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सत्या - 23

सत्या 23

सत्या के कमरे में बिस्तर पर बैठकर बच्चे पढ़ रहे थे. सत्या सामने कुर्सी पर आगे झुककर खुशी को लिखते हुए घ्यान से देख रहा था. तभी अचानक सविता के चिल्लाने की आवाज़ आई. तीनों ने चौंककर ऊपर देखा.

सत्या ने खिन्न होकर कहा, “तुमलोग अपनी पढ़ाई पर ध्यान लगाओ,” फिर वह बडबड़ाया, “ऐसे माहौल में कैसे होगी बच्चों की पढ़ाई?”

लड़ाई झगड़े के शोर से खुशी का पढ़ाई पर से ध्यान भटक गया. वह बार-बार दरवाज़े की तरफ देखने लगी. रोहन दरवाज़े की तरफ भागा. उसके दरवाज़े पर पहुँचने से पहले ही वरुण दौड़ता हुआ अंदर आया.

वरुण, “माँ चंडी आई है. माँ चंडी आई है. सबिता मौसी के ऊपर माँ चंडी आई है.”

बोलकर वरुण कमरे के बाहर भाग गया. रोहन भी उसके पीछे भागा. सविता मौसी का नाम सुनकर खुशी भी पढ़ाई छोड़कर बिस्तर से कूदी और बाहर की ओर लपकी. सत्या के चेहरे पर घोर आश्चर्य के भाव थे. वह भी सबके पीछे बाहर निकल आया.

सविता शंकर की कमीज़ का कॉलर पकड़कर उसे लगभग घसीटती हुई गली में ले आई थी.

सविता, “आज फिर दारू पी लिया. डॉक्टर साहब बोले कि एक बूँद भी इसके लिए ज़हर है, और इसको देखो पूरी बोतल चढ़ा कर आया है. यू ब्लडी नॉनसेंस. कितना मना किए, मानता ही नहीं. तुमको दारू पीना है तो इस घर में आने की ज़रूरत नहीं है.”

कुछ औरतें ने आगे बढ़कर सविता के दोनों हाथ पकड़ लिए और उसे ज़मीन पर बैठाने की कोशिश करने लगीं. इस कोशिश में सविता ज़मीन पर गिर गई. एक महिला उसके पैरों में आलता तो दूसरी उसके माथे पर सिंदूर लगाने लगी. कुछ औरतें हाथ जोड़कर बैठ गईं. शंकर शराब के नशे में धुत्त सामने खड़ा झूम रहा था.

औरतों ने गुहार लगाई, “जय माँ चंडी, जय माँ चंडी ... शाँत हो जाओ माँ ...”

सविता ने झटके से अपना हाथ छुड़ाया और फिर से शंकर का कॉलर पकड़ लिया. इस धक्का-धुक्की में सविता के माथे का सिंदूर उसके माथे पर बिखर गया. वह बिल्कुल माँ काली का रूप दिखने लगी. सविता शंकर को धकेलती हुई ले जाने लगी.

सविता, “तुमको दारू पीना है ना....दारू पीकर मरना चाहता है ना... चल तुमको हम दारू पिलाते हैं. मरना ही है तो आज ही मरो.”

शंकर को धकेलती हुई सविता गली में आगे बढ़ती गई. औरतों, मर्दों और बच्चों का झुँड गुहार करता हुआ उसके पीछे-पीछे चल रहा था. गलियों से होते हुए सविता बस्ती के बाहर आई और शंकर को पेड़ के नीचे बने चबूतरे पर ढकेलते हुए बोली, “जाओ जितना पीना है पीओ और मरो. घर आने की कोई ज़रूरत नहीं है.”

कई औरतें उसके चरणों पर झुक गईं, “शांत हो जाओ देबी माँ. हमको माफी दे दो. शांत हो जाओ.”

सविता औरतों पर ज़ोर से भड़की, “भगाओ सब पियक्कड़ों को बस्ती से. मरने दो इनको दारू पीकर. हम लोग इनके बिना भी जी लेंगे.”

वह झटके से अपने को छुड़ाती हुई वापस बस्ती की ओर चल पड़ी. सारे वापस उसके पीछे-पीछे चले. गुस्से में लंबे डग भरती हुई अपने घर के अंदर जाकर उसने दरवाज़ा बंद कर लिया. बाहर खड़ी भीड़ असमंजस की स्थिति में थी. एक-एक करके लोग उसके घर के आगे ज़मीन पर बैठने लगे. क्या पता देवी माँ फिर कब बाहर आएँ.

