चुनाव Pawnesh Dixit द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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चुनाव

“चुनाव“

शहंशाहपुर का जैसा नाम था चर्चा का विषय बनना स्वाभाविक था आस पास के प्रान्तों, कस्बों और नगरों में,लोग मिसालें देते नहीं थकते थे कि शहंशाहपुर के राजा शहंशाह का राज-काज की बात ही निराली है और तो और कूटनीति तो ऐसी कि साठ की उम्र हो जाने के बाद भी कोई शत्रु राजा आक्रमण करने से पहले सौ बार सोचता था || प्रजा की बात अगर देखें तो सबके लिए चाहें खाने की बात हो , या कपड़े या फिर रहने के लिए मकान| स्वास्थ्य सेवाएं ,लगान ,कृषि सेवाएं,आदि सब चीज़ों के प्रबंधन के लिए सुयोग्य व्यक्तियों की नियुक्ति कर रखी गयी थी |

शान्ति और खुशहाली का माहौल बना रहता था | जनता को राजा की कार्यशक्तियों पर पूरा भरोसा था यही वजह थी कि नीतियों को लागू करने में पारस्परिक समन्वय की कहीं पर से कोई कमी नहीं थी सब कुछ ज़िंदगी के संतुलन के धरातल पर गोल चकरी के सरसराहट की भांति ऐसा घूमता था कि एक पल के लिए चकरी और धरातल एक ही संयोजन प्रतीत होता था अलग होने का कोई सवाल नहीं पैदा होता था| बस एक ही बात का मलाल राजा शहंशाह को रहता था| उत्तराधिकारी का न होना ; वैसे तो रजा की कई रानियाँ थी पर पुत्र इच्छा कोई भी रानी दुर्भाग्यवश न पूरी कर सकी तीनों रानियों से राजा शहंशाह को तीन बेटियाँ थी | सबकी शादी बड़े राजघराने में हुयी थी सभी ख़ुश थीं | राज़ा चाहता था कि कोई उसके राजदरबार में ही सुयोग्य पात्र होता तो उसे अपना उतराधिकारी घोषित कर दिया होता लेकिन राजा शहंशाह को अभी तक ऐसा कोई नहीं मिला था जिसे वो अपने समकक्ष समझ सकें | कईयों से सलाह ली लेकिन कोई उपाय नहीं सूझा जिसे राज़ा का उतराधिकारी घोषित किया जा सके | अंत में राज़ा शहंशाह को एक युक्ति सूझी उसने सोचा कि एक समारोह का आयोजन किया जाए जिसमें आस पास के सभी जगहों से युवाओं को निमंत्रण भेजा जाए मंत्री, सेनापति, वजीर सभी उत्सुक हुए कि आखिर योजना क्या है ?समाहरोह कैसा होगा? योग्यता का मानक क्या होगा ? हर जगह चर्चाएं हो रही थी |लोग भी चिंतित रहने लगे थे कोई कहे भी तो कैसे सबको राज़ा शहंशाह की काबिलियत पर भरोसा था

शहंशाह ने ये एलान करवा दिया कि जनता को चिंतित रहने की जरुरत नहीं है ये समाहरोह विशिष्ट प्रकार का होगा न कोई धूम धडाका न ताम झाम बस हर दावेदार युवक को राज्य की सीमा में घुसने से पहले राज्य सूचना विभाग को सूचना देनी होगी|

दूर दूर से लोग आये सब ये बात भली भांति जानते थे कि राज़ा शहंशाह की परीक्षा पास करना आसान न होगी इसलिए हर प्रतियोगी अपने आपको मानसिक रूप से मजबूत बनाने में लगा हुआ था | कोई दयालु बन कर पिंजरे में बंद पशुओं को मुक्त करने में लगा हुआ , कोई सहायक बन कर (लट्ठों )सामानों से लदी घोड़ागाड़ी को सहारा देने में लगा हुआ कोई परोपकारी बन भिखारी को भीख देने में लगा हुआ,इस तरह हर उमीदवार नेकदिली की चासनी को चाटने में लगा हुआ था वो भी पूरी इमानदारी के साथ क्यूंकि शहंशाह राज़ा के प्रभावशाली व्यक्तित्व और गुणों से सभी लोग वाकिफ थे | कि अगर राज़ा को भनक तक लग गयी कि उमीदवार नेक दिली का दिखावा करके बनावटी लबादा ओढ़ के रखा है तो जान तक खतरे में पड़ सकती है |

