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अाँटी नहीं फाँटी

आँटी नहीं फाँटी

क़ैस जौनपुरी

  • “चार समोसे पैक कर देना.”
  • “जी, और कुछ?”
  • “और...ये क्या है?”
  • “ये साबुदाना वड़ा है.”
  • “ये भी चार दे देना.”
  • नाश्ते की दुकान पर खड़ा लड़का, ग्राहक के कहे मुताबिक़ चीज़ें पैक कर रहा है. ग्राहक नज़र घुमा के आस-पास की चीज़ों को देख रहा है. दुकान में बहुत कुछ है. जलेबी...लाल इमिरती...और वो क्या होता है...पीला-पीला...हाँ... ढ़ोकला...

    ग्राहक को दुकान में वड़ा पाव और कचौड़ी भी दिखी, लेकिन वड़ा पाव उसे पसन्द नहीं है.

  • “चार कचौड़ी भी दे देना.”
  • “इसके साथ दही भी डाल दूँ?”
  • “हाँ, मगर दही अलग से पैक कर दो. और उसके साथ की चटनी भी.”
  • लड़के ने कचौड़ी और दही-चटनी भी पैक कर दी. तभी ग्राहक को सामने ही कुछ और दिखा.

  • “ये क्या है?”
  • “ये पोहा है.”
  • “हाँ, ये भी एक प्लेट दे दो.” ग्राहक अपने मन में सोचने लगा, “लेना तो पोहा भी था, मैं तो भूल ही गया था.”
  • तभी दुकान के अन्दर से, एक बूढ़ी सी औरत, कुछ बड़बड़ाते हुए बाहर निकल रही थी. ग्राहक के पास खड़ी होके, वो कुछ बड़बड़ाने लगी.

  • “भूख...लागी है....कछु... खावे को मिलबे? भजिया...दे दे...भूख... लागी है....”
  • उस बूढ़ी औरत ने जितना कुछ कहा, उसमें से बहुत कुछ उस ग्राहक को समझ में नहीं आया. उसे लगा वो मुझसे कुछ कह रही है. ग्राहक ने सोचा बेचारी बुढ़िया के लिए भी कुछ ख़रीद के दे दे. जहाँ अपने लिए वो इतना ढेर सारा नाश्ता ख़रीद रहा है तो उस बूढ़ी औरत के लिए भी कुछ ले ले. बेचारे ग्राहक का दिल कमज़ोर था शायद. मगर इससे पहले कि वो उस लड़के से कुछ कहता, उस बुढ़िया ने वहीं सामने रखी पकौड़ियों की थाली में, झटके के साथ, एक ऐसा हाथ मारा और तीन-चार पकौड़ियाँ एक साथ उठा लीं. ग्राहक हैरान होके देखता ही रह गया.

    उधर गल्ले पे बैठा दुकान का मालिक, जो नोट गिन रहा था, उस बूढ़ी औरत पे चिल्लाने लगा.

  • “ए आँटी! क्या कर रही है? थाली में हाथ डाल दिया!”
  • मगर उस बूढ़ी औरत को जैसे कुछ फ़रक़ ही नहीं पड़ा. वो बुदबुदाते हुए दुकान से बाहर निकलने लगी.

  • “आँटी नहीं फाँटी....बड़ा... हरामी है...नोट गिनता है...दो पकौड़ी में...चिल्लाता है...मारवाड़ी है ना...”
  • उस ग्राहक ने देखा कि वो बुढ़िया अपने आप ही सब कुछ कहे जा रही थी. तभी उस ग्राहक ने देखा कि वो अपने मन में नहीं कह रही थी. उसके सामने एक लगभग तीस साल का आदमी खड़ा था. वो उससे कह रही थी. वो आदमी भी उस बुढ़िया को कुछ कह रहा था.

