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शाम का सूरज - NATIONAL STORY COMPETITION JAN 18

शाम का सूरज

संगीता सेठी

माँ को कैसे समझा पाऊँगी कि....” ज्योति के मन में काले नाग सा यह प्रश्न सपेरे की बीन के सामने घूमता प्रतीत हो रहा था । सैंकडों साँप छाती पर लौट रहे थे पर समाधान कहीं नहीं नज़र आ रहा था ।

माँ ने बड़े भैया का नाम दीपक रखा तो लड़की पैदा होते ही उसका नाम ज्योति रख दिया था । माँ-बाबा का मानना था कि लड़का गर घर का दीपक है तो लड़की देहरी पर रखे दीपक की ज्योति होती है ।

“अरे इस कुनबे में तो दीपावली पर दीपक ना जले जब तक बेटी आकर देहरी पर दीपक ना रख जाये । ” माँ ज्योति की चोटियों में फूल बाँधते हुए उसकी पीठ पर धौल जमा देती ।

“ चल उठ ! अब ससुराल तो जब जायेगी तब आयेगी ना...अभी तो पूजाघर में जाकर दिया जला आ ! बाबा भी दुकान से आते होंगे ” माँ का प्रवचन चालू रहता और ज्योति अपनी दोनों चोटियाँ हिलाती हुई पीतल के दीपक को उजला माँजते हुए करीने से रुई की बाती रखती । तिल का तेल डालती और माचिस की डिबिया पर खस्स की आवाज से दिया सलाई सरका देती... “ लो माँ हो गई आपकी देहरी दिपावली सी उजली ” ज्योति माँ को हाँक लगा देती । वही ज्योति आज पिछ्ले माह से उसकी देहरी पर पड़ी माँ की उपस्थिति में दीपक की लौ को प्रज्ज्वलित करने के जुगत में दियासलाई को सरकाते हुए काँप-काँप क्यों जा रही थी । पिछ्ले दिनों बड़े भैया दीपक का चंडीगढ से फोन था-“ज्योति ! कुछ दिन के लिये माँ को अपने साथ ले जाओ । ”

“क्यों भैया ? आप कहीं जा रहे हो ? ”

“हाँ ज्योति ! हम साउथ घूमने जा रहे हैं । माँ इस उम्र में कहाँ घूम पायेंगी । ”

ज्योति ने अपने पति जगदीश से मशवरा किया और अगली सुबह ही बस से चंडीगढ के लिये रवाना हो गई । चंडीगढ पहुँच कर ज्योति को पता चला कि भैया को साउथ घूमने जाना एक बहाना भर हो सकता है पर भाभी का माँ के प्रति शिकवों का टोकरा कुछ ज्यादा था । दीपक भैया भी बोले –“ज्योति तुम कुछ दिन माँ को रख लो तो शायद माँ और भाभी दोनों को समझ आ जाये ।” ज्योति को भी “ कुछ समय की बात है ” जैसी बात लगी और माँ के साथ रहने का मौका अच्छा लगा । माँ को अपने साथ अम्बाला ले आई । यूँ तो पुरातनपंथी माँ बेटी की ससुराल की देहरी पर जाना पसन्द नहीं करती पर वो बहू की बातों से उकताई हुई जैसे पिंजरे में बन्द पंछी की तरह फड़फड़ा रही थी । सो बिना किसी ना नुकुर के ज्योति के साथ अपना अटैची बाँध कर चल दी ।

ज्योति के घर में सब स्वागत को तैयार थे । आवभगत में कोई कमी ना थी । छोटी देवरानी जब तब माँ से अचार बनाने के गुर सीखने लगी । बी.ए. के अंतिम वर्ष में पढने वाली ननद ने तो अपनी होमसाइंस की पूरी फाइल ही माँ की मदद से तैयार करवा ली । बुनाई के तमाम नमूनों के पैच बुनवा लिये । कढाई के सारे स्टिच सीखकर सुंदर रुमाल काढ लिये ।

