ये क्या मज़ाक़ है?
क़ैस जौनपुरी
हुआ ये कि दोनों एक साथ कॉलेज के बरामदे में घूम रहे थे. फूलदार शर्ट, सफ़ेद पैंट. भूरे रंग का चमकता हुआ जूता. आँखों पे व्हाईट फ्रेम के साथ काले रंग का चश्मा. कैंपस में ढेर सारे लड़के-लड़कियाँ दिख रहे हैं. और ये दोनों मस्ती में झूमते हुए और गुनगुनाते हुए आ रहे थे.
आयो सैंया हमार चश्मा पहिन के
देखे हमको बार-बार चश्मा पहिन के
आयो सैंया हमार चश्मा पहिन के
तभी सामने से एक ख़ूबसूरत लड़की ध्रुति, सफ़ेद और नारंगी रंग के बहुत ही ख़ूबसूरत सूट में आती हुई दिखती है. दोनों ने ध्रुति को आज पहली बार देखा था.
“भाई!”
“हाँ, भाई!”
“गाना चेंज!”
दोनों अपना चश्मा नाक पे लटका के ध्रुति को बड़ी-बड़ी आँखों से एक साथ देखते हैं. फिर दोनों एक नया गाना गुनगुनाते हैं.
मान तू मेरी बात
आजा तू मेरे साथ
प्यार करूँगा तुझे
मैं तो दिनों रात
तब तक ध्रुति उनसे कुछ ही दूरी तक आ जाती है. और इससे पहले कि वो इन दोनों को देखती, दोनों अलग-अलग बरामदे के दोनों तरफ़ कॉलम की आड़ में छुप जाते हैं. ध्रुति आगे निकल जाती है. दोनों के गुनगुनाने की आवाज़ धीमी पड़ जाती है. दोनों पलट के ध्रुति को जाते हुए देखते रह जाते हैं.
ध्रुति कॉलेज की सीढ़ियों पे बैठी है. कैंपस में ख़ूब चहल-पहल है. तभी ध्रुति के बगल में एक काग़ज़ का टुकड़ा आके गिरता है. ध्रुति उठाती है. उसमें कुछ लिखा है.
“ये ग़लत बात है.”
ध्रुति चौंक के इधर-उधर देखने लगती है. उसे कोई भी उसकी तरफ़ देखता हुआ नहीं दिखता है. ध्रुति वापस पढ़ने लगती है.
“घबराओ नहीं, अभी तुम्हारे सामने नहीं आऊँगा.”
ध्रुति मुस्कुरा के फिर से इधर-उधर देखने लगती है. पहले की ही तरह कोई भी उसकी तरफ़ देखता हुआ नहीं दिखता है. ध्रुति मुस्कुरा के आगे पढ़ने लगती है.
“इधर-उधर क्या देख रही हो? कहो तो सामने आ जाऊँ?”
ध्रुति घबरा के फिर से इधर-उधर देखने लगती है. इस बार भी कोई नहीं दिखता है. वो और आगे पढ़ती है.
“ऐसे नहीं. पहले आँख बन्द करो. और मुस्कुरा के कहो, आ जाओ, तब आऊँगा.”
ध्रुति हँस देती है. फिर अपनी आँख बन्द करती है और मुस्कुराते हुए कहती है.
“आ जाओ.…!!!”
ध्रुति आँख खोलती है. और सामने उसको खड़ा पाती है.
“अब बताओ, क्या ग़लत बात है?”
“आज कॉलेज में मेरा आख़िरी दिन है. और तुम आज पहली बार दिखी हो.”
“मैं क्या करूँ? आज मेरा पहला दिन है.”
“अब मुझे आवारों की तरह तुम्हारे आगे-पीछे घूमना पड़ेगा.”
“नहीं. तुम यहीं आना. हम यहीं मिलेंगे. हमेशा.”
ध्रुति से पहली मुलाक़ात अच्छी रही थी. उधर ध्रुति अपने बिस्तर पे लेटी है. उसका दिया हुआ काग़ज़ का टुकड़ा हाथ में लिए हुए मुस्कुराती है. फिर आँखें बन्द करके सो जाती है.
अगले दिन. ध्रुति कॉलेज की सीढ़ियों पे बैठी है. उसका इन्तज़ार कर रही है. वो कहीं दिखाई नहीं देता है. फिर ध्रुति आँख बन्द करके मुस्कुराते हुए कहती है.
