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सत्या - 25

सत्या 25

मैक्सी पहने एक मोटी औरत आशा देवी ने अपने पति से कहा, “सी व्हाट इज़ शी सेईंग. (देखो यह क्या कह रही है) कल से काम पर नहीं आएगी. ऐसे अचानक कैसे छोड़ सकती है काम?”

उसका पति ड्रेसिंग टेबल के आईने के सामने खड़ा अपनी टाई ठीक कर रहा था. उसने अंगरेजी में कहा ताकि घर की महरी समझ न पाए, “डोन्ट वरी, ऑफर हर सम मोर मनी. शी विल स्टे बैक. शी इज़ ऐक्चुअली आस्किंग फ़ॉर अ रेज़.” (चिंता न करो, उसको कुछ ज़्यादा पैसा देने की पेशकश करो. वह रुक जाएगी. दरअसल वह तन्ख़्वाह बढ़ाने की बात कर रही है.)

जानकी ने भी अंगरेजी में जवाब दिया, “सर, आई गॉट अ बेटर जॉब. प्लीज़ लेट मी गो.” (सर, मुझे एक बेहतर नौकरी मिल गई है. कृपया मुझे जाने दें.)

दोनों पति-पत्नी आवाक होकर उसका चेहरा देखने लगे. जैसे कोई सदमा लगा हो उन्हें. उबरने में उन्हें कई क्षण लगे. आशा देवी ने उसे रोकने के लिए एक पुराना हथियार इस्तेमाल किया, “बिना नोटिस दिए काम छोड़ोगी तो बकाया पैसा नहीं मिलेगा.”

जानकी ने दो क्षण सोचा फिर बोली, “असल में कल ही हमको जॉयन करना है. ....

अच्छा चलती हूँ. नमस्ते”

आशा देवी के पति ने आख़िरी कोशिश की, “कहाँ काम मिला है....कितना दे रहे हैं? तुम कहो तो हम भी उतना दे सकते हैं.”

जानकी, “कांति ज्वेलर्स के यहाँ सेल्स डिपार्टमेंट में ... 5 हज़ार दे रहे हैं.”

आशा देवी के मुँह से बेसाख़्ता निकल पड़ा, “ओह माई गॉड. 5 हजार? किस काम के लिए दे रहे हैं?......... चलो एक मेहरबानी हम पर कर दो. अपनी जैसी किसी और को हमारे यहाँ काम पर लगा दो.”

जानकी, “एक बात बोलें मैडम, आपके घर में कोई जादा काम नहीं है. आपको किसी महरी के ऊपर डिपेंड होने की ज़रूरत नहीं है. ... ऐंड इट विल ऑलसो बी गुड फॉर योर हेल्थ. (और यह बात आपके स्वास्थ्य के लिए भी अच्छी रहेगी.)”

जानकी हवा के झोंके की तरह दरवाज़े से बाहर चली गई. आशा देवी बस देखती रह गई. उसका पति बालों में कंघी करने लगा. उसके होठों पर एक हल्की सी मुस्कान थी.

गहनों से लदी, लकदक साड़ी पहने एक महिला को अनिता गहने दिखा रही थी. उसका पति भी एक हार का मुआयना कर रहा था. तुलसी हाथ में पानी की ट्रे लेकर उस महिला के पास आई और उसने अदब से पूछा, “पानी लेंगी मैडम... पानी सर?”

महिला तुलसी को देखकर चौंक गई, “अरे तुलसी तुम यहाँ? ... तुम अचानक बिना बताए काम छोड़ कर चली गई? ... लेकिन अच्छा लगा तुमको यहाँ देखकर.”

“सॉरी मैडम, इतना अचानक सब कुछ हुआ कि समय ही नहीं मिला.... मैडम, वुड यू लाईक टू हैव सम टी ऑर कॉफी प्लीज़?”

महिला ने पूछा, “क्या?...क्या बोल रही हो?”

हार देखने में व्यस्त उसके पति ने बिना मुड़े दबी ज़ुबान में कहा, “तुमसे चाय-कॉफी के लिए पूछ रही है.”

