गौरी - 2 Ved Prakash Tyagi द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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गौरी - 2

गौरी भाग-2 (मानव)

प्रथम भाग में आपने पढ़ा कि कैसे गौरी का पूरा जीबन संघर्षपूर्ण रहा और किस तरह प्रतिकूल वातावरण होते हुए भी अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दे पायी – अब आगे –

स्कूल में मास्टर कृषण दत्त ने मुन्नू का नाम मानव रखा, चूंकि मुन्नू सुंदर तो था ही, गाँव के सभी बच्चों से अलग दिखता था, पढ़ने में होशियार होने के साथ-साथ आज्ञाकारी भी बहुत था और उसके इन्ही गुणों के कारण मास्टर पंडित कृषण दत्त उसको बहुत प्यार करने लगे थे। मास्टर कृषण दत्त एक स्वतन्त्रता सेनानी थे, आज़ादी की लड़ाई मे जेल भी गए थे, देश-भक्ति तो उनके रग-रग मे भरी थी, बच्चों को भी सदैव देश-भक्त वीरों की गाथाएँ सुनाया करते थे। पंडितजी के मन में गाँव को शिक्षित करने का एक जज़्बा था इसीलिए उन्होने गाँव के बीच मे बड़ के पेड़ के नीचे सभी बच्चों को इक्कठा करके पढ़ाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे गाँव वालों ने मिल कर एक स्कूल बनवा दिया और स्कूल की जमीन व कमरे सरकार को समर्पित कर दिये, इस तरह स्कूल सरकारी हो गया एवं मास्टर कृषण दत्त को सरकारी वेतन मिलने लगा लेकिन उन्हें वेतन से ज्यादा बच्चों की शिक्षा की चिन्ता थी।