अपने पसन्दीदा आम के अचार की फांकों को काटने से लेकर बरनी में भरने तक की प्रक्रिया को ज्योति ने भी पहली बार माँ के सान्निध्य में देखा था । पहले कभी फुर्सत ही नहीं पाई थी माँ के साथ । सीधे बरनी में ही दिखता था माँ के हाथ का बना हुआ अचार ।

हफ्ता दर हफ्ता बीत रहा था पर दीपक भैया के आने की कोई खबर ही नहीं थी । आखिर साउथ का ट्रिप 15 दिन से ज्यादा तो नहीं होगा ना ...। ज्योति ने आखिर एक दिन फोन किया ।

“भैया आप लौट आये हैं ? कैसा रहा ट्रिप ?” ज्योति ने उत्साह से पूछा था ।

“हाँ ! लौट आये ! ट्रिप अच्छा था ” भैया की आवाज़ ऐसी थी जैसे वो गये ही ना हों घूमने और ना लौट कर आये हों ।भैया जैसे भूल गये हों कि माँ तो ज्योति के पास हैं । ज्योति ने हैरानी से अपना सैलफोन कान से हटाकर स्क्रीन को आँखों से देखा कि उसने नम्बर तो सही लगाया है ना भैया को । माँ को लौटाने की बात तो ज्योति के हतोत्साह के बीच गौण हो गई थी ।

घर का हर सद्स्य अपना काम माँ से करवाने को आतुर था । उन्हें मालूम था माँ हफ्ते-दो-हफ्ते में चली जाएँगी । “ अरे तो क्या हुआ ? फोन पर पूछ लेना ! ” ज्योति की माँ प्यार से बोलती ।

“ अम्मा जी ! अब अचार की विधि तो फोन पर पूछी जा सकती है पर कढाई के टांके फोन पर कैसे बताओगी ? ” छुटकी ननद कहकर अम्माजी के गले में पीछे से बाँहे डाल देती ।

“व्हाट्स एप्प है ना ! ” ज्योति हँस पडती ।

माँ को आये चार हफ्ते से भी ज्यादा हुए जा रहे थे । ज्योति के मन की आशंका बढती जा रही थी । बेटी के घर में माँ कुछ दिन रहे वही क्या कम था पर अब तो भैया की भी हद हो गई थी । हिम्मत करके ज्योति ने भैया को फिर फोन किया था –“ भैया माँ को लेने कब आ रहे हो ”

इतने दिन भैया की टालमटोल आज गम्भीर आवाज़ में उभरी थी-“ ज्योति ! तुम तो जानती हो निशु के स्वभाव को । माँ से से नहीं बन पायेगी...तुम्हारे पास खुश है ना माँ ! ”

“ मेरे पास...हमेशा के लिये....पर ये कैसे सम्भव है....” ज्योति का आक्रोश दबे स्वर में था ।

“तो फिर कोई वृद्धाश्रम देख लो...पैसे का इंतज़ाम मैं कर दूँगा ”

“क्या.....???@## ” ज्योति बात करत हुए धम्म से सोफे पर धंसी तो कईं देर तक उठ ही नहीं पाई ।तो क्या भैया ने बड़ी कुशलता से माँ को ज्योति की तरफ सरका दिया था । तो क्या यह भैया की योजना थी या षडयंत्र या कि माँ को वृद्धाश्रम भेजने का पहला चरण ।वो माँ जिसने पाल-पोस कर बड़ा किया । बाबा के चले जाने के बाद भी दोनों को पढाया लिखाया,शादी ब्याह किये । आज वही माँ को वृद्धाश्रम की तरफ धकेलने की मुहिम चल रही है ।