महिला ने इशारे से मना कर दिया. तुलसी चली गई. महिला आग्नेय नेत्रों से अपने पति को देखकर दबी ज़ुबान में दांत पीसती हुई बोली, “तुमको कितना बोलते हैं थोड़ी अंगरेजी सिखा दो. करा दिया न अपनी महरी के सामने बेइज्जत? घर चलो आज तुमको बताते हैं.”

उसका पति गहने देखने में ऐसा मशगूल था जैसे उसने कुछ सुना ही न हो. महिला अचानक उठ कर दुकान के बाहर चली गई. उसके पति ने भी बहाना बनाया, “एक ज़रूरी काम याद आ गया. हम फिर आते हैं,” कहकर वह भी उठ गया.

अनिता ने शालीनता के साथ सर को हलका सा झुकाकर जवाब दिया, “नो इशूज़ सर. प्लीज़ कम अगेन.”

सविता के घर के आगे बस्ती की महिलाएँ इकट्ठी होकर किसी बात पर ठहाके लगा रही थीं. तुलसी ने कहा, “आज तो हमारे साहब का खैर नहीं. मैडम पर आज जरूर माँ चंडी सवार होगी.”

सब एकबार फिर खिलखिलाकर हँसे. तुलसी ने आगे कहा, “आज उस घर में भी माँ चंडी दर्शन देंगी.”

गोमती और निर्मला ने नारे लगाए, “जय माँ चंडी. जय माँ चंडी.”

गली में बिजय अपने ठेले के साथ दिखाई दिया. ठेला सामान से लदा था. पीछे-पीछे उसकी पत्नी ननकू को गोद में लिए चल रही थी.

सविता ने आवाज़ लगाई, “क्या बिजय भाई, लौट के आ गये बस्ती में?”

बिजय, “ससुराल में भी चंडी माँ पीछा नहीं छोड़ रही है. सोचें, फिर अपने घर में ही रहते हैं.”

सभी औरतों की आँखें चौड़ी हो गईं. फिर वे सम्मिलित स्वर में ज़ोर से जयजयकार करने लगीं, “जय माँ चंडी, जय माँ चंडी.”

जानकी के घर पर भीड़ देखकर सविता ने उधर का रुख़ किया. औरतों की भीड़ में से रास्ता बनाती हुई वह आगे बढ़ी. घर के अंदर कुर्सियों पर एक औरत, एक मर्द और एक लड़का बैठा था.

सविता को माज़रा समझ में आ गया. वह बोली, “शारदा के लिए रिश्ता आया है क्या? लेकिन वह तो अभी पढ़ाई कर रही है?”

जानकी सविता का हाथ पकड़कर एक किनारे ले गई और बोली, “सविता, अच्छा रिश्ता है. मना नहीं कर सकते. लड़का कंपनी में टेम्प्रोरी जॉब करता है. जल्दी ही परमामींट हो जाएगा. लड़का शारदा को पसंद भी करता है”

“परमामिंट नहीं परमानेन्ट.” सविता ने टोका.

जानकी, “तुमने गिनकर बस दस वाक्य तो सिखाया है. हम तुम्हारा माफिक अंगरेजी थोड़े ना बोल पाएँगे.”

सविता ने कहा, “अच्छा ये सब छोड़ो. आओ देखते हैं. हमको ज़रा बात करने दो.”

दोनों वापस लड़के के पास आए. सविता ने लड़के के माँ-बाप से कहा, “हम बस्ती के लोगों को बहुत खुशी है कि आप रिश्ता लेकर आए. हमलोगों को लड़का पसंद है. लेकिन आप लोगों से एक रिक्वेस्ट है. मानेंगे?”

लड़के के पिता ने खुशी-खुशी कहा, “देखिए हाम लोगुन को लेड़की पछंद है. सादी जल्दी से जल्दी करने को है.”

