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सत्या - 9

सत्या 9

दोनों बच्चे सत्या की चौकी पर किताबें फैलाए पढ़ रहे थे. सत्या सामने कुर्सी पर बैठा खुशी को मैथ का सवाल हल करना सिखा रहा था.

सत्या, “जब मल्टीप्लिकेशन और ऐडिशन दोनों करना हो तो बॉडमास नियम का पालन करते हैं. तो इस सम में पहले हमलोग मल्टीप्लाई करेंगे. इसके बाद ऐड. अब फिर से करो आन्सर सही आयेगा, करो.....हूँ.....शाबाश.”

दोनों ने सफलता का जश्न अपनी-अपनी दाईं हथेलियों को टकराकर ताली बजाते हुए मनाया. रोहन ने भी अपनी कॉपी बढ़ाई और याद से लिखा 2 का पहाड़ा दिखाया.

“हाँ बहुत अच्छे,” सत्या ने रोहन को खींचकर अपनी गोद में बिठा लिया और उसका गाल चूमते हुए बोला, “गुड बॉय.”

मीरा हाथ में खाने की थाली लेकर कमरे में आई और थाली मेज़ पर रखते हुए बोली, “खुशी, रोहन, देर हो रही है. चलो खाना खाकर सो जाओ. सुबह स्कूल जाना है.”

खुशी, “कल सैटरडे है माँ. स्कूल की छुट्टी है.... और आज हमारा स्टोरी टाईम है. है न चाचा? तुम यहीं पर खाना ले आओ. हम खाते-खाते कहानी सुनेंगे.”

दोनों बच्चे किताब-कॉपी समेटने लगे. मीरा ने कस कर डाँट लगाई, “यहाँ खाना बिस्तरे पर गिराओगे. चलो खा कर आ जाना. फिर कहानी सुनना.”

दोनों बच्चे माँ के पीछे चले गए. चेन और ताला बिस्तर पर छूट गया. सत्या ने हाथ बढ़ाकर उँगलियों से उन्हें अपनी तरफ सरकाया. तभी अचानक रोहन झपट कर चेन और ताला उठा ले गया.

दोनों बच्चे चौकी पर रजाई में लिपटे कहानी सुन रहे थे. सत्या सामने कुर्सी पर शॉल लपेटकर बैठा बच्चों की स्टोरी बुक से कहानी सुना रहा था.

सत्या, “ग्रैनी, व्हाट बिग टीथ यू हैव... नानी, तुम्हारे दाँत कितने बड़े-बड़े हैं. ऑल द बेटर टू ईट यू विथ, शाऊटेड द वुल्फ...तुम्हें खाने के लिए, भेड़िया चिल्लाया.”

रोहन ने खुशी को कस कर पकड़ लिया. खुशी की आँखें भी दहशत से फैल थीं.

सत्या ने आगे पढ़ा, “ए वुड कटर वाज़ इन द वुड...एक लकड़हारा जंगल में था. ही हर्ड अ लाऊड स्क्रीम ऐंड रैन टू द हाऊस... उसने एक ज़ोर की चीख सुनी और वह घर की तरफ दौड़ा. द वुड कटर हिट द वुल्फ ओवर द हेड... लकड़हारे ने भेड़िये के सिर पर ज़ोर से प्रहार किया. द वुल्फ रैन अवे ऐंड लिट्ल रेड राईडिंग हुड नेवर सॉ द वुल्फ अगेन... भेड़िया वहाँ से भाग खड़ा हुआ और लिट्ल रेड राईडिंग हुड ने फिर कभी उस भेड़िये को नहीं देखा....तो बच्चों किस्सा गया बन में और समझो अपने मन में.”

खुशी की चौड़ी आँखें अंत में सामान्य हो गईं और रोहन नींद से बोझिल आँखें झपकाता वहीं तकिए पर लुढ़क गया. तभी बाहर से सविता और उसके पति की लड़ने-झगड़ने की आवाज़े आने लगीं. सत्या बड़बड़ाया, “ये लोग तो प्रायः हर रोज़ ही लड़ते हैं.”

सत्या के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच गईं. खुशी कूद कर बिस्तर से उतरी और बोली, “अरे रोहन तो सो गया.... रोहन, रोहन चलो घर चलकर सोना.”

सत्या ने इशारे से ख़ामोश रहने के लिए कहा और रोहन को ठीक से रजाई ओढ़ा दी.

सत्या, “छोड़ो, उसे मत जगाओ. माँ से कहना रोहन आज यहीं सोयेगा.”

“गुड नाईट चाचा,” खुशी चली गई. सत्या ने पानी का ग्लास उठाकर पीया. पानी खत्म होने से पहले ही मीरा तेजी से कमरे में आई और झटके से रोहन को गोद में उठाकर ले गई. सत्या हक्का-बक्का सा देखता रह गया.