ज्योति की कशमकश किसी तेज गाड़ी के पहिये की तरह चल रही थी । मेहमान के तौर पर तो घर में सबने माँ को हाथों पर रखा पर स्थायी रूप से रहने पर भी सब माँ की इज़्ज़त वैसी कर पायेंगे ।ज्योति का भैया को फोन करने का सिलसिला जारी था। ज्योति ने दुहाई दी कि मैं ससुराल में रहती हूँ भैया । सबको मालूम होगा कि तुमने माँ को छोड़ दिया है तो सोचो मेरी इज़्ज़त का क्या होगा..आपकी इज़्ज़त का क्या होगा । पर भैया का एक ही उत्तर था-“ ज्योति कोई अच्छा वृद्धाश्रम ढूँढने में मेरी मदद करो ।” ज्योति के विचारों का बवण्डर ऐसा था जिसे वो किसी के सामने भी प्रगट नहीं कर सकती थी । कहाँ जायें...किसको कहे...आज ज्योति की समझ से बाहर था । उसे अपनी सहेली विभा याद आई थी । वो उसी कॉलेज में सोशल साइंस की लेक्चरर थी । जहाँ उसकी ननद शालिनी पढ रही थी । उसने विभा को फोन किया –“अरे विभा ! मुझे कुछ वृद्धाश्रम के पते चाहिये जो हरियाणा पंजाब के बॉर्डर पर ही हों । ”

“क्यों क्या कोई रिसर्च करना है ? ” विभा की हँसी की आवाज़ उसके कानों को आज अच्छी नहीं लग रही थी ।

“हाँ ! हाँ ! यही समझ ले । जल्दी चाहिये ”ज्योति ने अपनी बात खत्म करने की ज़िद में फोन रख दिया था ।

विचारों का भंवर जैसे एक ही केन्द्र बिन्दु पर न रह कर अपना स्थान बदल बदल कर चक्कर लगा रहा था । माँ को कैसे बतायेगी...घर में कैसे बतायेगी...पति को कैसे भेज पायेगी वृद्धाश्रम...।आज शालिनी कॉलेज से आई तो चहक रही थी । अपनी स्कूटी पोर्च में रखकर सीधा किचन में चली आई । ज्योति शाम की चाय बना रही थी । “भाभी मेरी भी चाय बनाना ” शालिनी ने जमीन पर रेंगती नन्ही भतीज़ी परी को गोद में उठा लिया ।

भाभी आज हमारी सोशलोजी की प्रोफेसर ने क्या मस्त टोपिक पढाया । मेघालय की खासी जाति में भी मातृसत्तात्मक परिवार है । मेघालय की जनजातियों के बारे में पढा रही थी । मैंने प्रोफेसर मैम से पूछा कि ये मातृसत्तात्मक परिवार क्या है तो मैम ने बताया कि वहाँ स्त्रियाँ शादी के बाद ससुराल नहीं जाती है बल्कि अपने ससुराल आकर रहती है । और मैम मजाक करने लगी कि वहाँ स्त्रियों की चलती है ।भाभी कितना अच्छा हो न अगर हमारे यहाँ भी लड़की को ससुराल नहीं जाना पड़े । तो मैं यहीं रह जाऊँ अपने घर...वो लड़का आए मेरी चौखट पर...शालिनी लगातार बोल रही थी ।

जैसे...भाभी आप अपनी माँ के पास रहो...जैसे... अभी अम्मा अपने घर आई हुई हैं और फिर परी को ससुराल भी ना जाना पड़े.....वो आपके पास रह जाए....अमेज़िंग...लवली....और शालिनी ने परी को गोल-गोल घुमाकर चूम लिया ।

“ ज्यादा फैटसी में मत रहो.... तुम चाय पीओ ”ज्योति ने शालिनी की गोद से परी को लेते हुए कहा ।

“अरे हाँ भाभी ! ” शालिनी ने अपने पीछे टंगे बैग से एक कागज़ का पुर्ज़ा ज्योति को थमाते हुए कहा –“ भाभी ! ये विभा मैम ने आपके लिये दिया है । इसमें वृद्धाश्रम के पते हैं । मैम ने कहा है । अभी इतने ही मिले हैं । पहले इन पर रिसर्च करो फिर और भिजवा दूँगी ।

ज्योति का चेहरा फक्क हो गया जैसे किसी ने उसकी चोरी पकड़ ली हो ।

“ओह विभा ने तुम्हें पकड़ा दिया यह कागज़ ? ”

