सत्या पहला पन्ना 1970 के दशक के प्रारंभ की बात है. तब मैं काफी छोटा था. एक दिन सुबह सवेरे मेरे पिता के एक जूनियर कुलीग हमारे घर पर आए और उन्होंने पूरे उत्साह के साथ बीती रात उनके साथ घटी एक धटना का ज़िक्र किया. उस दिन सुनी हुई उस घटना के इर्द-गिर्द ही इस कहानी का ताना-बाना बुना गया है. आरंभ 1 जमशेदपुर शहर नवंबर का महीना. अच्छी ख़ासी ठंढ पड़ने लगी थी. रात काफी हो चुकी थी. सुनसान सड़क पर बिजली के खंभों के नीचे बल्ब की रौशनी के ख़ामोश दायरे पड़े थे. सड़क के दोनों तरफ

Full Novel

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सत्या - 1

सत्या पहला पन्ना 1970 के दशक के प्रारंभ की बात है. तब मैं काफी छोटा था. एक दिन सुबह मेरे पिता के एक जूनियर कुलीग हमारे घर पर आए और उन्होंने पूरे उत्साह के साथ बीती रात उनके साथ घटी एक धटना का ज़िक्र किया. उस दिन सुनी हुई उस घटना के इर्द-गिर्द ही इस कहानी का ताना-बाना बुना गया है. आरंभ 1 जमशेदपुर शहर नवंबर का महीना. अच्छी ख़ासी ठंढ पड़ने लगी थी. रात काफी हो चुकी थी. सुनसान सड़क पर बिजली के खंभों के नीचे बल्ब की रौशनी के ख़ामोश दायरे पड़े थे. सड़क के दोनों तरफ ...और पढ़े

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सत्या - 2

सत्या 2 सुबह काफी तड़के सत्या उठ गया. उसने साईकिल निकाली और धीरे-धीरे साईकिल चलाता हुआ सड़क के दोनों नज़र दौड़ाने लगा, इस उम्मीद में कि शायद उसका चेन और ताला कहीं पड़ा मिल जाए. सामने भीड़ देखकर वह रुका. फिर जिज्ञासावश पास जाकर देखा तो सन्न रह गया. सड़क के किनारे बोल्डर्स पर गोपी की लाश पड़ी थी. चेहरे पर मक्खियाँ भिनभिना रही थीं. सर के पास खून बिखर कर सूख गया था. एक पच्चीस-छब्बीस बरस की स्त्री पास बैठी ज़ोर-ज़ोर से रो रही थी. कुछ औरतें उसको संभाल रही थीं. कई लोग पास खड़े अफ़सोस ज़ाहिर कर ...और पढ़े

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सत्या - 3

सत्या 3 कंधे पर एक छोटा सा बैग लटकाए सत्या मानगो पुल के पास ऑटोरिक्शा से उतरा. सड़क पार समय बेख़्याली में वह एक तेज रफ्तार ट्रक के नीचे आते-आते बचा. ट्रक के ड्राईवर ने ज़ोर से ब्रेक लगाई. ट्रक के टायर चीखे. सत्या सदमे में अपनी जगह पर जैसे जम गया. खलासी ने खिड़की से बाहर सर निकालकर एक भद्दी सी गाली दी. आस-पास गुज़रते लोग भी रुककर गालियाँ देने लगे, “अबे मरने का इरादा है क्या?” एक भला मानस सत्या का हाथ पकड़कर उसे सड़क के पार ले गया. ट्राफिक फिर सामान्य ढंग से चलने लगी. किंतु ...और पढ़े

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सत्या - 4

सत्या 4 रतन सेठ की दुकान से संजय ने चिप्स की एक पैकेट ख़रीदी और खाने लगा. बगल की से गोपी का शव कंधे पर लेकर लोग निकले. आगे चल रहे व्यक्ति के “हरी बोल हरी” के जवाब में पीछे चल रहे सारे लोग “बोल हरी” कहते हुए सामने से तेजी से निकल गए. संजय ने अनजान बनकर रतन सेठ से पूछा, “कौन मर गया?” रतन सेठ ने अफ़सोस ज़ाहिर किया, “था एक लड़का गोपी....बेचारा...भगवान इसकी आत्मा को शांति दे.” संजय, “कैसे मर गया?” रतन सेठ ने जवाब दिया, “कल रात अंधेरे में गिरा. पत्थर पर सिर टकराया. माथा ...और पढ़े

