दिल से दिल तक - २
अगर तुम मेरे पास होती
आज अगर तुम मेरे पास होती ,
फिर खूब हमारी बात होती ,
कुछ तुम कहती कुछ मैं कहता ,
कुछ तुम सुनती कुछ मैं सुनता ,
आज अगर तुम मेरे पास होती ,
मैं देखता तुम्हारे नूर से,
भरे हुए चहेरे को,
मैं छूता तुम्हारे शरबती आँखों को ,
आज अगर तुम मेरे पास होती ,
मैं खेलता तुम्हारे रेशमी जुल्फों से,
जो बार बार आती है,
तुम्हारी आँखों पर,
आज अगर तुम मेरे पास होती ,
मैं भूल कर ये जहा,
खो जाता तेरी बाँहो के आगोश में,
आज अगर तुम मेरे पास होती ,
तो सुनता एक टक ,
तेरी हर शिकायत को ,
क्योंकि तेरे पुष्प जैसे,
होंठो से निकला हुआ ,
हर अल्फाज लगता है,
मुझे मधुर सा गान,
है मुझे अफसोस केवल इस बात का ,
कि बिन बताये दूर मुझ से हो गई,
मैं जान भी न पाया कि ,
ख़ता मुझसे क्या हुई,
मैं कर रहा था हर क्षण इंतजार तेरा ,
और सोच रहा था यही कि ..
आज अगर तुम मेरे पास होती ,
फिर खूब हमारी बात होती ,
कुछ तुम कहती कुछ मैं कहता ,
कुछ तुम सुनती कुछ मैं सुनता ,
आज अगर तुम मेरे पास होती ।।
मैं जानता हूँ
मैं जानता हूँ कि,
तुम सांस हो मेरी ,
याद हो मेरी एहसास हो मेरी ,
हर घड़ी साथ हो मेरे,
दूर हो पर पास मेरे।
जिन्दगी का सुनहरा एहसास हो तुम,
मैं जानता हूँ,
लोग कहते है ,
करती है वो कत्ले आम ,
हुसन-ए-दीदार से ,
पर मैं जानता हूँ।
हर वक्त यादों में तुमकों बसाया,
दिल में तुमकों ही चुराया ,
हो सकता है कि ,
जानती न हो तुम एहसास मेरा,
पर मैं जानता हूँ।
व्यर्थ था वो वक्त मेरा ,
जिसमें तुम्हारी यादें न थी,
तुम पास हो मेरे या दूर प्यारी ,
हर समय करीब हो,
हर समय नजदीक हो,
इसलिए कहता हूँ,
मैं जानता हूँ।।
एक अलग एहसास उनका
एक अलग एहसास उनका ,
हर शब्द है खास उनका,
साथ उनका है मधुर ,
न कोई उनके जैसा,
न वे किसी से है मिलती ,
वक्त को भी वक्त का पता चलता नही,
जब साथ उनका है मिलता ,
पल बहुत अनमोल से,
बना देती है वो,
बस अपने एक अल्फाज़ से,
पर बोलना फितरत है उनकी,
एक अलग एहसास उनका,
हर शब्द है खास उनका ,
शब्द है कम मेरे, तारीफ में उनकी,
है शक्सीयत ऐसी बताने को बहुत कुछ ,
पर जानता मैं भी नही,
कण-२ प्रफुल्लित कर दिया,
वाणी में ऐसा तेज उनके ,
जिन्दगी जीने का ढ़ग,
आज मैंने उनसे सीखा,
इसलिए कहता हूँ......
एक अलग एहसास उनका ,
हर शब्द है खास उनका।।
तुम कौन हो
मैं जानता नहीं कि तुम हो कौन,
पर इतना जरूर जानता हूँ,
कि तुम हो कोई जादूगर,
है इसका भी एक कारण ,
ज्यों झुकाकर पलकों को,
हुज़ूर उठाया आपने ,
दर्द-ए-दिल को ले गये,
सब रंजो-गम को मिटाया।
मैं जानता नहीं कि तुम हो कौन,
पर इतना जरूर जानता हूँ,
कि तुम हो कोई हुस्न-ए-परी,
है इसका भी एक कारण ,
हूँ इस संसार में जाने कब से मैं,
बहुत धूमा इधर- उधर ,
हर कस्बा और शहर ,
पर तेरे जैसा नही कोई,
इस हुस्न के बाजार में।
मैं जानता नहीं कि तुम हो कौन,
पर इतना जरूर जानता हूँ,
कि तुम हो एक कारण,
मुसाफिर कह रहा हूँ तुमकों,
समझ से कसक दिल की ,
तड़पता हूँ मैं मिलने को,
मुसाफिर नहीं तो क्या कहूँ बोलो।
मैं जानता नहीं कि तुम हो कौन ।।
क्या लिखूँ
एक दिन मैं था सोच रहा,
कि लिखूँ क्या इस कलम से,
मैंने पूछा उनसे कि ,
तुम ही बताओ कुछ अपने मन से,
वो झट से बोले कि ,
क्या कर सकते हो वर्णन मेरा ,
अपनी इन कविताओं में ,
मैं पड़ गया सोच में,
फिर लिखी कुछ लाइनें ,
तुम हो चंचल तितली सी,