सत्या काफी देर तक बिस्तर पर करवटें बदलता रहा. बाहर से यदा कदा सविता और शंकर के झगड़ने की आवाज़े आती रहीं. कब सत्या की आँख लग गई उसे पता ही नहीं चला.

थोड़ी देर बाद वह नींद में बड़बड़ाने लगा. उसके चेहरे को देखने से ऐसा लगता था कि वह कोई बहुत ही बुरा सपना देख रहा था. पसीने से नहाया.. ज़ुबान से केवल गूँ-गूँ की आवाज़...घर के बाहर से धड़ाम से किसी चीज़ के गिरने की आवाज़ आई. अचानक सत्या अपने बिस्तर पर हड़बड़ा कर उठ बैठा. .... आँखों में दहशत. बाहर से सविता और शंकर के ज़ोर-ज़ोर से झगड़ने की आवाज़ें आ रही थीं.... सत्या को समझने में समय लगा कि वह सपना नहीं देख रहा था. सविता चिल्लाकर कह रही थी, “डोन्ट यू डेयर टू टच मी. कह देते हैं, हमको हाथ लगाया तो मुँह नोच लेंगे तुम्हारा.”

उसके पति की ज़ुबान शराब के नशे के कारण बुरी तरह लड़खड़ा रही थी. हाथापाई की आवाज़ भी आने लगी.

सत्या ने उठकर पानी पीया और फिर बिस्तर पर लेटकर छत को घूरने लगा. धीरे-धीरे सविता और उसके पति की झगड़ने की आवाज़ें मद्धम पड़ने लगीं और सन्नाटे की आवाज़ गूँजने लगी. उसने आँखें बंद कर ली. लेकिन फिर दूसरे ही पल आँखें खोल दी.

सवेरे का समय. सत्या ने अपने कमरे से बरामदे पर निकलकर मीरा के कमरे की ओर देखा. फिर गली की ओर देखा. सामने से सविता का पति शंकर सिर झुकाए धीमी चाल से चलता हुआ अपने काम के लिए निकल रहा था. सत्या ने ज़ोर से खंखार कर गला साफ किया. यह इशारा था कि वह उठ गया है. उधर से कोई आहट न पाकर उसने आवाज़ लगाई, “रोहन..खुशी.”

मीरा अपने कमरे से तेजी से निकली और चाय का एक कप उसके हाथ में थमा कर वापस चली गई. सत्या ने कप लेकर पीछे से आवाज़ दी, “आज संजय के घर पर जाऊँगा. मेरा खाना मत बनाईयेगा. मैं उधर ही खा लूँगा.”

सत्या वहीं खड़ा-खड़ा चाय की चुस्कियाँ लेने लगा. सामने से सविता तेजी से निकली. आँचल से चेहरा और बाँह छुपाए. लेकिन चेहरे पर का गूमड़ और बाँह पर के चोट के निशान साफ दिखाई दे गए.

सत्या संजय के घर पर उदास बैठा था. गीता ने अपने दूधमुँहे बच्चे को लाकर संजय की गोद में डाल दिया और खुद चाय बनाने चली गई. संजय ने सत्या से पूछा कि वह इतना उदास क्यों है. सत्या की ग़मगीन आँखों के गिर्द काले घेरे पड़ गए थे. उसने बड़े दुखी स्वर में कहा, “कल वह फिर आया था, सपने में.”

संजय ने चिंतित स्वर में पूछा, “क्या देखा तुमने?”

“फिर से वही दृष्य. घना अंधेरा ...गोपी मेरे हाथ से साईकिल छीन कर आगे बढ़ता है...... चेन में बंधा ताला लहराता है. ताला गोपी के सिर पर लगता है. गोपी चीखता है और सिर पकड़कर पीछे गिरता है....गोपी की लाश पत्थरों के ऊपर पड़ी है...”

“फिर”

“हम चिल्लाते हैं, नहीं-नहीं हम जानबूझकर नहीं मारे. जानबूझकर नहीं मारे...,” सत्या बड़ी मुश्किल से सपने में घटी घटना को बता पा रहा था, “इसबार गोपी उठ कर बैठ जाता है. उसके सिर से लगातार खून बह रहा है. वह हमको देखकर हँसता है और कहता है, ‘हम नहीं मरेंगे.... हा-हा-हा, हम नहीं मरेंगे’.