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सत्या - 5

सत्या 5 सत्या बस्ती की गलियों में चला जा रहा था. मीरा के घर के आगे भीड़ लगी देखकर कदम तेज़ हो गए. पास जाकर उसने भीड़ के पीछे से उचक कर देखने की कोशिश की. एक काला-कलूटा आदमी ऊँची आवाज़ में हाथ लहरा-लहरा कर कह रहा था, “क्या मजाक है, छे महीना का किराया नहीं दिया. घर भी खाली नहीं कर रही है. मेरा तो नुस्कान हो रहा है ना? तुमलोग मेरे बारे में भी तो सोचो. मेरा भी बाल-बच्चा है.” औरतों के बीच खड़ी गोमती ने समझाने वाले अंदाज में कहा, “अरे तभी तो बोल रहे हैं, ...और पढ़े

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सत्या - 6

सत्या 6 सत्या ने जो मकान ख़रीदा था, वह बिल्कुल जर्जर स्थिति में था. एक कमरे की खपरैल की पूरी तरह टूट कर गिर गई थी. फर्श पर घास और झाड़ियाँ उग आई थीं. जिस कमरे में मीरा अपने बच्चों के साथ रह रही थी, वहाँ की छत भी एक जगह से धंसी हुई थी. बरसात में निश्चित ही पानी टपकता होगा. मीरा के कमरे के आगे छोटा सा बरामदा था, जिसमें वह स्टोव पर खाना बनाती थी. पास ही एक नीची छत वाला शौचालय था. नहाना-धोना सब उसी में. घर के आगे तीन-चार फीट की दूरी पर कंटीले ...और पढ़े

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सत्या - 7

सत्या 7 सत्या के घर का काम शुरू हो गया. पहले टूटा हुआ कमरा खड़ा किया गया. उसपर एसबेस्टस छत डालकर मीरा के परिवार को इधर लाया गया. फिर मीरा वाले भाग पर हाथ लगाया गया. दोनों कमरों के आगे बरामदा, अलग से एक छोटा रसोईघर और शौचालय के निर्माण के साथ ही देखते-देखते घर तैयार हो गया. मीरा वापस अपने वाले भाग में चली गई. जिस दिन क्रिसमस की छुट्टी हुई, सत्या अपना सामान लेकर आ गया. लोगों ने सलाह दी थी कि खरमास में नये मकान में गृह प्रवेष शुभ नहीं होगा. अच्छा होता अगर वह मकर ...और पढ़े

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सत्या - 8

सत्या 8 दारू के नशे में धुत्त लोगों का एक झुँड ढोल बजाकर नाचता हुआ चला जा रहा था. आगे रमेश थिरक रहा था. बीच-बीच में ऊँची आवाज़ में वह नारा बुलंद करता था, “सत्या बाबू की जै.” जवाब में उसके साथ चल रही पूरी भीड़ एक स्वर में दोहराती थी, “सत्या बाबू की जै.” रमेश, “सत्या बाबू की जै.” भीड़, “सत्या बाबू की जै.” रमेश, “डिडिंग-डिडिंग, डिडिंग-डिडिंग...” शोर सुनकर सत्या कमरे का दरवाज़ा खोलकर बाहर बरामदे में निकल आया. देखते ही लोगों ने उसको घेर लिया और साथ में नचाने का प्रयास करने लगे. सत्या अपने को छुड़ाने ...और पढ़े

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सत्या - 9

सत्या 9 दोनों बच्चे सत्या की चौकी पर किताबें फैलाए पढ़ रहे थे. सत्या सामने कुर्सी पर बैठा खुशी मैथ का सवाल हल करना सिखा रहा था. सत्या, “जब मल्टीप्लिकेशन और ऐडिशन दोनों करना हो तो बॉडमास नियम का पालन करते हैं. तो इस सम में पहले हमलोग मल्टीप्लाई करेंगे. इसके बाद ऐड. अब फिर से करो आन्सर सही आयेगा, करो.....हूँ.....शाबाश.” दोनों ने सफलता का जश्न अपनी-अपनी दाईं हथेलियों को टकराकर ताली बजाते हुए मनाया. रोहन ने भी अपनी कॉपी बढ़ाई और याद से लिखा 2 का पहाड़ा दिखाया. “हाँ बहुत अच्छे,” सत्या ने रोहन को खींचकर अपनी गोद ...और पढ़े

