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सत्या - 6

सत्या 6

सत्या ने जो मकान ख़रीदा था, वह बिल्कुल जर्जर स्थिति में था. एक कमरे की खपरैल की छत पूरी तरह टूट कर गिर गई थी. फर्श पर घास और झाड़ियाँ उग आई थीं. जिस कमरे में मीरा अपने बच्चों के साथ रह रही थी, वहाँ की छत भी एक जगह से धंसी हुई थी. बरसात में निश्चित ही पानी टपकता होगा. मीरा के कमरे के आगे छोटा सा बरामदा था, जिसमें वह स्टोव पर खाना बनाती थी. पास ही एक नीची छत वाला शौचालय था. नहाना-धोना सब उसी में. घर के आगे तीन-चार फीट की दूरी पर कंटीले तारों का एक बाड़ा और बाड़े में लकड़ी की एक गेट लगी थी.

सारे घर का मुआयना करने के बाद सत्या घर के सामने खड़ा होकर सोचने लगा. शायद निर्णय नहीं कर पा रहा था कि घर की मरम्मत की जाए या नये सिरे से बनाई जाय. पास से एक शराबी ठेला लेकर गुज़रा, जिसपर एक दूसरा शराबी बेसुध पड़ा था. बगल के घर की गेट पर खड़ी सविता ने आवाज़ लगाई, “क्या चँदू भाई, रमेश बाबू सुबह-सुबह ही पूरा चढ़ा लिए?”

शायद वह सत्या का ध्यान अपनी ओर खींचना चाहती थी. चँदू ने कोई जवाब नहीं दिया. अलबत्ता सत्या ने उसे ज़रूर देखा. एक लंबी, छरहरी, अच्छे नैन-नक्शोंवाली पच्चीस-छब्बीस बरस की लड़की, सविता. सलीके से पहनी साड़ी, माथे पर गहरा सिंदूर, छोटी सी बिंदी, कान में झुमके, गले में पतली सी सोने की चेन, हाथों में शाखा-पोला और सोने की चूड़ियाँ और पाँव में चाँदी की पायल. श्रृंगार में कोई कमी नहीं थी. सविता सत्या को देखकर मुस्कुराई. सत्या ने झट से नज़रें फेर लीं.

सविता ने बात-चीत की शुरुआत की, “अगर आप घर की मरम्मत करने की सोच रहे हैं तो आपको बस्ती में ही कारीगर मिल जाएँगे?”

सत्या ने अदब से केवल “जी” कहा. उसकी आँखें सविता के चेहरे पर पल भर भी नहीं टिक पाईं. फिसल कर पैरों पर आ रुकीं.

सविता को सत्या बाबू की घबराहट का अंदाज़ा हो गया था. उसने शरारत से मुस्कुराते हुए बात जारी रखी, “बस्ती के लोग शराब के चाहे जितने भी शौकीन हों, बट दे आर वेरी गुड ऐट वर्क.”

उसे अंग्रेजी में बात करता सुनकर सत्या ने नज़र उठाकर आश्चर्य से उसकी ओर देखा. लेकिन उसकी आँखों की चमक से घबराकर वह फिर से उसके पैरों को देखने लगा. उसके मुँह से फिर से निकला, “जी.”

उसके इस अंदाज़ पर सविता के चेहरे पर एक चौड़ी सी मुस्कान खिली, “जी, मेरा नाम सविता है. आपकी पड़ोसी हूँ. आप यहाँ शिफ्ट हो रहे हैं या मीरा दीदी के लिए मकान की मरम्मत करा रहे हैं?”

“यहीं रहना है. भाई साहब घर पर हैं क्या?” सत्या एक महिला से बात करने में असहज महसूस कर रहा था.

सविता ज़ोर से हँसी, “आप जिस भाई साहब के बारे में पूछ रहे हैं, उनका नाम शंकर है. अभी ड्यूटी पर गए हैं, ए शिफ्ट.”

“कारख़ाने में काम करते हैं?”

“जी हाँ, परमानेन्ट जॉब है. ... इस बस्ती में आपको सारे कारीगर मिल जाएँगे. राज मिस्त्री, रेजा-कुली, खपड़ा सेट करने वाले, रंग-रोगन करने वाले, बिजली मिस्त्री, और प्लंबर. आपको इनके लिए कहीं और नहीं जाना होगा,” सविता ने जानकारी दी.

“अच्छा-अच्छा. जी जानकारी के लिए धन्यवाद,” सत्या ने हाथ जोड़े.

“इसमें धन्यवाद की क्या बात है सत्यजीत बाबू. एक पड़ोसी होने के नाते ये तो मेरा फर्ज़ बनता है.”

