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सत्या - 21

सत्या 21

शाम ढले जब मर्द लोग काम पर से लौटे तो तुलसी के घर पर औरतों का जमघट लगा था. माँ चंडी की एक बड़ी सी फ्रेम की हुई फोटो बरामदे के कोने में पीढ़े पर सजी हुई थी और एक ब्राह्मण बैठा पाठ कर रहा था बस्ती के कुछ मर्द वहाँ रूककर समझने की कोशिश करने लगे कि आख़िर माज़रा क्या है. रमेश ने अपने नाटकीय अंदाज़ में कहा, “अब ये क्या तमाशा हो रहा है? अरे ओ मुनिया की माँ, क्या कर रही है यहाँ. चल उठ, घर में खाना वाना नहीं बनाना है?”

गोमती एक मोटा सा डंडा लेकर निकली. रमेश सटक गया. गोमती ने धमकी दी, “कौन हल्ला कर रहा है? देखता नहीं है पूजा हो रहा है? अब माँ चंडी ही तुमलोगुन को ठीक करेगा.... आज किसी के घर में खाना नहीं बनेगा. यहीं पर 7 बजे से सबको भोग मिलेगा. कोई अगर दारू पीकर आया तो ये डंडा मिलेगा.”

एक कोने में दो औरतें बड़ी सी हंडी में खिचड़ी पका रही थीं. सत्या साईकिल पर वहाँ पहुँचा. साईकिल से उतरे बिना रुककर वहाँ हो रहे क्रियाकलाप का उसने जायज़ा लिया. सविता से नज़र मिलने पर वह आगे आगे बढ़ गया. सविता ने भीड़ में मीरा को खोज कर उसके कान में कुछ कहा. दोनों घर की ओर चले. खुशी भी माँ के पीछे हो ली.

घर पर जब वे पहुँचे तो सत्या ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया, “वाह-वाह, बधाई हो. आज का प्लान उम्मीद से ज़्यादा सफल रहा. साहब इन्क्वाईरी का ऑर्डर दे दिये हैं. और ये पूजा का प्रोग्राम बहुत बढ़िया चल रहा है.”

सविता, “सत्या बाबू पाँच सौ रुपये देंगे ज़रा? सबके लिए भोग का इंतज़ाम करना पड़ा.”

सत्या, “हाँ, क्यों नहीं,” उसने जेब से रुपये गिनकर सविता को दिये. सविता ने वे पैसे खुशी को देकर कहा, “बेटी, दौड़कर ज़रा रतन सेठ को दे आओ. कहना बाकी हिसाब बाद में करेंगे.”

खुशी दौड़कर बाहर चली गई. मीरा भी बाहर जाते हुए बोली, “हम चाय बनाकर लाते हैं.”

एकांत पाकर सत्या ने सविता से कहा, “मीरा काफी कमज़ोर है. उसको साथ में नहीं ले जाना चाहिए था.”

सविता ने गर्व के साथ कहा, “सत्या बाबू, आप हम औरतों की शक्ति को नहीं जानते

हैं. मीरा अपने दुख से बाहर आ गई है. पूरे उत्साह में है. उसको अभी मत रोकिए.”

सत्या काफी देर तक सविता का चेहरा देखता रह गया, जैसे औरत की शक्ति को समझने की कोशिश कर रहा हो.

सत्या ने विषय बदला, “कितने दिनों का चंडी पाठ रखा है?”

सविता, “आप बताईये, कितने दिनों में इन्क्वाईरी ख़त्म हो जाएगी?”

“जल्द ही कोई आएगा. कम से कम तीन दिन तो चलना ही चाहिए पाठ. तुमलोग बस यही कहना कि यहाँ मंदिर कई सालों से है.”

“बस्ती के मर्द लोग नहीं बता देंगे?”

“देखो, सारे अफसर तुम लोगों की ही बात सुनेंगे. कहना सारे मर्द झूठ बोल रहे हैं, क्योंकि ये नहीं चाहते हैं कि शराब की दुकान यहाँ से हटाई जाए.”

“तब ठीक है.”