मानव का छोटा भाई सूरज भी चार साल का हो गया, अब प्रताप सूरज को अपने साथ खेत में लेकर जाने लगा और उससे भी वही सब करवाता जो वह मानव से करवाता था। अतः मानव स्कूल से आकर अपनी किताबें घर पर रखता, थोड़ा कुछ खा लेता और तुरंत दौड़ लगाता था खेतों की तरफ जहां प्रताप सूरज से काम करवा रहा होता था। मानव को सूरज से प्यार बहुत था इसलिए यह सोच कर, ‘प्रताप भाई सूरज पर अत्याचार कर रहा होगा, सूरज काम करते करते थक गया होगा’, खेत की तरफ दौड़ पड़ता था। मानव को देखकर सूरज भी खुश हो जाता और दोनों भाई मिल कर काम करते, दोनों का मन भी लगा रहता, काम भी हल्का लगने लगता। इसी तरह काम करते करते समय गुजरता गया और दोनों भाई पढ़ते भी रहे। मानव के मन में प्रताप के प्रति एक द्वेष पैदा होने लगा, उसने एक दिन माँ से कहा, “माँ मैं बड़ा होकर प्रताप को सबक जरूर सिखाऊँगा”। माँ कहती, “बेटा ऐसा कभी मत सोचना, सदैव अपने ज्ञान व अपनी ताकत को स्वयं को आगे बढ़ाने मे लगाना और जीवन में इतने बड़े बनना कि प्रताप को भी तुम्हारी तरफ देखने के लिए गर्दन उठानी पड़े”। मानव ने माँ की बात गांठ बांध ली, घर का काम करने के साथ साथ पढ़ाई मे भी प्रथम आता था। मेधावी छात्र होने पर मानव को राष्ट्रीय छात्रवृति मिलने लगी जिससे वह अब नगर मे जाकर भी पढ़ाई कर सकता था। सूरज का भी दाखिला उसने नगर के राजकीय महाविद्यालय मे करवा दिया था। सूरज भी पढ़ने मे तेज था अतः उसको भी छात्रवृति मिलने लगी। मानव दूसरे बच्चों को पढ़ा कर भी कुछ धन कमा लेता, अतः दोनों भाई आगे की पढ़ाई आराम से करने लगे। दोनों भाइयों ने वंही नगर में एक कमरा किराए पर ले लिया और अपनी माँ को अपने साथ यह कहकर ले आए कि माँ साथ रहेगी तो हमें खाना बनाने की समस्या नहीं रहेगी। गौरी अपने दोनों बच्चों के साथ बहुत खुश थी, समय बीत रहा था और बच्चे आगे बढ़ रहे थे, मानव को देश के सबसे प्रतिष्ठित भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान से एमबीबीएस करने के लिए चुन लिया गया। ‘चिकित्सक बन कर देश सेवा करूंगा’ यही उद्देश्य था मानव का, इसी उद्देश्य को लेकर उसने एमबीबीएस प्रथम श्रेणी मे पास किया, लेकिन एक घटना ने उसके विश्वास को तार-तार कर दिया। मानव सफल चिकित्सक के रूप मे लोगों की सेवा कर रहा था, उसने चिकत्सा पद्यति मे एक नई खोज की, ‘एक मरीज की चिकत्सा करते हुए उसने कुछ ऐसा खोज निकाला जिसे देख कर उसके वरिष्ठ चिकत्सक काफी खुश हुए और हैरान भी’। उन्होने मानव को पूरी खोज के बारे में विस्तृत रूप से लिखने को कहा। मानव ने अपनी पूरी खोज को लिख कर अपने वरिष्ठ चिकित्सक को पढ़ने के लिए दिया। वरिष्ठ चिकित्सक ने उसे अपने पास पढ़ने के लिए रख लिया और कहा, “मानव मैं बाद मे इसे पढ़कर बताऊंगा”। मानव ने एक दो बार उनसे मिल कर पूछा भी लेकिन उन्होने यह कह कर मानव को टाल दिया, “अभी समय नहीं मिल पाया पढ़ने का“। एक दिन मानव का एक चिकत्सक मित्र मिलने आया जिसके हाथ मे एक पत्रिका थी जिसमे वही आर्टिक्ल छपा था जो मानव ने अपनी खोज के बारे मे लिखा था और अपने वरिष्ठ चिकित्सक को पढ़ने के लिए दिया था, वह आर्टिक्ल उसके वरिष्ठ चिकित्सक ने अपने नाम से इस पत्रिका में छपवा दिया था। मानव यह देख कर टूट गया और समझ गया की इस देश मे रहकर वह एक अच्छा वैज्ञानिक नहीं बन पाएगा जहां यथायोग्य लोगों की कद्र नहीं है। उसने माँ को सारी परिस्थिति समझा कर अपने विदेश जाने की बात कही। माँ को दुख तो बहुत हुआ लेकिन उसने बेटे के भविष्य को देखते हुए भारी मन से हाँ कर दी, मानव ने विदेश जाने की प्रक्रिया प्रारम्भ कर दी। परीक्षाएँ पास कीं, और चिकित्सा विज्ञान में शोध कार्य हेतु मानव को अमेरिका के एक प्रतिष्ठित संस्थान मे चुन लिया गया, मानव ने यह सूचना सबसे पहले गौरी को दी और कहा, “माँ तेरे आशीर्वाद से मुझे शोध कार्य के लिए चुन लिया गया है, अब कुछ ही वर्षों में मैं अपनी कड़ी मेहनत, लगन से कैंसर जैसी भयंकर बीमारी को समूल नष्ट करने की दवा खोज निकालूँगा एवं पूरी मानवता को इस भयंकर रोग की पीड़ा से बचाऊंगा।” समस्या रुपये पैसे की आ गयी तब मानव बोला, “माँ मैं यहाँ तीन चार साल नौकरी करके पैसे कमा लूँगा तब चला जाऊंगा”, लेकिन माँ बोली, “बेटा तुम जाने की तैयारी करो मैं रुपये पैसे की व्यवस्था करती हूँ”। गौरी ने अपने सारे स्वर्ण आभूषण जो उसकी शादी मे अपने पिता से मिले थे बेच कर धन की व्यवस्था कर दी और मानव विदेश चला गया।