  • “एक बाम्बू रखने का आँटी.”
  • “बाम्बू...? किसलिए...?”
  • “इस मारवाड़ी सेठ के लिए...”
  • अब आँटी को एक हमदर्द मिल गया. वो हमदर्द खड़ा चाय पी रहा था और आँटी को सलाह दिए जा रहा था. उस ग्राहक ने देखा कि वो बुढ़िया रही होगी, क़रीब सत्‍तर साल की. उससे ठीक से चला भी नहीं जा रहा था. उसने जो हवाई चप्पल पहनी हुई थी, वो भी उसके छोटे-छोटे पैरों से कहीं ज़्यादा बड़ी थी. उसके पैरों की उँगलियाँ सिकुड़ के ऐसे हो गई थीं जैसे उनका सारा दम निकल चुका हो और बस मजबूरी है कि उसके पैरों से बँधीं हैं. आँटी ने एक मटमैला गाउन पहना हुआ था. बाल उसके खुले थे, जो ऊपर से थोड़े चितकबरे, काले और अन्दर से पूरे सफ़ेद थे.

    वो सत्‍तर साल की आँटी दूध लेने आई थी. ग्राहक ने देखा कि उसके हाथ में एक दूध का पैकेट है. दूध का पैकेट जितना सफ़ेद और साफ़ है, आँटी का हाथ उतना ही काला और भद्दा है. उसके हाथ की चमड़ी ऐसी लग रही है जैसे आग में झुलस गई हो. ये उम्र की मार है. बेचारी आँटी क्या करे? ज़िन्दा तो रहना ही है.

    आँटी दुकान से बाहर हो गई. ग्राहक ने दुकान के मालिक को देखा. वो सच में एक मोटा-तगड़ा सेठ लग रहा है. गाल उसके मोटे-मोटे फुले हुए हैं. रंग भी गोरा है उसका. आँटी की बातों को शायद उसने सुन लिया था, या पता नहीं. लेकिन वो हल्के-हल्के हँस रहा है. ग्राहक ने सोचा, शायद वो आँटी उस दुकान पे रोज़ आती हो और उसकी ये रोज़ की आदत हो.

    ग्राहक ढेर सारा नाश्ता लेकर दुकान से बाहर निकला. उसने देखा कि वो आँटी अभी भी उस आदमी से एक किनारे खड़ी होके बात कर रही है. और वो आदमी दिखने में एक नम्बर का चोर लग रहा है.

  • “चलो आँटी, तुम्हें घर तक छोड़ दूँ. लाओ, ये दूध का पैकेट मैं ले लूँ. भारी होगा.”
  • आँटी ने वो दूध का पैकेट उस हमदर्द को पकड़ा दिया और उसके साथ डुँगरे-डुँगरे अपने घर की ओर जाने लगी. घर उसका पास ही में था.

    आँटी घर में अकेली ही रहती है इसलिए उसका दरवाज़ा खुला ही था. वो आदमी अन्दर गया और उसने दूध का पैकेट किचन में रख दिया. आँटी अपने बेड पे पैर लटका के बैठ गई. और अपने खुले और मरे हुए बालों को समेटने लगी.

  • “और बोलो आँटी? क्या सेवा करूँ तुम्हारी?” वो हमदर्द अभी और भी मदद करने को तैयार था.
  • “बस...चाय...बनाऊँगी...दूध.....लाई इसीलिए...”
  • वो आदमी उस बूढ़ी आँटी के घर को अच्छे से निहारने लगा. घर की हालत आँटी के बालों की ही तरह हो चुकी है. कहीं सफ़ेद धब्बे तो कहीं काले धब्बे. सामान तो बस कहने भर को है. आँटी खड़ी हुई और डुँगरे-डुँगरे किचन तक दूध गरम करने आई. तभी उसे लगा कि वो चक्कर खाके गिर जाएगी. वो तो भला हो उस आदमी का जो वहाँ उस वक़्त मौजूद था. उसने आँटी को सहारा देकर बेड पे लिटा दिया. बुढ़ापे की उम्र में इतनी दूर तक पैदल चलके जाना और दूध लेके आना और ख़ुद से चाय भी बनाना. ये सब आँटी के लिए बहुत मुश्किल है. उस आदमी ने आँटी को बेड पे सीधा लिटा दिया और आँटी का गाउन ठीक कर दिया. आँटी के पैर की हड्डी ऐसे लग रही थी जैसे अभी चमड़ी फटेगी और हड्डी बाहर आ जाएगी. गोश्त तो सारा सूख चुका है. मगर फिर भी उस आदमी की नज़र, आँटी का गाउन ठीक करते हुए, वहाँ पहुँच गई, जिसकी वजह से आँटी आज भी एक औरत है.