सत्या ने चिंतित होकर पूछा, “लेकिन सवाल अभी भी वहीं है कि इन सबके बाद क्या बस्ती के लोग शराब पीना बंद कर देंगे? शराब दुकान हटाने की बात को इन्होंने अपने दिल पर ले लिया तो? अभी तो इन्हें लगता है कि तुम लोग सफल नहीं होगी. लेकिन जब दुकान हट जाएगी, ये तिलमिला जाएँगे और खूब तमाशा करेंगे.”

“हमलोग इतनी दूर तक नहीं सोचते हैं. जो करना है कर डालो. फिर माँ चंडी पर छोड़ दो. वह कोई न कोई उपाय ज़रूर करेगी. एक बार दुकान हट जाए, बस. अच्छा अब हम चलते हैं. मीरा, ओ मीरा, चाय बनी कि नहीं?”

सत्या ने टोका, “तुम्हें माँ चंडी पर बहुत विश्वास है?”

“हमको हो न हो, बस्तीवालों को तो है. विश्वास ही कमज़ोरों का सबसे बड़ा संबल है. जब बस्ती की सारी औरतें विश्वास करती हैं कि माँ चंडी कोई न कोई उपाय निकालेंगी, तो देख लीजिएगा कि रास्ता ज़रूर निकलेगा.”

सविता के आत्मविश्वास के आगे सत्या की दलीलें नतमस्तक हो गईं. मीरा चाय लेकर अंदर आई और चाय का कप मेज़ पर रखकर सविता के साथ बाहर चली गई. सत्या ने चाय की एक चुस्की ली और सोचने लगा कि काश संजय यह नज़ारा देख पाता.

रात घिर आई थी. लोग अपनी-अपनी थाली लिए लाईन में खड़े थे. दो औरतें हंडी से भोग निकालकर थालियों में बाँट रही थीं. गोमती खड़ी सुपरवाईज़ कर रही थी. रमेश नशे में डगमगाता हुआ भोग लेने सामने आया. गोमती ने डंडा दिखाया.

गोमती, “आज दे दे रहे हैं. कल से दारू पीकर भोग लेने मत आना.”

रमेश ने सहमति में सिर हिलाया. भोग थाली में लेकर अपने दूसरे साथियों के पास जाकर कहने लगा, “साला दिन में दारू बंदी का जुलूस और रात को चंडी पाठ और भोग. क्या नौटंकी है भाई?”

गोमती उसकी बात सुन कर बोली, “सब समझ में आ जाएगा. तुमलोग जरा सबर करो. सब समझ में आ जाएगा.”

रमेश ने दोनों कान पकड़ कर नाटकीय अंदाज़ में कहा, “हाँ मौसी, हम पूरा सुधर जाएँगे.”

उसके साथी ज़ोर से हँसे. दरअसल वह औरतों का मज़ाक उड़ा रहा था. गोमती सब समझ रही थी. लेकिन उसने उसको और उकसाना ठीक नहीं समझा.

दूसरी सुबह ज़्यादातर मर्द काम पर नहीं गए. उन्होंने बस्ती में काफी मनोरंजन का इंतजाम कर रखा था. इधर पाठ चल रह था और उधर सामने धड़ल्ले से शराब बिक रही थी. म्यूज़िक सिस्टम पर ज़ोर-ज़ोर से गाना बज रहा था. कुछ शराबी जानबूझकर चिढ़ाने के लिए वहीं खड़े-खड़े पाऊच मुँह में खाली करके नाच रहे थे. गोमती, मीरा और सविता के चेहरों पर चिंता की रेखाएँ साफ दीख रही थीं.

वरुण तेजी से दौड़ता हुआ वहाँ पहुँचा और हाँफता हुआ कहने लगा, “अरे, अखबार में तुमलोग का फोटो छपा है. उधऱ सेठ का दुकान पर देखें.”

सविता ने खुश होकर कहा, “सच्ची क्या? चल तो देखते हैं.”

सविता वरुण के साथ चली गई. थोड़ी देर बाद हाथ में अख़बार लेकर आई और बरामदे पर बैठकर उसने नीचे अख़बार फैला दिया. औरतें झुक कर देखने लगीं.