सूरज ने वकालत करके वहीं गाँव में ही अपना कार्यालय बना लिया था, साथ मे खेत भी देखता था और माँ का ख्याल भी रखता था। गौरी को मानव की बहुत याद आती, अकेले में बैठकर रो भी लेती लेकिन किसी को भी ज्ञात नहीं होने देती। मानव को भी माँ की बहुत याद आती थी, माँ से बात करता था तो रोने लगता तब गौरी एक ही बात कहती, “बेटा मानव तुम्हें बड़ा आदमी बनना है, बड़ा वैज्ञानिक बनकर दुनिया मे अपना नाम प्रसिद्ध करना है, अगर इस तरह कमजोर बनेगा तो कैसे करेगा वह सब जो तूने सोच रखा है”। ऐसे ही समय गुजरता गया और मानव अपनी मंजिल के निकट पहुंचता गया।

आज गौरी बहुत खुश थी, मानव को नोबल पुरस्कार जो मिलने वाला था। इस पल की खुशी को महसूस करने के लिए ही गौरी ने पहले से ही घर पर केबल टीवी लगवा लिया, सूरज से कहकर एक सोलर इंवर्टर भी मँगवा लिया क्योंकि गौरी पूरी तरह से आश्वस्त होना चाहती थी कि अगर किसी कारणवश बिजली न आए या उस समय चली जाए तब इंवर्टर लगा कर दूरदर्शन पर मानव को नोबल पुरस्कार ग्रहण करते हुए देख सके। मानव ने कैंसर के इलाज़ के लिए एक ऐसी कारगर दवा की खोज की थी, जो कैंसर से पीड़ित मरीजों के लिए वरदान बन गयी।

गौरी अतीत के बारे में सोचने लगी कि कैसे मानव ने दिल्ली मे रहकर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान से एमबीबीएस किया और फिर यंही से एमडी की पढ़ाई पूरी की। अमेरिका के एक शोध संस्थान में आगे शोध कार्य करने के लिए मानव को फ़ेलोशिप मिल गयी परंतु गौरी चाहती थी कि मानव को शादी करके ही अमेरिका भेजूँ शोध कार्य से पहले शादी के लिए मानव तैयार ही नहीं हुआ। गौरी ने कहा, “बेटा, तुम बड़े हो और जब तक तुम शादी नहीं करोगे, सूरज भी शादी नहीं करेगा, अतः मैं चाहती हूँ कि तुम पहले शादी कर लो फिर अमेरिका जाना”। मानव ने कहा, “माँ, मैं वहाँ शोध कार्य के लिए जा रहा हूँ, शोधकर्ता को तो यह भी पता नहीं होता कि कब दिन निकला कब रात हो गयी, ऐसी परिस्थिति में आपकी बहू वहाँ पर, पराए देश में, अनजाने लोगों के बीच सुखी नहीं रह पाएगी, और अगर वह दुखी रहेगी तो आपसे शिकायत करेगी, आप मुझे डांटेगी, मुझे अपना काम छोड़ कर आपकी बहू का ध्यान भी रखना पड़ेगा, इस सब का मेरे कार्य पर विपरीत असर पड़ेगा, अतः मुझे कुछ दिनों के लिए मुक्त छोड़ दो जिससे मैं कुछ ऐसा कर सकूँ कि आपका नाम ऊंचा हो और मानव जाति की सेवा भी हो जाए”। गौरी को मानव की बात ठीक लगी और उसने मानव की शादी करने की जिद छोड़ दी।