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सत्या - 10

सत्या 10 उस दिन घर पहुँचते ही खुशी कमरे में दौड़ी आई, “चाचा-चाचा, एक केक ले आना, परसों बर्ड्डे है.” सत्या, “अच्छा! हैप्पी बर्थ डे इन एडव्हाँस. कितने साल की हो जाएगी मेरी गुड़िया?” खुशी, “नाईन ईयर्स.” सत्या ने खुश होकर कहा, “हम लोग ज़रूर से खुशी बेटी का बर्थ डे मनाएँगे. अपने सभी दोस्तों को बुला लेना.” मीरा चाय का कप लेकर आई उसे सत्या के आगे मेज़ पर रखकर खुशी के कान उमेठने लगी, “अभी-अभी बाप मरा है और बर्ड्डे मनाएगी....” खुशी दर्द से चीखी और रुआँसी हो गई. आँखों से बूँदें बस अभी टपकीं कि तब ...और पढ़े

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सत्या - 11

सत्या 11 दीवार घड़ी में दिन के बारह बजने में कुछ क्षण शेष थे और वार्ड के प्रवेष द्वार लोगों की धक्का-मुक्की बढ़ गई थी. जैसे ही मिनट की सुई 12 पर पहुँची, गेट खुली. लोग सत्या को धकियाते हुए अंदर जाने लगे. सत्या भी भीड़ के साथ वार्ड में आया. मीरा के पास गोमती खड़ी उसके बालों में कंधी कर रही थी. सत्या ने पूछा, “कैसी तबियत है अभी?” और फलों का पैकेट गोमती को दिया. गोमती, “ये तो कुछ खाता ही नहीं है.” सत्या “मीरा जी. खाना तो होगा. जल्दी से ठीक होकर घर चलना है. रोहन ...और पढ़े

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सत्या - 12

सत्या 12 सुबह का समय. एक ऑटोरिक्शा आकर रुकी. सत्या के साथ गोमती और एक और व्यक्ति उतरे. सत्या सविता को आवाज़ दी. वह बाहर आई. दोनों बच्चे भी साथ थे. सत्या ने जल्दी-जल्दी कहा, “सविता तुम तैयार हो जाओ. अस्पताल जाना है,” समोसे और जिलेबी का पैकेट बढ़ाते हुए सत्या ने आगे कहा, “पहले तुमलोग कुछ खा लो. ...और गोमती मौसी शाम को पाँच बजे तैयार रहना. आपको ही रात में रुकना होगा. ...निरंजन थोड़ा और कष्ट करना होगा भाई. सविता को ज़रा अस्पताल छोड़ आना.” सब चले गए तो सविता ने पूछा, “मीरा कैसी है?” सत्या, “सीरियस ...और पढ़े

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सत्या 13 सत्या की ज़िंदगी फिर से पटरी पर आ गई लगती थी. मीरा घर लौट आई थी. उस सविता गुस्से में जितना खूँखार लग रही थी, अब उतनी ही बड़ी हमदर्द बनी हुई थी. उसी की सेवा और हिम्मत आफज़ाई का नतीज़ा था कि मीरा बिस्तर से उठकर अब घर का काम करने लगी थी. सत्या के मन में अब एक नया ज़ुनून सवार था. बच्चों को शहर के सबसे अच्छे स्कूल में दाख़िला दिलाने का, ताकि अच्छी शिक्षा प्राप्त कर दोनों बच्चे बड़ा अफसर बन सकें और गोपी का सपना पूरा हो सके. अपने साहब से सिफारिश ...और पढ़े

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सत्या - 14

सत्या 14 दोनों बच्चों का दाख़िला शहर के सबसे अच्छे इंगलिश मीडियम स्कूल में हो गया. नई किताबें, नया ड्रेस, नए संगी-साथी. नया माहौल, पढ़ाई के साथ स्पोर्ट्स, एलोक्यूशन, डाँस, ड्रामा, डिबेट और सबसे आकर्षित करने वाला बदलाव – अनुशासन. दोनों बच्चों का जल्द ही मन लग गया. एक दिन पुरानी कचहरी के पास की सेकेंड हैंड बुक स्टोर से सत्या मीरा के लिए किताबों का एक बंडल ले आया. मीरा की पढ़ाई भी शुरू हो गई. सत्या की ज़िम्मेदारी थी बच्चों का डेली का होमवर्क कराना. वीकएंड पर कहानियों का सिलसिला बदस्तूर जारी था. सविता डाँस और ड्रामा ...और पढ़े

