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मृत्योत्सव

मृत्योत्सव

मयंक भैया नहीं रहे... खबर सुनकर सन्न रह गई थी दिव्या । वो तो लन्दन जाकर बसने वाले थे न अपने नए मकान में अपनी विदेशी मेम के साथ....दिव्या के अगले सारे विचार पुरानी यादों के साथ गड्मगड हो गए थे । कान पर फोन लगाए दिव्या अगले शब्द सुन भी न सकी और लम्बी अश्रुधारा के साथ उसने फोन रख दिया ।

मयंक भैया दिव्या से 5 साल ही तो बड़े थे । चाची के बड़े बेटे मयंक भैया के कन्धों पर चढकर दिव्या कैसे उन्हें तंग किया करती थी । वो अपनी छोटी बहन नेहा के बजाय दिव्या से ज्यादा प्यार करते थे । एक ही बाग में खेलते-बढते दिव्या और मयंक बड़े हुए थे । मयंक भैया लीची के पेड़ पर चढ कर लीचियाँ तोड़ते थे और दिव्या झोली फैलाए नीचे लीची के गुच्छे गिरने का इंतज़ार करती रहती । बचपन के वो दिन पंख लगा कर कब उड़ गए पता ही नहीं चला और भैया मर्चेण्ट नेवी की परीक्षा में उत्तीर्ण होकर बड़े से शिप में जाकर बैठ गए । जब भी न्ए देश के तट को उनका जहाज छूता तो पूरे परिवार को भैया का सन्देश मिलता। सुन्दर फोटो वाले पोस्ट कार्ड भी उनकी राइटिंग में गाहे-बगाहे मिल जाते ।

कब चाचा-चाची अपनी बिटिया को लेकर पैतृक मकान से अलग हुए और दिव्या के माँ-बाप ने कब पैतृक मकान को बेच कर सम्पत्ति का बंटवारा कर दिया ,दिव्या की स्मृतियों में यह कभी दर्ज़ ही नहीं रहा । हाँ ! एक समय के बाद यदि दिव्या याद करे तो उसकी स्मृतियाँ उसकी शादी के बाद से ही आगे चलती है जब दिव्या पहली बार अपनी चाची से मिलने इन्दौर गई थी । दिव्या के बेटे अभिषेक को देखकर उनकी आँखें नम हो आई थी । नवमाता बनी दिव्या समझ नहीं पाई थी अपनी चाची की आँखों के पीछे छिपी नमी का दर्द । फिर दिव्या ने माँ से ही जाना था कि मयंक भैया ने कोई विदेशी लड़की पसन्द कर ली है और वो शादी के तौर तरीके भी उसी के धर्म के अनुसार निभाना चाहता है ।

“तो उसमें बुरा क्या है माँ ? ” दिव्या चहकी थी ।

“तू नहीं समझेगी दिव्या ? जिस बेटे को हमने नाज़ों से पाला होता है ना उस पर हमारा भी कुछ हक होता है । फिर इतना ही नहीं अपनी संस्कृति अपनी सभ्यता के मान-सम्मान की भी अपनी अहमियत है । जो इंसान जिस संस्कृति में पला बढा होता है उसमें वो इस कदर रच-बस जाता है कि उससे इतर चलना किसी को भी गवारा नहीं होता है । अरे ! भारतीय संस्कृति में लड़की जिस घर में आती है उसी के नियम कायदे में चलती है । यहाँ तो मयंक की मति ही मारी गई है । शादी तो इस तरह कर ही रहा है पर वो भी इसाइयों के नियम से । ”

माँ के इस लम्बे चौड़े भाषण से दिव्या चुप्पी लगा गई और अपनी गोद में अभिषेक को चूमते हुए बोली-“हम क्या जाने संस्कृति और सभ्यता । है ना अभिषेक ! ”

