परिप्रेक्ष्य / स्वीकृति
‘प्रस्तुत कहानी में चित्रित किये गए सभी दृश्य ,घटनाएं ,पात्र, कहानी का शीर्षक, सभी काल्पनिक हैं इनका किसी क्षेत्र विशेष में घटी सजीव घटना से कोई सरोकार नहीं है यदि इन घटनाओं, पात्रों ,दृश्यों का किसी सजीव घटना से सम्बन्ध पाया जाता है तो ये महज संयोग मात्र होगा| इसमें लेखक का कोई उत्तरदायित्व नहीं होगा | कहानी की विषय वस्तु, संवाद ,आदि लेखक के स्वतंत्र विचार हैं|
“ अक्ल बड़ी या भैंस “
ट्रेन में घुसते ही सब अपनी सीट पर कब्ज़ा जमाने के चक्कर में थे | सुशील भी धक्का मुक्की करके जगह पाने की जुगत में था | तभी उसे ध्यान आया ये तो सेकंड क्लास का डिब्बा है और उसकी टिकेट तो स्लीपर कोच की है |
आनन् फानन में हटो हटो !!!! चिल्लाते हुए झल्लाते हुए उस डिब्बे से निकल आया और बिना देखे किसी भी स्लीपर कोच में घुस गया , टी टी . आते ही उसे उसकी सीट आराम से मिल जायेगी | अब जाकर उसके चेहरे पर चिंता के भाव हटे थे |आगे बढ़ा ही था कि किसी ने आवाज़ दी भैया – ये सामान पकड़ना प्लीज ....
सुशील उस मुस्कुराते चेहरे की ओर देखता ही रह गया , तभी एक अधेड़ उम्र के अंकल बोले अरे!! राजा अब बैठ भी जा , पिक्चर अभी बाकी है ... पूरी रात पड़ी है आराम से देखूंगा | सुशील का मुहं बनने वाला ही था इस बात पर तभी उम्र के तकाजे ने भांप लिया और अंकल की आवाज़ आयी ठण्ड रख मैं तो अपने मोबाइल की पिक्चर की बात कर रहा था .. आ बैठ इधर ..
धीरे से सुशील उधर बैठ गया लेकिन नज़रें अभी भी उस नवयौवना पर लगीं थी जो सीट मिलने पर वापस अपना सामान मांगने ही वाली थी | इसके पहले ही सुशील ने हाथ बढ़ा दिया और कहा – मोहतरमा ये है आपका सामान इसे रखिये अपने पास, मेरी तो सीट भी नहीं मिली अभी तक
आपकी सीट यही है ..... आगे कुछ कहता इसके पहले ही वह लड़की इशारों में ही उसे बैठने को कह चुकी थी |महाशय अब सीट पर विराजमान हो चुके थे आखिर इतने दिनों बाद मन्नत पूरी जो हुयी थी वर्ना हर बार बेचारे अकेले ही सफ़र करते थे |
ट्रेन अपनी रफ़्तार पकड़ चुकी थी | सुशील भाई भी पंथी भीर कर बैठ गए थे| दो जुगाड़ करने की जुगत में थे |पहला ये कि और लोग उन्हें बेमतलब घूरना शुरु कर दें असल में वे ये बात भलीभांति जानते थे कि लड़की पटाना उनके बस की बात नहीं तो कुछ तफरी के चक्कर में उटपटांग हरकतें कर रहे थे पंथी भीर कर बैठना भी उन्ही में से एक थी | दूसरा जुगाड़ लड़की के प्लेट पर हाथ साफ़ करने का था | अरेभाई !! क्यूँ ये विचार उनके दिमाग में न आता पहली बार पित्ज़ा खाते हुए किसी को उन्होंने देखा था वो भी इतने करीब से | कैसे रुक जाते मुहं में लार टपकती ही जा रही थी |
मुझे ये बहुत अच्छा लगता है भाईसाहब !! भूलकर मैं इसे किसी को नहीं देती चाहे कोई कितना ख़ास ही क्यूँ मेरे पास बैठा हो !! पहली बात तो ये मोहतरमा !! मैं कोई भाई साहब नहीं आपका !! मेरा नाम सुशील है और इतना कहकर मुस्कुरा दिए थे महाशय चलो एक काम ठीक कर गए अंधे के हाथ कभी कभी बटेर भी लग जाती है | दूसरी बात बोलते इसके पहले ही अंकल बीच में ही टपक पड़े और बोले – बेटे तुम लोगों को अगर कोई ऐतराज़ न हो तो हम लोइग कार्ड्स खेल लें यू नो न वी र ओल्ड पीपल !! टाइम पास तो बनता है | इस बार दोनों ने अपनी मुंडी हिलाकर उन्हें हरी झंडी दे दी |
जैसे ये कहना चाह रहे हों कि बस भी करो अपनी उम्र देखो और अपना सड़े से भोंपू जैसा मुहं देखो तब बात करो | अंकल समझे या नहीं पर ऊपर की बर्थ पर बैठे बच्चे को ये बात बिलकुल अच्छी नहीं लगी और पिपहरी बजाना शुरु कर दी | फिर रोना शुरू कर दिया लीजिये पकड़िये इसे मुझसे नहीं अब ये संभलता,
इतना कहकर नीछे बैठे पति को बच्चे का पापा बनना ही पड़ा |
कहाँ तक जा रहे हैं आप !! मैं तो डेल्ही जा रही हूँ !लड़की ने कहा -- हाँ हाँ मैं भी तो वहीं जा रहा हूँ दिल्ली | डेल्ली नाट दिल्ली आर यु फ्रॉम यु .पी. ???
