सत्या - 18 KAMAL KANT LAL द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • My Passionate Hubby - 5

    ॐ गं गणपतये सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा॥अब आगे –लेकिन...

  • इंटरनेट वाला लव - 91

    हा हा अब जाओ और थोड़ा अच्छे से वक्त बिता लो क्यू की फिर तो त...

  • अपराध ही अपराध - भाग 6

    अध्याय 6   “ ब्रदर फिर भी 3 लाख रुपए ‘टू मच...

  • आखेट महल - 7

    छ:शंभूसिंह के साथ गौरांबर उस दिन उसके गाँव में क्या आया, उसक...

  • Nafrat e Ishq - Part 7

    तीन दिन बीत चुके थे, लेकिन मनोज और आदित्य की चोटों की कसक अब...

श्रेणी
शेयर करे

सत्या - 18

सत्या 18

देशी शराब के ठेके के बाहर औरतों की भीड़ खड़ी शोर कर रही थी. अधिकांश के हाथों में लाठियाँ थीं, जिसे वे बार-बार ज़मीन पर पटक कर एक ताल में ठक-ठक ध्वनि कर रही थीं. कालिया दुकान के बाहर खड़ा उनको देख कर हँस रहा था. सविता ने कहा, “कालिया भाई, आप ये दुकान बस्ती से हटा लीजिए. अब हम यहाँ शराब बिकने नहीं देंगे.”

कालिया ने मज़ाक उड़ाते हुए कहा, “बोर्ड पढ़ने आता है? बोर्ड पढ़ो,” उसने ख़ुद पढ़ा, “देखो लिखा है देशी शराब का सरकारी दुकान. सरकार हमको लाइसेंस दिया है. हमको यहाँ दारू बेचने से कोई नहीं रोक सकता.”

सविता ने तैश में आकर कहा, “जब हम लोग कह रहे हैं कि यहाँ शराब नहीं बिकेगी, तो सरकार हमारी इच्छा के विरुद्ध कैसे यहाँ शराब बिकने दे सकती है? हम बोल दिये कि अब यहाँ शराब नहीं बिकेगी, तो नहीं बिकेगी. आपको बेचनी है तो कहीं और ले जाओ दुकान.”

कालिया ने हँस कर कहा, “दुकान हटाने से तुमको क्या फायदा होगा? यहाँ का मरद लोग बाहर जाकर दारू पी लेगा. नोकसान तो मेरा हो जाएगा.”

इस बार गोमती बोली, “ए सब हम लोग नेहीं सुनेगा. तुम पहले दुकान हटाओ. इसके बाद जो भी दारू पीकर बस्ती में आएगा उसका हमलोग टाँग तोड़ देगा.”

औरतें काफी गुस्से में थीं. आसानी से मानने वाली नहीं लग रही थीं. औरतों को घेर कर तमाशा देख रहे मर्दों के झुँड में चिंता की झलक दिखने लगी थी. सविता ने कहा, “कालिया भाई, आप दुकान हटाइये तो सही. फिर देखिए हमलोग क्या करते हैं.”

अब कालिया को भी गुस्सा आने लगा था, “ऐसे कैसे हटा दें. तुमको दारू दुकान बस्ती में नहीं चाहिए तो सरकार से बात करो, थाना में कुम्प्लेन लिखाओ. हमको बोलने से कोई फायदा नहीं है.”

भीड़ में से एक विधवा आगे आकर बोली, “कहाँ है सरकार, उसको सामने बुलाओ. हम बात करेंगे. कैसे नहीं मानेगा?”

सुनकर कालिया हँस पड़ा. मर्द भी हँसने लगे. सविता गुस्से में मर्दों की भीड़ की तरफ मुड़ कर बोली, “हम लोग थाना में कम्प्लेन लिखाएँगे, ऊपर तक जाएँगे. तुमलोग ज़्यादा खुश मत हो जाओ,” फिर वह औरतों से बोली, “चलो रे, सब थाना पर चलते हैं. थाना चलो, थाना चलो.”

औरतों ने भी ऊँची आवाज़ में नारे लगाए, “थाना चलो, थाना चलो.”

सविता, “थाना चलो, थाना चलो.”

औरतों की भीड़, “थाना चलो, थाना चलो.”