“हाँ ! जब तेरा ये बेटा बड़ा होगा ना तब पूछूँगी । ” माँ तल्खी से बोली थी ।

शादी के बाद मयंक भैया से कभी मिलना ही नहीं हुआ दिव्या का । वो तो कभी इस देश तो कभी उस देश...कभी इस जहाज तो कभी उस जहाज से पूरा विश्व नापते चल रहे थे । उनकी नई विदेशी बीवी मारिया का हाल-चाल चाची से माँ के रास्ते होते हुए मुझ तक पहुँचता था । माँ बताती थी कि मारिया कोई गोरी विदेशी नहीं है बल्कि बेहद काली है । ना जाने अफ्रीका के किसी देश की है । यहाँ भारत पढने आई थी । अफ्रीका में उच्च शिक्षा अच्छी नहीं होती इसलिए अपनी ग्रेजुएशन के लिए मुम्बई चली आई। बस वहीं ना जाने कैसे मयंक के सम्पर्क में कैसे आई और उसे पसन्द कर लिया । गोरे-चिट्टे , गुलाबी रंगत लिए हुए मयंक भैया को ये गहरा काला रंग कैसे पसन्द आया दिव्या बहुत सोचती रही पर मयंक भैया के इस दर्शन की तह तक नहीं पहुँच पाई । कुछ किताबें पढते हुए ,कुछ ज़िन्दगी के अनुभवों ने दिव्या को यह अह्सास तो करवा दिया कि प्यार गोरे रंग की थाती नहीं होता ।

चाची से मिलती तो चाची की आँखें अब नम नहीं रहती बल्कि बरस पड़ती । एक बार तो दिव्या के और माँ के सामने रोते-रोते बोली थी “ अरे ! प्यार ही करना था तो किसी भारतीय लड़की से तो करता । ये क्या विदेशी लड़की ले आया ”

दिव्या चाची को तसल्ली देती रहती “ अरे ! चाची ! मयंक भैया कोई भी बहू लाते तो किसी भी स्थिति में वो आपके पास तो रहती नहीं । फिर गोरी हो काली, देशी हो या विदेशी,क्या फर्क पड़ता है ” पर माँ के दिल को कौन समझा सका है ।

समय यूँ ही टीस लिए चलता रहा । भैया का मर्चेण्ट नेवी का कार्यकाल भी पूरा हो गया था । इस बीच भैया की बेटी मेघना और बेटा मयूर भी बड़े हो चुके थे । भैया उनकी उच्च शिक्षा के लिए लन्दन में बसना चाहते थे ताकि स्थायी रूप से वहाँ बस कर बच्चे ठीक से अपनी पढाई कर सके ।

पर ईश्वर को कुछ और ही मंज़ूर था । एक दिन भैया के हाथ में ज़ोर का दर्द उठा । चेक-अप करवाने पर पता चला कि उन्हें बोन कैंसर है । मारिया भाभी ने रोते-रोते चाचा-चाची को यह खबर दी । अब वो लन्दन के बजाय भारत आना चाहती थी । उसका कहना था कि ऐसी बीमारी में अपने नज़दीकी रिश्तेदारों के बीच इंसान की ठीक होने की सम्भावना ज्यादा रहती है । दिव्या हैरान थी उनकी फिलॉसॉफी पर ।

वो भैया और बच्चों के साथ भारत आ गई थी । दिव्या चाची से फोन पर हाल-चाल पूछती रहती । मारिया भाभी मयंक भैया की सेवा-सुश्रूषा में लगी रहती । घर में चारों तरफ नौकर-चाकरों की पूरी फौज के बावज़ूद भैया के सारे काम मारिया भाभी खुद करती । एक बार दिव्या भी इन्दौर जाकर भैया को मिल आई थी । दिव्या मारिया भाभी का हाल देखकर दंग थी । इतनी शिद्दत से वो भैया की सेवा कर रही थी कि उनको अपना होश भी नहीं था । ना बलों में कंघी ,ना खाने की सुध पर भैया को समय पर नहलाना,समय पर खाना, उनकी हर इच्छा पूरी करना मारिया भाभी के लिए पहली ड्यूटी थी। खुद चाहे वो कैसा खाना खाए पर भैया के लिए गर्म खाना उनकी पहली प्राथमिकता थी । एक दिन तो अस्पताल में आकर चाची से झगड़ा भी कर लिया कि आज खाना ठण्डा कैसे भेजा । एक बारगी तो सबको बुरा लगा पर फिर सबने भाभी की अनुपस्थिति में सोचा कि वो भी तो मयंक भैया के लिए कह रही है । और हम सब भी तो यही चाहते हैं कि भैया को खाना अच्छा मिले ।

