एम.ए. का रिज़ल्ट निकला था। मैं यूनिवर्सिटी जा कर अपनी मार्कशीट ले आई थी। पैंसठ प्रतिशत नम्बर आए हैं। इससे अधिक की मैंने उम्मीद भी नहीं की थी। इससे अधिक मेहनत भी नहीं की थी। अपनी डिवीज़न और नम्बरों से मैं संन्तुष्ट ही थी। किन्तु जब सुना था कि डिपार्टमैन्ट में मुझसे अधिक सिर्फ एक लड़के के नम्बर हैं तब बुरा लगा था। अपने ऊपर झुंझलाहट भी हुयी थी कि थोड़ी सी मेहनत और कर ली होती तो फर्स्ट पोज़ीशन आ जाती। पर चलो कुछ तो है ही, फिर बुरा भी नहीं। मैंने यश को फोन करके बताया था। यश ने मुझसे हज़रतगंज क्वालिटी में मिलने के लिए कहा था। क्वालिटी की कालीन पड़ी नरम सीढ़ियॉ चढ़ कर मैं ऊपर पहुची थी तो यश वहॉ पहले से इन्तज़ार कर रहे थे। बैरा हम दोनों को पहचानता है। उसने यश के सामने की कुर्सी मेरे बैठने के लिए खींच दी थी।

Full Novel

1

होने से न होने तक - 1

होने से न होने तक 1. एम.ए. का रिज़ल्ट निकला था। मैं यूनिवर्सिटी जा कर अपनी मार्कशीट ले आई पैंसठ प्रतिशत नम्बर आए हैं। इससे अधिक की मैंने उम्मीद भी नहीं की थी। इससे अधिक मेहनत भी नहीं की थी। अपनी डिवीज़न और नम्बरों से मैं संन्तुष्ट ही थी। किन्तु जब सुना था कि डिपार्टमैन्ट में मुझसे अधिक सिर्फ एक लड़के के नम्बर हैं तब बुरा लगा था। अपने ऊपर झुंझलाहट भी हुयी थी कि थोड़ी सी मेहनत और कर ली होती तो फर्स्ट पोज़ीशन आ जाती। पर चलो कुछ तो है ही, फिर बुरा भी नहीं। मैंने यश ...और पढ़े

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होने से न होने तक - 2

होने से न होने तक 2. खाने की मेज़ पर बैठे ही थे कि कुछ ख़ास सा लगा था, आयोजन जैसा। सबसे पहले निगाह सलाद की प्लेट पर पड़ी थी। प्याज टमाटर और खीरे के चारों तरफ लगाई गई सलाद की पत्तियॉ, बीचो बीच मूली और गाजर से बने गुलाब के दो फूल-सफेद और नारंगी रंग के। पहला दोंगा खोला था-गरम गरम भाप निकलते हुए कोफ्ते, टमाटर वाली दाल,दही पकौड़ी और मिक्स्ड वैजिटेबल। श्रेया खाना देख कर चहकने लगी थी। बुआ हॅसी थीं ‘‘क्या बात है दीना आज तो तुमने अपनी पूरी कलनरी स्किल्स मेज़ पर सजा दी हैं।’’ ...और पढ़े

3

होने से न होने तक - 3

होने से न होने तक 3. दूसरे दिन मैं सारे सर्टिफिकेट्स की प्रतिलिपि लेकर डिपार्टमैंण्ट गई थी। उन पत्रों सरसरी निगाह डाल कर हैड आफ द डिपार्टमैण्ट डाक्टर अवस्थी ने उन पर दस्तख़त कर दिए थे। ‘‘थैंक्यू सर’’ कह कर मैं पलटने लगी थी कि उन्होंने सिर ऊपर उठाया था, ‘‘आगे क्या इरादा है अम्बिका?’’ मैं रुक गई थी,‘‘जी नौकरी ढॅूड रही हूं।’’ उन्होने भृकुटी समेटी थी,‘‘क्यो रिसर्च नहीं करना चाहतीं?’’ ‘‘जी। जी करना चाहती हॅू।’’ मैं हकला गई थी ‘‘पर..पर सर नौकरी तो मुझे करनी है।’’ मैं चुप हो गई थी। आगे उन्होने फिर सवाल किया तो क्या ...और पढ़े

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होने से न होने तक - 4

होने से न होने तक 4. देहरादून में मेरा जल्दी ही मन लग गया था। यश दून स्कूल में रहे थे। उसकी कज़िन मेधा मेरे साथ मेरे ही क्लास और सैक्शन में वैल्हम में। हम तीनों के एक ही लोकल गार्जियन। वीक एण्ड पर अक्सर मिलना होता। मॉ के रहते यश को जानती भर थी पर अब वह मेरा बहुत ख़्याल रखते। वह घर से दूर एक ही शहर और पुराने परिचित होने की निकटता तो थी ही पर साथ ही मुझे लगता मॉ के न रहने के कारण यश मेरे प्रति कुछ अधिक ही संवेदनशील हो गए थे। ...और पढ़े

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होने से न होने तक - 5

होने से न होने तक 5. बाबा दादी से कई बार पहले भी मिल चुकी हॅू मैं। कभी उनको भर था और कभी उनके साथ एक दो दिन के लिए रहना हुआ था। उतना थोड़ा सा समय तो पहचान के लिए ही काफी नही होता फिर उसको जानना तो कहा ही नही जा सकता। अब की से पहली बार काफी दिनों के लिए एक साथ लग कर रहना हुआ है। दो हफ्ते से हैं वे लोग। दिन मेरा नीचे अपने ही कमरे मे उन लोगों के साथ ही बीतता है, फिर मेरे कपड़ों की अल्मारी,किताबें वगैरा सब इसी कमरे ...और पढ़े