लिहाज़ा सभी उमीदवार पूरे तन-मन से लगे हुए थे|कुछ इसी राज्य के कुछ बाहर के लोग भूख प्यास तक तक भुलाकर परोपकारी और नेकदिली का बोझ उठाने में लगे हुए थे | समाहरोह की घोषणा करते ही राजा ने मन में तय कर लिया था कि रूप बदल के अपने ही राज्य में वह सभी उमीद्वार का निरीक्षण करेगा |

सब की कर्मठता देख के उसे एक अजीब सा आश्चर्य हो रहा रहा था दरअसल शहंशाह को झूठ के लिबास में सच्ची कर्मठता दिख गयी थी | हर किसी की ओर वह टकटकी लगाकर देख रहा था| परोपकार दया , उद्यमिता, मेहनत, लगन, सब बड़े उत्साह से ऐसे नाच रहे थे जैसे इनको नचानेवाला एक ऊँगली पर सदियों से नचा रहा हो | और होता भी क्यूँ न इतने बड़े और मशहूर साम्राज्य की बात थी और वैसे भी किसी भी काम चाहे वो रुचिकर हो या न तन मन जी जान से किया जाए तो काम और काम को करनेवाले की रंगत देखते ही बनती है|

राज़ा शहंशाह असमंजस में था कि क्या करे वह ? वह जान रहा था ये उमीदवार भविष्य के कर्मठ और सुयोग्य युवक हैं अगर इनको अहसास हो गया कि जो ये कर रहे वही वास्तव में उद्देश्यपूर्ण ज़िन्दगी के जरूरी आयाम हैं |जनता को आभास ही नहीं था उनका राज्य का राज़ा भेष बदल कर घूम रहा है पूरे नगर में | कई दिन हो गए वो सब पस्त पड़ने लगे सोचकर कि न तो राजा ने उनकी आवभगत की न उनसे मिलने दिया गया बस इस बात पर कि इस नगर में सभी युवा उम्मीदवार अपने इच्छित काम में लगें रहे जब तक समाहरोह शुरु नहीं हो जाता |

राज़ा शहंशाह को वक़्त आने पर पता चल जाएगा कि कौन उचित पात्र है सभी लोगों का सब्र का बांध चरमरा रहा था लेकिन लगे थे सब अपने अपने कामों में |

एक रोज राज़ा सुबह सुबह निरीक्षण करने निकला ; सुबह की खुली ताज़ी हवा चल रही थी टहलते टहलते वह नदी किनारे पहुँच गया उसने देखा कि एक नाविक मस्त अपनी नाव खेते खेते,तट के किनारे चला आ रहा था |पहुँचते ही राज़ा ने पूछा कि कौन हो? और यहाँ क्या कर रहे हो?

नाविक बोला महाशय !मैंने सुन रखा है शहंशाहपुर के उतराधिकारी का चुनाव चल रहा है एक महीने से ज्यादा का समय हो चुका है पर विजेता का नाम न घोषित होने के कारण मैं भी अपनी किस्मत आजमाने आया हूँ | कृपया आप मुझे यहाँ से नगर का रास्ता बताने का कष्ट करें |राज़ा ने उसको मार्ग दिखाया और साथ साथ चलने लगा | थोड़ी ही दूर पर वे रुक गए ये इलाका नगर के मुख्य द्वार के पास का ही था आश्चर्य की बात थी सभी उमीदवार अपने अपने कामों में लगे हुए थे | पर उनके चेहरे से उस नाविक ने पूरा माजरा भांप लिया कि ये सद्गुणों की खेती बंजर ज़मीन में है या उपजाऊ जमीन में और बोला महाशय प्रतीत होता है कि यहाँ का राज़ा शहंशाह मूर्ख है या यहाँ के युवा अति बुद्धिमान |

काफी समय बीत जाने के बाद भी असफलता हाथ आने के कारण और उसकी उतेज़क कथन के कारण ही राज़ा शहंशाह बोल पड़ा हाँ मैं ही इस प्रांत का राज़ा हूँ; होश में रहकर बात करो ! गुस्ताखी मांफ हो!! शहंशाह मुझे क्षमा करें मेरा यह तात्पर्य नहीं था मुझे बस एक अवसर दें अपनी योग्यता साबित करने का राज़ा वैसे ही थोड़ा निराश था इस व्यक्ति ने उसे कुछ प्रभावित किया था उसने कहा यहाँ मेरी प्रांत की एक तबके की दुखी परेशान जनता को कुछ नौजवान सहायता , कर रहे हैं अपने अपने तरीके से |तुम तो अभी आये हो बदहाल से दिखते हो? तुम क्या तय कर पाओगे ? फिर कुछ सोचकर बोला - ठीक है

