मेरी लाल साइकल Ved Prakash Tyagi द्वारा पत्रिका में हिंदी पीडीएफ

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मेरी लाल साइकल

मेरी लाल साइकल

आज मेरा दसवीं का बोर्ड परीक्षा का परिणाम घोषित होना था, मैं और मेरे मित्र सभी सुबह-सुबह जाग गए थे एवं तैयार होकर स्कूल पहुँच गए थे। अंदर ही अंदर कुछ भय मिश्रित खुशी हो रही थी, परीक्षा में किया तो सब ठीक ठाक ही था, और पूरा विश्वास था कि परिणाम भी सुखद ही होगा लेकिन पता नहीं किस कोने में बैठा भय बार-बार मेरे चेहरे का रंग को उड़ा रहा था। परिणाम जब तक अपनी आँखों से न देख लूँ तब तक मैं अपने मित्रों की आशा पर भी विश्वास नही कर पा रहा था जो बार-बार मुझे यही कह रहे थे, “देखना, तू तो प्रथम श्रेणी में पास होगा।” और हुआ भी ऐसा ही, जैसे ही परीक्षा परिणाम की सूची सूचना पट पर लगी, सभी विद्यार्थी सूचना पट को देखने के लिए खड़े हो गए। जो विद्यार्थी पास हो गए थे वे सभी खुशी-खुशी अपने घरों की तरफ दौड़ पड़े। लेकिन जिनका रोल न. सूची में नहीं मिला वो सूची में बार-बार अपना नाम और रोल न. खोजने की कोशिश कर रहे थे। मैं और मेरे मित्र भी परिणाम देख कर खुशी से फूले नहीं समा रहे थे एवं घर की तरफ दौड़ पड़े। घर पर पिताजी भी बड़ी उत्सुकता से मेरा इंतज़ार कर रहे थे।, जैसे ही मैं घर में घुसा, मेरे चेहरे की खुशी देख कर पिताजी ने मुझे अपनी बाहों में उठा लिया और बोले, “यमुना देखो, आज हमे बेटे समीर ने हमें गौरवान्वित होने का मौका दिया है।” मैंने पिताजी को बताया, “पिताजी मैं प्रथम श्रेणी में पास हुआ हूँ।” पिताजी बोले, “वाह बेटा वाह, लो बर्फी, मैं अभी लेकर आया हूँ। मोहल्ले वाले तो पहले ही कह रहे थे, जुगल किशोर का बेटा प्रथम आएगा। अब तुम जाकर मोहल्ले में भी बर्फी बाँट दो।” कुछ रुक कर पिताजी बोले, “और हाँ, सबसे पहले माँ दुर्गा का आशीर्वाद ले लो एवं उनको भोग लगाकर ही औरों को खिलाना।” मैंने बर्फी का डब्बा हाथ में लिया और दुर्गा माँ के सामने जाकर उनके सामने अपना सिर झुकाकर आशीर्वाद लिया, डब्बे में से एक बर्फी निकाल कर माँ को भोग लगाया एवं अपने माता-पिता के चरण छूकर उनको भी बर्फी खिलाई, फिर मैंने अपनी छोटी बहन को गोदी में बैठाकर प्रसाद खिलाया। माँ ने भी एक बर्फी का टुकड़ा उठाकर मेरे मुंह में रख दिया। मेरे सभी मित्र भी अच्छी श्रेणी में पास हो गए थे और सभी बड़े खुश थे, इस तरह पूरा दिन बीत गया। पिताजी शाम को घर आए तो उनके साथ एक लाल रंग की साइकल थी। घर में प्रवेश करते ही उन्होने मुझे आवाज लगाई और कहने लगे, “यह ले तेरा इनाम, यह लाल साइकल तेरे लिए है।” मैं तो साइकल देखकर और वह भी लाल रंग की, बहुत खुश हो गया।

