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दूसरा पहलू

दूसरा पहलू

क़ैस जौनपुरी

ऊपरवाले ने एक ख़ूबसूरत दुनिया बनाई और इस ख़ूबसूरत दुनिया में सबसे ख़ूबसूरत चीज़ बनाई ‘औरत’. औरत सबसे पहले एक बेटी बनती है. फिर एक बहन का रूप लेती है. औरत का सबसे ज़्यादा देर तक टिकने वाला रूप होता है ‘बीवी’ का. फिर औरत एक माँ बन जाती है. और इतने सारे रूपों में औरत हमेशा औरत ही रहती है. हर शक्ल में ख़ूबसूरत.

कई बार तो औरत इतनी ख़ूबसूरत साबित हुई है कि लोगों को अपनी बीवी में ही माँ भी नज़र आई है...

लेकिन मेरी बीवी ने फिर ऐसा क्यूँ किया...? क्यूँ उसने औरत-ज़ात की इन सारी हक़ीक़तों से मुँह फेर लिया...? क्यूँ उसने ऐसा रास्ता चुना...? जिसमें मेरे हिस्से में सिर्फ़ बदनामी और रुसवाई आई और ख़ुद उसने मज़े किए...मेरी क्या ग़लती थी...? क्या यही कि मैंने अपनी बीवी को आज़ादी दे रखी थी, वो सब करने की...जो वो करना चाहती थी...?

रीमा बैंक में असिस्टेंट थी....लेकिन वो ऑफ़िसर बनना चाहती थी....मैं ख़ुद रीमा को एक्ज़ाम सेंटर तक छोड़के आता था...घर का सारा काम करता था...इसलिए कि मेरी बीवी कुछ बन जाएगी....और एक दिन मेरी बीवी हिन्दुस्तान के एक जाने-माने बैंक में सीनियर असिस्टेंट बन गई. मुझे इस बात पर फ़क्र था....

लेकिन अब मेरी बीवी ऑफ़िसर बनना चाहती थी...मैंने उसे समझाया था कि “ऑफ़िसर बनने के बाद बहुत दिक़्क़तें आएँगी...घर पे समय नहीं दे पाओगी...बच्चों की देखभाल नहीं कर पाओगी...” मगर उसने मेरी एक न सुनी....उसके सिर पे ऑफ़िसर बनने का भूत सवार था....

और शायद इसी वजह से वो हवा में उड़ने लगी थी. और शायद इसी वजह से वो आसमान को छू लेना चाहती थी...या उसके भी पार जाना चाहती थी...किसी भी क़ीमत पर...

फिर रीमा की नज़दीकियाँ उसी बैंक के चीफ़ मैनेजर आलोक कुमार सिंह के साथ बढ़ने लगीं थीं. रीमा को अच्छी तनख़्वाह चाहिए थी...प्रमोशन चाहिए था...इसलिए उसने आलोक कुमार सिंह का साथ पकड़ना ठीक समझा क्योंकि मेरे पास तो वो सब चीज़ें नहीं मिल सकती थीं. मेरे पास तो मिलती है सिर्फ़ एलआईसी की पॉलिसी. उसकी ज़रूरत रीमा को नहीं थी. उसे तो ऑफ़िस की नौकरी अच्छी लगती थी....बाहर घूमना अच्छा लगता था...उसे सबकुछ अच्छा लगता था... उसे सिर्फ़ मैं अच्छा नहीं लगता था...पता नहीं क्यों...?

और पता नहीं क्यों उसने मेरे साथ बारह साल बिताए...? इन बारह सालों में मुझे कभी ये अहसास तक नहीं हुआ कि मेरी पीठ पीछे कुछ चल रहा है...मुझे तो पता भी नहीं चलता अगर रीमा उसी तरह पेश आती जैसे वो पिछले दस सालों से मेरे साथ पेश आ रही थी...

हुआ ये था कि एक दिन शाम के वक़्त पार्क में टहलते हुए वो अपने मोबाइल पे बात कर रही थी...तभी अचानक मैं उसके सामने आ गया...तब वो घबरा सी गई...और जब मैंने पूछा कि...“किससे बात कर रही थी...?” तब उसने कहा....“राँग नम्बर था...” लेकिन जब मैंने पता किया तो पता चला कि...वो आलोक कुमार से ही बात कर रही थी....