सविता, “बात ये है भाई साहब कि हमारी बस्ती में हम लड़का-लड़की की शादी तब तक नहीं करते जबतक वे पढ़ाई पूरी नहीं कर लेते. और दूसरी बात, दारू पीने वाले लड़के से हम अपनी लड़की का ब्याह नहीं करते. शारदा अभी 19 साल की है. दो साल में ग्रैजुएट हो जाएगी. तब तक आपको इंतजार करना होगा. करेंगे न आप?”

“हम लोगुन के घार में कोई दारू नेहीं पीता. उसका कोई टेंसन नेहीं है. लेड़की को नौकरी करना है नेहीं. इसलिए जादा पढ़ा-लिखा का कोई फायदा नेहीं है.”

“पढ़ी-लिखी बहू लाएँगे तो समाज में कितना नाम होगा, नहीं? और फिर तबतक लड़की की उम्र शादी के लायक हो जाएगी और लड़का भी परमानेन्ट हो जाएगा.”

“मेरे से मत पूछो. मेरा लड़का लेड़की को पछंद किया. उससे पूछो, वो जैसा बोलेगा हम मानेगा. क्या बेटा दो साल इंतेजार करेगा?”

लड़का समझदार निकला. बोला, “मौसी ठीक बोल रही हैं. मैं इंतज़ार करूँगा. लेकिन आपलोग शारदा की शादी कहीं और मत कर देना.”

सब लोग हँसने लगे. सविता ने भी कहा, “अरे शारदा भी तो तुमको पसंद करती है. वो ज़ोर जबर्दस्ती करने पर भी किसी और से शादी करेगी क्या? क्यों शारदा. इसको धोखा नहीं देगी ना?”

शारदा शर्मा गई. लोग हँसे.

“आच्छा तो दहेज के बारे में अभी बात करेंगे ना बाद में?” लड़के का बाप बोला.

जानकी कुछ कहने ही वाली थी कि सविता ने बीच में ही कह दिया, “कितना दहेज चाहिए?”

“आपलोगुन से क्या जादा माँगेंगे? नया घर बसाएगा दोनों. बस गद्दा-पलंग, चादर, कपड़ा-लत्ता गहना और क्या? ऊपर से दस-बीस हजार जो खुसी हो दे देना.”

सविता, “अरे आप तो घाटे का सौदा कर रहे हैं. शारदा बैंक की परीक्षा की तैयारी भी कर रही है. अगर बैंक में नौकरी लग गई तो वह लाखों रुपया कमा कर देगी. आप भी क्या दस-बीस हज़ार लेकर बैठे हैं.”

लड़के के पिता थोड़ा असमंजस में बोले, “मेरे को क्या करना है. इन लोगुन का संसार है. जैसा ठीक समझेंगे, करेंगे.”

“हाँ तो जानकी मिठाई-विठाई खिलाओ. बात पक्की हो गई.” सविता ने कहा तो जानकी ने राहत की साँस ली.

शहर के नए शॉपिंग कॉम्प्लेक्स के सामने एक ऑटोरिक्शा आकर रुकी. निरंजन के ऑटो से समान रंग की फुल बाँह की ब्लाऊज़ और सलीके से साड़ी पहनी हुई चार लड़कियाँ उतरीं. उनके चेहरों पर हल्का मेकअप और बालों में एक समान जूड़े बँधे थे. चारों लड़किया निरंजन को धन्यवाद कहकर तेजी से शॉपिंग कम्प्लेक्स के अंदर चली गईं. बगल की पान दुकान वाले ने निरंजन को आवाज़ दी, “क्या निरंजन भईया. तुम्हारा ऑटो तो माल गाड़ी बन गया है.”

निरंजन ने कहा, “अरे बेटियाँ हैं मेरी. कांति भाई ज्वेलर के यहाँ नौकरी पर लगी हैं.”

पान की दुकान वाला झेंप गया, “भूल हो गई, माफ कर दो भईया.... तुम्हारी चार बेटियाँ हैं? ये अच्छा काम किया. पढ़ा लिखा कर इज्जत वाले काम पर लगा दिया.”

“वो जो मेरे बगल में बैठी थी वो मेरी बेटी है, कोमल. बाकी सब बस्ती की लड़कियाँ हैं. जरा ख़्याल रखना भाई इनका.”