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होने से न होने तक - 6

होने से न होने तक 6. तीन दिन बाद मैं ग्यारह बजे से कुछ पहले ही चन्द्रा सहाय डिग्री पहुच गयी थी। समय पर कमरे के बाहर खड़े चपरासी को मैंने अपने नाम की पर्ची दे दी थी। शीघ्र ही मुझे अन्दर स बुला लिया गया था। प्रिंसिपल की कुर्सी के बगल की कुर्सी पर एक स्वस्थ से गौर वर्ण के सज्जन बैठे हैं। चेहरे पर रौब और भेदती हुई गहरी निगाहें। मैंने अपने आप को संयत करने की कोशिश की थी। पता नहीं क्यों लगा था जैसे मेरी ऑखें पसीजने लगी हों। मैंने अपने आप को समझाया था...ऐसा ...और पढ़े

7

होने से न होने तक - 7

होने से न होने तक 7. शाम को मैंने आण्टी को फोन किया था। अपनी नौकरी लगने की बात थी। आण्टी ने आश्चर्य से दोहराया था,‘‘चन्द्रा सहाय कालेज के डिग्री सैक्शन में ?’’ ‘‘जी आण्टी।’’ उनकी आवाज़ में ख़ुशी झलकने लगी थी,‘‘मैं तुम्हारे लिए बहुत ख़ुश हूं बेटा। वेरी प्राउड आफ यू आलसो।’’ उनकी ख़ुशी, उनके उद्गार एकदम सच्चे और स्वभाविक लगे थे। ‘‘आपके कारण आण्टी,’’ मैंने भी सच्चे मन से उनके प्रति अपना आभार व्यक्त किया था। आज मैं यह बात अच्छी तरह से समझ गई थी कि एजूकेशन एकेडमी के प्रंबधक को सब से अधिक मेरी अच्छी ...और पढ़े

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होने से न होने तक - 8

होने से न होने तक 8. बुआ का चेहरा उतर गया था किन्तु उन्होने उस बात पर आगे कोई नहीं की थी। वे वैसे भी आण्टी के साथ विवाद में नही पड़तीं। यश ने कुछ परिहास किया था। आण्टी के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आयी थी और फिर वे गंभीर हो गयी थीं,‘‘नही यश मज़ाक की कोई बात नहीं। मैं बहुत अच्छी तरह से अम्बिका की तकलीफ समझ सकती हूं। उसकी अपने घर में रहने की इच्छा भी। उसमें कुछ भी ग़लत नहीं है। बल्कि वही नैचुरल और सही है। आई एम हैप्पी कि उसने वहॉ जा कर ...और पढ़े

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होने से न होने तक - 9

होने से न होने तक 9. मैं नहा कर बाहर निकली तो बुआ मेरा इंतज़ार कर रही थीं। वे कुछ लंबे क्षणों तक ध्यान से देखती रहीं थीं,‘‘तुम भाभी से बहुत रिसैम्बल करती हो। शादी हो कर आई थीं तब वे बहुत कुछ तुम्हारी जैसी ही दिखती थीं।’’ बुआ चुप हो गयी थीं। पर वे मुझे उसी तरह से देखती रही थीं ‘‘कभी कभी भैया भाभी की बहुत याद आती है।’’ मैं चुप रही थी। कुछ देर तक बुआ जैसे कुछ सोचती रही थीं। जैसे तौल रही हों कि कहें या न कहें। वैसे सोंच कर बोलना उनका स्वभाव ...और पढ़े

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होने से न होने तक - 10

होने से न होने तक 10. ‘‘बुआ मैं आपकी कुछ मदद करुं?’’ मैंने अपनेपन से पुकारा था। उन्होने चौंक मेरी तरफ देखा था। कुछ क्षण को हाथ ठहरे थे,‘‘नहीं बेटा।’’और वे फिर से काम में व्यस्त हो गयी थीं। शाम को आण्टी सही समय पर आ गयी थीं। उनके साथ यश को देखकर मुझे अच्छा लगा था। बुआ की स्वागत की मुस्कान में विस्मय था,‘‘अरे यश भी आए हैं?’’ जवाब आण्टी ने दिया था,‘‘असल में अम्बिका का घर देखने चल रहे हैं न। सोचा यश की भी राय मिल जाएगी। फिर रिपेयर्स और पालिशि्ांग वगैरह के लिए तो हमें ...और पढ़े

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होने से न होने तक - 11

होने से न होने तक 11. चलने से पहले आण्टी ने एक लिफाफा मेरी तरफ बढ़ाया था। ‘‘यह क्या आण्टी ?’’मैंने पूछा था। ‘‘यह चार हज़ार रुपए हैं। नौकरी ज्वायन करने से पहले अपने कुछ कपड़े बनवा लो। पर्स,दो तीन जोड़ी चप्पलें या और जो कुछ लेना हो।’’ सुबह ही मैं अपने कपड़ो को लेकर उलझी हुयी थी। आण्टी को कोई रुहानी ख़बर हो गई क्या ? इस समय आण्टी का पैसा देना मुझे अच्छा लगा था फिर भी अजब सा संकोच महसूस हुआ था,‘‘इसकी क्या ज़रुरत थी?’’ उन्होने डॉटती निगाह से मेरी तरफ देखा था और लगभग डपट ...और पढ़े