“भाभी कैसी रिसर्च कर रही हो ” दीपा भी बात सुनकर अपने कमरे से आ गई । ज्योति ने कागज़ के पुर्ज़े की तह खोली पर आज उसके मन का बाँध टूट गया और दो बूँदें टपक कर कागज़ पर उतर आई ।शालिनी और दीपा कुछ समझ ही नहीं पाई । ज्योति भाभी की आँखों में आँसू तो क्या कभी नम भी नहीं देखा था। घर के सभी सदस्यों को सम्भालने वाली ज्योति आज अश्रुधार में भीगी थी ।“ भाभी क्या हुआ...हमें भी बताओ ना...” शालिनी हतप्रभ थी ज्योति को नम देख कर ।“ माँ के लिये ....” भीगे स्वर में इतना ही कह पाई ज्योति ।“ भैया के घर में माँ को दिक्कत है क्या ? ” दीपा ने बात का मर्म समझते हुए पूछा ।“ हाँ...भैया भाभी नहीं चाहते कि माँ वापिस आये...वही बोले कि माँ का इंतज़ाम वृद्धाश्रम में कर दो...वो पैसे दे देंगे....” ज्योति आँसुओं को रोकने का असफल प्रयास कर रही थी ।“ तो क्या आप भैया की बात मान लोगी...और माँ को वृद्धाश्रम में ठेल दोगी ” दीपा ने तल्खी से कहा । तो इसके अलावा चारा भी क्या है दीपा..कब तक वो हमारी चौखट पर पड़ी रहेंगी...जगदीश को तो मैंने कुछ बताया भी नहीं ।

“ हम रखेंगे माँ को ! ” दीपा ने झण्डा गाड़ते हुए कहा... “ आखिर वो आपकी माँ है जिसने आपको जन्म दिया पढाया...लिखाया....आपका घर बसाया.....”आज आप माँ के बल पर ही तो इतनी अच्छी ज़िन्दगी जी रहे हो ....

“हाँ ! माँ हमारे साथ रहेगी...जैसे मेघालय की जनजातियों में मातृसतात्मक परिवार चलता है...और स्रियों की चलती है....हा....हा..” शालिनी ने माहौल को हल्का बनाते हुए कहा ।

“ पर जगदीश और देवर जी से भी बात करनी होगी ”ज्योति संजीदा होते हुए कहा ।“दीदी ! जब हम सहमत हैं तो उन्हें कहाँ आपत्ति होगी ” दीपा आज जैसे क्रांति के मंच से बोलती प्रतीत हो रही थी ।

“ आज से हम स्त्रियों की ही चलेगी इस घर में....” शालिनी घूमर करती हुई अपने हाथों को कमर से कन्धों के बीच झुलाने लगी ।“और रिश्तेदारों को क्या जवाब देगी दीपा...” ज्योति शंकित होकर बोली ।

“छोड़िये ना दीदी ....रिश्तेदारों की बातों के पीछे हम अपनी हीरे जैसी माँ को घर से बाहर कर देंगे ? ” दीपा के पास आज हर तर्क था ।

“..और आज से हमारे खानदान में मातृसत्तात्मक राज आ गया है...सुनो...सुनो...सुनो..! अब से ज्योति भाभी ज्योति साहिबा....और परी अपनी माँ के साथ रहेंगी...सुनो...सुनो...सुनो...” शालिनी थाली पर कलछी से टनटना कर ठिठोली कर रही थी ।

ज्योति ने दीपा को गले लगा लिया । शालिनी भी भाभियों की गलबहियाँ में घुस गयी –“ तो अब मुझे भी ससुराल नहीं जाना पड़ेगा ना भाभियों ”

एक ठहाका गूँज उठा तो माँजी कमरे से बाहर निकली “ये क्या देवरानी और जेठानी और ननद का मिलन समारोह हो रहा है ” आज एक नया सूरज निकला था क्षितिज़ में...हाँ “शाम का सूरज ” जिसे माँजी नहीं जान पाई थी ।

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