प्रमाण सहित बताया था, मगर तब संजना इफेक्ट ने मेरा दिमाग शून्य कर दिया था। सच पर भी मैं गुस्सा हुआ था। मैंने उसके जाते ही संजना को बुलाया वह पहले की तरह हंसते हुए आ गई। मैंने केवल उसे चेक करने के लिए शाम को घूमने का प्रोग्राम मन न होते हुए भी बनाया वह एक पल देर किए बिना तैयार हो गई। मुझे ननकई पर तब और गुस्सा आया मगर कुछ सोचकर शांत हो गया। इस घटना के कुछ हफ्ते बाद मुझे कई चीजें ऐसी मिलीं जो बड़ी अजीब थीं। एक दिन उसने किसी पत्रिका में रेप और उससे संबंधित कानून, जांच आदि पर केंद्रित एक रिपोर्ट दिखाते हुए पूछा,

‘ये टी.एफ.टी. टेस्ट क्या होता है?’

मैंने कहा मुझे नहीं मालूम तो रिपोर्ट के साथ छपे एक बॉक्स को खोलकर सामने करते हुए कहा,

‘यह पढ़ो।’

मैंने पढ़ कर कहा,

‘यह तो बड़ा भयानक है। मेरी नज़र में तो यह जिसके साथ रेप हुआ उसी के साथ कानून के द्वारा किया जाने वाला एक और रेप है। मेरी तो समझ में नहीं आ रहा कि अंग्रजों के जमाने के इस अमानवीय कानून को अभी तक हमारी सरकार अमल में क्यों ला रही है।’

‘ला तो रही है लेकिन एक और रेप जैसा क्यों है ?’

‘क्या बेवकूफी भरा प्रश्न है। ये अत्याचार नहीं तो और क्या है। औरत के एक्स्ट्रीम सीक्रेट पार्ट पर पहले तो अपराधी धावा बोलता है। फिर जांच के लिए महिला के उसी हिस्से पर जांच करने वाली या वाले की दो अंगुलियां प्रवेश करती हैं। यानी टू फिंगर टेस्ट। इस पर मुर्खतापूर्ण तर्क यह कि यदि फिंगर ईजली इंसर्ट कर गई तो मतलब महिला हैविचुअल मानी जाएगी, अपराधी के छूटने के रास्ते खुल जाते हैं। अरे! किसी की शारीरिक बनावट भी तो ऐसी हो सकती है या फिर चेक करने वाले की अंगुलियां पतली भी तो हो सकती हैं। यह अवैज्ञानिक मूर्खतापूर्ण तरीका है कि नहीं। शारीरिक चोट, अपमान हर चीज औरत के हिस्से में। फिर कोर्ट में वकील ऐसे अश्लील, जलील बातें पूछता है कि पीड़ित महिला थक हार के पस्त हो जाती है। और मूंछों पर ताव देकर अपराधी फिर निकल पड़ता है अगले शिकार पर। ये तुमको एक और रेप जैसा नहीं लगता। मुझे लगता है एक औरत के नाते ऐसी औरतों की पीड़ा दर्द, मुझसे बेहतर तुम समझ सकती हो।’

‘अ....हां... औरतों की पीड़ा का जिक्र इतनी खूबसूरती कर रहे हो कि औरतें खुद भी न कर पाएं। मगर जनाब की यह कोमल हृदयता तब तो मुझे कहीं नहीं दिखती जब जनाबे आली मेरी एल.ओ.सी. पर घुसपैठ करते हैं।’

‘ओफ्फो तुम्हें इसके अलावा भी कुछ सूझता है क्या?’

‘हां सूझता क्यों नहीं, मगर तुम्हारे सामने बस यही सूझता है तो मैं क्या करूं।’

इतना ही नहीं इसके बाद भी टी.एफ.टी. को लेकर वह बड़ी देर तक निरर्थक फालतू बातें करती रही। वकील क्या-क्या पूछते हैं यह कुरेद-कुरेदकर पूछा। इसके बाद उसको लेकर मेरा तनाव धीरे-धीरे बढ़ता गया। और वह उतनी ही तेजी से मुझसे दूर होती गई। मेरे भरसक प्रयासों के बावजूद।

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