बस जैसे –जैसे पहाड़ी पर घूमती हुई चढ रही थी वैसे-वैसे मेरी यादें भी सर्पिणी सी दौड़ रही थी । बस से उतरते ही रुलाई रोकने के लाख प्रयास के बावज़ूद आँखें लबालब हो आई । चाची की आलीशान कोठी के सामने टैक्सी रुकी तो गेट पर फूलों की बन्दनवार देखकर चौंक गई । अन्दर घुसी तो गेट से अहाते तक दोनों तरफ फर्श पर फूलों की रंगोलीनुमा कतार थी । कुछ महिलाएँ इधर-उधर सजावट में व्यस्त थी । एक टेबल पर पानी से भरे काँच के बाउल में फूल तैर रहे थे । उसमें कुछ दीपक भी तैर रहे थे । माज़रा समझ में नहीं आया । फिर मयंक भैया की फोटो पर नज़र पड़ी तो लबालब आँखे बरस पड़ी । दिव्या चाची और भाभी को ढूँढने का प्रयास करते हुए अहाते से लॉबी में घुस गई । चाची के गले मिली । चाची का तो रो-रोकर बुरी तरह थक चुकी थी । दुख इतना गहरा था कि दिव्या रोने के अलावा कुछ बोल भी नहीं पाई । भरे गले से बस इतना पूछा –“ भाभी.......? ” उन्होंने कमरे की तरफ इशारा किया । दिव्या उन्हें जल्दी से मिलना चाहती थी .....उनके गले लग कर मिलना चाहती थी । दिव्या सोच रही थी ना जाने भाभी का क्या हाल हुआ होगा । सात समन्दर पार से इंडिया आकर उन्होंने जिसे प्यार किया, जिसके साथ अपनी ज़िन्दगी के खुशनुमा 20 वर्ष बिताए वो ना रहे तो क्या स्थिति होगी । दिव्या के सामने एक साथ कईं चित्र गडमगड हो गए । भाभी के हलकान हुए शरीर की कल्पना करते हुए दिव्या तीव्रता से कमरे में घुसी तो भाभी अपने चेहरे के मेकअप व्यस्त थी । दिव्या का कलेजा मुँह को आने लगा । भाभी ने दिव्या की तरफ देखकर कहा –“ दिव्या ! वी हैव लॉस्ट मयंक ” और दिव्या के कन्धे पर हाथ रख दिया । दिव्या भाभी का हाथ पकड़ कर फफक पड़ी । इतने में ही भाभी की सहेली आ गई तो वो उन्हें दिशा-निर्देश देने लगी –“ चार पेन, विज़िटर बुक, फोटो, डिस्प्ले बोर्ड ,कुशन पिन और भी ना जाने क्या-क्या । ” पर ये सब मेरी समझ से बाहर था । दिव्या जिस स्थिति की कल्पना कर रही थी वहाँ तो स्थिति इसके आस-पास भी ना थी । यह सब निर्देश देने के बाद भाभी फिर अपने मेकअप में व्यस्त हो गई । इस बार आई मेकअप पर उनका जोर था । दिव्या अपने आँसुओं को सोखते हुए कमरे से बाहर चाचा-चाची के पास बैठक में आ गई जहाँ पास-पड़ौस के और लोग भी बैठे थे । एक सन्नाटा पसरा हुआ था । चाची ने हौले—हौले स्वर में बताया कि अभी मयंक भैया का शव अस्पताल से आना है। संस्कार दोपहर में होगा क्योंकि हैदराबाद से नेहा का इंतज़ार है । उनकी फ्लाइट सीधी नहीं है ना ।

