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सत्या - 26

सत्या 26

सत्या को बस्ती में आए करीब डेढ़ साल होने को आया. मीरा ने दसवीं की परीक्षा लिखी. पहले दिन बहुत घबराई हुई थी. हाथ से पसीने छूट रहे थे. हिंदी का पेपर था. तीन घंटे का समय हवा में कैसे उड़ गया पता ही नहीं चला. अपने मित्र को गर्मी की छुट्टियों में किसी पहाड़ी जगह की सैर का वृतांत लिखना था. केवल पाँच मिनट का समय शेष था. बहुत कुछ लिखना चाह कर भी वह ज़्यादा नहीं लिख पाई कि पेपर ही छिन गया.

सत्या ने परीक्षा हॉल में कैसे समय पर नज़र रखी जाती है, इस विषय पर महत्वपूर्ण जानकारियाँ दीं. लेकिन बाकी के पेपर्स का भी हाल वैसा ही रहा. परीक्षा खत्म हुई तो वह मुँह छुपाकर सो गई. उसे पूरा भय था कि वह किसी भी कीमत पर पास नहीं होगी.

लेकिन वह पास हो गई और उसने 77 प्रतिशत अंक प्राप्त किए. उस दिन मिठाई का डब्बा लिए सत्या सारा दिन घर के आगे खड़ा रहा और हर आने-जाने वाले को मीरा के पास होने की खुशख़बरी के साथ मिठाई खिलाता रहा. कुछ बच्चों ने तो दो-दो तीन-तीन बार लेकर मिठाइयाँ खाईं. सत्या ने दिल खोलकर मिठाईयाँ बाँटी.

बच्चों के स्कूल का फाईनल रिज़ल्ट भी आया. इस बार सत्या ने एक नई परंपरा की शुरूआत की. बस्ती के जितने बच्चों को 60% या उससे अधिक नंबर आया, सबको गिफ्ट बाँटे गए.

बच्चों से सत्या ने कहा, “सब एक-एक करके आओ. तुमलोगों की मास्टरनी सविता जी के हाथ से ईनाम लो.”

छोटे से बड़े बच्चे एक-एक करके आते गए और सविता के हाथ से ईनाम लेते गए. रोहन दूर खड़ा था.

फिर सत्या ने कहा, “अब जिनको 60% नहीं मिल पाया है, उनके लिए भी ईनाम है, ताकि वे भी खूब मेहनत करके अगली परीक्षा में 60% से ज़्यादा नंबर लाएँ. सबको मीरा देवी ईनाम देंगी. मीरा देवी वो महिला हैं, जो दस साल पढ़ाई छोड़ने के बाद फिर से पढ़ाई शुरू कीं और हार नहीं मानी. इनके हाथ से ईनाम लेकर तुमलोग भी कसम खाओ कि ज़िंदगी में कभी हार नहीं मानोगे.”

सारे बच्चे एक के पीछे एक कतार में लगकर मीरा के हाथ से ईनाम लेने लगे. रोहन पीछे से खिसक गया. जब उसका नाम पुकारा गया, वह कहीं नहीं दिखा.

संजय और गीता बस्ती की गलियों से होते हुए सत्या के घर पहुँचे. सविता के घर पर औरतें पढ़ रही थीं और सत्या के घर के बरामदे में बच्चों को मीरा पढ़ा रही थी. सत्या ने उन्हें देखते ही बच्चों को छुट्टी दे दी. बाहर आकर उनका स्वागत किया और घर के अंदर ले गया.

सत्या, “नमस्कार, आइये बोउदी, आओ संजय.... मीरा.. देखो ये लोग आ गये.”

संजय, ”तुमने तो सारी बस्ती का कायाकल्प कर दिया. हमको तो विश्वास ही नहीं हो रहा है कि तुमको हम यहाँ छोड़ के गए थे.”

दोनों पति-पत्नी प्लास्टिक की कुर्सियों पर बैठ गए. खुशी ट्रे में पानी के ग्लास लेकर आई. खुशी के हाथ से लेकर दोनों ने पानी पीया. गीता ने खुशी से कहा, “ खुशी बैटा, खुशी आछो तो?”

मीरा ने आकर प्रणाम किया. गीता ने बाँहें फैलाकर मीरा को गले से लगा लिया, “मीरा तुमी तो बिशॉन सुंदर आछो. तोमार पॉढ़ा-लेखा कैमॉन चॉलछे... भालो तो... (मीरा तुम तो बहुत सुंदर हो. तुम्हारी पढ़ाई-लिखाई कैसी चल रही है...ठीक तो है न..)