“रोहन और खुशी आकर गोपी की गोद में बैठ जाते हैं. वह उनको प्यार करने लगता है. मीरा आकर गोपी के चेहरे पर फैला खून अपने आँचल से साफ करती है. मुड़कर बिफरी हुई शेरनी की तरह गरज़ती है, ‘जाओ भाग जाओ अपनी साईकिल लेकर. नहीं चाहिए हमको तुम्हारी साईकिल.’ मीरा साईकिल की चेन और ताला उठाकर मेरी ओर फेंकती है. ज़ोर की आवाज़ होती है. मेरी नींद टूट जाती है.”

सत्या हताश सा सिर पीछे फेंककर कुर्सी पर पसर जाता है, “ऐसा लगा रहा था जैसे मेरे दिल की धड़कन मेरे काबू में नहीं है. सच बताएँ संजय, मेरा दिल बहुत बेचैन है. हम सोचे थे मेरा सहारा उनकी ज़िंदगी को फिर से पटरी पर ले आएगा. लेकिन लगता है गोपी की आत्मा मेरे इस त्याग से भी संतुष्ट नहीं है. मीरा का व्यवहार भी मेरी समझ से बाहर है.... शायद हम जितना कर रहे हैं, वह काफी नहीं है.”

संजय ने दिलासा दिया, “इतनी जल्दी निराश मत हो जाओ. रास्ता अभी बहुत लंबा है. धैर्य से काम लेना होगा.”

“ठीक कहते हो, आख़िर है तो यह सज़ा. कष्ट होगा ही,” सत्या अभी भी निराशा में डूबा था, “लेकिन समझ नहीं पा रहे हैं कि मीरा हमसे ऐसा व्यवहार क्यों कर रही है. संजय, उसे कहीं पता तो नहीं चल गया है कि....”

“क्या पता चल गया है?......बेकार की बात... और तेरे साथ कैसा व्यवहार कर रही है?”

“मेरी किसी भी सहायता से वह खुश नहीं होती. अभी कल की ही बात है, रोहन कहानी सुनते-सुनते मेरे पास ही सो गया. हम ख़बर भिजवाएँ कि वह आज मेरे पास ही सोएगा. लेकिन वह आई और ऐसे झपट कर रोहन को ले गई जैसे हम उसका कोई दुश्मन हैं,” सत्या ने अपनी द्विविधा बताई.

संजय हँसा और बोला, “हम बताएँ तेरी असली समस्या क्या है? तूने अभी उनका विश्वास हासिल नहीं किया है और तू चाहता है कि वे तुम्हें अपने घर का सदस्य समझें. और क्या पता तेरी दया देखकर मीरा को शंका हो रही हो कि तू उसकी मज़बूरी का एक-न-एक दिन ज़रूर फायदा उठाएगा. इसीलिए वह तुमसे एक सुरक्षित दूरी बना कर रखती है.”

सत्या बहुत देर तक ख़ामोश रहा. फिर एक लंबी सास खींचकर बोला, “अब यह तो

उसको समय ही बताएगा कि मेरे दिल में ऐसा कुछ भी नहीं है.”

गीता चाय ले आई. चाय और बिस्कुट के बीच संजय ने जब सत्या की बात बताई तो गीता ने तपाक से अपना पुराना एजेंडा सामने रखा, “दादा, तुमी ऐकटी काज कॉरो. बिये कॉरे नाओ. मीरा बूझे जाबे जे तॉमार एरादा टा भालो. (भईया, तुम एक काम करो. ब्याह कर लो. मीरा समझ जाएगी कि तुम्हारा इरादा ठीक है).”

सत्या ने मुँह बनाकर संजय को देखा. संजय ने चुटकी लेते हुए कहा, “ठीक कॉथा (सही कहा). सत्या तुम्हारी समस्या का यही सबसे अच्छा उपाय है. एक बार तुमने शादी की नहीं कि मीरा के मन से सारी आशंकाएँ जाती रहेंगी. फिर सबकुछ तुम्हारी इच्छा के अनुसार होगा. क्या पता गोपी की आत्मा को भी इसी बात की आशंका हो.”

सत्या ने नाराज़गी से संजय को मज़ा लेते हुए देखा. फिर संजीदा स्वर में बोला, “यू आर नॉट अलाऊड टू मैरी व्हेन यू आर सर्विंग अ सेंटेंस. (जब आप सज़ा भुगत रहे होते हैं तो आपको शादी करने की इजाज़त नहीं है)”

“तुमसे किसने कहा? जेल में रह कर तुम शादी कर सकते हो,” संजय ने छूटते ही कहा.

सत्या नाराज़ हो गया और उठकर जाने लगा. संजय ने जल्दी से उसे रोका. मज़ाक के लिए जब उसने तौबा की तब जाकर वह रुका. गीता पूछती ही रह गई कि अंगरेजी में सत्या ने क्या कहा और जेल वाली क्या बात थी.

माछ-भात खाकर सत्या ने साईकिल उठाई और बस्ती की ओर चल पड़ा.

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