    बस फिर क्या था! उस आदमी ने आँटी की इतनी ख़राब हालत का, इतना अच्छा फ़ाएदा उठाया कि आँटी की आँखें तो खुली की खुली रह गईं. वो हमदर्द आदमी जब अपने होश में आया तो उसे पता चला कि आँटी का मुँह ऐसे खुला हुआ है जैसे कोई पानी माँगते हुए मर गया हो. उस आदमी ने आँटी का खुला हुआ मुँह बन्द करने की कोशिश की मगर आँटी भी एक नम्बर की ज़िद्दी निकली. उसने अपना मुँह बन्द ही नहीं किया. अब तो उस आदमी को जैसे साँप सूँघ गया. आँटी मर चुकी थी.

    अब उस आदमी को अफ़सोस होने लगा कि ये मैंने क्या किया? आँटी का भयानक चेहरा, उसकी आँखों के सामने था. उसने आँटी का पैर सीधा किया और आँटी का गाउन अच्छे से टखने तक सरका दिया. अब आँटी ऐसी लग रही थी जैसे हैरानी में सो रही हो. घबराहट में वो आदमी अपना सिर पीटने लगा. वो बार-बार आँटी को देखता और अपने चेहरे को रगड़ता, ताकि आँटी का खुला मुँह, जो उसके चेहरे से थोड़ी देर तक चिपक गया था, उसका असर छुड़ा सके. मगर वो आदमी जितना अपने जिस्म को रगड़ता, उतना ही उसे लगता कि आँटी का काला और भद्दा रंग उससे और लिपटता जा रहा है.

    आख़िर बौखलाहट में वो आदमी, आँटी के कमरे से, हड़बड़ी में ऐसे भागा, जैसे मरी हुई आँटी उसके पीछे आ रही हो. वो आदमी सड़क पे जल्दी-जल्दी चला जा रहा था. ऐसे, जैसे वो पैदल ही इस दुनिया से बहुत दूर चला जाना चाहता हो. अब उसे आँटी की आवाज़ भी सुनाई देने लगी....आँटी नहीं फाँटी... और वो आदमी, अपनी इसी बदवहाशी में एक अमीर आदमी की, एक बड़ी सी कार के नीचे आ गया. कार से कुचले जाने पे, उसका मुँह वैसे ही खुला हुआ था, जैसे अभी थोड़ी देर पहले वो आँटी का मुँह खोल के आया था. उसकी आँखों से आँसू की जगह ख़ून निकल रहा था. उसका खेल ख़त्म हो चुका था.

    उधर आँटी की पड़ोस की औरतों को, जब पता चला कि आँटी नहीं रहीं, तो उन्हें बड़ा सुकून मिला कि, “चलो अच्छा हुआ. बेचारी आँटी इस बुढ़ापे में कितनी परेशानी झेल रही थीं.”

    कफ़न पहनाने से पहले, आँटी की लाश को जब औरतें नहलाने लगीं, तब उन्हें आँटी की जाँघ पे सफ़ेद-सफ़ेद कुछ दिखा, जिसे देखकर, जो औरत पानी डाल रही थी, उसकी तो नाक गुस्से से फूल गई... उसने एक लोटा पानी झटके से फेंका और वो सफ़ेद-सफ़ेद गन्दगी बहा दी.

    ***

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