मीरा बोली, “हमसे और पढ़ाई नहीं होगी. अब काम ढूँढ रहे हैं.”

मीरा की बात सुनकर दोनों चौंके और सत्या की ओर देखने लगे. सत्या ने कहा, “इसीलिए तो तुम लोगों को बुलाए हैं. हम और सविता तो समझा कर थक गए. मानती ही नहीं है. कहती है काम करेगी. अब दसवीं पास को कौन सा ढंग का काम मिलेगा. तुम ही लोग समझाओ.”

“कैनो मीरा, की होलो. किछू ना किछू बात तो निश्चॉई हॉबे.” गीता ने मीरा का कंधा पकड़कर कहा, “तुमी आमाके बॉलो तो.”

मीरा ने झिझकते हुए कहा, “अब इस उमर में बच्चियों के साथ कॉलेज....”

“एई की बात होलो. तुमार की बॉयस होए छे? खुशी तो तोमार छोट्टो बोन जानाछे. बॉलो आमी मित्था कॉथा बोलछी ना की ?” उसने संजय और सत्या की ओर देखा. (ये क्या बात हुई. तुम्हारी उम्र ही क्या हुई है? खुशी तो तुम्हारी छोटी बहन के समान दिखती है. बोलो क्या मैं झूठ बोल रही हूँ?)

सब हँसने लगे. मीरा के चेहरे पर भी हँसी आ गई. उसने शिकायत की, “आप भी न गीता दीदी.”

संजय ने समझाया, “इन बेकार की बातों में आप न पड़ें. कॉलेज जाने में शर्म कैसी? कोई आप पर नहीं हँसेगा. उलटे लोग तारीफ करेंगे. देखिएगा आपकी टीचर्स भी आपका सम्मान करेंगी. बस हो गया फैसला. मीरा जी कॉलेज जाएँगी. सत्या तुम ऐडमिशन कराओ इनका.”

“हम तो कबसे फॉर्म लेकर रखे हैं. ये बस तैयार हो जाए,” सत्या ने कहा.

मीरा ने कोई जवाब नहीं दिया. संजय ने आश्चर्य से पूछा, “हम तो हैरान हो रहे हैं आपके इस निर्णय पर. और आपसे सविता जी कैसे हार मान गईं? सविता जी को ज़रा बुलाओ न सत्या.”

खुशी दौड़कर सविता को बुला लाई. मीरा चाय बनाने के बहाने से वहाँ से खिसकना चाहती थी. लेकिन किसी ने उसे जाने नहीं दिया. सविता आई और उसने भी हाथ खड़े कर दिए, “ये तो ज़िद पकड़ कर बैठी है. हम बोलें इसको कि दो साल बाद हम भी इसके साथ ग्रैजुएशन में ऐडमिशन लेंगे. लेकिन....”

संजय ने बीच में ही बात काटी, “इस साल क्यों नहीं ? आपका साथ रहेगा तो मीरा जी को भी आपका सहारा रहेगा. वे भी हिम्मत करके ऐडमिशन ले लेंगी. क्यों मीरा जी, अगर सविता जी भी ग्रैजुएशन में उसी कॉलेज में ऐडमिशन ले लेंगी, तब तो आप भी जाएँगी न कॉलेज?”

मीरा ने कुछ क्षण सोचा और अंत में सहमति में सर हिलाया. सब खुश हो गए. संजय ने ऐलान किया, “चलो मामला निपट गया. अब हम सबका मुँह मीठा कराओ.”

सविता ने हामी भरी और सबसे इजाज़त माँगकर पढ़ाने चली गई. गीता उठती हुई बोली, “मीरा चॉलो तोमार बाड़ी दैखी... दैखो भाई आमी तो हिन्दी बोलते जानी ना. हाँ, बूझते पारी... तुमी हिन्दी ते कॉथा बोलते पारो.” (मीरा चलो तुम्हारा घर देखते हैं...देखो भाई, मैं तो हिन्दी नहीं बोल पाती हूँ, हाँ, समझ लेती हूँ.....तुम हिन्दी में बात कर सकती हो.)

“ना-ना, आमियो बाँगला जानी. आशुन, एई दिके,” मीरा गीता और सविता को लेकर कमरे से चली गई.

संजय ने सत्या को अकेले पाकर पूछा, “तब कैसी कट रही है तेरी सज़ा?”

सत्या, “लगभग डेढ़ साल बीत गए, पता ही नहीं चला.”