दिव्या कुछ देर बाद बाहर अहाते में आई तो मारिया भाभी लाल साड़ी में सजी धजी अपनी सहेलियों से तैयारी का जायजा ले रही थी । अपनी सहेली प्रियंका को कह रही थी –“ एड येल्लो फ्लॉवर ! मयंक लाइक्ड दिस कलर ! ” टेबल पर पड़ी एक परीनुमा प्रतिमा को देखकर उत्कण्ठा हुई तो दिव्या ने पूछा “ ये क्या है ? ”

“दिस इस एंजल ऑफ डैथ है । शी विल कम तो रिसीव मयंक । ” मारिया भाभी भीगे स्वर में बोली थी । पानी में तैरते मोम के दीपक देखकर बोली –“ फ्लॉटिन्ग कैण्डल तो मयंक को बहुत पसन्द थे । ” साथ साथ वो फूलों की पंखुड़ियाँ अलग करते हुए पुष्पवृष्टि का इंतज़ाम कर रही थी...कभी अगरबत्ती जलाकर मयंक की फोटो के सामने रख रही थी तो कभी अपनी सखियों को बता रही थी कि जब मयंक को अन्दर लाया जाए तो किस तरह से पुष्प वर्षा करनी है । उसे कुछ समझ आने लगा था । मारिया भाभी की सहेलियाँ तो भारतीय थी । दिव्या भी उनके बीच जाकर खड़ी हो गई । वो आपस में बतिया रही थी “ मारिया का ये मेकअप बस आखिरी बार है । वो मयंक की अंतिम विदाई के लिए वो हर काम करना चाहती है जो मयंक को पसन्द था । ” दिव्या हैरान थी । अब उसे कुछ-कुछ भावनात्मक स्तर पर भी समझ आने लगा था ।

मयंक भैया के शव के साथ जब नेवी के जवानों ने गेट से प्रवेश किया तो दोनों ओर खड़ी मारिया भाभी की सहेलियों ने पुष्प ही पुष्प बिखेर दिए । सबकी रुलाई फूट पड़ी । जब शव को अहाते में रखा गया तो चाची का करुण क्रन्दन गूँज उठा ।

संस्कार की तैयारियाँ की जा रही थी । भाभी भैया के लिए कपड़े लेकर खड़ी थी । वो कपड़े जो उन्हें बहुत पसन्द थे। एक ब्ल्यू रंग का शॉल लिए खड़ी थी । “ यह उनके सीने से लगना चाहिए । यह साईं बाबा शॉल मयंक को बहुत पसन्द था । ” अब तो दिव्या मारिया भाभी की हर गतिविधि देखने को आतुर थी । मारिया भाभी ने उनके मुँह में गंगा-जल डाला । ऐसा लगा वो भारतीय संस्कृति के भी कुछ पहलू सीख गई हैं । हाँ ! दिव्या को याद आया भारतीय संस्कृति के पहलू सीखने की तो उनकी शुरू से ही तमन्ना रही । एक बार माँ ने बताया था जब मारिया भाभी को करवाचौथ के व्रत का पता चला तो वो हर साल रखने लगी थी । मयंक के साथ वो चाहे शिप में होती चाहे किसी भी देश में...चाची से करवाचौथ की तिथि पूछ कर व्रत ज़रूर रखती । दिव्या को भाभी की ये बात बहुत अपील करती थी ।

भैया के शव के इर्द-गिर्द सब घेरा बना कर बैठ गए । किसी को उन्हें ले जाने की जल्दी नहीं थी । मारिया भाभी अंग्रेजी की प्रार्थना के शब्द बोलने लगी । मेघल और मयूर भी अपनी माँ का साथ दे रहे थे । प्रार्थना मे उच्चारित शब्द कुछ समझ आ रहे थे जो बार-बार ईश्वर से कह रहे थे कि “ इस आत्मा को इतनी ऊँचाई देना कि पृथ्वी पर वापिस ना आ सके । इस आत्मा को इतनी सुखद नींद देना कि वो ख्वाब से जाग ना सके । ” दिव्या के सारे आँसू यह नज़ारा देखते हुए दंग होकर आँखों में स्थिर हो गए थे जो ना बाहर आ रहे थे ना ही सूख रहे थे । ये बस आँखों में टिमटिमा रहे थे ।