सविता, “ये देखो हमलोगों की फोटो. गोमती मौसी, सबसे अच्छी फोटो तुम्हारी आई है. पूरी हिरोईन लग रही हो.”

सब हँस दिए. बड़े खुश दिख रहे थे सभी.

गोमती, “देखें-देखें,..... हाँ, हिरोन हम नहीं सबीता लग रहा है.”

मीरा ने अपनी फोटो देखकर मुँह बनाया, “हम तो पता नहीं कहाँ देख रहे हैं फोटो में,” फिर वह बड़े अक्षरों में लिखा हेड लाईन पढ़ने लगी, “देखो-देखो क्या लिखा है...मॉडर्न बस्ती की महिलाएँ शराब के खिलाफ गोलबंद. बस्ती में शराब नहीं बिकने देंगी. मॉडर्न महिला ब्रिगेड ने शराबबंदी का बिगुल फूँका.”

सविता ने हँस कर कहा, “मॉडर्न महिला ब्रिगेड...अरे वाह, बड़ा अच्छा नाम दिया है. है न?”

मीरा, “आगे लिखा है, एस. डी. ओ. और डी. सी. को ज्ञापन सौंपा. उचित कार्रवाई का आश्वासन मिला.”

“अरे हम लोग डी. सी. साहब के पास तो गए नहीं. फिर ये......” सविता सोच में पड़ गई.

तभी गोमती ज़ोर से बोली, “अरे देखो कालिया दुकान पर ताला लगा रहा है....अरे ओ कालिया बाबू, दुकान बंद करा दिए न हम लोगुन...देखा?’

“नहीं काकी, सुबह से इतना माल बिका कि घट गया. जा रहे हैं और माल लाने,” बोलकर कालिया ज़ोर से हँसा और चला गया.

गोमती बड़बड़ाई, “साला कोई फायदा नहीं. ये लोग तो अब और भी जादा-जादा करके पी रहा है...हम लोगुन पर हँस रहा है.”

शराब दुकान के सामने जश्न का माहौल था. महिलाओं के चेहरों पर फिर से परेशानी झलकने लगी थी.

मीरा ने परेशान होकर पूछा, “अब हमको क्या करना चाहिए?’

“चलो कुदाल-सब्बल निकालो. पूरा झोपड़ी तोड़ कर गिरा देते हैं,” गोमती बहुत गुस्से में थी.

सविता, “अरे नहीं-नहीं, सत्या बाबू बोले हैं कोई हंगामा नही करना है. शांति से काम लेना है.”

गोमती, “तो फिर चलो दुकान पर हमलोग भी ताला लगा देते हैं...देखते हैं कैसे बेचता है दारू... अरे तुलसी एक ताला तो दे.”

कोई कुछ नहीं बोला. गोमती तुलसी से ताला और एक हाथ में लाठी लेकर दुकान की तरफ बढ़ी. बाकी औरतें भी लाठी जमीन पर बजाती हुई उसके पीछे चलीं. नाचने रहे पियक्कड़ों को धकेलती हुई गोमती ने दुकान पर एक और ताला जड़ दिया और दरवाज़े के सामने कमर पर हाथ रखकर खड़ी हो गई. सविता ने स्पीकर का तार नोच दिया. गाना बजना बंद हो गया. नाचने वालों का नाच थम गया. उन्होंने प्रतिवाद किया. गोमती ने उनको लाठी दिखाई.

रमेश ने शिकायत की, “मौसी ये ठीक बात नहीं है.”

गोमती ने ललकारा, “तुम लोगुन को चंडी माँ का कसम. कोई हमको रोका तो सर फोड़ देंगे हम.”

एक जीप आकर रुकी. दो लोग उतरे.

“साला तुम लोगुन को सरम नहीं आता है? सामने चंडी पाठ चल रहा है और यहाँ पीकर बवाली कर रहा है?” गोमती अपनी रौ में कहती जा रही थी.

जीप पर से उतर कर आने वालों में से एक ने मर्दों को ज़ोर से डपटा, “क्या हो रहा है यहाँ? क्यों इन औरतों को तंग कर रहे हो?.... हाँ मैडम कहाँ है मंदिर?”