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होने से न होने तक - 12

होने से न होने तक 12. डाक्टर दीपा वर्मा उठ कर खड़ी हो गयी थीं,‘‘चलिए मैं आपको स्टाफ रूम दूं और आपको सबसे मिलवा दूं।’’ वे बहुत तेज़ी से बाहर निकल गयी थीं...छोटा सा कद, छोटे छोटे कदम। लगा था जैसे वे दौड़ते हुए चल रही हो। उसी तेज़ी से वे सीढ़ियॉ चढ़ने लगी थीं। उनके पीछे पीछे मैं। हम लोगों के स्टाफ रूम में पहुचते ही कमरे में उपस्थित सभी लोग उठ कर खड़े हो गए थे...नमस्ते दीदी...नमस्कार दीपा दी, गुड मार्निग मैम की अलग अलग आवाज़ें आने लगीं और मिस वर्मा के चेहरे पर एक उत्तेजित सा ...और पढ़े

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होने से न होने तक - 13

होने से न होने तक 13. कौशल्या दी लखनऊ आ कर क्यों रह रही हैं इसके सबने अलग अलग बताए थे। दीदी के पति की अपने पिता से नहीं पटती इसलिए चली आई हैं वे। किसी ने यह भी बताया था कि वे अपनी निसंतान मौसी को बहुत प्यार करती थीं और मौसी के अकेले रह जाने पर उन्हीं के पास आ गई थीं और यहीं रह कर पढ़ाई पूरी की और एलाटमैन्ट की बड़ी सी केठी में मौसी के निधन के बाद भी रहती रहीं। मौसी इस कालेज की फाउंडर मैम्बरों में से थीं। शुरु में कौशल्या दी ...और पढ़े

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होने से न होने तक - 14

होने से न होने तक 14. नीता और केतकी दोनो ही कालेज नहीं आए थे। क्लास हो जाने के मेरा रुके रहने का मन नही किया था। कालेज से निकल कर मैं गेट के बाहर रिक्शे के इंतज़ार में खड़ी हो गयी थी। कोई ख़ाली रिक्शा दूर तक नहीं दिख रहा। तभी मानसी चतुर्वेदी का रिक्शा बगल में आकर खड़ा हो गया था,‘‘किसी का इंतज़ार कर रही हैं?’’उन्होने पूछा था। मैं एकदम चौंक गयी थी,‘‘किसी का नहीं। रिक्शा देख रही हूं। कोई ख़ाली नही मिल रहा।’’ ‘‘अरे आज रिक्शे पर जा रही हैं?’’उन्होंने अचरज से मेरी तरफ देखा था। ...और पढ़े

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होने से न होने तक - 15

होने से न होने तक 15. यश आते ही रहते हैं। जौहरी परिवार का भी ऊपर आना जाना बना है। न जाने कब और कैसे यश उनके बच्चों से घुल मिल गए थे। विनीत अपनी मैथ्स की प्राब्लम्स जमा करता रहता है और जब भी यश के पास समय होता है तब अच्छी तरह से उनसे बैठ कर पढ़ता है। कभी कभी तो लगने लगता है जैसे मेरे घर में कक्षाऐं चल रही हां। यश विनीत को और मैं शिवानी को पढ़ाते रहते हैं। बीच बीच में चाय पकौड़ी के दौर भी चलते रहते हैं। शाम को यश आए ...और पढ़े

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होने से न होने तक - 16

होने से न होने तक 16. यश के साथ क्वालटी में खाना खाने के बाद लौटने लगी तो मुझे ध्यान आया था कि बहुत दिन से बुआ से मिलना नही हुआ है। मैंने वहीं से बुआ को फोन किया था और घर आने के बजाय उनके पास चली गयी थी। बुआ ने बहुत ख़ुश हो कर मेरा स्वागत किया था। इतने दिन तक न आने को लेकर उलाहना भी दिया था,‘‘क्यो बेटा बुआ से अब मिलने का भी मन नहीं करता। हम सोच ही रहे थे कि तुम्हारे कालेज फोन करें या फिर दीना को ही भेजें। भई तुम ...और पढ़े

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होने से न होने तक - 17

होने से न होने तक 17. मानसी जी कभी भी, किसी भी समय मेरे घर आ जातीं है और हम दोनो की बातें होती रहतीं हैं। कुछ अजब तरीके से उन्हांने मुझे अपने संरक्षण के साए में समेट लिया है। वे मेरा ख़्याल करतीं और छोटी बड़ी बातों में मुझे सुझाव ही नहीं निदेश और आदेश भी देती रहतीं हैं। मैंने भी उनका बड़प्पन सहज ही स्वीकार कर लिया था। मीनाक्षी और केतकी उनकी इस बात पर देर तक बड़बड़ाती रहतीं। पर फिर भी अन्जाने ही मानसी जी भी हमारी अंतरग मंडली में शामिल होने लग गयी थीं। संभवतः ...और पढ़े

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होने से न होने तक - 18

होने से न होने तक 18. कौशल्या दीदी उठ कर खड़ी हो गयी थीं और खाना शुरू कराने के सबकी प्लेटों में परोसने लगी थीं। सब लोग अपनी अपनी बातें कहने लगे थे। थोड़ी ही देर में अलग अलग अनुभवों से गुज़रते हुए वार्ताक्रम सहज होने लग गया था। शुरू में जब मैं नई नई कालेज आयी थी तब मुझ को अजीब लगा करता था कि ये सब ऐसे कैसे अपने परिवार की, अपने संबधों और समस्याओं की बातें आपस में एक दूसरे के सामने कर लेते हैं...एक दूसरे से अपना दुख सुख मान सम्मान सब बॉट लेते हैं। ...और पढ़े