“आ जाओ.....!!!”
ध्रुति आँख खोलती है. और सामने अपने मन की मुराद को खड़ा पाती है. दोनों मुस्कुराते हैं.
“बैठो….!!!”
वो ध्रुति के पास बैठ जाता है.
“बड़े अजीब हो तुम.…!!!”
“क्यूँ?”
“और नहीं तो क्या….एक ही मुलाक़ात में पटा लिया मुझे. मैंने तो सोचा था, जो भी होगा, पहले ख़ूब परेशान करूँगी, फिर ‘हाँ’ कहूँगी.”
वो मुस्कुराता है. ध्रुति उसकी आँखों में देखती है.
“तो अब कर लो.”
“क्या?”
“परेशान.”
“अब क्या फ़ाएदा! अब तुम परेशान थोड़े ही होओगे. अब तो तुम मुझे परेशान करोगे.”
“कैसे?”
“सपने में आके.”
ध्रुति शरमा के अपना मुँह दूसरी ओर कर लेती है.
“अच्छा….!!!! ज़रा इधर तो देखो.”
ध्रुति हँस देती है. वो भी हँस देता है.
“तुम्हें पता है? बहुत तेज़ हो तुम.”
“कैसे?”
“और नहीं तो क्या! एक ही दिन में सब कुछ कर लिया.”
वो ध्रुति के पास सरक आता है.
“क्या कर लिया?”
“अब देखो ना.…”
वो ध्रुति के चेहरे के पास आ जाता है.
“दिखाओ ना.”
ध्रुति उसका मुँह दूर हटा देती है.
“बात सुनो पहले.”
वो वापस ध्रुति के पास सरक आता है.
“कहो.”
“एक ही दिन में तुम मिले.”
“फिर?”
“फिर एक ही दिन में तुमने मुझे पटा भी लिया.”
वो ध्रुति के घुटनों पे अपनी कुहनी रखके और अपना हाथ अपने गाल पे रखके उसकी आँखों में देखता है.
“फिर?”
“फिर के बच्चे…!!! आँखों में मत देखो. और इतना पास आने की ज़रूरत नहीं है.”
ध्रुति उसका हाथ अपने घुटने से हटा के उसके हाथ में रख देती है.
“फिर कहाँ देखूँ?”
“बस, आँखों में मत देखो.”
“ठीक है.”
“और एक ही दिन में तुम सपने में भी आ गए.”
अब वो ध्रुति की आँखों को छोड़, बाकी सब हिस्सों को घूर के देखता है. उसकी नाक, उसके होंठ, उसकी गर्दन, उसका सीना. ध्रुति के सीने पे आके उसकी नज़र रुक जाती है. वो एक गहरी साँस लेता है.
“फिर क्या हुआ?”
“फिर कुछ नहीं हुआ. अब तुम जाओ.”
“बहुत बड़े हैं!”
“स्टूपिड हो तुम. एक शरीफ लड़की को इस तरह देखते हैं?”
ध्रुति जाने के लिए खड़ी हो जाती है.
“फिर किस तरह....?”
वो भी खड़ा हो जाता है. ध्रुति उसके चेहरे के पास आ जाती है और उसके होंठों पे एक प्यारा सा और देर तक चलने वाला ‘किस्स’ करती है.
“इस तरह.… समझे बुद्धू!”
ध्रुति हँसते हुए चली जाती है. वो मुस्कुराते हुए उसे जाते हुए देखता है. और अपने होंठों पे अपनी उँगली फिराता है. और इसी तरह दिन बीतते रहते हैं.
आज ध्रुति के माँ-बाप उसके घर शादी की बात करने आए हैं. ध्रुति भी आई है. फिर इधर-उधर की बातों के बाद, ध्रुति के पिताजी असली बात पे आते हैं.
“मेरे ख़याल से अब जब सब बात हो ही चुकी है तो अब लड़के को बुला लेते हैं.”
ध्रुति शरमा के उसके आने की राह देख रही है. लड़के की माँ उठती है.
“जी, मैं अभी बुला के लाती हूँ.”