अनिता ने अपने साथ वाली से कहा, “बाप रे, माँ का ऐसा रूप तो हमलोग आज तक नहीं देखें. आज बहुत गुस्सा में है माँ.”

रामबाबू ने अपने विचार रखे, “हमको तो लगता है सबिता शंकर का दारू पीने से गुस्सा हो गई है. माँ नहीं आई है उसपर.”

गोमती गुस्से में हाथ लहराती हुई बोली, “माँ का अपमान मत करो. ऐसे ही बहोत गुस्सा है.”

अचानक भड़ाक से दरवाज़ा खुला और सविता बाहर आई. वह दौड़ती हुई शंकर के पास पहुँची और उसकी बगल में बैठ गई. उसकी आँखों में आँसू और आवाज़ में दर्द था, “क्यों पी ली आज दारू..... हमको छोड़कर जाना चाहता है? चल घर चल,

और कभी मत पीना.”

भीड़ में से कई लोगों के मुँह से निकला, “अरे नहीं-नहीं, माँ इसको यहाँ छोड़कर गई है. घर गया तो माँ का साप लगेगा.”

सविता, “तो फिर ठीक है. हम आज इसके साथ यहीं रहेंगे. तुमलोग अपने-अपने घर जाओ.”

सविता अपने पैर ऊपर चढ़ाकर बैठ गई. अपना शॉल उसने शंकर को ओढ़ाया और बोली, “चल अब चुपचाप सो जा.”

रतन सेठ के चेहरे पर एक चौड़ी सी मुस्कान थी. वह पूरे मजे ले रहा था और मस्ती में सिर हिला रहा था. रतन सेठ बड़बड़ाया, “अच्छा खबर ले रही है माँ चंडी इन मरद लोगों की. अब इनकी खैर नहीं.”

सभी लोग एक-एक करके चले गए. सत्या भी जाने के लिए मुड़ा ही था कि वहाँ पुलिस की जीप आकर रुकी. सब-इन्सपेक्टर ने गाड़ी में बैठे-बैठे ग़ौर से शंकर और सविता को देखा. सत्या पर नज़र पड़ने पर उसने इशारे से उसे पास बुलाया और पूछा, “क्या चल रहा है यहाँ. इतनी रात को ये लोग क्या कर रहे हैं?”

“अब इस बस्ती में जो भी शराब पीकर आता है, उसे इसी चबूतरे पर रात गुज़ारनी पड़ती है. आज शंकर बैठा है. असकी पत्नी उसका साथ दे रही है. दोनों अब रात भर यहीं रहेंगे,” सत्या ने बताया.

सब-इन्सपेक्टर के मुँह से बेसाख़्ता निकला, “ऐसा क्या? वाह ये लोग तो अच्छा काम कर रही हैं. इनको सपोर्ट करना पड़ेगा,” उसने मुड़कर सिपाही से कहा, “हवलदार साहब से कहकर यहाँ रात को एक सिपाही ड्यूटी पर लगा दीजिए. देखिये इनके साथ कोई अप्रिय घटना न घटे.”

“जी हाँ जी, सर,” सिपाही ने तपाक से कहा.

सत्या को धन्यवाद कहकर सब-इन्सपेक्टर गाड़ी आगे बढ़ा ले गया. सत्या ने भी अपने घर की राह ली.

वरुण तेजी से दौड़ते हुए सबको ख़बर देने लगा, “पूजा का माँ पर माँ चंडी आई है... माँ चंडी आई है...पूजा का माँ पर माँ चंडी आई है.”

सुनते ही औरतें और मर्द तेजी से एक दिशा में चल पडे.

वरुण तेजी से दौड़ते हुए सबको ख़बर देने लगा, “चंदा का माँ पर माँ चंडी आई है... माँ चंडी आई है...चंदा का माँ पर माँ चंडी आई है.”

सुनते ही औरतें और मर्द तेजी से एक दिशा में चल पडे.

वरुण तेजी से दौड़ते हुए सबको ख़बर देने लगा, “ननकू का माँ पर माँ चंडी आई है... माँ चंडी आई है...ननकू का माँ पर माँ चंडी आई है.”