सत्या को उसके मुँह से अपना नाम सुनकर आश्चर्य नहीं हुआ. अबतक सारी बस्ती को उसका नाम पता चल गया था. उसने सोचा, एक दिन सारी बस्ती को पता चल जाएगा कि उसे सत्यजीत की बजाय सत्या नाम से पुकारा जाना ज़्यादा अच्छा लगता था. तब सब उसे सत्या कहकर ही पुकारेंगे.

इस बीच खुशी एक तश्तरी पर रखकर स्टील के ग्लास में पानी ले आई, “चाचा-चाचा, माँ बोली है भात खाकर जाना.”

सत्या ने ग्लास से दो घूँट पानी पीकर कहा, “बेटा हम भात खाकर आए हैं,” उसने जेब से सौ-सौ के कुछ नोट निकाले और खुशी के हाथ में देते हुए बोला, “माँ को दे देना और कहना तुमलोगों के स्कूल का बकाया फीस भर दे. और पैसों की ज़रूरत हो तो कहना.”

सत्या ने ध्यान नहीं दिया था. मीरा आकर पास खड़ी हो गई थी. उसने साड़ी के पल्लू को सिर पर संभालते हुए कहा, “नहीं-नहीं, हमें और पैसे मत दीजिए. बहुत सारे बच्चे स्कूल नहीं जा पाते हैं. किस-किस की सहायता करेंगे? एक बार हमको दो चार घरों में काम मिल जाए, फिर ये भी स्कूल जाने लगेंगे.”

सत्या की जगह सविता ने प्रतिवाद किया, “सत्या बाबू ठीक कर रहे हैं. बच्चों की पढ़ाई से कोई कॉम्प्रोमाईज़ ठीक नहीं है. अभी सत्या बाबू से पैसे ले लो दीदी. तुम्हारे पास जब पैसे हों तो लौटा देना.”

सत्या को बस्ती में सबसे पहले सत्या नाम से सविता ने ही पुकारा था. सत्या को अच्छा लगा. मीरा ने खुशी के हाथ से पैसे लिए और बोली, “आपके अहसान के नीचे हमलोग दबे जा रहे हैं. हमारी इतनी चिंता भी मत कीजिए बाबू जी.”

मीरा के जाने के बाद सत्या ने कृतज्ञता के साथ सविता को आँखों ही आँखों में धन्यवाद कहा. सविता ने हँस कर स्वीकार किया और बोली, “आपके दिल में औरों के लिए बहुत दर्द है. सच बताईये, आप यह सब निःस्वार्थ भाव से कर रहें हैं या..,” सविता ने अर्थपूर्ण नेत्रों से सत्या को देखा.

“है न स्वार्थ,” सत्या ने तपाक से कहा, “जब यहाँ रहने लगेंगे तो मेरा खाना बनाने, घर की साफ-सफाई और देखभाल के लिए कोई तो चाहिए होगा? मीरा देवी की भी आर्थिक सहायता हो जाएगी.”

“इस प्लान में कोई दम नहीं है. इससे तो अच्छा होता आप शादी करके किसी को ले आते. आपका सारा जीवन चैन से कट जाता,” सत्या की दलीलों से वह ज़रा भी प्रभावित नहीं हुई थी.

“शादी? अभी शादी का कोई विचार नहीं बना है,” अपनी खोखली दलीलों से वह जितना झेंपा हुआ था उतना ही सविता की बुद्धिमता से प्रभावित था. उसने आगे कहा, “और अच्छी जीवन संगीनी इतनी आसानी से मिलती है क्या?”

“सॉरी, हम आपकी पर्सनल लाईफ के बारे में कुछ ज़्यादा ही दिलचस्पी दिखा रहे हैं. मगर इतना ज़रूर कहेंगे कि शायद आपने आज तक कोशिश नहीं की. वरना आप जिस तरह की पत्नी चाहते हैं, वह खोजने से ज़रूर मिलेगी.”

सत्या ने महसूस किया कि सफाई देने की कोशिश में वह पहली बार में ही सविता से कुछ ज़्यादा ही खुल गया था. उसने विषय बदला, “बस्ती में राज-मिस्त्री कौन है? सोचते हैं मरम्मत की बजाय झोपड़ी को तोड़कर नये सिरे से ढंग का मकान बनाएँ.”

“घनश्याम भईया, बहुत अच्छे कारीगर हैं. हम बुलवाएँ उनको?.... हम ख़बर भिजवा देंगे. आप शाम को आईये. अभी तो काम पर निकले हैं. शाम को ज़रूर भेंट हो जाएगी.”

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