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सत्या 15 20 वर्ष की अनिता सुबह आठ बजे अपने काम पर निकली थी. रास्ते में उसकी सविता से हो गई, जो अपने घर के आगे गेट पर खड़ी थी. उसने रुककर पूछा, “मीरा दीदी फिर से पढ़ाई शुरू की है, ये बात सच है दीदी?” सविता ने उसका उत्साह बढ़ाते हुए कहा, “यू आर नेवर टू ओल्ड टू लर्न. मतलब, तुम किसी भी उमर में पढ़ाई शुरू कर सकती हो. बोलो पढ़ोगी?” अनिता, “पढ़ने का हमको फुर्सत ही कहाँ है दीदी. हम काम करते हैं, तभी तो घर का खर्चा चलता है. आप तो जानती हैं, ये कोई ...और पढ़े

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सत्या 16 रात में पढ़ाई ख़त्म होने के बाद जब बच्चे किताबें समेट रहे थे तो खुशी ने चुपके सत्या के कान में कहा कि दो दिनों बाद रोहन का जन्मदिन है. उस दिन टॉफी लेकर जाना होता है. क्लास टीचर बच्चों के बीच टॉफी बाँटती है और सारे बच्चे हैप्पी बर्थ डे टू यू गाकर विश करते हैं. सत्या ने कहा कि वह कल टॉफी ले आएगा. अपने जन्मदिन वाली सुबह टॉफियों के दो पैकेट लेकर रोहन जब स्कूल वैन में बैठा तो बड़ा खुश था. शाम को जब लौटा तो उसने बताया कि कुछ बच्चों को उसने ...और पढ़े

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सत्या 17 शराब के नशे में लड़खड़ाता शंकर चला जा रहा था. अपनी गली में मुड़ते ही उसने सविता घर के बाहर औरतों से घिरा हुआ देखा. उसे गुस्सा आने लगा. रोज़ जब लौटो तो औरतों की महफिल. सबको चहकते देखकर उसका गुस्सा और भी भड़क गया. पास पहुँचकर वह चिल्लाने लगा, “क्या हो रहा है यहाँ? इन पँचफोड़नियों के साथ क्या चक्कल्लस होता रहता है दिनभर?... चलो, जाओ सब अपने-अपने घर.” शंकर ने गेट खोली. लेकिन नशे में लड़खड़ाकर गेट पर झूल गया. औरतें जल्दी-जल्दी वहाँ से खिसकने लगीं. घर के अंदर सत्या दोनों बच्चों को पढ़ा रहा ...और पढ़े

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सत्या 18 देशी शराब के ठेके के बाहर औरतों की भीड़ खड़ी शोर कर रही थी. अधिकांश के हाथों लाठियाँ थीं, जिसे वे बार-बार ज़मीन पर पटक कर एक ताल में ठक-ठक ध्वनि कर रही थीं. कालिया दुकान के बाहर खड़ा उनको देख कर हँस रहा था. सविता ने कहा, “कालिया भाई, आप ये दुकान बस्ती से हटा लीजिए. अब हम यहाँ शराब बिकने नहीं देंगे.” कालिया ने मज़ाक उड़ाते हुए कहा, “बोर्ड पढ़ने आता है? बोर्ड पढ़ो,” उसने ख़ुद पढ़ा, “देखो लिखा है देशी शराब का सरकारी दुकान. सरकार हमको लाइसेंस दिया है. हमको यहाँ दारू बेचने से ...और पढ़े

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सत्या 19 सब-इन्सपेक्टर केस डायरी लिख रहा था जब उसे थाने के बाहर औरतों के द्वारा लगाए गए नारे पड़े. उसने एक सिपाही को आवाज़ दी, “क्या हो रहा है बाहर, ये कौन हल्ला कर रहा है?” सिपाही बाहर झाँक कर आया और बोला, “माडर्न बस्ती की औरतें हैं. बोलती हैं बस्ती में चल रही सरकारी दारू दुकान बंद कराओ.” सब-इन्सपेक्टर, “ऐसे कैसे बंद करा सकते हैं? उनके लीडर को भेजो अंदर, समझाते हैं.” सिपाही ने बाहर निकलकर आवाज़ लगाई, “दो लोग अंदर आ जाओ. केवल दो लोग आएँगे. बाकी बाहर इंतज़ार करें.” दरवाज़े पर खलबली मच गई. सविता ...और पढ़े