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होने से न होने तक - 19

होने से न होने तक 19. घर के सामान में काफी चीज़े ख़तम हो गयी हैं। कुछ मैचिंग रूबिया लेने हैं सो शापिंग के लिए हज़रतगंज चली गई थी। काम जल्दी ही निबट गया था। बगल से निकलते रिक्शे को मैंने रोका था,‘‘यूनिवर्सिटी की तरफ राय बिहारी लाल रोड जाना है।’’ बताने पर रिक्शे वाले नें फिर से पैडल पर पैर रख लिए थे,‘‘नहीं जी हम तो सदर की तरफ जा रहे हैं।’’ उसने हाथ से सामने की तरफ इशारा किया था। सदर की बात सुनकर अनायास ही मैंने वहॉ से कौशल्या दी के पास जाने का मन बना ...और पढ़े

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होने से न होने तक - 20

होने से न होने तक 20. शशि अंकल मानसी की तरफ देख कर हॅसे थे, ‘‘तू क्यों विरोध कर है। मैंने तो सबसे पहले तेरा ही सब्जैक्ट चुना है।’’ ‘‘क्यों मानसी के साथ यह फेवर क्यों?’’कई आवाज़े एक साथ आयी थीं। शशि कान्त अंकल ने अपनी बात जारी रखी थी, ‘‘एक तो सोशालजी अकेला डिपार्टमैंन्ट है जिसमें टीचर्स की संख्या सात है। फिर इस सब्जैक्ट में लड़कियॉ भी बहुत ज़्यादा हैं और मानी हुयी बात है कि एम.ए.के लिए हमें स्टूडैन्ट्स के कम होने का कोई डर नही होगा।’’ मानसी मुस्कुरायी थीं पर साथ ही अपने नज़रिए पर टिकी ...और पढ़े

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होने से न होने तक - 21

होने से न होने तक 21. डाक्टर उदय जोशी लखनऊ आए थे तो उन्होने मीनाक्षी को सूचित किया था। उनसे मिलने गयी थी। जितने दिन भी वे रहे थे लगभग हर दिन ही मीनाक्षी उनसे मिलने जाती रही थी। लगभग डेढ़ साल में उसकी थीसिस पूरी हो गयी थी। उसकी फाइनल प्रति बनाने से पहले वह डाक्टर जोशी के पास दिल्ली गयी थी। वहॉ से लौट कर उसने थीसिस को फाइनल टाइप करा कर उसे जमा कर दिया था। लगभग एक साल में एन्थ्रोपालिजी डिपार्टमैंण्ट में पी.जी. खुलने की अनुमति आ गयी थी। उसके बाद पूरे बचे हुये सैशन ...और पढ़े

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होने से न होने तक - 22

होने से न होने तक 22. एक महीने के भीतर ही यश के सिंगापुर शिफ्ट हो जाने की बात हो गयी थी। मेरी ऑखों में ऑसू तैरने लगे थे,‘‘तुम मुझसे छिपाते रहे यश। इसीलिए गए थे तुम सिंगापुर।’’ ‘‘हम लोग बिज़नैस मैटर्स तय करने के लिए ही गए थे अम्बि। पर बिलीव मी मेरे वहॉ शिफ्ट होने की बात नहीं थी। असल में मम्मा वहॉ जाना चाहती थीं। वहॉ हमारी मौसी का परिवार है। मॉ और मौसी मिल कर बिग स्केल पर इण्डियन सामान के साथ फैशन स्टोर खोलना चाहती थीं। कुछ मशीनरी टूल्स के प्रोडक्शन की भी बात ...और पढ़े

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होने से न होने तक - 23

होने से न होने तक 23. आज इतवार है। यश को गए आज सात हफ्ते हो गए-एक महीना अठ्ठारह मैं तो यश के जाने के दूसरे दिन से ही दिन गिन रही हूं। गिनती दिन से चल कर माह तक पहुच चुकी है। क्या ऐसे ही वर्षो की आमद शुरू हो जाएगी? साल...दो साल...दस साल। जब तक जीयूंगी क्या यूं ही हिसाब लगाती रहूंगी...बे मतलब। जानती हूं उससे कुछ भी हासिल नहीं होना है...फिर भी। फिर भी क्या कहे अपने आप को ? मूर्ख। उससे भी क्या होना है। यह मूर्खता तो एकदम लाइलाज है। उस दिन कहॉ सोचा ...और पढ़े

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होने से न होने तक - 24

होने से न होने तक 24. कौशल्या दी ने दीपा दी से फोन पर मिलने आने की बात पहले तय कर ली थी इसलिए वे प्रतीक्षा करती हुयी ही मिली थीं। वे सुस्त थीं पर...पर व्यथित नहीं लगी थीं। शायद सारे आरोपों के निबटारे का सुकून था चेहरे पर। सच तो यह है कि ग्रान्ट्स के मिसएप्रोप्रिएशन को लेकर शशि अंकल और वे दोनो ही किसी सीमा तक फॅस सकते थे। शायद इसीलिए वे थोड़ी दुखी लगी थीं पर साथ ही थोड़ी शॉत और शायद चेहरे पर भयमुक्त हो जाने का एक निश्चिन्त भाव भी। जैसे किसी असाध्य रोगी ...और पढ़े

