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किसी ने नहीं सुना - 15

किसी ने नहीं सुना

-प्रदीप श्रीवास्तव

भाग 15

मैं बिना कुछ बोले आज्ञाकारी फौजी की तरह डाइनिंग टेबिल के गिर्द पड़ी कुर्सी पर बैठ गया। नीला भी नाश्ता रखकर सामने बैठ गई। मेरे साथ ऐसे नाश्ता कर रही थी मानो सारी समस्या उसने हलकर ली है। मैं बडे़ असमंजस में था उसके इस बदले रूप से। नाश्ता ख़त्म होते ही उसने कहा,

‘कपडे़ चेंज करके आप आराम करिए मैं थोड़ी देर में खाना लगाती हूं।’

मेरी किसी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा किए बिना जाने लगी तो मैंने हौले से बच्चों के बारे में पूछा। नाश्ता करने के बाद मैं कुछ राहत महसूस कर रहा था। वह किचेन की तरफ बढ़ती हुए बोली,

‘दोनों मामा के यहां गए हैं। कल आएंगे। आज उनके बेटे का बर्थ-डे है।’

‘तुम नहीं गई ?’

इतना कहने पर पलटकर उसने एक नज़र मुझ पर डाली फिर बोली,

‘बच्चों के कमरे में आराम करिए। बेडरूम कल साफ करूंगी। खाना वहीं लेती आऊंगी।’

मैं समझ गया नीला इस बारे में कुछ बात नहीं करना चाहती। सारी बात उसने बिना कुछ कहे ही कह दी थी। आगे कुछ कहने की मैं हिम्मत नहीं कर सका। चेंज करके लेट गया बच्चों के कमरे में। नीला के बदले रूप को समझने में मैं लगा हुआ था। मगर हर चीज पर भारी था सस्पेंशन। सारी आशाओं के विपरीत नीला ने बच्चों के बेड पर मेरे साथ ही पूरे मन से खाना खाया। फिर बच्चों के अलग पड़े बेड को मिला दिया। डबल बेड बना दिया। इतना ही नहीं जब स्लीपिंग गाउन पहकर आई तो स्प्रे भी कर लिया था। यहां तक कि बेड पर भी काफी स्प्रे कर दिया।

उसकी इस हरकत से मैं अंदर-अंदर कुढ़ गया। मन में आया यहां नौकरी जा रही है। कल को खाने के लाले पड़ जाएंगे। और यह रोमांटिक हुई जा रही है। चाहती तो बच्चों को बुला सकती थी। आखिर उनका घर है ही कितनी दूर। मन में यही उथल-पुथल लिए मैं लेट गया। उसने मेरी कुढ़न को और बढ़ाते हुए बच्चों के लिए कमरे में लगे टी.वी. को ऑन कर दिया और फिर बड़े बेफिक्र अंदाज में सटकर लेट गई। मैं आखिर खुद को रोक न सका।

‘आज बहुत बुरा हुआ। बड़ा मनहूस दिन है मेरे लिए।’ आगे कुछ बोलने से पहले ही वह बोल पड़ी।

‘सब मालूम है मुझे। परेशान होने की ज़रूरत नहीं। सब ठीक हो जाएगा। तुम चाहोगे तो आगे भी हमेशा सब ठीक ही रहेगा।’

‘क्या ... ! क्या मालूम है तुम्हें ?’

‘यही कि संजना का कंफर्मेशन रुक गया है। तुम्हें सस्पेंड कर दिया गया है। तुमने लाख कोशिश की लेकिन वह धूर्त औरत तुमसे बात तक नहीं कर रही है।’

मुझे एकदम करंट सा लगा। मैं एक झटके में उठकर बैठ गया। और उतनी ही तेज़ी से पूछा,

‘ये सब तुमको कैसे मालूम। और इतनी आसानी से बोले जा रही हो जैसे कोई बात ही नहीं हुई।’

‘आराम से लेटो सब बताती हूं। रही बात तुम्हारी नौकरी की तो उसे कुछ नहीं होने वाला। मैंने सब ठीक कर लिया है। आश्चर्य नहीं कि तुमको सस्पेंड करने वाला तुम्हारा बॉस कुछ दिन बाद अपनी नौकरी बचाने के लिए तुमसे मदद मांगे।’

‘पागल हो गई हो क्या? आयं-बायं-सायं बके जा रही हो। ऑफिस है तुम्हारा घर नहीं कि जो चाहो कर लो। बॉस कोई ऐसा वैसा आदमी नहीं है। जो मुझसे मदद मांगने आएगा।’