तुम हो चंदन के पेड़ सी,
जिसपर बसते भुजंग अनेक है,
पर फिर भी निर्मल और सुगन्धित,
तन चमके जैसे सोना,
मन निर्मल है चाँदी सा,
चेहरा चमके जैसे चन्दा,
तुम हो उस पहली वर्षा जैसी,
जिसकी हर बूंद से तृप्ति आये,
मन को विचलित वो कर जाये,
इस पर तेरी सादगी का रंग ,
हर कमी को पूरा करता है,
है मधुर मुस्कान तेरी ,
और मधुर वाणी का गान ,
तुम हो पूरी तरह से गुणों की खान ,
शायद मैं हुआ सफल ,
अपने इस प्रयास में ,
एक दिन मैं सोच रहा था,
क्या लिखूँ इस कलम से ।।
तस्वीर
चंचलता की सूरत तू,
सुन्दरता की मूरत तू,
तन तेरा जैसे चन्दन है,
मन है निर्मल गंगा सा ।
तुम उपवन ,पनघट ,वन-वन हो,
तुम तितली प्यारी चंचल मन हो,
तुम आशा मेरी भाव शब्द हो,
तुम हो पुकार इस अंतरमन की,
मैं चाहूँ करना निर्मित तस्वीर तेरी ,
पर सोच रहा हूँ प्रियवर,
कि कैसे मिश्रत करके,
तस्वीर बनाऊँ मैं तेरी,
अब तो बस राह यही,
कि दिल में बसाऊँ मैं तुमको।
काश तुम मेरी होती..
याद मुझे वो दिन आते है ,
जब तुम थी साथ मेरे ,
संग-२ करते थे मस्ती हम ,
संग संग प्यार को बांटा था ,
कभी मिले जो गम कही तो,
उसको भी आधा कर डाला था।
याद मुझे वो दिन आते है,
जब बाते करते रात-रात भर ,
थका नही करते थे हम,
तुम बोलो कुछ भी गलत-सही ,
उल्टा या फिर कुछ भी सीधा ,
मान के उसको सच हम,
अपनी आँखों को मूँदा करते ।
याद मुझे वो दिन आते है...
जब मैं डरता इसी बात से ,
कि क्या तुम मेरी हो पाओगी?
डरता था मैं सदा इसी से ,
कि तुम मुझसे बिछड जाओगी।
डर मेरा हो गया हो सच,
तुम मुझ से दूर हुई यूँ,
कि शायद अब कभी भी,
मिल न पाऊँगा ,
अब तो इसी आशा में हूँ,
कि काश आज तुम मेरी होती।
आपकी रूसवाईयाँ
शायद हो गयी ख़ता हम से ,
जो युं चेहरा घुमाकर खड़े हो ,
बात तक करते नहीं,
तुम नाराज ऐसे क्यों खडे हो ।
मैं जानता नहीं ख़ुस्ताखी मेरी ,
हुज़ूर कम से कम इतना तो फरमाइयें ,
यूँ हमसे इस तरह ,
न बोलने की वजह तो बताइयें ,
मैं सह सकता हूँ इस ,
जमाने की रुसवाईयाँ हजार,
पर सह नही पाऊँगा,
अपकी खामोशी एक भी बार,
शायद हो गयी ख़ता हमसे..
आपकों शायद पता नहीं इस बात का ,
कि खास है आपका एहसास मेरे साथ का,
वैसे माफ कर दो तुम मुझे,
अगर हो गयी हो ख़ता ।
शायद हो गयी ख़ता हमसे।।
भ्रमित
कुछ भ्रमित सा हो गया हूँ,
मार्ग मे ही खो गया हूँ,
साथ मेरे भीड़ इतनी ,
पर अकेला में खड़ा हूँ।
दूर तक न कोई,
साथी-संगी मेरा आज है,
देखता हूँ भिन्न प्राणी ,
रोज इस संसार में ,
कोई किसी को प्यार करता ,
कोई किसी से प्यार करता ,
एक बार मुझको भी हुआ,
भ्रम प्यार-ए-दीदार,
तब से भ्रमित सा होगा,
मार्ग में ही खो गया हूँ।
हर शक्स तुम सा ही दिखे पर ,
पर उनमें तुम न थी,
हुसन-ए-दीदार आप का ,
इसलिए कलम से कहता हूँ,
कुछ भ्रमित सा हो गया हूँ।।
याद आती है
हर घड़ी में तुम्हारी याद आती है,
हर कड़ी में तुम्हारी याद आती है ,
हर पहलू में तुम ही रहती हो,
हर अल्फाज में हर आवाज में,
बस तुम्हारी याद आती है।
मेरा हर शब्द ,
बयां करता है यादों को तेरी ,
मेरी यादों के हर गलियारों में,
मेरे ख्वाबों के हर अशियानों में,
बस तुम्हारी याद रहती है।
मैं सोता हूँ तो यादें हैं,
मैं जगता हूँ तो यादें है,
हर उपमा में तुम्हारी यादें है,
हर रस में अभिव्यक्ति तुम्हारी,
इसलिए बस तुम्हारी याद आती है।।
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