मुझे यक़ीन नहीं हो रहा था कि ये वही रीमा है...जिसका एक बार कार से एक्सीडेण्ट हुआ था और जो पूरे एक महीने बिस्तर पे पड़ी थी...जिसकी जाँघ में चोट लगी थी...जिसकी वजह से वो ठीक से खड़ी भी नहीं हो पा रही थी...और जिस रीमा की तब मैंने इतनी तीमारदारी की थी...कि उसकी टट्टी भी मैं ही साफ़ करता था...

और जब वो ख़ुद से खड़ी हुई तो इतनी तेज़ भागी कि...मुझे ही पीछे छोड़ दिया....मुझसे ही दूर निकल गई....

जब मैं इस बात को लेकर बैंक के अधिकारियों से मिला तो उनकी बातें सुनके तो मैं और दंग रह गया...उन लोगों ने कहा था...“अजी चन्द्रजीत जी...! जितनी जानकारी आपके पास है...उससे कहीं ज़्यादा जानकारी हमारे पास है...इस ब्राँच में इस बात को लेकर मीटिंग तक हो चुकी है...क्योंकि हमारे पास पिछले दिनों कई कस्टमर्स का फ़ोन आया और वो सब लोग शिकायत कर रहे थे कि...आपकी ब्राँच गन्दी हो चुकी है...और आपकी ब्राँच के दो लोग जो ये सब कर रहे हैं....उनकी ब्लू फ़िल्म भी बन चुकी है...”

ये सब बातें सुनके तो मैं और डर गया...मैं सोचने लगा...कहीं ऐसा न हो कि कल हर चौराहे पे रीमा और आलोक की ब्लू फ़िल्म बिकने लगे...फिर तो ढँकी-छुपी बात भी सामने आ जाएगी...

मैं आलोक कुमार के घर भी गया...उसकी बीवी से मिला... मैंने आलोक कुमार की बीवी से उसकी शिकायत की...तो उसने उल्टा मुझे नसीहत दी कि “आपको शक की बीमारी है...”

जब मैंने जाना कि रीमा एक दूसरे नम्बर पे भी ज़्यादा बात करती थी और जब मैंने पता किया तो पाया कि वो दूसरा नम्बर भी आलोक कुमार का ही था...और जब मैंने उस नम्बर पे पीसीओ से फ़ोन किया तो फ़ोन आलोक कुमार की बीवी ने उठाया...और जब मैंने बताया कि मैं चन्द्रजीत बोल रहा हूँ...तब आलोक कुमार की बीवी हँसने लगी...और कहने लगी...“अरे पागल..! तुझे आज पता चला है...मुझे तो बहुत पहले से पता है...मुझे तो ये भी पता है...कि ये दोनों कब एक दूसरे से मिलते हैं...और कहाँ-कहाँ मिलते हैं...और सुन...मुझे तो ये भी पता है कि...दोनों कितनी बार....? समझ गया न मैं क्या कह रही हूँ....?”

ये एक औरत बोल रही थी. अपने पति के बारे में बता रही थी. उस आदमी से, जिसकी बीवी के साथ उसके पति के ना-जाएज़ रिश्ते चल रहे थे.

जब मैंने रीमा से, उसके और आलोक के बीच चल रहे ना-जाएज़ रिश्ते की बात की तो वो उल्टा मेरे ही ऊपर चिल्लाने लगी....और उसने बड़ी आसानी से कह दिया...“मैं कुछ ग़लत नहीं कर रही हूँ...अगर तुम्हें पसन्द नहीं तो घर छोड़कर चले जाओ...”

रीमा ने सबकुछ इतनी आसानी से कह दिया जैसे कुछ हुआ ही नहीं था. मैं बात कर रहा था कि वो किसी पराए मर्द के साथ क्यूँ सोती है? और वो कह रही थी...“मैं कुछ ग़लत नहीं कर रही हूँ...अगर तुम्हें पसन्द नहीं तो घर छोड़कर चले जाओ...”

फिर मुझे समझ में आया कि ये रीमा नहीं बोल रही थी...ये उसका रुतबा बोल रहा था...जो उसने समाज में बना रखा था. ये मेरी बीवी नहीं बोल रही थी...ये एक असिस्टेंट मैनेजर बोल रही थी जो पहले सिर्फ़ एक सीनियर असिस्टेंट थी. असिस्टेंट से मैनेजर बनने के लिए उसने बहुत मेहनत की थी. दिन-दिन भर घर से बाहर रहती थी. रात को देर से घर आती थी. सण्डे को भी ऑफ़िस जाती थी. कभी-कभी तो ऑफ़िस के काम से दिल्ली से बाहर भी जाती थी.