फिर मारिया भाभी ने अपना पर्चा पढा जिसमें मयंक भैया की खूबियों का ज़िक्र करते हुए वक्तव्य था कि मयंक को ढेर सारे रंगों से प्यार था जिसमें एक रंग मेरा भी था । भाभी का इशारा अपने गहरे काले रंग से था । फिर डबडबाती आँखों से भरे गले से बोली कि मयंक ने मुझे इतना प्यार दिया कि मैं इस प्यार के भरोसे ही सात समन्दर पार आकर अपना देश ,अपनी मिट्टी, अपने माँ-बाप और अपने परिवार को भुला सकी ।

मारिया भाभी ने सबको अपने विचार रखने को आमंत्रित किया कि आप भी जो मयंक के बारे में जो सोचते हैं आज कह डालिए । रुकें नहीं । कह नहीं सकते तो विज़िटर बुक पर लिख डालें । अब मुझे विज़िटर बुक का महत्व समझ आया था कि क्यों वो अपनी सहेलियों से पेन और विज़िटर बुक मंगवा रही थी । अभी फोटो, डिस्प्ले बोर्ड ,कुशन पिन की बात अब भी रहस्य बनी हुई थी । दूर नज़र पड़ी तो गेट के पास दो व्यक्ति डिस्प्ले बोर्ड रख रहे थे । उस पर ढेर सारी फोटो लगी थी । मयंक भैया के साथ बिताए ना जाने कितने क्षणों का लेखा-जोख़ा सामने आ गया । उसमें से कुछ फोटो तो दिव्या की एल्बम में भी थे । ऐसा लग रहा था कि मृत्यु का उत्सव मनाया जा रहा है । दिव्या मारिया भाभी के मेक-अप का राज़ समझ चुकी थी । दिव्या का मन उनके द्वारा मयंक भैया की अंतिम विदाई के लिए की गई तमाम सजावट की मन ही मन प्रशंसा कर रहा था । भले ही परिवार के लोग आलोचनात्मक दृष्टि से देख रहे थे । उनके लिए तो मारिया भाभी का रो-रोकर बुरा हाल हो जाना चाहिए था । अपना मुँह भी लोगों को नहीं दिखाना चाहिए था ।

मुझे अपने पड़ौस की मंजु भाभी याद आ रही थी जो अपने पति की मौत पर चूड़ियाँ तोड़ने की रस्म से बेहाल होकर अपने पति के अंतिम दर्शन भी नहीं कर पाई ना ही उनकी याद में कोई बात कह पाई ।

भैया के शव के उठते ही मारिया भाभी रो पड़ी और चाची के गले लग गई । अंतिम यात्रा में वो सबसे आगे थी शमशान घाट में चाहे फेरी लगानी हो या लकड़ी की आहुति देनी हो वो अपनी गहरी आँखों में नमी लिए हर काम शिद्दत से करती रही । परम्परा चाहे भारतीय हो या विदेशी उन्होंने हर परम्परा का निर्वाह किया ।

भारी मन से सब घर लौट आए थे । सब नहा-धोकर थोड़ा सुस्ता रहे थे । दिव्या ने भी सोफे के एक कोने में धंस कर आँखें बन्द कर ली थी । शाम को आँखें खुली तो मारिया का मेक अप विहीन चेहरा और बड़ी-बड़ी आँखों में सूनापन बहुत बड़ा तूफान गुजरने की कहानी कह रहा था ।

संगीता सेठी

1/242 मुक्ता प्रसाद नगर

बीकानेर (राजस्थान)

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