सत्या - 31 KAMAL KANT LAL द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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सत्या - 31

सत्या 31

देखते-देखते दो साल गुज़र गए. रोहन ने बारहवीं पास कर ली, बस किसी तरह खींच-खाँच कर साठ एक प्रतिशत अंक लाए. इन्जीनियरिंग प्रवेष परीक्षा में भी फिसड्डी ही रहा. ख़ैर उसकी इच्छा के अनुसार सत्या ने जैसे-तैसे एक प्राईवेट इन्जीनियरिंग कॉलेज में ऐडमिशन करा दिया. रोहन जिस दिन हॉस्टेल के लिए निकलने वाला था, उसके एक दिन पहले घर में एक पार्टी रखी गई.

संजय और गीता ने एक साथ कमरे में प्रवेश किया. सत्या का कमरा अब ड्राईंग कम डाईनिंग रूम में तब्दील हो चुका था. संजय ने माँ को हाथ जोड़कर प्रणाम किया. गीता ने पैर छूकर माँ से आशिर्वाद लिए. मीरा ने गीता का हाथ पकड़कर उसे कुर्सी पर बिठाया. संजय और सत्या भी बैठ गए. खुशी और रोहन ने बारी-बारी से गीता और संजय को प्रणाम किया.

संजय ने कहा, “शाबाश बेटा रोहन, आख़िर इन्जीनियरिंग में तुम्हारा ऐडमिशन हो ही गया. कौन सा ब्राँच मिला है?”

रोहन, “थैंक यू अंकल, इलेक्ट्रॉनिक्स मिला है.....अंकल सौरभ नहीं आया?”

संजय, “अपने प्रोजेक्ट वर्क में लगा है. कल ही सबमिट करना है. इसलिए नहीं आ पाया.... तब बेटा कल ही निकल रहे हो? हॉस्टेल मिल गया?”

रोहन, “जी अंकल. थोड़ी पैकिंग बाकी है. आप लोग बैठिए. हम थोड़ी देर में आते हैं.”

मीरा ने खुशी से कहा, “जा बेटा खुशी. पैकिंग में इसकी हेल्प कर दे.”

खुशी, “जी माँ,” कहकर जाने लगी.

संजय ने खुशी से पूछा, “तुम्हारा तो ग्रैजुएशन का फाईनल ईयर चल रहा है न खुशी? आगे क्या करना है?”

खुशी, “जी अंकल, एम. बी. ए. करना चाहते हैं. कैट और ज़ैट की तैयारी भी साथ चल रही है.”

संजय, “गुड-गुड.”

खुशी के जाने के बाद संजय ने मीरा से पूछा, “और मीरा जी, आपका काम कैसा चल रहा है?”

मीरा ने बताया, “भाग-दौड़ बहुत है. लेकिन मन लायक काम है.”

दरवाज़े पर सविता नज़र आई.

सविता, “अरे भाई ये कैसी पार्टी है? खाने की ख़ुशबू ही नहीं आ रही है?”

मीरा ने उठकर उसका स्वागत किया, “अरे आओ-आओ सविता. शंकर भाई साहब नहीं आए?”

सविता, “आज बी शिफ्ट ड्यूटी है. देर रात आएँगे.”

मीरा ने कहा, “अच्छा-अच्छा, आओ बैठो. दरअसल आज रोहन की इच्छा के अनुसार होटल से खाना मंगवाया गया है. बस आता ही होगा.”

सविता ने पूछा, “खुशी और रोहन दिखाई नहीं दे रहे हैं?”

“रोहन को कल सुबह चार बजे ही निकलना है. खुशी उसकी पैकिंग में मदद कर रही है. अभी दोनों आ जाएँगे.”

“अरे हमको कहना था ना पैकिंग में हेल्प करने के लिए. हम अभी आते हैं,” कहकर सविता उठ कर चली गई.

“आपलोग बातें कीजिए. हमलोग चाय भिजवाते हैं.” कहते हुए सविता के पीछे-पीछे मीरा और गीता भी चले गए.

एकांत पाकर संजय ने सत्या से पूछा, “कितना खर्च करना पड़ा प्राईवेट इन्जीनियरिंग कॉलेज में ऐडमिशन कराने में?”

सत्या ने निश्चिंतता के साथ कहा, “तू खर्च की छोड़. पहले तो तेरा धन्यवाद. तुझे बड़ा बाबू की पोस्ट पर प्रोमोशन नहीं मिला होता तो मेरा लोन कभी पास नहीं होता.”

संजय ने गंभीर आवाज़ में अपना मंतव्य दिया, “तुझे अपनी ज़िंदगी की सारी जमा पूँजी डोनेशन देने में नहीं लगानी चाहिए थी.”

सत्या ने भी इस बार संजीदगी से कहा, “और कोई उपाय नहीं था. रोहन के नंबर कम थे. प्रवेष परीक्षा में रैंक भी काफी नीचे था.”

“तुझे अपने बारे में भी सोचना चाहिए. अब शागी-वादी मना.”

“शादी के बाद का सारा करम झेल ही रहा हूँ. अब फिर से बच्चों को पढ़-लिखा कर आदमी बनाने की ताक़त मुझमें नहीं बची है. वैसे भी शादी का सारा सुख भोग ही रहा हूँ. मीरा देवी एक पत्नी की तरह ही मेरी और मेरी माँ की देख-भाल करती हैं. बस हम .........,” मीरा देवी के प्रति सत्या का लगाव संजय से छुपा न रहा.

संजय ने माँ से कहा, “माँ जी, आप इसको कहिए न कि और कोई नहीं तो मीरा जी से ही शादी कर ले. आपको तो मीरा जी पसंद है न?”

माँ ने कहा, “जब इतने सालों से साथ रह ही रहा है तो शादी ही कर ले. हमको क्या ऐतराज़ होगा? लेकिन ये मानता ही कहाँ है? कहता है कि अगर गोपी की हत्या में इसे सज़ा हो जाती तो किसी को इसकी शादी की कहाँ सूझती? हम तो थक गए हैं कहते-कहते. घर में एक बहु का मेरा सपना तो सपना ही बन कर रह गया. तुम इसके दोस्त हो. तुम ही समझाकर देखो,” माँ ने एक लंबी सांस छोड़ी.

सत्या ने ज़ोर की अंगड़ाई ली और बात बदली. कहा, “मेरी बात छोड़ो. अब खुशी की शादी हो जाए, बस.”

सत्या उठकर आईने के सामने खड़ा हो गया और ऊपर चिपके कागज़ को देखने लगा. फिर हाथ बढ़ाकर उसे हटा दिया.

संजय ने पूछा, “अरे ये कागज़ तो पिछली बार नहीं देखे थे हम?”

सत्या ने हँसते हुए जवाब दिया, “यह तो पिछले दस सालों में कितनी बार उखड़ा और वापस चिपकाया गया. लेकिन इसको अब हम फाईनली हटा दिए हैं. दुबारा इसके चिपकाए जाने की अब कोई संभावना नहीं है.”