सत्या - 27 KAMAL KANT LAL द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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सत्या - 27

सत्या 27

सत्या का अगले पाँच सालों का सफर हिचकोलों से भरा था. खुशी पढ़ाई-लिखाई, स्कूल की एक्सट्रा करिकुलर ऐक्टिविटि, स्पोर्ट्स, बात-व्यवहार और बाकी सबकुछ में भी अच्छी थी. उसको देखकर सत्या को हमेशा खुशी मिलती थी. लेकिन रोहन ठीक उसका उलटा. पढ़ने में ध्यान नहीं, कुछ पूछो तो जवाब नहीं. हमेशा अपनी ख़याली दुनिया में मगन. उसका व्यवहार समझ में ही नहीं आता था. उसके लिए चिंता बनी ही रहती थी.

ज़िंदगी के इन्हीं उतार-चढ़ावों से होकर दो साल का समय बीत गया. शंकर शराब छोड़ने के बाद से बिल्कुल बदल गया था. इस बीच एक खुशख़बरी आई कि सविता माँ बनने वाली है. इस बात का पता चलते ही सविता ने सबसे पहले मीरा और सत्या को ख़बर की. उसकी आँखों में सत्या के लिए जो आदर और कृतज्ञता के भाव थे वे शब्दों से बयान नहीं किए जा सकते थे. सविता ने इसकी कोशिश भी नहीं की. उसने बस सत्या के पाँव छू लिए.

खुशी हमेशा की तरह क्लास में फर्स्ट आती थी. कभी डिबेट तो कभी स्पोर्ट्स में प्राईज़ लाती. सारा परिवार ही नहीं, सारी बस्ती खुशियाँ मनाती. उसको देखकर कई बच्चे पढ़ाई में मन लगाने लगे थे.

लेकिन रोहन, उसकी तो बात ही अलग थी. अब वह स्टैंडर्ड सिक्स में पहुँच गया था. किसी की बात न सुनना, बस अपनी मनमानी करना. लेकिन उस दिन तो रोहन ने हद ही कर दी.

सत्या अपने कमरे में बैठा एक उपन्यास पढ़ रहा था जब भड़ाक से दरवाज़ा खुला और मीरा रोहन का हाथ पकड़ कर कमरे में आई.

मीरा ने शिकायत की, “देखिए सत्या बाबू, ये क्या कर रहा है आजकल. क्लास बंक करता है और स्कूल डायरी में मेरे नाम से बहाना लिखकर मेरी साईन कर देता है. शक होने पर टीचर ने जब खुशी को डायरी दिखाई तो आज पकड़ाया.”

उसने रोहन के कान पकड़कर ज़ोर से मरोड़े. रोहन झटके से कान छुड़ाकर माँ को आग्नेय नेत्रों से देखने लगा.

मीरा चिल्लाए जा रही थी, “हमलोग हैं कि इनको पढ़ाने के लिए दिन रात एक कर रहे हैं और ये अभी से आवारागर्दी करने लगा है. खुशी को देखो पढ़ाई में कितना अच्छा कर रही है.”

सत्या ने हाथ के इशारे से मीरा को शांत किया. आँखें लाल, गालों पर लुढ़कती आँसू की बूँदें, रोहन गुस्से से माँ को देख रहा था. सत्या ने पास जाकर उसकी पीठ पर हाथ फेरा. रोहन ने कंधा झटक दिया.

सत्या मीरा को समझाने लगा, “इतना गुस्सा मत कीजिए मीरा जी. हम लड़के ना लड़कियों से अलग होते हैं. हम भी तो बचपन में स्कूल से भाग कर सिनेमा देखने जाते थे. इसमें क्या बुराई है?... कोई बात नहीं बेटे. जो हो गया, हो गया. अब आगे से ऐसा नहीं करना. ठीक है? ठीक है ना? चलो माँ को एक बार बोल दो कि आगे से ऐसा नहीं होगा. चलो बोल दो.”

रोहन ने रुआँसे स्वर में कहा, “हमको सोशल साईंस का क्लास अच्छा नहीं लगता है.”

सत्या ज़ोर से हँसा और उसको अपने करीब खींचता हुआ बोला, “बस इतनी सी बात?... ये तो कोई समस्या ही नहीं. ... मीरा जी आपका भी तो सब्जेक्ट है सोशल साईंस. आप इसकी सहायता कर सकती हैं.”

रोहन बिफरा हुआ था. बोला, “हमको माँ से नहीं पढ़ना है. हमको सोशल साईंस ही नहीं पढ़ना है.”

सत्या, “अरे तो खुशी से पढ़ लेना. इसमें क्या है?”

मीरा भी गुस्से में बोली, “क्यों, माँ से क्या दुश्मनी है तुमको? और सत्या जी आप इसको बिगाड़िये मत. आज के बाद सुनें कि क्लास बंक किया, तो छड़ी से मारकर चमड़ी उधेड़ देंगे.”

रोहन चिल्लाया, “हम बोल दिये कि नहीं पढ़ेंगे सोशल साईंस तो नहीं पढ़ेंगे, बस.”