‘आएगा देख लेना। मैं भी कोई ऐसी-वैसी औरत नहीं हूं। मेरा नाम भी नीला है। तुम्हारी बीवी हूं समझे। और तुम शायद भूल गए कि तुम्हारी कंपनी का मालिक प्रिंट पेपर, किताबों की बिक्री के लिए मेरे उसी नेता भाई पर पूरी तरह डिपेंड है जिससे तुम आवारा, छुटभैया नेता कहकर सारे संबंध खत्म किए हुए हो।

जब तुम रात भर गायब रहे तो उसी ने तुम्हारी सारी खोज खबर ली। तुम ज़रूर उसे दुत्कारते रहते हो, बरसों से घर तक नहीं आने देते। उसी छुट्भैया नेता से तुम्हारे ऑफिस के कई लोग बेहद करीबी संबंध बनाए हुए हैं। इतना तो समझ ही गए होगे कि मुझे पल-पल की जानकारी क्यों रहती है। ऐसे आंखें फाड़कर क्या देख रहे हो। जो कह रही हूं एकदम सही कह रही हूं। जैसे अचानक सस्पेंशन लेटर मिला है न वैसे ही जल्दी ही? रिवोक लेटर मिलेगा विथ प्रमोशन लेटर।’

‘अच्छा! वे छुट्भैया इतना बड़ा नेता हो गया है कि बड़े-बड़े बिजनेसमैन उसके आगे हाथ जोड़ते हैं। मदद मांगते हैं। मेरी नौकरी उसके दम पर है। इतना है तो फिर संजना को बाहर क्यों नहीं कर दिया अब तक।’

‘जो चाहोगे सब हो जाएगा। अभी तक मैंने उससे कुछ नहीं कहा था सिर्फ़ भाभी के घमंडी ऐंठू स्वभाव के कारण। कि वह मेरी खिल्ली उड़ाएगी।’

‘अब तो बता दिया अब नहीं उड़ाएगी क्या?’

‘मैंने उनसे बात ही नहीं की। भाई से फ़ोन पर बात की और मना भी कर दिया था कि भाभी को नहीं बताएं।’

‘और वो मान जाएंगे।’

‘मुझे यकीन है उस पर। आज तक उसने मेरी किसी बात को मना नहीं किया है।’

‘तब तो यह मानकर चलें कि अगले दो-चार दिन में संजना नौकरी से बाहर होगी। और बॉस अपनी नौकरी बचाने के लिए मेरे सामने गिड़-गिड़ा रहे होंगे।’

‘वो है ही इसी लायक। ऐसी कमीनी है जो चाहे जितनी जगह मुंह मार ले उसकी क्षुधा शांत नहीं होगी। उसकी चालाकी का अंदाजा इसी बात से लगा लो कि जब उसको वहां के लोगों से भाई की जानकारी हुई तो उसने कंफर्मेशन के लिए सीधे तुम्हारे बॉस को फांस लिया। तुम्हें मालूम है कि वह पिछले एक हफ्ते में दो रातें तुम्हारे बॉस के साथ बिता चुकी है। तुम्हारा बॉस चाहता तो तुम्हें सस्पेंशन से बचा सकता था लेकिन तुमको संजना से अलग कर अकेले यूज करते रहने के लिए ऐसा नहीं किया। वही बॉस जिसको तुम बड़े भाई की तरह मानते हो।’

‘तुम इतने यकीन से कैसे कह सकती हो।’

‘भाई ने सब पता किया। तुम्हारे ऑफ़िस के लोगों ने ही सब बताया। इतना ही नहीं वहां की बातें सुनकर तो मेरी नसें तनाव से फटने लगीं। मुझे या भाई को लोगों ने इसलिए नहीं बताया कि वे हमसे डरते हैं या फिर हमारे हितैषी हैं।

इसलिए बताया क्योंकि सभी वहां एक दूसरेे को जानवर की तरह काट खाने में लगे हैं। मुझे तो उस समय तुम पर बड़ा तरस आया कि आखिर तुम कैसे रहते हो जानवरों के झुण्ड में। जो लोग सब बता रहे थे वे तुम्हारे मामले के जरिए अपना-अपना उल्लू सीधा करने में लगे हुए थे। जिसको तुम लोग लतखोरी लाल कहते हो दरअसल ज़्यादातर लोग उससे त्रस्त हैं। वो लोग उसको इसी बहाने ठिकाने लगाने में लगे हुए हैं। पहले मुझे लगा कि वहां वह अकेला इतना गंदा इंसान होगा लेकिन भाई जब तह तक पहुंचा तो पता लगा वहां तो हर तीसरा आदमी ही लतखोरी लाल है।

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