माँ अन्दर जाती है और वापस आकर बैठ जाती है. थोड़ी देर के बाद अभिन्य और अभिनय एक साथ बाहर आते हैं. ध्रुति चौंक के खड़ी हो जाती है. सब लोग हैरान हो जाते हैं. ध्रुति गुस्से में बोलती है.
“ये क्या मज़ाक़ है?”
“मैं अभिन्य…”
“मैं अभिनय…”
“तुम दोनों में से वो कौन है, जिसे मैं जानती हूँ?”
“हम दोनों हैं.”
ध्रुति अपना सिर पकड़ लेती है.
“देखा तुमने मुझे पहले था.”
“किस्स तुमने पहले मुझे किया था.”
तीनों के माँ-बाप शरमा जाते हैं. ध्रुति चुप हो जाती है. उन दोनों के पिताजी बीच में बात सँभालने की कोशिश करते हैं और ध्रुति को बताते हैं कि, “अभिन्य और अभिनय, दोनों जुडुवाँ पैदा हुए हैं. और अपनी पैदाइश से ही दोनों कुछ ख़ास चीज़ें लेके पैदा हुए हैं. दोनों एक जैसा महसूस करते हैं. एक ही चीज़ को पसन्द करते हैं और एक ही चीज़ को ना-पसन्द. उन्हें एक ही वक़्त पे भूख़ लगती है. एक ही खाना पसन्द करते हैं. एक ही थाली में खाते भी हैं. मज़े की बात ये है कि दोनों एक साथ ही बीमार भी पड़ते हैं. और दोनों एक ही दवा से ठीक भी होते हैं. और हाँ, दोनों एक ही साथ ठीक भी होते हैं. दोनों एक जैसे कपड़े पहनते हैं. एक ही रंग, सबकुछ एक जैसा. उनकी सारी हरकतें एक जैसी हैं. और तो और, दोनों सुबह एक साथ ही टॉयलेट भी जाते हैं. फिर दोनों एक साथ, एक ही बाथरूम में नहाते हैं. नहाते हुए दोनों झगड़ा बहुत करते हैं. दोनों एक हैं. दोनों एक ही स्कूल जाते हैं. एक ही क्लास में पढ़ते हैं. जब कभी दोनों में से कोई फ़ेल हो जाता है, फिर भी दूसरा अकेला नहीं होता है, क्यूँकि पास होने वाला वापस से उसी क्लास में पढ़ता है, जब तक दोनों एक-साथ आगे नहीं बढ़ते. दोनों एक ही किताब से पढ़ते हैं. और अब देखो, दोनों ने क्या किया, दोनों को प्यार भी एक ही लड़की से हो गया. अब देखो ध्रुति बेटा, एक काम करते हैं. हम लोग बाहर जाते हैं. तुम लोग आपस में फ़ैसला कर लो, आगे क्या करना है? मैं इन दोनों का बाप हूँ. इनकी शरारत ख़ूब समझता हूँ.”
तीनों के माँ-बाप बाहर आ जाते हैं. ध्रुति ग़ौर से अभिन्य और अभिनय में फ़र्क़ करने की कोशिश करती है.
“कोई फ़र्क़ नहीं है. हम दोनों एक हैं.”
“और मुझे शादी किससे करनी है?”
“हम दोनों से.”
ध्रुति को ऐसा लगा, जैसे उसे चक्कर आ जाएगा. वो अपना सिर पकड़ के कुर्सी पे बैठ जाती है. अभिन्य और अभिनय दोनों एक-दूसरे को देखते हैं. बाहर तीनों के माँ-बाप परेशान हैं कि अन्दर क्या हो रहा है? ध्रुति उदास मुँह लटकाए हुए बाहर आती है.
“क्या फ़ैसला किया बेटा?”
“दोनों के दोनों पागल हैं. मेरे साथ दोनों शादी करना चाहते हैं.”
अभिन्य के माँ-बाप झेंप जाते हैं.
“अब तुम क्या करोगी बेटा?”
“घर चलिए. वो दोनों पागल हैं. मैं नहीं.”
ध्रुति अपने माँ-बाप को लेके चली जाती है. अभिन्य और अभिनय के माँ-बाप अन्दर आ जाते हैं. अभिन्य और अभिनय अपना सिर पकड़े हुए एक-दूसरे को घूर रहे हैं.