संजय ने पूछा, “अरे आईने पर तुमने अपनी रिहाई का जो दिन लिखा था, वह कहीं

दिख नहीं रहा है.”

“मीरा ने ऐसा पोंछा लगाया कि उखड़ गया.”

“भगवान करे जैसे ये डेढ़ साल गुज़र गए, उसी तरह बीस साल भी गुज़र जाएँ... आजकल गोपी सपने में आता है या नहीं?”

“बहुत दिनों से नहीं आया.”

“यह सब देखकर उसकी आत्मा को भी शांति मिली होगी.”

“कह नहीं सकता. खुशी तो हमेशा क्लास में फर्स्ट आती है. लेकिन लगता है रोहन के लिए हम अपनी ज़िम्मेदारी निभा नहीं पा रहे हैं. वह पढ़ाई में अच्छा नहीं कर रहा है. आजकल बात-बात पर इतना गुस्सा हो जाता है कि उसको संभालना मुश्किल हो जाता है,” सत्या ने अपनी चिंता बताई.

संजय ने दिलासा दिया, “इसमें इतना परेशान होने की बात नहीं है. रोहन भी पढ़ाई में खुशी जैसा तेज़ हो ये ज़रूरी नहीं है. उसकी रुची जिस फील्ड में है, उसी में प्रोत्साहित करो. देखना सब ठीक होगा.”

सत्या अकारण चिंतित नहीं था, “पी. टी. मीटिंग में उसकी क्लास टीचर बता रही थी कि पढ़ने में वह तेज है, बस ध्यान नहीं देता है. ... पढ़ाई में अच्छा नहीं करेगा तो अपने बाप का सपना कैसे पूरा करेगा. पढ़ना तो उसको पड़ेगा ही.”

संजय ने सत्या को कुछ ज़्यादा परेशान नहीं होने के लिए कहा, “अरे यार अभी तो वह स्टैंडर्ड फोर में गया है. जैसे-जैसे समझ़दारी आएगी सब ठीक हो जाएगा.”

दोनों महिलाएँ कमरे में आईं. मीरा ने कहा, “खाना लगा रहे हैं. आप लोग हाथ धो लीजिए.”

मीरा के वापस जाने के बाद गीता बोली, “जानो, मीरा की-की बानिए छे? दुई रॉकॉमे शॉब्जी, डाल आर माछ. खूब भालो रान्ना कॉरे. ताई आमी बोल्लाम सॉत्ता भाई कैनो मोटा हॉये जाच्छे.” (जानते हो, मीरा ने क्या-क्या बनाया है? दो किस्म की सब्जी, दाल और मछली. बहुत अच्छा खाना बनाती है. वही मैं बोलूँ कि सत्या भाई आजकल मोटे क्यों होते जा रहे हैं.)

सत्या, “या, आई ऐम लकी इन दिस रिस्पेक्ट.” (हाँ, इस मामले में मैं भाग्यशाली हूँ.)

गीता, “ऐक टी कॉथा बोलबो? मीरा खूब भालो मेय. तुमी मीरा शॉन्गे बिये कॉरे नाओ.” (एक बात बोलें? मीरा बहुत अच्छी लड़की है. आप मीरा के साथ शादी कर

लो.)

तभी मीरा हाथ में थाल लिए अंदर आई. सत्या झेंप गया. मीरा ने ऐसा दर्शाया जैसे उसने कुछ सुना ही नहीं.

संजय ने बात बदली, “चलो हाथ धो लें.”

दोनों कमरे से बाहर चले गए. मीरा कनखियों से गीता को देख रही थी. उसके होठों पर हल्की सी मुस्कान थी.

खाना खाने के बाद सत्या और संजय मीठा पान लेने बाहर निकले. रास्ते में संजय ने कहा, “एक बार मीरा ग्रैजुएशन कर ले. फिर उसकी नौकरी लगते ही तुम्हारी ज़िम्मेदारियाँ खत्म हो जाएँगी.”

सत्या ने दार्शनिक अंदाज़ में कहा, “हाँ, अगले पाँच-छः साल में एक पड़ाव तो पार होगा. लेकिन बच्चों की पढ़ाई पूरी होने और उनके अपने पैरों पर खड़ा होने के बाद ही मेरी ज़िम्मेदारियाँ ख़त्म होंगी.”

संजय ने कहा, “एक बार मीरा की नौकरी लग गई तो वह सब संभाल लेगी ना. तू तो बस अगले पाँच-छः सालों की ही सोच.”

“और अगर गोपी फिर से मेरे सपने में आ धमका तो?” बोलकर सत्या हँसने लगा.

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