माँ
माँ शब्द पहला है जिसे,
जिसे जानता है कोई,
उसे मानता है कोई,
माँ स्वर्ग जीवन को बनाती,
वो हमे चलना सिखाती,
अपनी उंगली ह्मे पकडाती,
हर दर्द से हमे बचाती,
खुद न खाकर हमे पेट भर खिलाती,
थपकी दे-2 कर रात मे सुलाती,
खुद न खाती पर...............
हमे खिलाती,
चाहे सालभर रहे वो फटी साड़ी में,
पर हमे हर त्योहार नये कपडे दिलाती,
हर फर्ज़ को करते हुए पूरे,
कर देती वो बडा हमे,
पर...........
भूल जाते हम होकर बडे,
उस माँ को ही जिसने,
हमे इस काबिल बनाया,
वो तब भी भूखी सोती थी,
और अब भी भूखी ही सोती है,
हर फर्ज निभाकर भी कुछ न पाती,
बस आशाओ पर ही जीवन बिताती,
पर माँ तो आखिर माँ है........
पापा
कोई पापा, कोई डैडी,
कोई अब्बू बुलाता है,
धरती पर ये फरिसता,
कई नामों से जाना जाता है।
लोग कहते है माँ को जननी,
पर उस माँ को ये,
सौभाग्य यही दिलाता हैं।
हम डरते है किसी भी चीज़ से,
तो माँ के आँचल में छिप जाते है।
पर जैसे ही पापा की गोद को पाते है,
हम खुद में शेर बन जाते हैं।।
चाहे लाख करें शैतानियाँ हम,
पर पापा के लिए हम,
लाडले ही कहलाते हैं।
पर दुखता है दिल बड़ा,
जब वो हमें छोड़ चले जाते हैं,
न जाने कैसे अकेले रह पाते हैं।।
कटते तो दिन यहाँ,
पर मेरे भी नहीं,
लोग हजारों बाते सुनाते हैं,
आप की बहुत याद दिलाते हैं।।
पर पापा ............
जब भी करते है आँखे बन्द,
हर दम साथ आपकों पाते है।
साथ आपकों पाते हैं।।
अध्यापक
ये नाम उस दीपक का है,
जो जलकर स्वयं प्रकाशित कर रहा,
जो जीवन में ज्ञान का ईंधन भर रहा,
वो कर रहा निर्माण,
एक उज्जवल शिक्षित सा भविष्य,
है नही कोई भी ऐसा,
जो हो अपरिचित इस शब्द से,
वो है स्तम्भ जीवन रूपी बाँध का,
उसे कहते है सब अध्यापक इस समाज का।।
जिस तरह बन सकता नहीं,
सेतु रेत का समुद्र पर,
उसी प्रकार सम्पूर्ण हो सकता नहीं,
अध्यापक बिन ज्ञान जीवन आधार का।
है प्राप्त दर्जा भगवान का,
धरती पर अध्यापक को,
क्योंकि वो ही सिखाते है,
अर्थ इस प्राप्ति जीवन का,
कुछ लोग कहते है कुम्हार,
कुछ लोग भाग्य का विधाता,
है प्राप्त उनकों उपमायें अनेक,
पर मान बिल्कुल भी नहीं,
हम करते है पूजन उल निर्माता का,
उस भाग्य के विधाता का।।
दोस्त –एक अनमोल कड़ी
दोस्त जीवन की कड़ी अनमोल लगती है मुझे,
प्यार की एक डोर लगती है मुझे,
जन्म से इस शब्द ने साथ मेरा है दिया,
वो माता पिता या यार सबने है किया।
दोस्त जिनके है नही,
पूछो उनको भी व्यथा,
क्या वो ले रहे है,
जिन्दगी का इतना भी मज़ा।
हर खुशी या गम में,
कोई साथ हो या न हो,
स्वीकार कर लेते है यार मेरे,
और कहते तु जैसा है सही है।
यार अपना बस तु ही है,
यह वाक्य सुनकर सोचता हूँ,
दोस्त जीवन की सच्ची व्यथा है ।
काम अच्छा हो बुरा हो,
हो गलत या फिर सही,
साथ मेरे वे रहे और सदा ही रहेंगे,
इसलिए यह वाक्य एक दम ही सही है।
दोस्त जीवन की कड़ी,
अनमोल लगती है मुझे,
रूढ़ जाये दोस्त जिन्दगी में,
उसको मनाने में देर,
तनिक सा भी न कर,
साथ छोड़ना है सरल,
पर दोबारा मिलना नही,
अब और क्या लिखें,
यह शब्द ही काफी है,
क्योकि है बहुत ही कठिन बयां करना,
इस दोस्त शब्द को,
कम भी पड़ जाये शायद,
शब्द का भण्डार मेरा,
पर कर ना पाऊँगा,
बयां इसको इस तरह,
इसलिए अब दे दिया विराम,
इस लेखनी को .......
