“सपने के बाद का मज़ा “
हम थे बड़े गज़ब के मर्द
पर लगी नहीं नौकरी
होने लगा सर में दर्द
भाग रहे थे सरपट हम सड़क पर,
सामने आ गया एक पार्क, देखा नहीं कोई मार्क,
घूम के पूरा पार्क छान मारा, बैठ के थक मैं अब हारा ,
सामने दिखी एक चिकनी बेंच ,पेट भरा था नहीं करना था लंच ,
आ गया फ़ौरन सपने का झोंका, नहीं मिला सँभलने का मौका,
दबाई मुहं में एक प्यारी चॉकलेट मंच,किया उसको धीरे धीरे क्रंच,
याद आ गया सपने में कर रहा था मैं ब्रंच,
हौले से मैं अपने दर्द में खो गया ,दौड़ रहे हैं डंडा लेके सब लोग ,
कह रहे कब तक लगाओगे घर का छप्पन भोग , जाने कौन सा लगा है तुमको रोग??
,नहीं कमा रहे फूटी कौड़ी , फुलाते हो हर जगह छाती चौड़ी,
नहीं मालूम तुम्हे खाएं हमने सूखे प्याज और रोटी , खिलाके गर्मागर्म पकौड़ी,
अब न मारो हमारे अरमानो पर हथौड़ी,
नहीं तो वो दिन दूर नहीं, जब तुम टहलना नवाबों जैसे यहाँ
भाग जायेंगे हम हर की पौड़ी |||
इतने में लगा ये सब है दूर की कौड़ी,
आये कान में जोरदार आवाज़ चला रहा था बढ़ई दनादन हथौड़ी ,
उठा फ़ौरन करके छाती चौड़ी
सोच के खुश हो गया ये तो एक सपना था,
जो वर्तमान में बिलकुल अपना न था ,
मन में मार हिलोरे लग रहा ऐसे अब सर बिलकुल दुखना न था
उठा कर गटक गया एक मलाई मार के चाय, पैसे देने को हाँथ घुमाया
एक्को पैसा हाँथ न आया ,
बोला ऊपर वाले तूने मुझे आज क्यूँ फंसाया
जो मेरा ही पर्स मरवाया |
भागता हुआ ऊपर से नमूना आया
भाई ! तूने मुझे क्यूँ बुलाया ? बिना नहाये मैं सरपट आया ये
पकड़ो दस रुपैया !! इससे जादा मैं किसी को न दे पाया !
किसी से कुछ न कहना दुई - दुई बच्चें हैं एक अकेली अरकस बथुआ जैसी भाया |
नाम न बतायो कोई का हमरा एक है छाया दूसरी काया तीसरी है गज़ब की माया !!
मैं बोला इतना बोल के मुझे क्यूँ तूने पकाया ?
मैं ठहरा सुबह का भूखा तूने पेट को है सताया ?
निकाल रोकड़ा ! टैमपास का वरना न कहना नंगे की लुटिया को क्यूँ मैंने डुबाया ?
वो मुझसे अकड़ा , गबरू जवान था वो तगड़ा ,
शुरु होने वाला था झगड़ा, बीच में आ गया जवान मकड़ा
दिखा दी सीधी रास्ता फट से मैंने छाया माया काया को पकड़ा ,
और अकड़ू फूं को ऐसा रगड़ा,
भूल गया सारी खुराफात !!
देने वाला था एक फटका होने वाली थी उसकी अब पूरी मात
बीवी ने ऊपर से आवाज़ लगाई ऊपर वाले!!
लग गयी है प्लेट आकर खा ले दाल रोटी
और भात|
बन्ध जा मेरे खूंटे से नहीं तो
कर के मुंडा होगा मस्त नामकरण तेरा
पड़ेंगे ठुल्लों के डंडे और दो-दो लात
घर बेच खाऊँगी सड़ते रहना
सेवा होगी पूरी मिलेगा तुझको हवालात!!
पिछवाड़े छू –छू कर याद करेगा तब मैं थी माया –छाया या दिवाली के पटाखों की धड –पड़ वाली आसमानी सौगात,
न याद आये तो खाना बासी रोटी और रोपना पौधे ,
डालना खाद !!
औरतों का भला न हुआ
आखिर पेड़ों को ही मिल जाए आशीर्वाद!!!