साबित करो यदि तूने साबित कर दिया कि तू इस नगर के सभी नौजवान उमीदवारों से श्रेष्ठ है तो मैं तुम्हें अपना उतराधिकारी घोषित कर दूंगा पर न कर सके तो ज़िन्दगी भर गुलामों का जीवन जीना पड़ेगा|

वह तो पहले से ही तैयार था शर्त मंज़ूर है कहते ही उसने सभी उमीदवारों को बुलाकर पूछा- भाइयों !! मेरी बदहाल हालत और मुझे देख कर अंदाज़ लगा सकते हो कि मैं किसी समस्या से जूझ के आ रहा हूँ!! सभी ने सहमती में सर हिला दिया | राजा ने उसी वक़त पूछा ऐसा क्या हुआ तुम्हारे साथ – वह बोला राजन! “मौसम की बेईमानी है एक औरत की ज़िन्दगी बचानी है ‘ फिलहाल यही कहानी है “

पूछने पर स्पष्ट किया कि यहाँ से २० मील दूर एक औरत खतरनाक तूफ़ान में फंसी है किसी तरह मैंने उसे बचाने की कोशिश की पर सफल न हो सका एक तो मेरी नाव भी छोटी है दूजा अकेले मैं नाव से उतरकर यदि उसे बचाता तो मेरी नाव भी बह जाती|

मुझे ज्ञात है कि यहाँ सुनहरी धूप निकली है पर वहां तो बवंडर और तूफ़ान आ रखा है , यदि कोई उमीदवार मेरे साथ चल उसे बचाना चाहे तो चल सकता है , राजन ने पूछा तुम्हारी बात का मैं कैसे यकीन कर लूं और भी लोगों ने राजन की हाँ में हाँ मिलाई !

उसने एक ही उत्तर दिया राजन !! ये तो विश्वास की बात है मेरी फटेहाल और हालत देख कर भी आप विश्वास नहीं कर पा रहे हैं और यहाँ तो ज़िंदगी का सवाल है तो आप खुद बताएं इन उमीदवारों पर आप कैसे भरोसा कर रहे हैं एक महीने से हो सकता है कि ये भी उपरी दिखावा कर रहे हों अन्दर कपटी तूफ़ान समेट रखा हो और यदि मेरा ऐसा सोचना गलत है तो इनमें से कोई एक भी उम्मीदवार मेरे साथ चलने को तैयार हो जाए | कोई भी उम्मीदवार आगे न आया| आता भी कैसे जान का खतरा जो था तूफ़ान में | सब पीछे हट गए तुरंत |

उसकी इस बेबाकी और हाज़िरजवाबी से राज़ा शहंशाह बहुत प्रसन्न हुआ | अपनी जान खतरे में डाल कर दूसरों की जान बचाने की बात सोचनेवाला वाला ही सच्चा पात्र हो सकता है| नाविक वही पात्र साबित हुआ | ये उसके मन की ही बातें थी जो नाविक ने रख दी थी और उसने उस नाविक को ही अपना उतराधिकारी घोषित कर दिया | अंत में लज्जावश ही सही सभी उमीदवारों ने पूछा ! क्या वास्तव में वह औरत तूफ़ान में फंसी है?

वह नाविक जवाब देता इसके पहले राजा शहंशाह ने टका सा उत्तर प्रश्न में ही दे दिया क्या तुम लोगों की राजगद्दी के लिए इतने दिनों की मेहनत सच्ची है?? और सभी उमीदवारों का मुहं देखनेवाला था,सभी की पोल खुल चुकी थी | नाविक नहीं चाहता था कि सबका भविष्य खराब हो जाए इसलिए राजा से प्रार्थना करके उनकी सजा माफ़ करवा दी और शपथ दिलवाई कि नेकदिली का ढोंग वे छोड़ देंगे ताकि लोग नेकदिल वालों पर हमेशा भरोसा कायम रखें | इधर सब उम्मीदवार अपने अपने रास्ते जा रहे थे और उधर नए उतराधिकारी की ताजपोशी की तैयारी चल रही थी लेकिन वह तो अपनी बीमार बूढ़ी माँ की चिंता कर रहा था जो वास्तव में ज़िंदगी के तूफ़ान और मौत के बवंडर से कई दिनों से लड़ रही थी | और जिसके कहने पर ही वह यहाँ आया था |आज वह उसके ठीक होने की दुआ कर रहा था पर उसकी दुआओं से ही उसने ज़िन्दगी के मुकाम को पा लिया था |