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होने से न होने तक - 25

होने से न होने तक 25. मैं और नीता मीनाक्षी के लिए दुखी होते रहे थें,‘‘मूर्ख लड़की’’ नीता ने था और वह बहुत देर तक केतकी पर झुंझलाती रही थीं,‘‘अभी दो साल पहले ही ओहायो वाले उस लड़के से शादी ठहरने की संभावना भर पर कितनी ख़ुश थी यह लड़की। इस केतकी ने सूली चढ़वा दिया इसे।’’ ‘‘घर वालों ने इस शादी को एक्सैप्ट कर लिया केतकी ?’’नीता ने बाद में उससे पूछा था। केतकी विद्रूप भरी हॅसी थी,‘‘तुम ऐसा सोच भी कैसे सकती हो नीता कि वे लोग मान लेंगे इस रिश्ते को?वे लोग इतने सुलझे हुए नही ...और पढ़े

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होने से न होने तक - 26

होने से न होने तक 26. मन में उलझन बनी रही थी। दूसरे दिन कालेज जाने पर मैं बहुत तक नीता से उस विषय में बात करती रही थी। तभी मीनाक्षी और केतकी भी वहॉ आ गये थे। ‘‘यश क्या चाहते हैं यह बाद में सोचना। पहले यह तो समझ लो कि तुम क्या चाहती हो,’’ नीता ने कहा था। ‘‘दिल के पास कोई ज़ुबान होती है जो वह बोल कर बताएगा कि वह क्या चाहता है। यश वहॉ सिंगापुर का अपना बिज़नैस संभाल रहे हैं। आते हैं तो सीधे तुम्हारे पास दौड़े आते हैं और तुम उनके नाम ...और पढ़े

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होने से न होने तक - 27

होने से न होने तक 27. प्रबंधक राम सहाय जी नें लाइब्रेरी कमेटी की मीटिंग बुलायी थी। दीपा दी उसके लिए पॉच टीचर्स की कमेटी बना दी है। आर्ट फैकल्टी के तीन और साईंस और कामर्स से एक एक टीचर। हम सब उनके कमरे में पहुंचे तो दीपा दी वहॉ पहले से मौजूद थीं और बहुत तरो ताज़ा और प्रसन्न दिख रही थीं। राम सहाय जी ने अपनी बात शुरू की थी,‘‘मैं लाइब्रेरी का एक्सपैंशन करना चाहता हॅू। हर तरह से उसे फैलाना चाहता हॅू। उसकी बिल्डिंग को भी और किताबों को भी। हम देखतें हैं कि इसके लिए ...और पढ़े

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होने से न होने तक - 28

होने से न होने तक 28. राम सहाय जी दीपा दी की तरफ देख कर हॅसे थे,‘‘नहीं अब यहॉ काम ख़तम हुआ। चाची ने तो मुझसे कुछ महीनों के लिए काम संभालने की बात की थी। पता ही नही चला,मुझे तो यहॉ तीन साल हो चुके हैं। फाइनैन्स बुक्स एकदम ठीक हो चुकी हैं। आप सब ठीक से समझ गयी हैं। अब मैं यहॉ के लिए एकदम निश्चिंत हूं।’’उन्होने चपरासी को बुलाया था, जेब से रुपये निकाले थे और उससे सबके लिए चाय लाने के लिए कहा था,‘‘इस कालेज की फाउण्डर मेरी चाची हैं। चाची तब कालेज को लेकर ...और पढ़े

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होने से न होने तक - 29

होने से न होने तक 29. हरि सहाय जी ने नये मैनेजमैण्ट को चार्ज दे दिया था। हमारा डिग्री जिस मूल संस्था के अन्तर्गत काम करता है उस का नाम बाल एवं महिला कल्याण परिषद है जिसकी देखरेख में हमारे डिग्री कालेज से लेकर प्रायमरी सैक्शन तक अलग अलग शिक्षण संस्थॉए आती हैं। इसके अतिरिक्त एक प्रोडक्शन सैन्टर है जहॉं ग़रीब और बेसहारा औरतों को सिलाई कढ़ाई और चिकनकारी का काम सिखाया जाता है। इन स्त्रीयों को बजीफा तो मिलता ही है साथ ही यहॉ बने सामान की बिक्री से जो भी पैसा मिलता है उसका कुछ प्रतिशत भी ...और पढ़े

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होने से न होने तक - 30

होने से न होने तक 30. हर वर्ष की तरह जाड़े की छुट्टी से पहले वार्षिक उत्सव और उसके कुछ दिन के लिए विद्यालय बन्द होना था। डाक्टर दीपा वर्मा ने कल्चरल कमेटी से कहा था कि हम लोग जा कर अध्यक्षा और प्रबंधक से जा कर मिल लें और मुख्य अतिथि वे किसे बुलाऐंगे उनसे तारीख और समय तय कर लें ताकि कार्ड आदि के सभी काम समय से किए जा सकें। उस दिन दीपा दी को किसी ज़रूरी मीटिंग में यूनिवर्सिटी जाना था।’’ पिछले सालों के एक दो कार्ड हम लोगों ने साथ रख लिए थे कि ...और पढ़े

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होने से न होने तक - 31

होने से न होने तक 31. लड़कियों ने स्टेज पर एैंन्ट्री ली ही थी कि प्रबंध समीति कि एक सदस्या जिनको अभी किसी ने कमला जी नाम से पुकारा था वे हाथ ऊपर कर रुकने का निर्देश देती हुयी उठ कर खड़ी हो गयी थीं ‘‘तुम सब स्टेज की एक तरफ की विंग से एक साथ एैन्ट्री न लेकर दो हिस्सों में दोनो विंग से एक साथ अन्दर आओ फिर एक दूसरे के पीछे हो जाओ।’’ लड़कियॉ परेशान हाल सी मंच पर खड़ी एक दूसरे की तरफ देखने लगी थीं। ‘‘अरे’’ हम सब के मुह से एक साथ निकला ...और पढ़े