सुनते ही औरतें और मर्द तेजी से एक दिशा में चल पड़े.

सत्या ने संजय को बताया कि आजकल बस्ती में क्या चल रहा है. उसकी आँखों में तीन दृष्य थे. एक में पूजा की माँ, दूसरे में चंदा की माँ और तीसरे में ननकू की माँ बाल बिखराए आँखें चढ़ाए झूम रही थीं. तीनों के पति बगल में कंबल-चादर दबाए नशे में धुत्त आगे-आगे चले जा रहे थे. पीछे-पीछे औरत-मर्दों की भीड़ चल रही थी. सारे लोग बस्ती के बाहर के पेड़ के पास आते हैं. शराबी पति चबूतरे पर चादर बिछाते हैं और कंबल ओढ़कर सो जाते हैं.

चार लोग चबूतरे पर गहरी नींद में सोये हुए थे. एक गुज़रती हुई मोटरसाईकिल की तेज़ आवाज़ से रमेश की नींद टूटी. वह उठ कर बैठ गया. रतन सेठ अपनी दुकान के आगे झाड़ू लगा रहा था. रुककर हँसी उड़ाने वाले अंदाज़ में उसने कहा, “तब रमेश बाबू, रात में ठीक से नींद आया कि नहीं?”

रमेश ने कंबल कस कर अपने शरीर पर लपेट लिया. कुछ नहीं कहा. बस उसकी ओर एक टक देखता रहा. रतन सेठ फिर से झाड़ू लगाने लगा. अचानक रमेश ने उसे आवाज़ लगाई, “रतन सेठ, हमलोग का ये हाल देखकर खूब मजा ले रहे हो? ... अरे हम लोग तो यहाँ रात भर तुमरा दुकान का रखवाली करने के लिए आते हैं.”

रतन सेठ ने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा, “लगता है सबसे जादा तुमको मेरा दुकान की फिकर रहती है. रोज आ जाते हो. तुमको तो माँ चंडी को बोलना ही नहीं पड़ता है.”

“हम सबसे बड़ा भक्त हैं माँ चंडी का,” रमेश ने ऐसे कहा जैसे वह सचमुच बड़ा भक्त हो.

रतन सेठ ने भी चुटकी ली, “सबसे बड़ा भक्त है तो दारू छोड़ क्यों नहीं देता?”

“रतन सेठ, तुम्हारा दुकान का दरबाजा बहोत कमज़ोर है. हम यहाँ नहीं आएगा तो कोई चोर तुमरा सारा माल उड़ा ले जाएगा.....हा-हा-हा..” रमेश ज़ोर से हँसा.

रतन सेठ सकपका कर दुकान के दरवाज़े का मुआयना करने लगा. फिर चिंतित नज़रों से रमेश की ओर देखा, जो अर्थपूर्ण मुस्कुराहट के साथ उसको घूर रहा था. रतन सेठ दुकान के अंदर जाकर काउंटर पर रखे फोन पर नंबर डायल करने लगा. रमेश कंबल लपेटकर बस्ती में चला गया.

रतन सेठ, “अरे श्याम भाई, जरा जल्दी से आईये एक अर्जेंट काम है...... दरावाजा पर ग्रिल लगाना है .....नहीं-नहीं अर्जेंट है .....इस चोर-चुहाड़ की बस्ती में कोई ठिकाना नहीं है, कब .....”

तभी सत्या वहाँ पहुँचा. उसने रतन सेठ को टोका, “किसको चोर-चुहाड़ बोल रहे हो सेठ?”

रतन सेठ ने मुड़कर जब सत्या को देखा तो शिकायत भरे स्वर में बोला, “आइये-आइये सत्या बाबू. जबसे माँ चँडी बस्ती में आई हैं, सारे पियक्कड़ सामने पेड़ के चबूतरे पर रात गुजारने लगे हैं. अभी रमेश बोल के गया है कि सावधान रहना दुकान का दरवाजा कमज़ोर है, कभी भी चोरी हो सकती है.... अब आप ही बताइये क्या करें हम?”

सत्या, “अच्छा, ऐसा बोला..हम्म्.... दूध का एक पैकेट और एक किलो चीनी देना सेठ.”