सत्या ने बीच-बचाव किया, “शांत हो जाईये मीरा जी. हम समझा रहे हैं ना. सुनो बेटा, मेरी बात सुनो. बाकी सब्जेक्ट में तो तुम काफी अच्छे हो. अब रही सोशल साईंस की बात, तो ये तो कंपलसरी सब्जेक्ट है. तुम ऐसा करो, किसी तरह इस सब्जेक्ट को दसवीं तक ढो लो. फिर ज़िंदगी भर के लिए तुमको इससे छुटकारा मिल जाएगा. बस किसी तरह पास मार्क ले आओ. कोई तुमको कुछ नहीं कहेगा. ठीक है?”

रोहन मान तो गया, लेकिन उसने माँ को चेतावनी दी, “और माँ, मेरा कॉम्पैरिजन खुशी से कभी मत करना. प्लीज़ डोन्ट रब हर इंटेलिजेंस ऑन मी.”

सत्या ने माहौल को हल्का करने के लिए कहा, “अरे वाह, तुम तो बड़ी अच्छी अंगरेजी बोलते हो. शाबाश बेटा. देखना मीरा जी मेरा बेटा किसी भी मायने में खुशी से कम नहीं निकलेगा.”

“आई ऐम नॉट योर सन,” कहकर रोहन तेजी से कमरे से बाहर चला गया. मीरा और सत्या बस एक दूसरे को देखते रह गए. मीरा सिर झुकाकर चिंतित मुद्रा में कमरे से बाहर चली गई. सत्या ने टेबल पर बैठकर कुछ लिखा. फिर उठकर आईने के ऊपरी भाग पर काग़ज़ का वह टुकड़ा उसने चिपका दिया. फिर उदास नज़रों से उसे पढ़ा. लिखा था – डी. ओ. आर. 13 नवम्बर 2015.

रोहन ने तो कह दिया कि वह सत्या का बेटा नहीं है. लेकिन सत्या बाप का फ़र्ज निभाने से कभी पीछे नहीं रहा.

रोहन एट्थ स्टैंडर्ड में था जब. सत्या ने स्कूटर ले लिया था. एक दिन सत्या जब ऑफिस से लौटा तो रोहन उसका घर की गेट पर ही इंतज़ार कर रहा था. माथे पर गूमड़, बाईं गाल पर खंरोच, आँख सूजी हुई. स्कूटर रुकते ही रोहन ने कहा, “चाचा, हमको पैसा चाहिए. पैसा दीजिए.”

सत्या ने घबराकर पूछा, “अरे ये चोट कैसे लगी?”

जवाब मीरा ने दिया, “मार-पीट करके लौटा है. इसको चाकू खरीदने के लिए पैसा चाहिए. हे भगवान, इसके दिमाग में क्या चलता रहता है?”

सत्या गुस्सा हो गया, “कौन मारा तुमको? चलो स्कूटर पर बैठो, अभी उसकी ख़बर लेते हैं.”

रोहन, “नहीं, हमको बस एक चाकू ख़रीदना है. अपने बचाव के लिए. वह बोला है कि कहीं अकेले में मिल गया तो हमको ज़िंदा नहीं छोड़ेगा.”

“तुम बैठो स्कूटर पर. देखते हैं कौन माई का लाल है जो तुमको धमकी दे रहा है.”

मीरा चिल्लाई, “अरे पहले पूछ तो लीजिए, शायद इसी की ग़लती हो.”

“आप ज़रा शांत रहिए मीरा जी. ग़लती किसी की भी हो, जान की धमकी देने वाले को हम नहीं छोड़ेंगे. चलो रोहन, तुम बैठो स्कूटर पर.”

रोहन स्कूटर पर बैठ गया. सत्या ने यू टर्न लेकर तेजी से स्कूटर आगे बढ़ाई. मीरा

चिंतित और परेशान देखती रह गई.

बाज़ार से गुज़रते हुए रोहन ने हाथ से इशारा करके बताया, “वो वाली, वो सामने कपड़े की दुकान उसके पापा की है.”

सत्या ने उस कपड़े की दुकान के सामने स्कूटर रोकी और काउंटर के पीछे बैठे आदमी पर बरस पड़ा, “कहाँ है आपका बेटा निखिल? देखिये कितनी बुरी तरह मारा है उसने मेरे बेटे को. और ऊपर से जान से मारने की धमकी भी दी है. हम एस. डी. ओ. ऑफिस में काम करते हैं. अभी पुलिस को ख़बर कर देंगे तो उसका कैरियर बर्बाद हो जायेगा. आप भले आदमी लगते हैं इसलिए कह रहे हैं. समझा लीजिये अपने बेटे को.”

बिना रुके दनदना कर अपनी बात ख़त्म करके सत्या मुड़ा और स्कूटर की तरफ बढ़ते हुए बोला, “चलो अब तुम्हारे स्कूल चलकर शिकायत करनी होगी. शहर के सबसे अच्छे स्कूल में हत्यारे बच्चे नहीं पढ़ सकते.”