मर्द दूर छिटक गए. महिलाएँ चुपचाप उनका मुँह देखने लगीं. आगंतुकों में से एक ने महिलाओं से कहा, “हमलोग सरकारी आदमी हैं. इनक्वाईरी के लिए आए हैं....... हाँ समीर जी, बात तो सच है. पूजास्थल के ठीक सामने है ये शराब की दुकान. आप यहाँ की फोटो ले लीजिए. आज ही रिपोर्ट सबमिट करना है.......चलो-चलो तुमलोग सामने से हटो, फोटो लेने दो....और कालिया कहाँ है?”

इन्क्वाईरी की बात सुनकर सविता उत्साहित हो गई थी. उसने आगे बढ़ कर कहा, “जी, माल घट गया कहकर और माल लाने गया है...साहब आप बस्ती के मर्दों को समझाईये न, सुबह से शराब पीकर हंगामा कर रहे हैं.”

जिसको समीर के नाम से संबोधित किया गया था वह कई एंगल से फोटो खींचने लगा.

सविता की बात सुनकर पहला अफसर भीड़ को देखकर ऊँची आवाज़ में बोला, “अरे यहाँ थाना से कोई सिपाही नहीं है?”

भीड़ में से सिविल ड्रेस में एक आदमी सामने आया, “जय हिंद सर, हम नजर रखे हुए हैं.”

अफसर ने मर्दों को कहा, “चलिए आप सब अपने-अपने काम पर जाईये. यहाँ भीड़ नहीं लगाना है. मैडम आप लोग अपनी पूजा-पाठ जारी रखिये. सिपाही जी ज़रा ख़्याल रखिए, इन महिलाओं को कोई तंग ना करे. और कालिया आए तो उसे मेरे

दफ्तर भेज दीजिए.”

सिपाही, “जी हाँ जी सर, जय हिंद सर”

दोनों वापस जीप में बैठे और चले गए. औरतों के बीच खुशी की लहर दौड़ गई.

कालिया अपनी दुकान के आगे खड़ा दो मज़दूरों से दुकान खाली करा रहा था. मज़दूर अंदर से पेटी ला-लाकर एक छोटे कद के ट्रक पर लाद रहे थे. तुलसी के घऱ के आगे औरतों की भीड़ खड़ी यह सब देखकर खुश हो रही थी.

गोमती ने कालिया को आवाज़ लगाई, “ओ कालिया भाई. आज चंडी पाठ का आखिरी दिन है. भोग खाकर और माँ चंडी का आसिरबाद लेकर जाना.”

कालिया ने दोनों हाथ जोड़कर एक लंबा प्रणाम किया, “तुम लोग को परनाम करते हैं. माँ चंडी का परताप से तुमलोग का मन्नत पूरा हुआ. सामान भेज कर आते हैं भोग खाने.”

गोमती, “मन में दुख मत करना कालिया भाई.”

कालिया, “दुख का क्या बात है? माँ चंडी का इच्छा है तो जाना ही पड़ेगा. माँ का इच्छा से दारू तो बेचेंगे ही. यहाँ नहीं तो कहीं और बेचेंगे.”

“डिलेवर बाबू और खलासी बाबू को भी साथ में लाना....माँ चंडी सबका भला करेगी.”

कालिया ने फिर से झुककर एक लम्बा प्रणाम किया और कहा, “माँ चंडी सबका खयाल रखती है. काकी, हमको यहाँ से भी अच्छा जगह मिल गया. एकदम रास्ता का ऊपर.”

“कहाँ?” गोमती के मुँह से निकला.

“रतन सेठ का गोकान से बस थोड़ा आगे, सड़क के किनारे.”

“इतना हंगामा करके हमें तो कुछ भी हासिल नहीं हुआ,” सविता के मुँह से निकला, “दारू की दुकान तो केवल बस्ती से उठकर बस्ती के बाहर चली गई.”

सारी औरतें चिंतातुर होकर एक दूसरे का मुँह तकने लगीं.

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