मैं बोला अब मेरा नोट दे-दे तू बन गया समाजसुधारक
मैं तो हूँ नरम सलाद !!
तू है गुरु अगर तो हम हैं तेरे उस्ताद !!!
“ पैसा झुकाता है “
कब ख़तम होगी गरीबी,
सोच इसे मैंने जागती रातें काटी हैं |
नर का कोई मोल नहीं अब
हर जगह धन और पैसे की ही परिपाटी है |
है अगर रोकड़ा जेब में तो
लूला लंगड़े के पास भी समझो भगवान् की लाठी है|”
मत भूलो !!! अब तो ये ही अपना सच्चा साथी है ,
बिना इसके सब समझते ये इंसान नहीं
बेकार लकड़ी की काठी है |
हो तुम अटकल पच्चू या हो बुद्धि तेज़
नोट छापते हो तुम रोज़
गले लगाते सब बन के राजा भोज ,
रखते ढेरों पकवान और दर्जनों भोज |
आता है मन में उनके एक ख्याल
रखना है इसका रोज ख्याल ,
जी रहे हम कलयुग में कब खिच जाये यहाँ खाल,
तो खाने के लाले पड़ जायेंगे ,
और दोनों हाथ से जायेगा पूरा माल ,
कौन लेगा हमारा हवाल,
तभी याद आयेंगे राज़ा भोज जो कभी मिले थे और मिलाते थे
“पैसों की ताल से ताल |”
मिल गयी मदद तो ठीक है नहीं तो दूसरे वाले भी तो हैं
जो करते हैं पैसों का जादू और
हाथ मारकर बनाते हैं टकसाल और रुपये तो बाएँ हाथ का खेल है
जिससे करते वो धमाल ,
अब डर नहीं कुछ हमें कब बर्बाद हो जायें हम जब साथ हैं वो ,
जो हैं खुद एक धमाल !!!
झोली छोटी हो या विकराल , चाहे जितने हो मकड़जाल ,
बंद कर लेते हैं मुट्ठी में जब सब कुछ
जैसे हो कालों के काल ,
काम आते हैं हमेशा यही
हम तो ईंट की छत ये तो हैं सदाबहार बाऊंड्रीवाल
करके रिस्क कवर अल्लाह की तरह ये बचा लेते हैं हमारी जान-माल ||
वर्ना बिना पैसे के किस काम का ये ज़हान है |
पैसा है यहाँ तभी तो साँसों में धड़कती ये मासूम जान है ||
हीरे की कीमत है जादा यहाँ
इंसान तो करोड़ों की भीड़ में भी अपनी रूह से अनजान है |
पैसा और इसके रंग ही हैं सब कुछ इसी से उसकी शान है,
वर्ना आज तो सबके पास भरे-पेट रोटी-कपड़ा और मकान है||
और क्या करे बेचारा वो आखिर इस समाज में यही तो देता उसे अनूठा सम्मान है ||||”
“ प्यार में कब क्या याद आ जाये “
मन में मेरे एक खयाल आया
मैं थोड़ा शरमाया ! फिर !! अपने ऊपर ही इठलाया !
सोचा अब जाके मिला है मुझे अपना पहला प्यार !
हो गया मैं बहुत बेकरार !
उठाया एक जैम का जार
मुहं में टपक रही थी लार ,
लेकर स्वाद सपनों के सीन हुए तैयार!!
तभी रात ने कहा अरे यार !!
पहले भाग्य का पता लगाओ !
तब स्वपन लोक में जाओ !
तो मेरे दिमाग में एक आईडिया आया
तुरंत मैंने टॉप ज्योतिषी को फ़ोन घुमाया ! अंधे के हाथ बटेर आया और
लाइन क्लियर हो गया वो बोला रुको भाई साहब !
रात को सोने तो दो चैन से क्यूँ ट्रिन ट्रिन करके मुझे डिस्टर्ब कर दिया है?
तुम रहते हो अकेले इसमें मैंने क्या पाप किया है ?
मैं बोला! लगता मुझ पर शनि और राहू की छाया है,
और साढ़े साथी दहिया का चल रहा है चक्कर
जल्दी से खाओ सक्कर ,
मेरी किस्मत का दिया जलाओ |
सारे ग्रहों को लपेट के एक घेरे में लाओ.