और भी बहुत कुछ किया था उसने. आलोक कुमार के साथ दिल्ली से हवाई जहाज़ में बैठकर लखनऊ गई. वहाँ एक ही होटल में, एक ही कमरे में मियाँ-बीवी बनकर रही. आलोक कुमार के साथ उस रात एक ही बिस्तर पे सोई... और भी बहुत कुछ किया था रीमा ने उस रात.....मुझे तो सोच के शर्म आती है...मगर उसके चेहरे की चमक दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही थी. क्योंकि उसे प्रमोशन मिल चुका था जिसके लिए वो इतनी मेहनत कर रही थी.

आख़िर आलोक कुमार ने ये प्रमोशन उसे अपनी जेब से निकालकर जो दी थी. अब इस मेहरबानी का कुछ तो सिला चाहिए था, आलोक कुमार को....आख़िर वो आदमी भी कितनी मेहनत करता था रीमा के लिए...उसकी तो रीढ़ की हड्डी का आपरेशन तक हुआ पड़ा था मगर रीमा के लिए वो बिलकुल तन्दरुस्त था...

रीमा पहले फ़ोन पे मेहनत करती थी. फिर घर से बाहर भी जाना होने लगा. कभी, ट्रेनिंग के बहाने, तो कभी टूर के बहाने. लखनऊ भी वो टूर के बहाने से ही गई थी. आलोक कुमार ने ही उसकी ऑफ़िशियल विज़िट बनाई थी...और ख़ुद उसने हवाई जहाज़ का टिकट ख़रीदा, दो लोगों के लिए और होटल भी ख़ुद ही बुक किया था आलोक कुमार ने...आलोक कुमार ने रीमा को अपनी बीवी बताया....और रीमा किसी और की बीवी होने के बावुजूद एक दिन के लिए आलोक कुमार की बीवी बन गई..और फिर ये सब सिर्फ़ एक रजिस्टर पे ही तो लिखना था...असली मक़सद तो कुछ और था...जब मैंने होटल से पता किया तो होटल वालों ने कहा था...“ये तो हमारे रेगुलर कस्टमर हैं...आते रहते हैं...”

मैं अब भी रीमा को वापस पाना चाहता था. जब मैंने कहा कि, “कोई बात नहीं, जो हुआ उसे भूल जाओ...अब हम एक नई शुरूआत करते हैं...” तो इसके बदले में रीमा ने सचमुच एकदम ही नई शुरूआत कर दी.... उसने बेमतलब की बहस चालू कर दी....मुझे घर से बाहर भी निकाल दिया...क्योंकि जिस घर में हम रहते थे वो बैंक ने दिया था जो रीमा के नाम पे था...

और जब उसने देखा कि अब उसके मायके वाले भी उसे समझाने लगे हैं...फिर उसने अपने आशिक़ आलोक कुमार की सलाह लेनी शुरू कर दी. और फिर उसके बाद उसने जो किया उसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी...उसने मेरे ही ऊपर घरेलू हिंसा का मुक़दमा कर दिया.

बात यहीं ख़त्म नहीं हुई थी...उसने मुझसे तलाक़ भी माँग लिया...मैं तो बस हैरान होकर सब चीज़ों को होते हुए देख रहा था. और मेरे ऊपर एक के बाद एक पहाड़ फेंके जा रहे थे. रीमा ने अपनी पूरी ताक़त लगा दी थी....मैं ये देख रहा था कि अय्याशी की ये अन्धी दौड़ कितनी दूर तक जाएगी....? मेरे ऊपर महिला अपराध शाखा में भी मुक़दमा किया गया....

अब मुझे लगने लगा कि मेरी कमज़ोरी और शराफ़त का ग़लत फ़ाएदा उठाया जा रहा था. और जैसा कि कहते हैं...“जब ज़ुल्म हद से आगे निकल जाता है...तब एक कमज़ोर से कमज़ोर आदमी भी तलवार उठा लेता है...” और यहाँ तो मैं अब भी रीमा के वापस आने का इन्तज़ार कर रहा था.

अब मैंने भी ठान लिया था कि आलोक कुमार और रीमा को सबक़ सिखा के रहूँगा....मैंने सबसे पहले रीमा के मोबाईल की कॉल डिटेल्स निकलवाई...और तब मुझे पता चला कि...रीमा के मोबाईल पर सबसे ज़्यादा फ़ोन आलोक कुमार के नम्बर से आया था....दोनों के बीच एक मिनट से लेकर एक घण्टे तक बातें होतीं थीं...दोनों एक-दूसरे को एसएमएस भी भेजते थे...एक दिन में क़रीब बीस-तीस एसएमएस....