उधर ध्रुति अपने घर में खिड़की के पास उदास बैठी है. बाहर देखती है. धूप से उसका चेहरा सोने जैसा चमक रहा है. अभिन्य और अभिनय के साथ बिताए हुए अच्छे पलों को याद करती है. जब अभिन्य ध्रुति को गुलाब देता है. जब ध्रुति अभिनय को किस्स करती है. जब अभिन्य ध्रुति को गले लगता है. जब ध्रुति अभिन्य का पहला ख़त देखती है. उसमें ‘अभिन्य’ लिखा है. फिर जब ध्रुति दूसरा ख़त देखती है. उसमें ‘अभिनय’ लिखा है. तब ध्रुति स्पेलिंग मिस्टेक है, सोचके मुस्कुरा दी थी. लेकिन ये स्पेलिंग मिस्टेक नहीं थी. दोनों सच में अलग-अलग दो इन्सान हैं. जिनसे वो दिल खोलकर मिलती रही. और कभी भी वो दोनों में कोई फ़र्क़ नहीं कर पाई. लेकिन अब सब जानते हुए भी शादी तो वो दोनों से नहीं कर सकती थी ना. अपने ख़यालों से बाहर आके उदास ध्रुति दरवाज़े की ओर देखती है. दरवाजे पे अभिन्य और अभिनय दोनों खड़े हैं. ध्रुति अपनी आँखें मलती है. फिर देखती है. अभिन्य और अभिनय अब भी वहीं खड़े हैं.
“अब क्या लेने आए हो? एक शरीफ़ लड़की के साथ मज़ाक़ करके पेट नहीं भरा तुम दोनों का?”
“हम तुमसे ये पूछने आए हैं कि तुम किससे शादी करना चाहती हो? हम दोनों यहीं खड़े हैं. तुम जिसके कन्धे पे हाथ रख दोगी, वो यहीं खड़ा रहेगा. दूसरा चुपचाप यहाँ से चला जाएगा.”
ध्रुति ख़ुशी से उछलके खड़ी हो जाती है. दोनों की ओर बढ़ती है. फिर रुक जाती है. थोड़ी देर सोचने के बाद दोनों को ग़ौर से देखती है. उनके चारों ओर चक्कर लगा के देखती है. दोनों में कोई फ़र्क़ नहीं है. एक जैसा शरीर, एक सा चेहरा, एक से कपड़े. उसके लिए फ़र्क़ करना ना-मुमकिन था. थक के वापस खिड़की के पास उदास बैठ जाती है. उसका चेहरा फिर से धूप में सोने की तरह चमक रहा है. अभिन्य और अभिनय एक-दूसरे को देखते हैं. मुस्कुराते हैं. और आके ध्रुति के पैरों में बैठ जाते हैं. ध्रुति चौंक जाती है.
“तुम दोनों बहुत मज़ाक़ कर चुके हो मेरे साथ. अब बस.”
ध्रुति दोनों को हटाने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाती है. दोनों अपना चेहरा आगे कर देते हैं. ध्रुति का हाथ दोनों के गालों को छू जाता है. ध्रुति रोने को हो जाती है.
“हे भगवान…!!! क्या करूँ मैं इन दोनों का? दोनों बिलकुल एक जैसे हैं.”
ध्रुति भी उन दोनों के साथ फ़र्श पे बैठ जाती है.
“तुम्हारे सामने जो सबसे पहले आया था, वो मैं था.”
“तुमने पहली बार जिसे किस्स किया था, वो मैं था.”
ध्रुति एक की बात पे हँसती है तो दूसरे की बात पे रोने लगती है.
“हम बचपन से ऐसे ही हैं.”
“एक ही थाली में खाना खाते हैं. एक ही बाथरूम में नहाते हैं.”
“एक ही लड़की से प्यार हुआ. तो इसमें ग़लत क्या है?”
अभिन्य और अभिनय खड़े हो जाते हैं.
“हम क्या करें? हमें भगवान ने ऐसा ही बनाया है.”
दोनों ध्रुति के आगे पीछे गोल-गोल घूमने लगते हैं.
“हम अलग नहीं हो सकते.”
“हम अलग नहीं रह सकते.”
दोनों दरवाजे के पास जाके रुकते हैं.
“हम दो नहीं.”
“हम एक हैं.”
“और तुम दोनों को मैं ही मिली थी?”
“क्या करें बालिके? भगवान के आगे किसी की नहीं चलती.”