नों नों नाट एट आल एक्चुली माय बर्थ प्लेस इस इन यु.पी .बट आई ए एम टोटली वेस्टर्न !!
लड़की समझ गयी पहली बार सुशील भाईसाहब की टकराहट किसी लड़की से हुयी है बेचारे सदमे में हैं तो भौकाल औकात से कुछ ज्यादा ही बड़ा बना रहे हैं |
सोचा चलो बेचारे को थोड़ी रेस्पेक्ट दे देते हैं और अपने को इनतरोड्यूस करती हुयी बोली – हाय !!!! आई ऍम सोनाली फ्रॉम बॉम्बे .....
सो व्हाट यू डू डीयर ??? आई ऍम फोटोग्राफर एंड व्हाट यू डू मिस्टर सुशील !!!
मी!! मी!! ये सुशील के शब्द थे | ये मे ...मे... क्या लगा रखा है !! अंकल अब दुबारा टपक पड़े थे शायद वह तड़ लिए थे कि मिस्टर सुशील लप्पुझरना है , बकलोल हैं और कार्ड्स खेलकर भी बोर हो गए थे | इसीलिये भी उनके बीच में घुसना चाह रहे थे |
आपको बहुत ज्यादा अंग्रेजी आती है सोनाली जी जरा अपना जलवा दिखाओ ये बात बोलने वाला ही था तभी कुछ सोच गया मन में और बोला – अरे !!! अंकल बाल सफ़ेद हो गए और जवानी का धुआं अभी भी उड़ाने की तबियत रखते हो जरा इंट्रो दो मेइम को !
अब तू मुझे आर्डर देगा!!!! जानता नहीं.... मैं कौन हूँ !! ये वही देश था जहाँ का हर आदमी अपने को नेता समझता था अंकल भी उनसे अछूते नहीं थे |
या बात कुछ और थी इसी बीच एक वेंडर डिब्बे में चने बेचता हुआ आया | चने ले लो चने गरमागरम चने ........ अंकल ने फ़ौरन उसे रोका ऐ चनेवाले किधर जाता है कैसे बनाता है कित्ते का बना कर देता है !! साहब दस रूपए से लेकर पचास रूपए तक का बोलो आपको कौन सा वाला बनाकर दे दूं ??? चल बीस वाला बना दे एक इस लड़की को दे दे और एक मुझे ! अब सुशील का माथा ठनका कि अंकल और इस लड़की का रिश्ता क्या है ! ये एक दूसरे से क्या सम्बन्ध रखते हैं .... इसी बीच उसे अपने गंतव्य की अनौंसमेंट सुनाई दी | फ़ौरन अपना सामान पैक करने लगा , पैक करके जैसे वह आगे बढ़ा उसे एक कार्ड गिरा हुआ दिखाई दिया | उसमें लिखा हुआ था –“ हैप्पी फादर्स डे “ सबकी नज़रों से बचते हुए उसने कार्ड खोला जिसमें सोनाली और उसके पिता की फोटो लगी हुयी थी |
अरे यार !! ये तो बाप बेटी थे मैं तो जान ही नहीं पाया | पता नहीं उसे इस ट्रेन के सफ़र में अच्छा लगा या बुरा पर वह वहां से झेंपता हुआ डिब्बे से उतर गया यही सोचते हुए अगली बार पंथी भीर के नहीं खड़े खड़े ही सारी बात की जायेगी| पित्ज़ा का क्या है कल बर्गर बन के सामने आ जाएगा लार का टपकना कम हो जाय तो ही बात बनेगी और उसके सपनों की दुनिया से स्वप्न सुन्दरी निकल कर सामने उसकी बाहों में होगी |