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होने से न होने तक - 32

होने से न होने तक 32. नये तंत्र के साथ वह पहला साल ऐसे ही बीत गया था। शुरू में इस तरह की बातें सुनते तो मन बेहद आहत महसूस करने लगता। धीरे धीरे मिसेज़ चौधरी के इस तरह के वक्तव्यों को सुनने की आदत हम सब को पड़ने लगी थी, प्रबंधतंत्र से दूरी की भी। विद्यालय से अजब सा रिश्ता हो गया था। कालेज की गतिविधियों से न तो हम लोग पूरी तरह से जुड़ा हुआ ही महसूस कर पाते न पूरी तरह से कट ही पा रहें थे। कालेज की हवाओं में एक बेगानापन रच बस गया ...और पढ़े

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होने से न होने तक - 33

होने से न होने तक 33. डा.ए.के.जोशी दम्पति के आते ही सब लोग बाहर के कमरे में आ गए मीनाक्षी रो रही है। कुछ क्षण तक सब लोग चुपचाप बैठे रहे थे। एक असहज सा सन्नाटा कमरे में फैल गया था। सबसे पहले डा.जोशी बोले थे। अपने से केवल एक साल छोटे भाई को उन्होंने जैसे एकदम से दुत्कारना शुरू कर दिया था। फिर चाचा बोले थे। फिर प्रदीप। वह बातचीत भर नहीं थी। लगा था कमरे में गोला बारूद फटने लगे थे। कई कई ज्वालामुखी एक साथ लावा उगलने लगे थे। उदय जी चुपचाप सिर झुकाए बैठे रहे ...और पढ़े

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होने से न होने तक - 34

होने से न होने तक 34. लड़कियों को बता दिया गया था कि अब की से चार दिन का कैम्प नाट्य सभागृह मे होगा। कैंण्टीन इंन्चार्ज को बुला कर रिफ्रैश्मैंट के ढाई सौ पैकेट ग्यारह से चौदह जनवरी तक नाट्यालय में पहुंचाने के लिये बता दिया गया था। मानसी बड़बड़यी थीं,‘‘लो भईया फेको नाली में सरकार का पैसा। क्या बढ़िया समाज सेवा है।’’ प्रियंवदा सिन्हा मधुर सा हॅसी थीं,‘‘मानसी तुमऽ भीऽऽ। ख़ुद ही सुझाती हो और ख़ुद ही बड़बड़ाती हो।’’ ‘‘और क्या’’ मानसी ने दीपा दी की तरफ देखा था,‘‘दीदी के कारण सुझाया था और उनके कारण बड़बड़ा रहे ...और पढ़े

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होने से न होने तक - 35

होने से न होने तक 35. जितनी आसानी से और जितनी जल्दी यश ने हॉ कर दी थी उसको कर मन में बाद तक कुछ चुभता रहा था। क्या यश मेरी तरफ से ही आग्रह किए जाने की प्रतीक्षा कर रहे थे ताकि किसी भी प्रकार के अपराध बोध से मुक्त रह सकें वे? क्या आण्टी समझ गयी थीं वह बात? ख़ैर जो भी हो। एक अकेलापन है। एक जान लेवा ख़ालीपन दिल और दिमाग पर जम गया है। मुझे तो एक एक क्षण बिताना कठिन हो रहा है। यश के बिना यह जीवन कैसे कटेगा पता नहीं। लग ...और पढ़े

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होने से न होने तक - 36

होने से न होने तक 36. बीस तारीख की मीटिंग का नोटिस आया है। मीटिंग होने की बात पर सब को थोड़ी उलझन हो जाती है। पता नही किस बात पर मिसेज़ चौधरी चिड़चिडाने लगें,किस बात पर तानों की भाषा में बोलने लगें। फिर इस बार विशेष रूप से लगा था कि अभी कुछ दिन पहले हुई कार्यशाला के संदर्भ में न बुलायी गयी हो यह मीटिंग। वैसे तो सभी कुछ बहुत अच्छी तरह से निबट गया था पर अपने इतने लम्बे अनुभव से हम लोग जान चुके हैं कि मिसेज़ चौधरी को सही दिखायी नहीं देता है और ...और पढ़े

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होने से न होने तक - 37

होने से न होने तक 37. मीनाक्षी पटोला की गाढ़े लाल रंग की साड़ी पहन कर आयी थी। बहुत और बहुत ख़ुश लग रही थी। लाल रंग उस पर हमेशा फबता है। पर कालेज में इतने चटक रंग पहन कर तो वह कभी नहीं आती...वह भी इतनी भारी साड़ी। सच तो यह है कि प्रायः कोई भी इतने भड़कीले रंग नही पहनता,‘‘मीनाक्षी,आज बहुत सुंदर लग रही हो। क्या कहीं जा रही हो ?’’मैंने पूछा था। ‘‘नहींऽऽ’’ उसने बड़े झूम के कहा था। लगा था जैसे पूरी तरह से लहरा कर बोला हो उसने। वह अजब तरह से हॅसी थी ...और पढ़े

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होने से न होने तक - 38

होने से न होने तक 38. यूनिवर्सिटी की परीक्षाएं शुरु हो गई थीं और सभी काफी समय के लिए व्यस्त हो गए थे। कालेज आते हैं तो वहॉ मन नही लगता। घर जाते हैं तो वहॉ भी मन में बेचैनी बनी रहती है। ज़िदगी अजब तरह से उलझ गयी है। यश हर समय याद आते रहते हैं। यश से नाराज़ नही होना चाहती। उस नाराज़गी का कोई कारण भी नहीं है फिर भी हर क्षण अपने आप को आहत महसूस करती रहती हूं। फिर मीनाक्षी दिमाग में घूमती रहती है। उस पर कालेज का यह बदला हुआ माहौल। लगता ...और पढ़े