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सत्या 20 महिलाओं का झुँड मुखिया के द्वार पर खड़ा था. मुखिया पूरे गुस्से में था. उसने कहा, “तुम्हारी काकी इसपर साईन नहीं करेगी. देखो ये पागलपन मत करो. इस अर्जी को सरकार कचरे का डब्बा में फेंक देगी.” सविता, “ठीक है न. फिर साईन करने में क्या दिक्कत है. कुछ तो होगा नहीं.” मुखिया और भी ज़ोर से भड़क गया, “ये सब बखेड़ा में तुम लोग हमको मत फंसाओ. हम बोल दिए न कि मेरा औरत साईन नहीं करेगी.” गोमती बड़बड़ाई, “मुखिया दादा तो अपने रोज शाम को पीता है. वो साईन नहीं करने देगा मालती बहन ...और पढ़े

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सत्या - 21

सत्या 21 शाम ढले जब मर्द लोग काम पर से लौटे तो तुलसी के घर पर औरतों का जमघट था. माँ चंडी की एक बड़ी सी फ्रेम की हुई फोटो बरामदे के कोने में पीढ़े पर सजी हुई थी और एक ब्राह्मण बैठा पाठ कर रहा था. बस्ती के कुछ मर्द वहाँ रूककर समझने की कोशिश करने लगे कि आख़िर माज़रा क्या है. रमेश ने अपने नाटकीय अंदाज़ में कहा, “अब ये क्या तमाशा हो रहा है? अरे ओ मुनिया की माँ, क्या कर रही है यहाँ. चल उठ, घर में खाना वाना नहीं बनाना है?” गोमती एक मोटा ...और पढ़े

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सत्या 22 बरामदे की खटिया पर चादर ओढ़ कर बैठा शंकर अपने नाख़ून कुतर रहा था. औरतों का जमघट था. कोई जमीन पर बैठी थी तो कई खड़ी थीं. सत्या उनके बीच आते ही बोला, “और मीरा देवी आपकी पढ़ाई का क्या विचार है? मैट्रिक का एक्ज़ाम लिखना है न? नई किताबों पर धूल जम रही है.” मीरा, “ये सब झंझट आ गया था इसीलिए. बस कल से शुरू करते हैं.” सत्या ने समझाया, “रोज़ ही कोई न कोई बात होगी. लेकिन पढ़ाई हमको जारी रखनी है. हम तो बोलते हैं कल कभी नहीं आता. आज ही से शुरू ...और पढ़े

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सत्या 23 सत्या के कमरे में बिस्तर पर बैठकर बच्चे पढ़ रहे थे. सत्या सामने कुर्सी पर आगे झुककर को लिखते हुए घ्यान से देख रहा था. तभी अचानक सविता के चिल्लाने की आवाज़ आई. तीनों ने चौंककर ऊपर देखा. सत्या ने खिन्न होकर कहा, “तुमलोग अपनी पढ़ाई पर ध्यान लगाओ,” फिर वह बडबड़ाया, “ऐसे माहौल में कैसे होगी बच्चों की पढ़ाई?” लड़ाई झगड़े के शोर से खुशी का पढ़ाई पर से ध्यान भटक गया. वह बार-बार दरवाज़े की तरफ देखने लगी. रोहन दरवाज़े की तरफ भागा. उसके दरवाज़े पर पहुँचने से पहले ही वरुण दौड़ता हुआ अंदर आया. ...और पढ़े

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सत्या - 24

सत्या 24 सविता के घर पर औरतों का जमावड़ा लगा था. अनिता, “सबिता उस दिन क्या अँगरेजी झाड़ी, इनिसपेक्टर तो बोलती बंद.. क्या बोली? ... आई एम सबिता आएँ बाएँ शाएँ, अंट बंट शंट, वाह मजा आ गया.” मीरा हँसते हुए बोली, “हम तो डर ही गए थे जब ये एस. डी. ओ. साहब के सामने भी शुरू हो गई.” सविता ने लापरवाही के साथ कहा, “अंगरेजी बोलने में क्या शर्माना. और हमको जब गुस्सा आता है न, तो अपने आप मुँह से अंगरेजी निकलने लगती है.” सत्या काम पर से अपनी साईकिल पर चला आ रहा था. अभी ...और पढ़े

