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गीदड़

- -परिप्रेक्ष्य / स्वीकृति --

‘प्रस्तुत कहानी में चित्रित किये गए सभी दृश्य , घटनाएं ,पात्र, कहानी का शीर्षक,सभी काल्पनिक हैं इनका किसी क्षेत्र विशेष में घटी सजीव घटना से कोई सरोकार नहीं है यदि इन घटनाओं, पात्रों ,दृश्यों का किसी सजीव घटना से सम्बन्ध पाया जाता है तो ये महज संयोग मात्र होगा| इसमें लेखक का कोई उत्तरदायित्व नहीं होगा | कहानी की विषय वस्तु, संवाद ,आदि लेखक के स्वतंत्र विचार हैं|


‘गीदड़’

प्राचीनकाल में बहुत समय पहले की बात है एक जंगल में सब जानवर बड़ी ही सुख शान्ति से रहा करते थे फिर चाहे जंगल के राजा शेर की बात हो या चतुर लोमड़ी की | कोई किसी को बेवजह तंग या परेशान नहीं करता था लेकिन गीदड़ को ये बात बर्दाश्त नहीं होती थी जब जंगल के सभी लोग उसे चिढ़ाते थे कि तुम इतने डरपोक क्यूँ हो तुम्हे क्या जंगल क्या शहर सब लोग जानते हैं कि गीदड़ को बहुत डर लगता है यहाँ तक कि शहर के लोगों ने तो तुम्हारे ऊपर ‘गीदड़ धमकी’ तक बना डाली | जब भी कोई किसी को डराने की कोशिश करता है तो तुम्हे नीचे रखकर ही लोग अपने को उंचा या बहादुर रखते हैं | गीदड़ बहुत तर्राया इस बात पर और भाग गया वहां से सब जानवर फिर से हंसने लगे | और अपने काम में मशरूफ हो गए |

गीदड़ मन ही मन बहुत दुखी हुआ और भागता चला गया जंगल में काफी दूर तक जब थक कर एक पेड़ के नीचे बैठा तो रोने लगा तभी उसे एक साधू महाराज वहां से जाते हुए दिखाई दिए | उन्होंने उसकी रोने की आवाज़ सुनी वहां जाकर उससे रोने का कारण पूछा –

गीदड़ ने पूरा किस्सा सुनाया और सिसकने लगा | महात्मन ने कहा – रोने से इस दुनिया में कुछ नहीं मिलता तुम चाहो तो मैं तुम्हे एक मार्ग दिखा सकता हूँ लेकिन तुम्हारी सफलता या असफलता इस बात पर निर्भर करती है कि तुम कितनी तन्मयता से वनराज की तपस्या करोगे | अगर वो प्रसन्न हो गए तो तुम्हे जो उचित लगे वो वरदान मांग लेना ये कहकर वह अंतर्ध्यान हो गए | गीदड़ इधर उधर देखता रह गया उसे लग रहा था जैसे वह कोई सपना देख कर उठा हो| उसे महसूस हुआ कि ये कोई सपना नहीं है बल्कि सच्चाई है ,उसने मन में ठान ली कि अब वो भी अपनी किस्मत अपने हाथ से खुद लिखेगा और साथ ही अपने और अपने पूर्वजों के ऊपर लगे हुए कलंक ‘डरपोक’ को दूर करके ही रहेगा |

जहाँ गीदड़ बैठा था ये स्थान काफी दूर था जंगल से यहाँ कोई आता जाता भी नहीं था तो ये बात किसी को भी पता नहीं लग पाई कि गीदड़ उस दिन के बाद से कहाँ गायब हो गया ?