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होने से न होने तक - 39

होने से न होने तक 39 फरवरी के अन्तिम सप्ताह में अध्यक्षा मिसेज चौधरी का जिनयर से ले कर तक सभी विभागों के लिए ‘‘महिला दिवस’’ के उपलक्ष्य में कार्यक्रम आयोजित करने का सर्कुलर मिला था और सप्ताह के अन्त में उस संदर्भ में समीति के कार्यालय में आयोजित मीटिंग में सभी सैक्शन्स के प्राचार्यों को दो टीचर्स के साथ आने के आदेश दिए गए थे। हम सब ने दीपा दी से पूछा था ‘‘अब?’’ परीक्षाए निकट आ चुकी थीं-अध्ययन और अध्यापन दोनो ही तेज़ी पर थे। पढ़ाई को बहुत गंभीरता से न लेने वाले स्टूडैन्ट्स और टीचर्स भी ...और पढ़े

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होने से न होने तक - 40

होने से न होने तक 40. लॉन के दॉए तरफ के कोने में फूलों की गज्झिन सजावट है। किनारे रखी मेज़ पर बहुत सारे बुके रखे हैं। मुझे तो कुछ ध्यान ही नही था। मैं तो ऐसे ही ख़ाली हाथ ही आ गयी हॅू। वहॉ इस समय यश और आण्टी खड़े हैं और उनकी बगल में यश के कंधे से ऊपर आती हुयी वह लड़की शायद गौरी है...बेहद सुंदर, बेहद अभिजात्य। आण्टी ने कहा था कि हमे इतनी अच्छी लड़की इण्डिया में तो मिलती नहीं। शायद सही ही कहा था उन्होंने। क्या यश गौरी से सिंगापुर में पहले मिल ...और पढ़े

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होने से न होने तक - 41

होने से न होने तक 41. सुबह देर से ही ऑख खुली थी। मानसी जी शायद रसोई घर में सूजी भुनने की सोंधी सी महक चारों तरफ फैली हुयी है। शायद मानसी जी हलुआ बना रही हैं। अचानक शिद्दत से यश की याद आयी थी। क्या कर रहे होंगे यश? मेरे बारे मे सोच रहे होगे क्या ?मन में अचानक कितना कुछ घुमड़ने लगा था। वे बातें, वे यादें, जिनका कोई अर्थ नहीं। चाय नाश्ता कर के हम लोग घर के पीछे के ऑगन में बैठ गये थे। मानसी जी अन्दर से अख़बार ले आयी थीं और दोपहर में ...और पढ़े

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होने से न होने तक - 42

होने से न होने तक 42. शनिवार के लिए पूरे स्टाफ के साथ मैनेजमैंण्ट की मीटिंग का नोटिस मिला इस बार मीटिंग डिग्री कालेज के हॉल में नही, समीति के कक्ष में रखी गयी थी। नोटिस देख कर मानसी हॅसी थी,‘‘अबकी से अपने टर्फ पर बुलाया है। असल में वहॉ बेहतर हिट कर लेती हैं...छक्के पर छक्के...दोस्तों अपने अपने सिर पर हैल्मेट बॉध कर चलो।’’ लगा था सब लोग अन्दर के तनाव को हल्के फुल्के परिहास में ढक रहे हों जैसे,‘‘बिना क्लेश के तो मिसेज़ चौधरी की कोई मीटिंग निबटती ही नहीं है ।’’मिसेत़ द्विवेदी ने कहा था। ‘‘यह ...और पढ़े

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होने से न होने तक - 43

होने से न होने तक 43. प्रबंधतंत्र इस तरह के हथकण्डों पर उतर आएगा ऐसा हम सोच भी नही थे। ‘‘सारी पावर्स को अपने हाथ में ले लेने का तरीका है यह।’’मानसी जी ने कहा था। पास मे खड़े कई लोगों ने हामी भरी थी। ‘‘इनके इस सर्कुलर के बाद प्रिसिपल की न तो कोई अथॉरिटी ही बची है न उनका कोई रोल ही रह गया है।’’ केतकी धीरे से बुदबुदायी थी। उसके स्वर में झुंझलाहट है। दीपा दी के स्वर में थकान है,‘‘मैं यहॉ क्या कर रही हूं ।’’वे जैसे आत्मालाप कर रही हों,‘‘इस कुर्सी पर क्यों बैठी ...और पढ़े

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होने से न होने तक - 44

होने से न होने तक 44. पूरे आफिस में और सभी टीचर्स के बीच दीपा दी की तन्ख़ा रोक जाने की यह ख़बर फैल गयी थी। जो टीचर्स दमयन्ती के खेमे के थे उन्हें दमयन्ती ने बताया था और दीपा वर्मा के शुभ चिन्तकों को रामचन्दर बाबू ने। विद्यालय में एक तनाव फैल गया था जैसे सब स्तब्ध हों। वे भी जो विजित महसूस कर रहे थे और वे भी जो अपने आप को पराजित। क्या हो गया इस कालेज को। यही सब लोग तो थे पहले...एक दूसरे के सुख में ख़ुश होने वाले...एक दूसरे के दुख में साथ ...और पढ़े