बस समझ लो कि,
इतना सभालो इस कड़ी को,
टूट न जाए ये कभी,
प्यार से ज्यादा यार होता है करीब,
इसलिए दोस्त जीवन की कड़ी।
अनमोल लगती है मुझे।।
शिक्षित महिला – विकसित समाज
एक महिला ही जो समाज बनाये,
उसका वो आधार दिखाये,
सब है ये बात जानते,
फिर भी वो महिला को न पहचानते,
वो हर पल है उसको तड़पाते,
पल पल उसको नीचा दिखाते,
महिला जीवन कठिनाई से भरा,
चाहे हो कोई भी प्रारुप,
माँ हो,बेटी,बहू या बहन किसी की,
हो वो चाहे साथी या संगिनी,
उसको देनी पडती परीक्षा अनेक,
वो सहती है कष्ट अनेक,
पर अपना कर्तव्य निभाये,
पता नही क्यों वो समझ न पाये,
स्त्री का अस्तित्व मिटाये,
वो भूल रहे है प्राणी मूर्ख,
कि महिला है जीवन का स्वरुप,
जिस दिन वे नही रहेंगी,
न रहेगा ये जीवन का चक्र,
इसलिए अपना द्रष्टिकोण बदल लो,
महिला का स्वरुप समझ लो,
उसको शिक्षित इतना बनाये,
कि वो भी गर्व से शीश उठाये,
और जगनिर्माण मे योगदान बढाये,
न करो रुसवा उनको इस जग मे,
वरना भुगतना पडेगा ऐसा स्राप,
जिसका नही कोई पश्चाताप,
इसलिए अभी समय है सुधर जाओ ।
महिला का सम्मान बढाओ और
एक विकसित समाज के भागीदार कहलाओ॥
जब मैं लायक हो जाऊँगी
एक दिल जब मैं,
इस लायक हो जाऊँगी,
इस घर से चली जाऊँगी,
लौटकर फिर कभी ना आ पाऊँगी।
एक दिन जब मैं,
इस लायक हो जाऊँगी,
इस घर से चली जाऊँगी,
माँ-पापा ने किया है जो पालन पोषण,
और दिया जो प्यार,
इस प्यार को कैसे भूलाऊँगी।
एक दिन जब मैं,
इस लायक हो जाऊँगी,
इस घर से चली जाऊँगी,
भईया ने जो कि मेरी रक्षा,
और पढ़ाया मुझको पाठ,
इस उपकार को मैं कैसे भुलाऊँगी।
एक दिन जब मैं,
इस लायक हो जाऊँगी,
इस घर से चली जाऊँगी,
बहना ने जो साथ निभाया और,
बिताए उसके साथ मीठे पल,
उन पलों को कैसे भुलाऊँगी।
एक दिन जब मैं,
इस लायक हो जाऊँगी,
इस घर से चली जाऊँगी,
दोस्तो के संग बाँटी हर बात,
और उनसे किये कई मजाक,
उन दोस्तों को मैं कैसे भुला पाऊँगी।
एक दिन जब मैं,
इस लायक हो जाऊँगी।
इस घर से चली जाऊँगी।।
पिता का स्वप्न
एक दिन ऐसा आयेगा,
जब तुम हम से जुदा हो जाओगी,
करके व्याह तुम एक दिन,
पराये घर चली जाओगी,
हाँ माना कि ये जमाने का दस्तूर है,
पर इतनी जल्दी अकेला रहना,
मैं न सीख पाऊँगा।
बहुत याद आयेगी वो,
बचपन में किये हुए लाड़,
हर सैतानी पर मम्मी की डाट,
बहुत याद आयेगी हमकों,
तुम्हारी वो जिद्दी ख्वाहिशे,
जिसे पूरा करके मैं पाता था खुशी।
पर एक दिन ऐसा आयेगा,
जब तुम हम से जुदा हो जाओगी,
वैसे मेरी भी ये ख्वाहिस थी,
कि तुमको मुझसे भी ज्यादा कोई प्यार दे,
आज वो दिन भी आ गया,
अब लगता है बीते दिन कितने जल्दी,
तुम थी छोटी बच्ची,
अब बहुत बडी हो गयी,
सोचता हुँ तुमको कैसे भुला पाऊँगा,
मैं अकेला कैसे जी पाऊँगा।
पर बेटी तु अपने घर जा,
अब वही तेरा संसार है,
जब याद तेरी सतायेगी,
थोडा-सा मैं रो लूगाँ,
तेरी तस्वीर से बातें कर लूगाँ,
है यही कामना और आर्शीवाद मेरा,
तुझको न कोई कष्ट मिले।
जा बेटी तु घर अपने,
क्योकि एक दिन ऐसा आयेगा,
जब तुम हम से जुदा हो जाओगी।।
पत्र- एक फौजी का
देखा था एक स्वप्न सोते हुए कल,
रात मे आँखों से रोते हुए कल,
एक ख़त भी था हाथों में मेरे,
शायद आया था वो घर से मेरे,
पढ़ना शुरू किया जब ख़त को मैंने,
पहली पंक्ति थी मेरे माँ की,
पुछा था उसने सलामती मेरी,
और भेजा था अपने आँचल की छाया।
दूसरी पंक्ति थी मेरे प्रिय की,
जिसने पूछा था संदेशा,
मेरे आने का, अपने सीने से लगाने का।
तीसरी पंक्ति थी मेरे बच्चे की,
पूछा था उसने की कब आओगें,
मुझे कंधे पर बैठाओगें,
और पूरा गाँव घूमाओ गें।
चौथी पंक्ति थी मेरे बहना की,
बोला है उसने की भईया,
कर रही है इंताजार राखी तेरे बहना की।
पाँचवी पंक्ति थी मेरे गाँव की,
वो कह रही थी लड़ना बेटा पूरी इबाद्त से।
और अंतिम पंक्ति ने तो रुला दिया,
आँखों में पांनी मिला दिया,
सब ने मुझ से ये कहा,
कि करते हुए रक्षा जो अपने माँ की,
होना पड़े तुझे शहीद,
न जरा भी पीछे हटना तू,
बस एक बार याद कर लेना हमको,
होगा हमे गर्व बहुत,
जब कहलाऊगीं मै माँ शहीद की...
देखा था एक स्वप्न सोते हुए कल।
रात मे आँखों से रोते हुए कल॥
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