गीदड़ ने पूरे तन- मन- धन से उसी स्थान पर आसन जमा कर वनराज का ध्यान करना शुरु कर दिया कई दिन बीते कई राते बीत गईं पानी बरसा ,कड़क धूप निकली बिजली कड़की , लेकिन मजाल थी कि गीदड़ महाराज जरा सा भी टस से मस हुए हों इतने दिनों में वे चट्टान तो बन ही गए थे | वनराज उनकी ये भक्ति देखकर बहुत प्रसन्न हुए और प्रकट हुए उसी पेड़ से जहाँ गीदड़ जी समाधि लगाए हुए थे |

सामने वनराज को देखकर गीदड़ बहुत प्रसन्न हुआ वनराज ने उससे कहा कि वह उसकी दृढ तपस्या से वह बहुत प्रसन्न हैं वो जो मांगना चाहता है मांग सकता है | गीदड़ का मन बल्लियों उछलने लगा मारे ख़ुशी के पागल सा हो गया उसे यकीन नहीं हो रहा था कि महात्मा की बात सच हो जायेगी |

फ़ौरन अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाने शुरु कर दिए वनराज ने पूछा क्या परेशानी है तुम्हे खुल के बताओ !! जो मंगना चाहते हो मांगो ! गीदड़ ने मन में सोचा जंगल का राजा शेर होता है उसकी तो केवल एक दहाड़ से ही पूरा जंगल काप उठता है बोला मुझे शेर जैसी दहाड़ दे दीजिये | वनराज बोले अगर तुम्हे किसी ने देख लिया इस रूप में शेर की दहाड़ निकालते हुए तो पकड़े जाओगे फिर सोच कर बोला शेर जैसी खाल और फिर आगे तपाक से बोला हाँ उसके जैसा डील डौल भी दे दीजिये | ताकि मुझे कोई पहचान न पाए वनराज ने कहा एक बार और सोच लो कहीं पलट न जाना फिर एक बार में जो माँगना है मांग लो मैं दुबारा नहीं आऊंगा तुम्हारे बुलाने पर भी |

गीदड़ बोला नहीं-नहीं, मैंने सोच लिया है , आप! जो मैंने कहा है उतना ही दे दीजिये | वनराज तथास्तु!! कह कर गायब हो गए | और गीदड़ अब शेर की खाल में बदल गया और वैसे ही डील डौल में भी दिखने लगा | ख़ुशी के मारे नाचने लगा और इतना खुश हुआ इतनी जोर से भागने लगा एक जंगल से दूसरे दूसरे से तीसरे और तीसरे से चौथे, बीच बीच में दहाड़ता भी जाता | हर जंगल के सब जानवर डर के भागने लगते उन्हें लगता शेर आ गया है, शिकार का पीछा करने निकला है , भागते-भागते दुबारा वो अपने ही जंगल में पंहुचा और जानबूझकर तेज़ी से दहाड़ मारने लगा | सब जंगल के जानवर चौंक गए क्यूंकि शेर को उन्होंने अपनी आँखों से माँद में जाता देखा था | सबको ये बात पता थी कि उनके जंगल में दूसरे जंगल के शेर का आना तो दूर, दहाड़ना तो बहुत दूर की बात है,

सबने शेर से विनती की कि वो बाहर आये , शेर बाहर आया तो सबने बताया कि अभी-अभी उन्होंने एक शेर की बहुत तेज़ दहाड़ सुनी है | शेर पहले तो गुर्राया और फिर बोला किसकी इतनी जुर्ररत कि इस जंगल की तरफ आँख उठाकर के भी देखे कौन है ये? तभी गीदड़ भाई ! फिर से दहाड़ दिए नया-नया अवतार मिला था, चुप कहाँ से रह सकते थे | उनका पूरा शरीर हिल के रह गया था, उछलते-उछलते घूम रहे थे | सभी जानवर सोच रहे थे तभी सबका ध्यान गीदड़ की तरफ गया आज वह गायब था सभी जानवरों में जबकि वह तो सबसे बड़ा डरपोक था ये सभी जानते थे तो कायदे से उसको आज सबसे पहले डर के मारे यहाँ होना चाहिए था तभी लोमड़ी और सारे जानवरों ने कहा कि वह तो कई दिनों से दिखाई भी नहीं पड़ा ! तभी एक जानवर ने आकर सूचना दी कि उसने कई कोस दूर एक जंगल में एक गीदड़ को रोते हुए देखा था और वापस आते समय उसे एक पेड़ के नीचे तपस्या करते देखा था हे!!!! वनराज मुझे शेर जैसा बन दो | यही रटता जा रह था | शेर बोला - तो तुम्हारा कहने का मतलब है कि गीदड़ शेर बन गया तपस्या करके!! वह बोला ये मेरा एक अनुमान है | शेर महाराज!! आपसे डर लगता था आज जब सब जानवर ने विनती करके आपको बुलाया तो मैंने सोचा ये बात आपसे कह दूं !!