“हाँ-हाँ, क्यों नहीं. मेरी भी बेटियों के समान हैं सब. हम तो यहीं रहते हैं सारा दिन. कुछ बात होने पर बोलना, सीधा हमको बताए.”

निरंजन ने कहा, “धन्यवाद भाई, चलते हैं.”

सविता के घर पर औरतें जमा हुई थीं. आज सत्या के पढ़ाने का दिन था. सत्या ब्लैकबोर्ड पर लिखकर समझा रहा था, “देखो अगर तुमको किसी दुकान में काम करने का 3000 मिलता है और तुम किसी कारण से 2 दिन नागा कर देती हो तो

कितना पैसा कटेगा, कौन बताएगा?”

सभी औरतें ज़मीन पर बैठीं ध्यान से देख रही थीं. झारखंड बुढ़िया भी बैठी कुछ लिख रही थी. उसके आगे बैठी दो औरतें कानाफूसी करके दबी आवाज़ में हँसीं. झारखंड बुढ़िया ने छड़ी से उनकी पीठ पर हल्का सा छूकर चुप रहने और पढ़ाई पर ध्यान लगाने का इशारा किया. दोनों औरतें मुँह बिचकाकर पढ़ाई में लग गईं.

कई औरतें अपने-अपने बच्चों को साथ लेकर सत्या के घर पर पहुँचीं. उनके आवाज़ लगाने पर सत्या बाहर निकल आया. तब सरस्वती ने कहा, “सत्या बाबू, हम लोग के बच्चों को भी पढ़ाओ. इनको भी आदमी बना दो.”

सत्या, “ठीक है, ठीक है. कल से भेज देना, यहीं बरामदे में सबके पढ़ने की व्यवस्था कर देंगे.”

रतन सेठ की दुकान पर घनश्याम और रामबाबू खड़े बातें कर रहे थे. रतन सेठ ने कहा, “बस्ती का पूरा माहौल बदल गया है. पहले अंधेरा होते ही मतालों का आतंक हो जाता था. और अब बच्चे तो बच्चे, औरतें भी पढने-पढ़ाने में जुटी रहती हैं.”

रामबाबू, “हम तो सोचते हैं कि हम मरद लोग का भी कोचिंग क्लास शुरू करने के लिए सत्या बाबू से बोलकर देखते हैं.”

घनश्याम, “जब पढ़ने का समय था तो गिल्ली-डंडा खेलने से फुर्सत नहीं था, अब बुढ़ापे में पढ़कर क्या करोगे?”

राम बाबू, “कोई भी उमर में पढ़ो, पढ़ने का फायदा जरूर होता है. हमारे बस्ती की औरतों को देखो. दो अक्षर पढ़ लिया है तो आजकल कितना इज्जत बढ़ गया है उनका.”

रतन सेठ, “हाँ भई, जब आँख खुली, तभी सबेरा... पढ़ाई शुरू करने में कोई बुराई नहीं है.”

सत्या को एक लड़के ने रास्ते में रोका और बोला, “नमस्ते अंकल, हम घनश्याम का बेटा हैं, ऋषी. एक कम्प्यूटर की दुकान में काम करते हैं. मेरा मालिक पूछ रहा था कि अगर बस्ती में कम्प्यूटर लगाना हो तो वो बहुत सस्ता दाम लगा देगा.”

सत्या ने खुश होकर कहा, “आईडिया बुरा नहीं है.”

ऋषी के कमरे में सारे बच्चे जुटे थे. ऋषि ने कम्प्यूटर ऑन किया. सारे बच्चों ने तालियाँ बजाईं. सत्या ने ऋषी की पीठ थपथपाई और कहा, “कम्प्यूटर ऋषी के चार्ज में रहेगा. जिसको सीखना है, ऋषी से बात करो. ... बेटा सिखाने का पैसा कितना लोगे? ज़्यादा नहीं मिलेगा. बस तुमको शाम को एक घंटा देना होगा.”

“बस्ती के लोगों से पैसा कैसे लेंगे अंकल?” ऋषी ने कहा.

“शाबाश बेटा."

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