और मुझसे जितनी चाहे दक्षिणा पाओ | फटाक से पेट्रोल भरवा के मेरे घर पहुँच जाओ |“
निकल पड़ी अब तो मेरी , खाऊंगा जाड़े में खुल के मैं दसहरी ,
और तुम्हे कर दूंगा मालामाल
ख़तम करो ये अपना और मेरा फटा हाल
दिन दूर नहीं तुम पहनना सूट और ओढ़ेंगे हम शाल
बोला वो –रोमिंग में इतनी मीठी बातें न किया करो वैसे भी खिची पड़ी है मेरी खाल
बैलेंस ख़तम हो गया तुम्हारा मज़ा पूरा हो गया अब काट रह हूँ काल ||
मैं ज्योतिषी हूँ मुझसे न खेलना कोई चाल !!!!
कुंडली निकाल देते हैं चाहे हो जवान या कोई लाल !!
तुमने बारह बजे फोन किया है वरना नहीं है किसी की मजाल !!
जो हो इतना वाचाल !!!
ध्यान रक्खो हो गधा या घोड़े की नाल !!
बुला देता पुलिस और कर देता मुर्गे जैसे ,
बिना महूरत के हलाल!
चिल्लाते रहते बचाओ-बचाओ हो गया मेरे साथ बवाल !!बवाल!|||
“मियां अजब और बीवी गज़ब “
मियां जी को याद आया पुराना शौक ,
मन ही मन बोले पुस्तैनी धंधा छोड़
परदे पर अपनी किस्मत आजमाऊंगा,
बेगम हाँ करें या न अब तो डालर लुटाऊंगा |
दिन दूर नहीं अब अगली ईद का है इंतज़ार,
जब झोपड़ी तोड़ महल बनवाऊंगा |
फुर्ती से हुए उठ खड़े सुबह -सुबह बेगम से जा लड़े,
लग रहे थे शेर जैसे बेख़ौफ़ पर
ज्यूँ ही बेगम ने सौंफ की डाली मुहं में दबाई,
बाँध कास के कमर मे दुपट्टा ,
अगले ही मिनट मारा मियां जी पर झपट्टा ,
डर के मारे मियाँ जी का निकल गया कट्टा ,
बरस पड़े माता जी बहिन जी बीवी जी , खातून , महबूबा जो भी हो तुम
हट जाओ दो कदम दूर ,
ट्रिगर दबा के कर दूँगा चकनाचूर
महबूबा के पाँव तले ज़मीन खिसक गयी |
बोली मेरी वजह से तुम्हारे अरमानों की चिता जल गयी |
पल में ही आसुओं से लबालब हों गयीं |
और मियाँ जी की लोहे की तनी बन्दूक मोम बन पिघल गयी |
जाते - जाते चेहरे पर मुस्कुराहट छोड़ गयी
ये देख बेगम फुर्ती से बाँहों में लिपट गयी,
बोली- चलो अच्छा है इसी बहाने मुझे कुछ दिनों की छुट्टी मिल गयी |
तुम जाओ बम्बई ट्रेन पकड़ के
अब तो मैं भी गली की स्टार बन गयी ||
मेरा नाम तो पहले से ही बेगम है लगे हाथ अब हीरोइन भी बन गयी ||
“ सब त्रस्त हैं “
मस्त चले जा रहे थे एक साहब ,
रुक गये हकबका कर कुत्ते ने जब भौंका,
भौं-भौं करता कुत्ता देख उन्हें चौंका ,धत - धत करके उन्होंने उसको रोका ;
इत्ते में चड्डी बनियाइन पहने बच्चे ने बीच में टोका ,
“गुम्मा मार देओ” अंकल बड़ा अच्छा है मौका,
और उड़ी तूफानी धूल , आ गया बीच में तेज़ हवा का झोंका
साईकिल वाले ने अब पीछे से उन्हें था ठोंका,
गिर पड़े कुक्कुर के सामने बोल फूट पड़े- “माफ़ कर दो कुत्ते भाई “
तुम कुत्ते हो ढूँढो जाके अपनी लुगाई
जाने दो मुझे मेरी मिसेज़ की याद आयी |
लपलपा के कुत्ते ने जीभ बाहर निकालते ही जो नुकीले दन्त दिखाए
बोला – मेरी बीवी को गाली देने वाले आज मेरे हाथ आये,
दिन भर कुतिया - कुतिया कह के दुत्कारते हो ;
बेशरम बन मेरी वाली को क्यूँ पटाते हो ! !