रतन सेठ दूध का पैकेट निकालने लगा. काउंटर पर दूध का पैकेट रखकर वह चीनी तौलने लगा. चँदू और रामबाबू दुकान पर आए.

चँदू, “एक मुट्ठा बीड़ी और एक माचिस देना सेठ.”

सत्या, “क्या चँदू, रमेश सेठ को बोल रहा था कि दुकान में चोरी हो सकती है? कौन करेगा चोरी?”

चँदू, “अरे वो बात?... सेठ हमपर हँसता रहता है. रमेश उसको चमका दिया होगा.”

सत्या, “चमका दिया होगा मतलब?”

“हमलोग का भासा में चमकाना का माने, वो क्या कहते हैं.... डराना, झूठ-मूठ का डराना..... क्या सेठ मजाक भी नहीं समझता..चल बढ़ा ना बीड़ी.”

बीड़ी लेकर दोनों दुकान के बाहर निकले और बारी-बारी से बीड़ी जलाई. सत्या अपना सामान लेकर चला गया. सामने से ठेले पर घर का सामान लादे बिजय आता हुआ दिखा. पीछे उसकी पत्नी गोदी में रोते हुए ननकू को चुप कराती हुई चली आ रही थी.

चँदू ने आवाज़ लगाई, “कहाँ जा रहा है बिजय?”

बिजय, “बस्ती छोड़ कर जा रहे हैं भाई. साला दिनभर पसीना बहाकर शाम को थके हारे घर आते हैं और दारू का एक घूँट भी नहीं मार सकते. जा रहे हैं ससुराल. वहाँ माँ चंडी का दारू पर रोक नहीं है.”

बिजय ठेला लेकर चला गया. पीछे-पीछे उसकी पत्नी भी. दुकान के आगे दोनों खड़े चिंतित होकर जल्दी-जल्दी बीड़ी के कश लगाने लगे.

चँदू ने कहा, “माँ चंडी तो दारू पीने वालों के पीछे हाथ धो कर पड़ गई है. कोई उपाय सोचना ही पड़ेगा माँ का गुस्सा सांत करने के लिए.”

“सात दिन का अखंड चंडीपाठ कराएँ क्या?” रामबाबू ने उपाय सुझाया.

“तू सात दिन दारू के बिना रह पाएगा?”

दोनों हँसे. बीड़ी का आख़िरी कश मारा. चँदू ने ज़मीन पर पच्च से थूका और बोला, “रतन सेठ, दारू का दुकान बंद होने के बाद तेरा धंधा भी तो मंदा पड़ गया है. तेरा मिक्चर और बीड़ी का बिक्री कम हो गया है. तू ही चंडीपाठ कराकर माँ को सांत कर ना.”

रतन सेठ ने खुशी-खुशी कहा, “जय माँ चंडी. अरे हमलोग का एक धंधा बंद होता है तो दूसरा धंधा निकल के आता है. अब मेरी किताब कॉपी की बिक्री बढ़ गई है.”

चँदू, “हाँ भाई, आजकल रोज रात को सबिता के घर पर औरत लोग क्या-क्या तो पढ़ती रहती है.”

रतन सेठ ने मजाक किया, “देख ले चँदू, अब तुमलोगों की खैर नहीं. दारू तो बंद हो ही गया. अब जोरू से गाली भी अंगरेजी में सुनना होगा.”

दुकान पर जानकी आई और बोली, “सेठ वन केजी राईस प्लीज... ऐंड टेल मी हाऊ मच. कितना पैसा हुआ?”

रतन सेठ का मुँह देखते बनता था. रामबाबू ने पीछे से चुटकी ली, “ये लो सेठ, अब तुमको भी अंगरेजी सीखना होगा. ... और अब तेरा क्या होगा चँदू बेटा? सरसती भाभी भी तो अंगरेजी सीख रही है. तेरे को गाली देगी तो तुझे पता भी नहीं चलेगा कि क्या बोल रही है. हम तो कहते हैं कि तू भी सबिता भाभी का क्लास में पढ़ाई शुरू कर.”

रामबाबू ज़ोर से हँसे. रतन सेठ मशीनी अंदाज में सामान तौलने में लग गया. चँदू ने खिसियानी मुँह बनाकर नई बीड़ी सुलगा ली.

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