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दांव

“ दांव “

एक बार एक जंगल में भटकते हुए एक राजा, चोर ,सिपाही और गुप्तचर का आमना सामना हुआ | चारों लोग जंगल में बहुत देर से भटक रहे थे | चारों परेशान थे अपनी हालत पर | किस्मत ने सबके साथ एक अजीब दांव खेला था जो वो सब आज इस वीराने में भटक रहे थे | भटकते-भटकते जब एक ने सोचा रात काटने के लिए लकड़ी की जरूरत पड़ेगी कहीं से लकड़ी ढूंढी जाय | एक लकड़ी के ऊपर उसकी नज़र पड़ी उसने सोचा उसकी रात आसानी से कट जायेगी इस लकड़ी से वह काम चला लेगा लकड़ी उठाने को हुआ उसी वक़्त एक और आदमी भी वहां आ पहुंचा बोला पहले उसने ये लकड़ी देखी है इसी बात में उन दोनों में बहस शुरु हो गयी और झगड़ा होने लगा | पहला आदमी बोला इतनी अकड़ दिखा रहे हो तुम हो कौन?? शक्ल से तो चोर या टपोरी जैसे लगते हो इतनी बहस मुझसे आज तक किसी ने नहीं की | दूसरा आदमी बोला बिलकुल ठीक पहचाना मैं चोर ही हूँ | लेकिन तुम तो ऐसे कपड़े पहने हो जैसे नाटक कंपनी में एक राजा पहनता है कहीं के राजा हो जो इतने ठाठ-बाट दिखा रहे हो? पहला आदमी बोला अरे मूर्ख मैं राजा ही था इस जंगल में आने से पहले ये कोई नाटक कंपनी की पोशाक नहीं है ये मेरा राजसी वस्त्र है!

चोर ने चुटकी ली ऐसा क्या हुआ कि तुम जंगल में भटक रहे हो?? मैं तो एक चोर हूँ आज यहाँ कल वहां परसों जाने कहाँ?? जिधर माल मिला उधर सर और पाँव रख दिया |

राजा अकेला था और थक भी चुका था उसे एक साथी की जरूरत थी उसने सोचा इसे सच बताये देता हूँ भला ये मुझको क्या नुकसान पहुंचाएगा? उसने बताया कि कैसे वह अपने राज्य की आंतरिक राजनीति का शिकार हो गया | मौत उसके सर मंडरा रही थी अतः उसे अपना राज पाठ छोड़कर भागना पड़ा है और दो दिन से जंगल में भटक रहा है |

चोर ने भी अपना हाथ बढ़ाया और अपना दुःख बताने लगा अभी जो दोनों लड़ रहे थे मित्र बनते जा रहे थे| बहस की जगह लागाव बढ़ता जा रहा था कि इतने में तीसरा आदमी आ गया बोला हटो यहाँ से अंधे हो क्या ! देखते नहीं मेरी बन्दूक की गोली इस लकड़ी में धंसी हुयी है ये मेरी है मुझे इसे लौटा दो नहीं तो अच्छा नहीं होगा दोनों राजा और चोर एक साथ बोल पड़े अरे ! तू है कौन हम बहुत देर से इसी बात पर लड़ रहे थे अब तुम भी आ गए इस अपर अपना हक जताने !

वह बोला वैसे तो मैं नहीं बताता किसी अनजान को अपनी सच्चाई लेकिन मैंने तुम दोनों की कुछ बातें सुन ली थी तुम लोग भी परेशान हो | मैं एक सिपाही हूँ मुझे देशद्रोह के आरोप में देश से निष्कासित कर दिया है मैं भी इस जंगल में रहने का स्थान खोज रहा हूँ |

और वो सब छोड़ो मुझे मेरी लकड़ी ले जाने दो मैं तुम लोगों के साथ नहीं रहना चाहता मैं बहादुर सिपाही हूँ अपने देश का मैं अपनी रात ऐसे ही अकेले काट लूँगा | इसके पहले वह आगे बढ़ता लकड़ी उठाने कि इतनी ही देर में बचा हुआ वो चौथा आदमी भी उनके बीच आ गया | अब उस लकड़ी पर हक जताने वाले एक नहीं दो नहीं तीन नहीं चार आदमी थे | वो चौथा आदमी पेड़ से कूदकर सीधे लकड़ी के ऊपर ही बैठ गया था | वह बोला

माना कि तुम लोगों ने इसे पहले देखा और इन भाई ने अपनी गोली तक डाल दी इसमें लेकिन अब तो मैं बैठा हूँ इस पर और वैसे भी सबसे पहले मैंने ही इसे पेड़ से तोड़कर नीचे गिराया था | मैं पानी पीने क्या गया तुम लोग इसे अपनी समझ बैठे! अब राजा और चोर का दिमाग पहले ही सिपाही के आने से खराब था अब इसने आकर उस पर नमक छिड़क दिया था| सिपाही के कुछ करने से पहले ही वो दोनों एक साथ बोल पड़े अरे! हट यहाँ से नहीं तो तेरी सेहत के लिए अच्छा नहीं होगा !