काट लूँगा अभी पूछेंगे तब सभी कि साहब अपने कुल्हे को बच्चे कि तरह क्यूँ सहलाते हो?
दोनों हाथ जोड़ बोले साहब मैं उससे त्रस्त हूँ,
मेरा बचा प्रसाद उसे दे दे कुत्ते भाई !!
नाम तो तेरी वाली का है भले हो मेरी लुगाई ! !
कुत्ता बोला मैं बेचारा अपनी वाली को रोक न सका
उससे हो गयी मेरी लड़ाई
न कर दिमाग का दही इसी में भलाई,
तूने आकर बीच में सड़क की ऐसी धूल मुझे चटाई
गले में एक कंटीली फाँस है आयी |
अब कैसे भौंकूंगा मुझे भी रुलाई आयी||
हट जा मनहूस ! कहीं के;
लाकर दे एक विक्स
खाकर जिसे मैं लेता हूँ एक लम्बी अंगड़ाई |||
“ इश्क हुआ“
जैसे ही उनसे टकराया , और आगे एक कदम बढ़ाया
दिल हल्का सा बुदबुदाया , मैं अपने पर इठलाया ,
और हौले से दिल मेरा मुस्कुराया
इत्ते में पीछे से किसी ने चिल्लाया “
ए मिस्टर अंधे हो क्या दिखाई नहीं देता है ?
तुम्हारे बाप की रोड नहीं जो चप्पू की तरह पैर फैला-फैला के रखते हो,”
मुहं खुल पड़ा ओंठ फट पड़े मैं दूर हो गया मेरे बाप बीच में जा अड़े ,
हम भी खपट के बरस पड़े ?
मारा वो धांसू डायलाग – बाप पर न जाना आज के बाद मैडम
नहीं तो हम हर बात पे माँ बाप दोनों की माँ यानी कि नानी और दादी पे इकट्ठे चले जाया करते हैं वो भी बिना परमिशन के बिना नोटिस के !!!!!
आप तो अपनी हो मैडम चलो सस्ते में बात निपटा देते हैं
अपनी पर्स से हम दोनों अपना अपना मोबाइल नम्बर गिरा देते हैं ,
घर जाकर केवल अपने अपने माँ बाप को ही पटा लेते हैं|
वो मुस्कुरा के बोली
अगर न माने ,
हमने कहा
फर्क नहीं पड़ता हमे हम परिंदों की शाने उड़ान ,उड़ानों की ऊँची चाह और चाहों के तो हम पैदायशी मस्त कलंदर हैं, तो
ये अँधेरे के उल्लुओं जैसी बात न करो मैडम !!!
मैडम का मुहं लाल हुआ , हमने भी तुरत बैकफुट लिया-
और मिनटों में मना लिया
समझा के ऐसे
हम हैं तुम्हारे एडम तुम हो हमारी बेगम ,
हम हैं घोड़े बेदम तुम हो प्यारी टमटम,
हम हैं एक अनारी तुम हो खिलाड़ियों की खिलाड़ी
हम हैं उबाऊ टेस्ट पारी तो तुम हो ट्वेंटी ट्वेंटी की यारी ,
सैंडिल न उठाना नाज़ुक हाथों से, ख़तम है सब जो था जारी ,
मांफ कर दो मांफ कर दो
लाल न हो !! लाल बत्ती को न बुलाओ –
आई ऍम सॉरी
आई ऍम सॉरी,
नहीं समझ पाया तुम नहीं हो कोई नयी कली
हो दो बच्चों की नारी
देखे जब हम छोटू – मोटू
तब जाने हमरी
किस्मत है मारी , हम हैं एक बढ़ई लिखा के एक हाथ में......
लकड़ी नै लड़की नै और दुसरे मा चमचमाती आरी ||
नहीं पड़ेंगे फेरे कबहुँ हमरे, रहेंगे हम चुटिया वाले ब्रह्मचारी |
लोग हँस-हंस के कहेंगे
वो देखो भाइयों –
आ गया अपना सदाचारी
आ गया अपना सदाचारी !! ||
|||“ समाप्त ”|||