जैसा मुझे बैंक वालों ने बताया था कि सबलोग इनकी गन्दी हरकतों से परेशान हैं... दोनों का ट्राँसफ़र कर दिया गया......रीमा तब पीतमपुरा से रोहिणी ब्राँच में आ गई...और आलोक कुमार राजस्थान में जोधपुर जिले के शास्‍त्रीनगर ब्राँच में तैनात हो गया...

आलोक कुमार एक ऐसा आदमी था जिस आदमी की ख़ुद एक अठ्ठाईस साल की बेटी थी और उस बेटी के भी बच्चे थे...मगर वो पचास साल का आदमी अय्याशी के नशे में चूर, एकदम अन्हराया हुआ था...उसे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था...उसे एक औरत का जिस्म मुफ़्त में मिल रहा था...एक मुफ़्त की रण्डी, जो उसे वैलेण्टाइन डे पे फूल भी देती थी...जो कहने को मेरी औरत थी...मगर रहती उसके पास थी...दिन भर...रात भर...

जब मुझे पूरा यक़ीन हो गया और मुझे सारे सबूत मिल गए...तब मैंने आलोक कुमार सिंह के ख़िलाफ़ मेरी बीवी से अवैध सम्बन्ध रखने के लिए भारतीय दण्ड संहिता की दफ़ा 497 के तहत मुक़दमा दर्ज करा दिया...और अपनी बात को साबित करने के लिए मैंने बैंक के एचआर मैनेजर, इन्दिरा गाँधी हवाई अड्डा, दिल्ली के ट्रैफ़िक ऑफ़िसर, वोडाफ़ोन के मैनेजर और अमौसी एअरपोर्ट, लखनऊ के पास मौजूद फाइव स्टार होलीडे रिसॉर्ट के फाईनान्सिअल कण्ट्रोलर की गवाही करवा दी....

अब मामला कोर्ट में है...और आलोक कुमार के ख़िलाफ़ कोर्ट में हाज़िर होने के लिए सम्मन जारी हो चुका है....

मेरे दोस्त मुझसे कहते हैं...“तू कैसा आदमी है...? बीवी अगर बदचलन हो जाए तो लोग लात मारकर घर से बाहर निकाल देते हैं...तू अभी भी उसका इन्तज़ार कर रहा है....?” तो मैं कहता हूँ...“हाँ...उसकी भी वजह है...वजह ये है कि...मेरे दो बच्चे अभी भी रीमा के पास हैं...अगर मैंने रीमा को वापस नहीं लिया तो बच्चे भी हाथ से जाएँगे....और रीमा ने वैसे भी तो पूरी कोशिश कर ही डाली है ताकि मेरे बच्चे भी मुझे भूल जाएँ...उसने रमन और नमन के स्कूल के आईकार्ड से बाप का नाम भी हटवा दिया है...मैंने कोर्ट से इजाज़त माँगी है अपने बच्चों की कस्टडी के लिए....

एक औरत का ये भी रूप हो सकता है...मुझे अब भी यक़ीन नहीं होता है...एक बाप को अपने बच्चों को अपने पास रखने के लिए कोर्ट की इजाज़त लेनी पड़ती है...क्योंकि माँ ज़्यादा पैसे कमाती है...और अपने बच्चों को सिखाती है कि अगली बार अगर मैं मिलने जाऊँ तो बच्चे ख़ुद मुझे मना कर दें...तभी तो इस बार जब मैं रमन और नमन से मिलने गया तो मेरे अपने बच्चों ने मुझसे कहा, “आप हमारे पापा नहीं हो...आप हमसे मिलने मत आया कीजिए...”

और फिर मेरी जो इतनी बेइज़्ज़ती हुई है....उसका क्या...? मैंने तो रीमा को घर से लात मार के नहीं निकाला...मैंने तो उसे एक थप्पड़ भी नहीं मारा....और उसने मेरे अन्दर के आदमी के मुँह पर जो थप्पड़ मारे हैं....उनका क्या...? इतनी आसानी से मैं कैसे छोड़ दूँ....? कैसे छोड़ दूँ...अपने दोनों बच्चों को....? जो मेरे अपने हैं...जिन्हें नहीं मालूम कि...उनकी माँ ने क्या-क्या किया है...? जिन्हें नहीं मालूम कि एक गोरे चहरे के पीछे कितना काला मन छिपा हुआ है...? उन्होंने तो सिर्फ़ माँ का चेहरा देखा है...एक औरत का दूसरा पहलू तो उन्होंने देखा ही नहीं है...

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