उसे हंसी आ गयी वो बोला पूछोगे नहीं तुम लोग मैं कौन हूँ ? अच्छा चलो मैं खुद ही चोर ,राजा और सिपाही को बता देता हूँ कि मैं गुप्तचर हूँ | तुम्हे कैसे पता चला तुम तो कह रहे थे कि तुम पाने पीने गए थे | ये तीनों राजा, सिपाही ,चोर ने तपाक से कहा –

मैंने कहा न कि मैं गुप्तचर हूँ मुझसे छुपी कोई बात नहीं रह सकती | रात अँधेरी होती जा रही थी लकड़ी जलाने के बजाये उसी पर घमासान मचा था | और गुप्तचर ने आकर तीनों के चेहरे की हवाइयां उड़ा दी थी वो सोच भी नहीं सकते थे कि चौथा भी कोई वहां है ? जो उस लकड़ी पर दावा ठोंक सकता था |

अब ये वक़्त था जब लकड़ी को जलाकर चारों को जंगली जानवरों से और ठण्ड से बचना था पर ठण्ड लगने के बजाये वो तो गरम ही होते जा रहे थे | जैसे तैसे एक बात पर सहमति बनी चारों में कि लड़ के कोई फायदा नहीं है घनी रात हो चुकी है जंगली जानवर का शिकार किसी भी वक़्त हम हो सकते हैं अत: तर्क में जो सबको हरा देगा वही इस लकड़ी को जीत लेगा सब को सहमत होना ही पड़ा था क्यूंकि जंगली जानवरों की चीखें सुनायी देने लगी थी और वक़्त रेत की तरह फिसलता जा रहा था |

राजा बोला सबसे पहले वार्ता मैंने शुरु की थी और मैं सबसे उच्च हूँ इसलिए बोलने का पहला मौका मेरा – वह बोला मेरे एक इशारे पर पूरी सेना की दिशा बदल जाती है और हीरे जवाहरात तो पूछो मत कितने हैं मेरे पास तो धन दौलत और रुतबे में तुम सबमें कोई भी मेरे आस पास भी नहीं फटकता |

राज़ा के बाद सिपाही औहदे में आता था| सिपाही बोला – अगर किसी भी सेना के सिपाही हड़ताल पर बैठ जाएँ और कसम खा लें कि शस्त्र नहीं उठाएंगे और न ही हाथी, घोड़े दौड़ाएंगे तो मजाल है उस सेना का राजा जीत जाए !

अब चोर की बारी थी तो उसने तर्क दिया अब मैं ठहरा चोर मेरे हाथ अगर खजाना हाथ लग जाए तो राजा क्या बड़े बड़े महाराजा दिवालिये हो जायेंगे | और इसे साबित करने की जरुरत नहीं क्यूंकि राजा जी - मैंने आपका थोड़ा माल साफ़ कर दिया है |

अंत में गुप्तचर की बारी आयी बोला तर्क में और दुःख और बदकिस्मती में भी दोनों मैं ही जीता ! सबने पूछा वो कैसे?

वह बोला – अरे! सज्जनों !! बंधुवरों! अगर एक गुप्तचर मुखबिरी न करे तो न राजा को शत्रु की कमजोरी का पता चलेगा न रणनीति बना के वह सेना को संयोजित कर पायेगा जीत तो दूर की बात हो जायेगी और चोर महाशय आप आप के सारे अड्डों की पूरी पूरी खबर अगर राजा को दे दी तो न आप रहंगे न आपके साथी | हवालात की हवा खायेंगे सब ! ये तो गुप्तचर की अपने राजा और जनता के प्रति वफादारी होती है जो किसी की रोजी रोटी पर खड़ी लात नहीं मारता| चोर भाई तुम आँखें तरेर रहे थे ये आख़िरी बात तुम्हारे लिए ही कही थी |

सबके मुहं देखने लायक थे उसने तीनों को चारों खाने चित कर दिया था और लकड़ी उठाकर चलता बना था बस बदकिस्मत उन सबमें वो इसलिए था क्यूंकि वही एक था जिसने न राज-पाठ, न वर्दी न माल बल्कि अपनों को खोया था उसके सारे अपने एक युद्ध में मारे जा चुके थे| वो कई दिनों से जंगल में भटक रहा था |||

|| समाप्त ||

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