गीदड़ आड़ में होकर ये सब सुन रह था | वह यही सोच रह था कि कैसे इतनी दूर किसी जानवर ने उसे देख लिया तपस्या करते?

सबने गीदड़ को ढूढ़ना शुरु किया पूरा जंगल छान मारा गया सब जगह जहाँ मिलने की उम्मीद थी वहां देख लिया गया कहीं पर भी गीदड़ दिखाई न दिया| मामला हमारे महाराज की इज्ज़त का है| शक की बुनियाद पर ही सही हम उस शेर बने गीदड़ को सबक सिखायेंगे और अब तो हमारे शेर महाराज भी हमारे साथ हैं उस शेर का खात्मा करने के लिए | किसी ने फिर से आवाज़ की- नहीं गीदड़ वाले शेर का खत्मा!

चलो मिल कर पकड़ते हैं उस शेर को | गीदड़ ये सब सुनकर भागने का प्लान बनाने लगा उसे लगा कि सब जानवर साथ आ जायेंगे अगर वो मुकाबला न कर पाया या फिर हार गया या घायल हो गया तो मर भी सकता है , तो सबसे पहले अपनी जान बचानी चाहिए| ये सोचकर वह भागने लगा तेज़ी से, भागते-भागते उसे अचानक याद आया अरे! जैसे लोग ये जानते थे कि गीदड़ डरपोक होता है वैसे ही सब लोग ये भी जानते होंगे जब गीदड़ की मौत आती है तो वह शहर की ओर भागने लगता है ! ये बात भी सभी जानवरों को मालूम होगी इसलिए अगर वह शहर की ओर गया तो भी पकड़ा ही जाएगा| इसलिए अपनी अक्ल लगाकर एक कोने में झाड़ी के किनारे वह छिप गया ताकि उसे कोई पकड़ न सके !

सब जानवर जो उसे ढूँढ रहे थे बोले कि गीदड़ ने हो सकता है कि हमारी सारी बातें सुन ली हों तो वह शहर की ओर भाग गया हो अपनी मौत की बात सुनकर | तभी चालाक लोमड़ी बोली नहीं जब उसे ये बात भी पता थी लोग उसे डरपोक समझते हैं चाहे जंगल के हों या बाहर शहर के हों तो वह ये बात भी जानता ही होगा अगर शहर गया तो हम लोग उसे वहां आसानी से पकड़ लेंगे | लोमड़ी बुद्धि यहाँ तेज़ी से और सही काम कर गयी काफी देर तलाश के बाद जब गीदड़ भाई को नींद आ गयी तो वह भूल गए कि वह झाड़ी में छुपे बैठे हैं और खर्राटे भरते हुए पकड़ लिए गए | और शेर के सामने लाये गए तो मारे डर के पसीने छुटने लगे बोल कुछ पाते इसके पहले ही शेर ने उन्हें मार डाला | और सबको एक सीख दे दी कि शेर से पंगा लेने का अंजाम क्या होता है !!! मरते-मरते एक ही बात का अफ़सोस कर रहे थे कि शक्ल से तो शेर बन गए पर अक्ल से गीदड़ ही बने रहे | इसी का अंजाम वो आज जान से हाथ धोकर भुगत गए थे |||

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