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सत्या - 32

सत्या 32

पूरी बस्ती में रंग-बिरंगे बल्ब के झालर लटक रहे थे. ख़ासी चहल-पहल थी. मीरा के घर के आगे शादी का मंडप सजा था. सविता औरतों और लड़कियों के साथ दूल्हे को घेरे खड़ी थी.

सविता, “दूल्हे राजा, हमारी बस्ती की परंपरा है कि शादी के फेरे हम तबतक नहीं लेने देंगे जबतक आप ये कसम न खा लें कि ज़िंदगी में कभी शराब को हाथ भी नहीं लगाएँगे. चलिए कसम खाईये.”

दूल्हा खुशी को देखकर मुस्कुराया. फिर बोला, “अगर मैं शराब पीने वाला ही होता तो आपकी बेटी कभी मुझे घास भी डालती?”

सविता ने ज़िद की, “वो सब हम नहीं जानते. चलिए परंपरा के अनुसार सबके सामने कसम खाईये कि कभी शराब को हाथ भी नहीं लगाएँगे.”

दल्हे ने हाथ जोड़कर कहा, “मैं आप सभी के सामने कसम खाता हूँ कि शराब को कभी हाथ नहीं लगाऊँगा... बस एक शर्त है...”

सारे लोग सहम कर दूल्हे को देखने लगे. दूल्हे ने हँस कर आगे कहा, “बस एक शर्त है.... शर्त है कि खुशी मेरा कभी साथ नहीं छोड़ेगी. अगर मुझको छोड़ कर गई तो फिर मेरी कसम टूट जाएगी.”

खुशी ने झट से चहक कर कहा, “हम कभी तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ने वाले. इस ग़लतफहमी में मत रहना.”

सब ज़ोर से हँस पड़े.

कारें. लोगों की भीड़. खुशी की विदाई हो रही थी. वह माँ के गले लग गई. मीरा की आँखों में ढेर सारा प्यार और आँसू के दो बूँद थे. खुशी हँसी, “माँ, रो कर नहीं मुझे खुशी-खुशी विदा करो.”

गोमती ने रुँधे गले से कहा, “अरे पगली, तू भी तो थोड़ा रो ले. हमलोगुन को छोड़कर जा रही है, रोना नेहीं आ रहा?”

“कौन तुमलोगों को छोड़कर जा रहा है? हम तो आते-जाते रहेंगे.”

दूल्हा-दुल्हन ने मीरा के पैर छूकर आशिर्वाद लिये. फिर सत्या की माँ के पैर छूए. दोनों सत्या के सामने आकर खड़े हो गए. खुशी ने सत्या की आँखों में झाँका और बोली,

“अपनी बेटी को विदा करो चाचा.”

सत्या ने प्यार से दुल्हा-दुल्हन के सिरों पर हाथ फेरे. उसकी आँखें डबडबा गईं. दोनों उसके पैरों पर झुक गए.

बगल में खड़े मर्दों की भीड़ में से रतन सेठ ने कहा, “तुमने हम सब का और इस बस्ती का बहुत मान बढ़ाया है. यहाँ सबको तुम्हारी कमी खलेगी. आते रहना बेटी.”

रमेश भी चुप न रहा. भरे गले से बोला, “बेटे, बस्ती के तुम्हारे सभी चाचा-चाची और मामा-मामी तुमको हमेशा याद रखेंगे. हम सबको भूल मत जाना.”

यह सब सुनकर खुशी भी संजीदा हो गई. उसने हँसने की कोशिश करते हुए कहा, “आपलोग हमको रुला कर ही छोड़ेंगे.”

सबको प्रणाम करके वह सविता के पैरों पर झुक गई. सविता ने उसे गले से लगा लिया. फिर वह दूल्हे से बोली, “देखो बेटा, पूरी बस्ती की सबसे लाडली लड़की को तुम हमसे दूर ले जा रहे हो. इसने आज तक किसी का दिल नहीं दुखाया है. तुम इसका दिल कभी न दुखाना.”

खुशी ने मज़ाक किया, “क्या मौसी अब दूल्हे को भी रुलाओगी क्या?”

सब लोग हँसने लगे. रोहन बार-बार घड़ी देख रहा था. देर होता देख उसने कहा, “अरे आप लोग जल्दी निपटाईये. राँची से फ्लाईट पकड़नी है. रास्ता लंबा है.”

खुशी ने जल्दी-जल्दी सबसे विदा ली. अंत में मीरा के गले लगकर और सत्या के हाथ पर अपना हाथ रखकर वह कार में बैठ गई. दूल्हा भी कार में बैठ गया. दूसरी कार में बाराती समा गए. तीसरी कार ढेर सारे सामान और गिफ्ट से अटी पड़ी थी. रोहन ने उस कार का आगे का दरवाज़ा खोलकर आवाज़ दी, “माँ, राँची एयरपोर्ट तक सबको विदा करके हम आते हैं.”

तीनों कारें चल पड़ीं. दोनों ओर से सभी ने हाथ हिलाए. कारें एक के बाद एक गली के छोर पर मुड़ गईं. लोग भी अपने-अपने घरों को चल दिए. संजय सत्या के कंधे पर हाथ रखकर उसे घर के अंदर ले गया.

कमरे में पहुँचकर संजय ने दूल्हे की तारीफ की, “बहुत अच्छा लड़का मिला खुशी को. दोनों की जोड़ी बहुत फब रही थी.”

सत्या ने लंबी साँस ली और कहा, “खुशी के साथ ही काम करता है. दोनों ने एक दूसरे को पसंद कर लिया. सोचे थे कि खुशी की शादी हो जाने के बाद ज़िम्मेदारी का बोझ हल्का होने पर थोड़ी राहत महसूस करेंगे. लेकिन अब उसको विदा करके अच्छा नहीं लग रहा है. बेटी को विदा करने के बाद क्या हर बाप को ऐसा ही फील होता है?”

संजय बोला, “तूने तो बेटी भी ब्याह ली और बेटे को भी पैरों पर खड़ा कर दिया. तू बड़ा खुशनसीब है .... रोहन का भी कैंपस सेलेक्शन हो चुका है. फाईनल रिज़ल्ट आते ही उसको भी तो बाहर जाना होगा. इसके बाद मीरा जी बिल्कुल अकेली रह जाएँगी..”

सत्या ने कहा, “मीरा जी अकेली कैसे हो जाएँगी. माँ है न.”

संजय अर्थपूर्ण नज़रों से उसको देखकर मुस्कुराया. सत्या दूसरी तरफ देखने लगा.

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