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सत्या 25 मैक्सी पहने एक मोटी औरत आशा देवी ने अपने पति से कहा, “सी व्हाट इज़ शी सेईंग. यह क्या कह रही है) कल से काम पर नहीं आएगी. ऐसे अचानक कैसे छोड़ सकती है काम?” उसका पति ड्रेसिंग टेबल के आईने के सामने खड़ा अपनी टाई ठीक कर रहा था. उसने अंगरेजी में कहा ताकि घर की महरी समझ न पाए, “डोन्ट वरी, ऑफर हर सम मोर मनी. शी विल स्टे बैक. शी इज़ ऐक्चुअली आस्किंग फ़ॉर अ रेज़.” (चिंता न करो, उसको कुछ ज़्यादा पैसा देने की पेशकश करो. वह रुक जाएगी. दरअसल वह तन्ख़्वाह बढ़ाने ...और पढ़े

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सत्या - 26

सत्या 26 सत्या को बस्ती में आए करीब डेढ़ साल होने को आया. मीरा ने दसवीं की परीक्षा लिखी. दिन बहुत घबराई हुई थी. हाथ से पसीने छूट रहे थे. हिंदी का पेपर था. तीन घंटे का समय हवा में कैसे उड़ गया पता ही नहीं चला. अपने मित्र को गर्मी की छुट्टियों में किसी पहाड़ी जगह की सैर का वृतांत लिखना था. केवल पाँच मिनट का समय शेष था. बहुत कुछ लिखना चाह कर भी वह ज़्यादा नहीं लिख पाई कि पेपर ही छिन गया. सत्या ने परीक्षा हॉल में कैसे समय पर नज़र रखी जाती है, इस ...और पढ़े

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सत्या - 27

सत्या 27 सत्या का अगले पाँच सालों का सफर हिचकोलों से भरा था. खुशी पढ़ाई-लिखाई, स्कूल की एक्सट्रा करिकुलर स्पोर्ट्स, बात-व्यवहार और बाकी सबकुछ में भी अच्छी थी. उसको देखकर सत्या को हमेशा खुशी मिलती थी. लेकिन रोहन ठीक उसका उलटा. पढ़ने में ध्यान नहीं, कुछ पूछो तो जवाब नहीं. हमेशा अपनी ख़याली दुनिया में मगन. उसका व्यवहार समझ में ही नहीं आता था. उसके लिए चिंता बनी ही रहती थी. ज़िंदगी के इन्हीं उतार-चढ़ावों से होकर दो साल का समय बीत गया. शंकर शराब छोड़ने के बाद से बिल्कुल बदल गया था. इस बीच एक खुशख़बरी आई कि ...और पढ़े

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सत्या - 28

सत्या 28 देश में उन दिनों बेटों की चाहत में बेटियों की भ्रुण-हत्या का दौर था. सविता ने भी था कि उसे बेटा ही चाहिए. उसका कहना था कि एक सुखी परिवार के लिए बेटियाँ ही नहीं क़ाबिल बेटों की भी ज़रूरत है. वह अपने बेटे को एक अच्छा इन्सान बनाना चाहती थी, ताकि वह अपने परिवार और समाज के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी ठीक ढंग से निभा सके. वरना बस्ती में तो ज़्यादातर महिलाएँ ही घर संभाल रही थीं. इसके लिए उसने सत्या से आशिर्वाद भी लिया था. सत्या ने आशिर्वाद तो दिया, पर उसके अंदर का दर्द भी ...और पढ़े

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सत्या - 29

सत्या 29 मीरा और सविता ने साथ-साथ ग्रैजुअशन किया. मुन्ने के लिए सविता ने पढ़ाई बीच में छोड़ दी अपने बच्चे के साथ वह इतनी खुश थी कि और आगे पढ़ने का उसका इरादा बदल गया था. लेकिन जब शंकर ने खुद उसे पढ़ने के लिए कहा तो वह पूरे उत्साह से पढ़ाई में जुट गई और मीरा से भी अच्छे नंबर सविता के आए. उस दिन शाम को घर लौटकर सत्या ने हाथ-मुँह धोया और कमरे में बैठकर चाय का इंतज़ार करने लगा. मीरा चाय लेकर आई. उसके होठों पर एक मुस्कान थी. सत्या ने चाय का कप ...और पढ़े