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होने से न होने तक - 45

होने से न होने तक 45. हम लोग समय को लेकर बेहद अधीर हो रहे हैं पर किसी को दे कर तो जल्दी करने को कहा नहीं जा सकता है फिर भी एक बार पुनः अपना अनुरोध दोहरा कर हम लोग उठ खड़े हुए थे। वहॉ से हम तीनो सीधे आई.सी.पी.आर. की लाइब्रेरी पहुंच थे और वहॉ के डायरैक्टर से मिले थे और एक बार पूरी कहानी फिर से दोहरायी थी। वे भी हॅसे थे जैसे विद्यालय का मज़ाक उड़ा रहे हों। वे तुरंत उठे थे और एक फाइल निकाल लाए थे। पुस्तकालय को लेकर हरियाणा और पंजाब हाइकोर्ट ...और पढ़े

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होने से न होने तक - 46

होने से न होने तक 46. मैं आण्टी के पीछे पीछे सीढ़ियॉ उतर कर नीचे आ गयी थी। हम को आता देख कर ड्राइवर रामसिंह बाहर निकल आया था। अपने माथे से हाथ छुआ कर उसने मुझे अभिवादन किया था और आण्टी के लिये दरवाज़ा खोल कर खड़ा हो गया था। न जाने क्यों मैं उससे निगाह नही मिला पायी थी। न जाने कितनी बार यश की कार में वह मुझे छोड़ने या लेने आ चुका है। तब वह ऑखों मे स्वागत और सम्मान का भाव लिये बिल्कुल इसी तरह से मेरे लिये यश की कार का दरवाज़ा खोल ...और पढ़े

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होने से न होने तक - 47

होने से न होने तक 47. सुबह जल्दी ही ऑख खुल गयी थी। कई दिन से कालेज जाने का ही नहीं करता। पर जाना तो है ही। वैसे कालेज तो दिनचर्या की तरह आदत का हिस्सा बन चुका है। तेइस साल हो गये हर दिन कालेज जाते हुये। इस विद्यालय की धरती पर सन् सतासी की जुलाई में पहली बार कदम रखा था। तब से कितनी बार इस विद्यालय के गेट को पार किया है उसकी कोई गिनती नहीं। पर न जाने कितने साल हो गये कि कालेज जाना भारी लगने लगा है। जबकि इतवार और छुट्ठियॉं भी तो ...और पढ़े

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होने से न होने तक - 48

होने से न होने तक 48. अगले ही दिन मानसी जी एक सत्रह अठ्ठारह साल की लड़की को लेकर घर पहुंच गयी थीं,‘‘इसकी बड़ी बहन ने मदन भैया के घर काम किया था। वह अभी कुछ महीने पहले ही शादी करने के लिए अपने घर छत्तीसगढ़ लौट गयी है। आज यह उसकी छोटी बहन तुम्हारे ही पड़ोस के चौकीदार के साथ खड़ी दिख गयी। काम ढूंड रही है। हम इसे तुम्हारे लिए ले आए हैं।’’ ‘‘मानसी जी मैं क्या करुंगी। फुल्लो है तो। झाड़ू,पोछा,बर्तन-सारे काम वही करती है। अब मुझे किस काम के लिए ज़रुरत है भला। फिर उससे ...और पढ़े

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होने से न होने तक - 49

होने से न होने तक 49. मैं खाने की मेज़ से उठने ही वाली थी कि दोपहर की डाक आया एक लिफाफा सतवंती ने मुझे पकड़ा दिया था। यश की चिट्ठी। लगा था जैसे आज का दिन सार्थक हो गया हो...आगे आने वाले और बहुत से दिन भी। यश के अलावा मेरा इस दुनिया में और है ही कौन। इस रिश्ते को केई नाम देने की बात मैंने कभी सोची ही नहीं। या शायद साहस ही नहीं हुआ था वैसा। सोचती तो आण्टी ने उस सोच को कोई मान दिया होता क्या ?...और यश ने? आज इस उम्र में ...और पढ़े

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होने से न होने तक - 50

होने से न होने तक 50. न जाने कितनी संस्थाओं से जुड़े हैं यह अध्यक्षा और प्रबंधक । एक चॉद पर दूसरे का रजिस्टर भरता है। इस विद्यालय की अध्यक्षता भी तो इनके समाज सेवा के खाते में ही भरी जाती है। वाह रे सोशल वर्क। समाज सेवा की इन्ही गिन्तियों के चलते न जाने कितनी सरकारी समीतियों की माननीया सदस्या बनी बैठी हैं। सुना है पद्यश्री बटोरने के चक्कर में हैं। एड़ी चोटी का जुगाड़ कर रही हैं। मिल भी जाएगी किसी दिन। हैं तो वे मिसेज़ शामकुमार संघी...पद्यश्री नीना संघी...बड़ी भारी चाइल्ड वैल्फेयर वर्कर। यश और आण्टी ...और पढ़े

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होने से न होने तक - 51 - अंतिम भाग

होने से न होने तक 51. ‘‘कालेज से तुम्हारे अलावा कोई गया या नहीं?’’ ‘‘हॉ कुछ लोग गये थे। से कुछ लोग क्रिमेशन ग्राउण्ड भी गए थे। शाम को भी कुछ टीचर्स पहुची थीं। रोहिणी दी और मिसेज़ दीक्षित परसों से वहीं थीं। प्रैसैन्ट स्टाफ से भी कुछ लोग गये थे। कुछ नयी आयी टीचर्स भी।’’ दमयन्ती अरोरा के चेहरे पर एक सुकून जैसा कुछ थोड़ी देर के लिए ठहर गया था। फिर उन्होंने थकी सी लंबी सॉस ली थी,‘‘मैं कैसे जाती अम्बिका?’’उन्होने अजब ढंग से अटपटाते हुए कही थी यह बात। मुझे लगा था वह अपने न जा ...और पढ़े

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