अगले दिन सुबह-सुबह हम सभी मित्र अपनी-अपनी साइकल लेकर घूमने निकल गए। खाली सड़क पर साइकल दौड़ लगाने के बाद झील के किनारे पहुँच गए। झील किनारे सभी ने अपनी-अपनी साइकल खड़ी कर दी एवं किनारे बैठ कर झील में तैरती बत्तख और नाव देखने लगे। हम सभी मित्रों ने तय किया कि हम भी नौका विहार करेंगे एवं एक नौका में बैठ कर झील में दूर तक निकल गए। नौका विहार में बहुत आनंद आया, झील के गहरे पानी में नाव तैर रही थी तो लगता था जैसे नीले आसमान में कोई सितारा तैर रहा हो। झील की गहराई को देख कर डर भी लग रहा था लेकिन नाविक ने समझा दिया था कि झील की गहराई में मत झांकना अन्यथा डर जाओगे और नाव डोलने लगेगी। इस तरह झील का पूरा चक्कर लगाकर हम वापस आ गए, खुशी खुशी बाहर आए और अपनी-अपनी साइकल लेने के लिए चल पड़े लेकिन मेरी यह खुशी तब काफ़ूर हो गई जब मुझे मेरी लाल साइकल वहाँ नहीं मिली। मेरे तो पैरों के तले से जमीन ही निकल गयी और मैं ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा। मित्रों ने मुझे सांत्वना देने की कोशिश की और साइकल को आस-पास ढूंढा भी। कहने लगे कि चलो घर चल कर पिताजी को बता देते हैं। मुझे लगा कि कल ही तो पिताजी खुशी खुशी मेरे लिये साइकल लाये थे, आज जब उन्हे पता चलेगा कि मैंने साइकल खो दी तो कितना गुस्सा होंगे। मैंने घर जाने की बजाय पुलिस चौकी जाने की सोची। पुलिस चौकी झील के नजदीक ही थी और हम सारे मित्र पुलिस चौकी पहुँच गए। मैंने जाकर वहाँ उपस्थित पुलिस वाले अंकल से सब कुछ बता दिया। मेरी सारी बातें सुनकर वह अंकल मुझे अंदर इंस्पेक्टर अंकल के पास ले गए और कहने लगे कि अपनी सारी बात साहब को बताओ। मैंने फिर से सारी बात इंस्पेक्टर अंकल के सामने दोहरा दी। इंस्पेक्टर अंकल बड़ी-बड़ी मुछें और रौबदार व्यक्तित्व के मालिक एक कुर्सी पर बैठे हुए थे। एक आदमी उनके सिर की मालिश कर रहा था। इंस्पेक्टर साहब ने मालिश वाले को हटाया और तौलिये से हाथ मुह पोंछकर, मेरी तरफ देखकर पूछने लगे, “साइकल कैसी थी, कौन सी थी, कहाँ से आई थी?” मैंने कहा, “लाल रंग की साइकल, हीरो साइकल, मेरे पिताजी ने मुझे दसवीं में प्रथम श्रेणी में पास होने पर इनाम स्वरूप लाकर दी थी।” मेरी बात सुनकर इंस्पेक्टर ने कहा, “अच्छहा!!!” और सोचने लगे। थोड़ी देर सोचने के बाद इंस्पेक्टर अंकल मुझसे कहने लगे, “बेटा, तुम चोर को पकड़ कर लाओ, हम उसको बहुत मारेंगे और तुम्हारी साइकल भी दिलवा देंगे।” इंस्पेक्टर अंकल की यह बात सुनकर मैं तो आश्चर्यचकित रह गया और बोला, “अंकल अगर हमे चोर का पता ही होता तो हम अपनी साइकल ले लेते, हम तो आपके पास इसीलिए आयें हैं कि आप चोर को पकड़ कर मुझे मेरी साइकल दिलवा देंगे।” तभी एक आदमी लाल रंग की साइकल लेकर चौकी में आया और इंस्पेक्टर अंकल से कहने लगा, “जनाब, आपने बोला था ना बिटवा के लिए लाल रंग की साइकल लाने को, मैं ले आया, अब बिटवा को बुला कर थमा दो उसके हाथ में, खुश हो जाएगा बिटवा।” इंस्पेक्टर अंकल ने अपनी मूछों पर ताव दिया और अपने बेटे को आवाज लगाई। पुलिस चौकी के पीछे ही इंस्पेक्टर का घर भी था। मैंने लाल साइकल का नाम सुना तो पीछे मुड़ कर देखा, मैं पहचान गया कि यह तो मेरी ही साइकल है, वही कलावा बंधा हुआ, स्वास्तिक का निशान जो माँ ने लगाया था जब साइकल की सेंवल की थी, मेरे मित्र भी कहने लगे, “समीर, यह तो तेरी ही साइकल है और जो आदमी साइकल लेकर आया है, वह भी तो झील के किनारे ही घूम रहा था।” मैंने इंस्पेक्टर अंकल से कहा, “अंकल, यह तो मेरी साइकल है, मैं इसे अच्छी तरह पहचानता हूँ।” लेकिन इंस्पेक्टर अंकल तो बात मान ही नहीं रहे थे, कहने लगे, “”बेटा, यह साइकल तो मैंने अपने बेटे के लिए मंगाई है, उसने भी दसवीं का डिप्लोमा पास किया है, डिप्लोमा यानि के तीन साल में दसवीं पास किया है, भले ही तीसरी श्रेणी में किया है लेकिन पास तो हो गया, कितने लोगों की मेहनत लगी थी उसके पीछे नकल करवाने में, चलो, सबकी मेहनत सफल हो गयी।” मैंने फिर कहा, “अंकल इस साइकल पर जो कलावा बंधा है और स्वास्तिक का निशान बना है, वह सेंवल करते हुए मेरी माँ ने ही बनाया था।” अब इंस्पेक्टर साहब को गुस्सा आ गया और कहने लगे, “क्या इस शहर मे एक ही लाल साइकल है जो तुम्हारी थी, और बाकी सभी लाल साइकिलें खत्म हो गयी हैं?” और कड़क कर बोले, “जाओ, तुम सब लोग यहाँ से तुरंत भाग जाओ, नहीं तो चौकी में बलवा करने के जुर्म मे बंद करवा दूंगा।” मेरी साइकल मेरे सामने थी, मेरी साइकल चुराने वाला चोर भी मेरे सामने था और पुलिस भी थी लेकिन मुझे ‘पुलिस अपराधी’ गठजोड़ के सामने हार माननी पड़ी और मैं खाली हाथ घर आ गया। घर आकर मैंने सारी बात पिताजी को बताई, पूरी बात सुनने के बाद पिताजी ने कुछ सोचा और अगले दिन साइकल की रसीद एक पत्र के साथ इंस्पेक्टर के पते पर पोस्ट कर दी।

पिताजी ने लिखा, “यह साइकल मेरी तरफ से तुम्हारे नालायक बेटे के लिए एक तोहफा समझ कर रख लेना, मेरा बेटा तो बिना साइकल भी रह सकता है,” आपका जुगल किशोर।