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सत्या - 30

सत्या 30 लेकिन अपनी पहली सैलरी स्लिप मीरा ने सत्या के हाथ में दी. सत्या ने फिर उस दिन मंगाई और सबने खुशी-खुशी खाई. रोहन की दसवीं और खुशी की बारहवीं की परीक्षा सर पर थी, इसलिए घर बदलने का विचार फिलहाल के लिए टाल दिया गया. मीरा ने ज़िद करके घर का खर्च खुद उठाना चाहा. लेकिन सत्या मानने को तैयार नहीं था. अंत में यही फैसला हुआ कि मीरा राशन मंगाएगी. सत्या शेष खर्च उठाएगा. रोहन की पढ़ाई का खर्च मीरा करेगी और खुशी का सत्या. बच्चों की आगे की पढ़ाई के लिए बचत के ख़्याल से ...और पढ़े

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सत्या - 31

सत्या 31 देखते-देखते दो साल गुज़र गए. रोहन ने बारहवीं पास कर ली, बस किसी तरह खींच-खाँच कर साठ प्रतिशत अंक लाए. इन्जीनियरिंग प्रवेष परीक्षा में भी फिसड्डी ही रहा. ख़ैर उसकी इच्छा के अनुसार सत्या ने जैसे-तैसे एक प्राईवेट इन्जीनियरिंग कॉलेज में ऐडमिशन करा दिया. रोहन जिस दिन हॉस्टेल के लिए निकलने वाला था, उसके एक दिन पहले घर में एक पार्टी रखी गई. संजय और गीता ने एक साथ कमरे में प्रवेश किया. सत्या का कमरा अब ड्राईंग कम डाईनिंग रूम में तब्दील हो चुका था. संजय ने माँ को हाथ जोड़कर प्रणाम किया. गीता ने पैर ...और पढ़े

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सत्या - 32

सत्या 32 पूरी बस्ती में रंग-बिरंगे बल्ब के झालर लटक रहे थे. ख़ासी चहल-पहल थी. मीरा के घर के शादी का मंडप सजा था. सविता औरतों और लड़कियों के साथ दूल्हे को घेरे खड़ी थी. सविता, “दूल्हे राजा, हमारी बस्ती की परंपरा है कि शादी के फेरे हम तबतक नहीं लेने देंगे जबतक आप ये कसम न खा लें कि ज़िंदगी में कभी शराब को हाथ भी नहीं लगाएँगे. चलिए कसम खाईये.” दूल्हा खुशी को देखकर मुस्कुराया. फिर बोला, “अगर मैं शराब पीने वाला ही होता तो आपकी बेटी कभी मुझे घास भी डालती?” सविता ने ज़िद की, “वो ...और पढ़े

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सत्या - 33

सत्या 33 “दादी, कैसी हैं?” कहते हुए रोहन कमरे में आ गया. रोहन इंजीनियरिंग की फाईनल परीक्षा देकर घर हुआ था. दादी बैठी टी. वी. पर कार्यक्रमों के चैनल बदल-बदल कर देख रही थीं. उन्होंने टी. वी. पर से नज़रें हटाए बिना कहा, “आओ बेटा.” “दादी, हम चाचा की आलमारी से कोई उपन्यास लेने आए थे. ले लें?” “ले ले ना, तुझे पूछने की क्या ज़रूरत है? एक काम कर, तू यहीं बैठकर पढ़. हमको मीरा से कुछ काम है. हम उसी के पास जा रहे हैं.” माँ उठकर चली गईं. रोहन ने आलमारी खोली. एक दो किताबें निकाली. ...और पढ़े

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सत्या - 34 (अंतिम भाग)

सत्या 34 घड़ी में पाँच बजकर बीस मिनट हो रहे थे. बड़ा बाबू की मेज़ पर संजय बैठा अपने समेट रहा था. आधे से ज़्यादा लोग जा चुके थे. सत्या ने भी अपनी फाईलें समेटीं. जब अंतिम कर्मचारी भी चला गया तो सत्या के उदास चेहरे को देखकर संजय ने कहा, “तेरी उदासी हमसे देखी नहीं जाती.” सत्या ने ग़मगीन स्वर में कहा, “अब पता चल रहा है कि बीस साल की सज़ा काटकर कोई मुक्त नहीं हो सकता. उम्रकैद का मतलब होता है ज़िंदगी भर की सज़ा.” संजय ने कहा, “मीरा जी ठीक ही कह रही थीं. अब ...और पढ़े

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