सब नारे लगाते बस्ती से बाहर चले गए.

कालिया ने वहाँ खड़े मर्दों को डाँट लगाई, “क्या रे चँदू, रमेश? क्या रे हरिया और मदन? तुमलोग का जोरू ये क्या तमाशा कर रही है? तुम चारों को आज से दारू नहीं मिलेगा.”

रमेश ने अपने चिरपरिचित नाटकीय अंदाज में कहा, “क्या कालिया भाई तुम भी डरता है. सबुर करो. दो दिन में सब जोश ठंडा पड़ जाएगा. जबतक मामला गरम है, बरुन को छुपाकर घर-घर दारू सप्लाई का काम में लगा दो. हल्ला करने दो इनको. क्या बोलते हो मुखिया दादा. ठीक बोला कि नहीं?”

मर्दों की भीड़ में खुशी की लहर दौड़ गई. मुखिया दाएँ-बाएँ देखकर मुस्कुराया और धीरे से खिसक लिया.

रमेश ने कहना जारी रखा, “कालिया भाई, इस बात पर मेरा एक पाऊच इनाम तो बनता है.”

लोगों ने सीटियाँ बजाईं. कालिया ने वरुण को इशारा किया, जिसने अंदर से लाकर एक पाऊच दारू रमेश को दिया. रमेश दाँत से छेद करके खड़े-खड़े पूरा पाऊच पी गया और ज़ोर से बोला, “कालिया भाई की...जै”.

कालिया बोल रहा था, “तुमलोग जिसको दारू चाहिए अभी ले जाओ. बाद में औरत लोग लौटेगा तो दारू मिलेगा, नहीं मिलेगा, पता नहीं.”

अचानक भीड़ में खलबली मच गई. सब शराब खरीदने के लिए लपके. मुखिया भी नज़र आया. उसने अपना थैला बढ़ाकर कहा, “हमको तो पूरा एक सप्ताह का कोटा दे दो. पता नहीं कितना दिन ये हंगामा चलेगा.”

कालिया लोगों को बोतल थमाने और पैसे लेने में व्यस्त हो गया. उसने मुखिया को सलाह दी, “मुखिया भाई, आप लोग सत्या बाबू से बात करो न. वो तो सरकारी बाबू है. समझाएगा औरत लोग को.”

“ठीक बोलते हो. चलो रे सब, सत्या बाबू से बात करते हैं,” मुखिया ने दारू की बोतलों से भरा अपना थैला संभाला और चल पड़ा. कुछ लोग मुखिया के साथ चले गए. बाकी अभी भी दारू की लाईन में खड़े थे. बात तो होती रहेगी. पर कहीं शाम के लिए दारू न मिली तो मुश्किल हो जाएगी.

सत्या के घर के आगे पहुँचकर रमेश ने आवाज़ लगाई, “सत्या भाई, सत्या भाई....जरा बाहर तो आना सत्या भाई.”

सत्या बाहर निकला और उसने पूछा, “क्या हो गया मुखिया जी.”

मुखिया, “अब आप ही औरत लोग को समझाईये. सरकारी शराब का दुकान कैसे बंद करा सकते हैं ये लोग? ये तो गैरकानूनी बात है न?”

सत्या खड़ा-खड़ा मुस्कुरा रहा था. उसने कहा, “इन लोगों पर देवी चंडी सवार है. कोई नहीं समझा सकता है इनको. अरे कहाँ गईँ सब महिलाएँ, कोई दिखाई नहीं दे रही?”

मुखिया, “क्या बताएँ, सब लाठी लेकर थाना पर धावा बोलने गई है.”

सत्या हड़बड़ा गया, “क्या कहा, थाने पर गई हैं?” उसने बरामदे से साईकिल निकाली और जाते हुए बोला, “चलकर देखना होगा, किसी झमेले में ना पड़ जाएँ.”

भीड़ में रास्ता बनाता हुआ सत्या वहाँ से चला गया.

सत्या के जाने के बाद रमेश ने ऐलान किया, “सब लोग अपना-अपना औरत लोग को रात को धमकाओ. खाना-पीना बंद कर दो. तभी होश आएगा.”

चँदू, “और बिधबा लोग को कौन समझाएगा?”

किसी ने कुछ नहीं कहा. सब वहाँ से चले गए.