और आज ध्रुति सुहागरात के दिन फूलों से सजे कमरे में, दुल्हन बनी, बिस्तर पे बैठी, मुस्कुरा रही है. तभी झटके से दरवाज़ा खुलता है. अभिन्य और अभिनय एक साथ अन्दर आते हैं. ध्रुति चौंक के खड़ी हो जाती है.
“ये क्या पागलपन है?”
अभिन्य और अभिनय अपने-अपने हाथों में लपेटा हुआ गजरा सूँघते हुए आगे बढ़ते हैं. ध्रुति डर के बिस्तर पे चढ़ जाती है.
“मैंने तुम दोनों से इसलिए शादी की क्यूँकि मैं तुम दोनों से प्यार करती हूँ. और मैं तुम दोनों में कोई फ़र्क़ नहीं कर पाई. लेकिन इसका क्या मतलब? तुम दोनों एक साथ ही.…?”
“हम तो अपने रिश्तेदारों के यहाँ भी अलग बिस्तर पे नहीं सोते, फिर आज तो ख़ुशी का मौक़ा है, अपना घर है.”
ये कहते हुए अभिन्य और अभिनय बिस्तर पे पेट के बल गिर जाते हैं. ध्रुति डर के बिस्तर से कूद के दरवाज़े की तरफ़ भागती है. फिर पलट के देखती है.
“क्या तुम दोनों को एक साथ शरम नहीं आएगी?”
“हम तो बचपन से एक ही बिस्तर पे सोते हैं. तुम्हें नहीं सोना है, तो तुम बाहर चली जाओ.”
ध्रुति को हँसी आ जाती है. धीरे-धीरे बिस्तर की तरफ़ बढ़ती है.
“देखो, मेरी सुहागरात मत ख़राब करो, प्लीज़…!!!”
और ध्रुति शरमा के दोनों के बीच, मुँह बिस्तर में छुपा के, पेट के बल ही लेट जाती है. दोनों एक साथ ध्रुति का मुँह देखने की कोशिश करते हैं.
“अरे गोरी….. अपना चेहरा तो दिखाओ.”
ध्रुति शरमा के बिस्तर में ही धँसी चली जाती है.
और आज ध्रुति, अभिन्य और अभिनय अपने दो जुड़ुवाँ बच्चों के साथ स्कूल में उनका नाम लिखवाने आए हैं. अभिन्य और अभिनय ने एक-एक बच्चे को गोद में लिया हुआ है. स्कूल प्रिंसिपल पहले दोनों जुड़ुवाँ बच्चों को देखती है. फिर अभिन्य और अभिनय को देखती है. फिर ध्रुति को देखती है. प्रिंसिपल को हैरानी के मारे हँसी भी नहीं आती है.
“बच्चे का नाम?”
ध्रुति जवाब देती है.
“जी, मनोज और मनुज.”
“पहले एक का बोलिए.”
“जी, मनोज.”
प्रिंसिपल लिखती है.
“माँ का नाम?”
“जी, ध्रुति.”
“पिता का नाम?”
ध्रुति, अभिन्य और अभिनय की ओर देखती है. उसे सुहागरात की बात याद आ जाती है. ध्रुति आँख खोले लेटी है. उसके एक बाज़ू अभिन्य और दूसरे बाज़ू अभिनय सो रहा है. उस रात भी ध्रुति ने मुस्कुरा के आँखें बन्द कर ली थीं. आज ये याद करके ध्रुति फिर से मुस्कुरा देती है.
“जी, अभिन्य और अभिनय.”
प्रिंसिपल चौंक के सबको देखती है. अभिन्य और अभिनय मूर्ति बने बैठे हैं.
“जी.....!!!”
“मैं कैसे लिखूँ और कहाँ लिखूँ?”
“लाइए, मैं लिख दूँ.”
प्रिंसिपल, एप्लीकेशन फ़ॉर्म ध्रुति की ओर बढ़ाती है. ध्रुति फिर अपने ख़यालों में खो जाती है. ध्रुति देखती है कि वो एक हरे मैदान में जा रही है. उसके दोनों हाथों में एक हाथ है.
और फिर ध्रुति मुस्कुराते हुए ‘पिता का नाम’ के कॉलम में लिखती है, ‘अभिन्य/अभिनय’.
*****