दुकानदार दौड़ कर आया और सत्या के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो गया, “ऐसा मत कीजिए साहब, बच्चे तो आपस में झगड़ते ही हैं. हम उपने बेटे की खूब ख़बर लेंगे. छड़ी से पीटेंगे. लेकिन आप उसकी शिकायत स्कूल या पुलिस में मत कीजिए. हम हाथ जोड़कर उसकी तरफ से माफी माँगते हैं.”

“ठीक है, बच्चे आपस में झगड़ते ही हैं. लेकिन जान से मारने की धमकी? यह तो गुंडागर्दी है.”

“सर आप मेरी रिक्वेस्ट मानिए. अबसे निखिल आपके बेटे की तरफ आँख उठाकर भी नहीं देखेगा.”

सत्या ने पूछा, “आप वादा करते हैं?....क्या बोलते हो रोहन?”

रोहन ने सिर हिलाकर सहमति जताई. दोनों स्कूटर पर बैठकर चल पड़े.

सत्या ने स्कूटर चलाते हुए पूछा, “वैसे ग़लती किसकी थी बेटा?”

रोहन चुप रहा. स्कूटर की आवाज़ में शायद उसने सवाल सुना नहीं.

सत्या ने चाहे अपना फर्ज़ निभाने में कोई कमी न की हो. लेकिन रोहन के दिल में उसके प्रति सम्मान बढ़ा हो, ऐसा कभी प्रतीत नहीं होता था. अब उस दिन जो उसने किया, उसका क्या मतलब था यह सत्या की समझ से बाहर था.

उस दिन परेशान हाल, बिखरे बाल लिए मीरा कमरे में आई और बोलने लगी,

“देखिये सत्या बाबू, ये क्या ड्रामा कर रहा है. कहता है जबतक घर में टी. वी. नहीं आएगी, ये खाना नहीं खाएगा. सुबह से भूखा, मुँह फुलाए बैठा है.”

सत्या ने पूछा, “कौन? रोहन? क्यों चाहिए उसे टी. वी.? ज़रा भेजिए तो उसको.”

मीरा, “हम बोले आपसे बात करने. कहता है बात नहीं करेगा और खाना भी नहीं खाएगा. उफ्फ, ये लड़का तो हमको पागल कर देगा.”

सत्या चिंतित हो गया. बोला, “उससे बोल दीजिये टी. वी. तभी आएगी जब वह कोई वाजिब कारण बताएगा.”

“उसके क्लास में सभी लड़कों के घरों में है, इसलिए उसको भी चाहिए.”

सत्या ने समझाया, “ये तो कोई वज़ह नहीं हुई.... लेकिन क्या कीजिएगा. ज़िद कर रहा है तो ले आते हैं टी. वी... जाईये बोल दीजिए, साईंस और मैथ में 90% से ऊपर मार्क्स लाना होगा. नहीं तो टी. वी. वापस हो जाएगी.”

मीरा ने गुस्से में कहा, “उसकी हर ज़िद को मानना ज़रूरी नहीं है. भूखा रहता है, रहने दीजिए. कोई टीवी - वीवी नहीं आएगी घर में.”

दूसरे कमरे से धड़ाम से दरवाज़ा बंद करने की आवाज़ के साथ रोहन की रुँधी हुई आवाज़ आई, “मेरे पापा होते न, तो मना नहीं करते.”

सत्या और मीरा एक दूसरे को देखते रह गए. बाहर खड़ांग से गेट के बंद होने की आवाज़ आई. मीरा के कंधे झुक गए.

सत्या दुखी रहने लगा. एक दिन उसने संजय को सारा कुछ बताया, “रोहन हाथ से निकलता जा रहा है. उस दिन टी. वी के लिए भूख हड़ताल कर दिया. लाना ही पड़ा. अब सारा दिन सीरियल देखता है, गाना सुनता है. मीरा जी एक दिन उसको देर रात चलने वाला गंदा चैनल देखते हुए पकड़ ली तो घर छोड़कर चला गया. हम लोग उसे कहाँ-कहाँ ढूँढते रहे और वह देर रात आकर चुपचाप सो गया. एक दिन बाज़ार में हम उसको चाय की दुकान पर चाय के साथ सिगरेट का धुआँ उड़ाते देख लिए. हमको देख कर उसने सिगरेट छुपा लिया. ....पता नहीं अपनी ज़िम्मेदारी निभाने में हमसे कहाँ भूल हो गई.”

संजय ने अपना मंतव्य दिया, “तुझे थोड़ी सख़्ती बरतनी चाहिए.”

सत्या, “कैसे सख़्ती करें? बात-बात में खाना-पीना, बात-चीत सब बंद कर देता है. आजकल कितने बच्चे ज़रा सा सख़्ती करने पर आत्महत्या कर लेते हैं. डर भी लगता है...... और वह तो बोल भी चुका है कि वह मेरा बेटा नहीं है. कैसे सख़्ती करें? …..क्या करें, समझ में नहीं आ रहा है.”

इस बात का जवाब संजय के पास भी नहीं था. उसने इतना ही कहा, “धीरज रखो, सब ठीक हो जाएगा. ………..ज़माने की हवा ही बदल गई है. क्या पता आगे चलकर मेरा बेटा क्या करता है. हमको तो अभी से चिंता होने लगी है.”