मानव को घर छोड़े हुए कई साल हो गए थे, उसके मन मेँ दिन रात बस एक ही धुन सवार थी कि क्यों न कोई ऐसी दवा खोज ली जाए जो कैंसर को जड़ से मिटा सके। जब भी वह अस्पताल में कैंसर से लड़ते मरीजों को देखता था, उनकी तकलीफ और उनका दर्द उसके लिए असहनीय हो जाता था, तभी उसने सोच लिया था, “मैं एक ऐसी दवा बनाऊँगा जो कैंसर को जड़ से समाप्त कर देगी एवं मनुष्य जाति के अंदर से इस बीमारी की भयावहता को हमेशा-हमेशा के लिए मिटा देगी”। इसके लिए मानव ने कड़ी तपस्या की तब जाकर उसको सफलता मिली और उसकी इस सफलता की खुशी तो आज गौरी के मुंह पर एवं उसके घर मे देखने को मिल रही थी। गौरी खुशी से फूली नहीं समा रही थी एवं घर पास-पड़ोस के लोगों से भरा हुआ था। सब लोग मानव को नोबल पुरस्कार लेते हुए देखने के लिए एकत्रित हुए थे, वे सब उस पल के गवाह बनना चाहते थे जो पल मानव और उन सबको सबसे बड़ी खुशी देने वाला था। प्रताप भी आया हुआ था, हालांकि सूरज ने अपनी जमीन प्रताप से अलग कर ली थी और सुबह शाम खुद ही अपने खेतों की देखभाल करता था, फिर भी परिवार के साथ अच्छे संबंध बनाकर रखे हुए थे।

अचानक घर में पूर्ण शांति हो गयी क्योंकि दूरदर्शन पर मानव नोबल पुरस्कार लेने के लिए खड़ा हुआ और आखिर वह पल आ ही गया जिसका सबको बड़ी बेसब्री से इंतज़ार था। जैसे ही मानव ने नोबल पुरस्कार ग्रहण किया, घर में बैठे सभी लोगों ने जोरदार तालियों की गड़गड़ाहट से अपनी खुशी प्रदर्शित की। गौरी की आँख से आँसू रुक ही नहीं रहे थे, खुशी के आँसू छलक आए तो बस सब कुछ बहा लेने की कोशिश कर रहे थे “वह सारे दुख, वह सारे कष्ट और वह सभी यातनाएं जो गौरी और उसके दोनों बच्चों ने झेली थीं”। हालांकि वे गाँव के एक स्मृद्ध परिवार का हिस्सा कहे जाते थे लेकिन उनके परिवार की स्मृद्धी गौरी या उसके बच्चों को कोई सुख न दे सकी।

प्रताप भी बड़े ज़ोर से ताली बजा रहा था, मानव की इस उपलब्धि पर खुश भी बहुत था, यह सब उसके चेहरे पर साफ झलक रहा था। प्रताप और सूरज दोनों ने मिलकर सभी लोगों में लड्डू बांटे, गौरी ने लड्डुओं का प्रबंध पहले से ही कर लिया था। सभी लोग अपना अपना लड्डुओं का लिफाफा लेकर चले गए, अब सब घर वाले ही थे घर में, तब प्रताप कहने लगा, “चाची मैंने तो कभी पढ़ाई का महत्व समझा ही नहीं, और समझता भी कैसे, न माँ ने, न ही पिताजी ने कभी हमें पढ़ने के लिए कहा, बस कहा तो सिर्फ और सिर्फ रहट चलाने के लिए, पशुओं को चारा डालने के लिए। मैं भी तो चार साल की आयु से ही यह सब करता आ रहा हूँ, शायद कभी कोई झूठ-मूठ भी हमें स्कूल में ले जाकर बैठा देता तो शायद हम भी पढ़ लिख कर कुछ तो बन ही जाते। हमें तो बचपन से यही सिखाया गया, “तुम तो जमींदार हो, तुम्हें पढ़ कर क्या नौकरी करनी है, इतनी बड़ी खेती को कौन संभालेगा”। “चाची, कहने को तो हम जमींदार हैं लेकिन हमारी दशा तो बाल-मजदूरों जैसी ही रही।“

इतनी बात करते-करते प्रताप की आँखों से आँसू निकल आए, गौरी ने उसको पानी का गिलास पकड़ा कर ढाड़स बँधाया। लड्डू की प्लेट सबके सामने रख कर बोली कि आज बस पेट भर कर लड्डू खाओ। सभी ने पेट भर कर लड्डू खाये तभी प्रताप अचानक कह बैठा, “चाची मैं आपकी कोख से क्यो नहीं पैदा हुआ। गौरी बोली, “बेटा प्रताप अभी भी तुम मेरे ही बेटे हो, और ऐसा नहीं सोचो कि पढ़ लिख कर ही बड़े आदमी बन सकते हैं, बड़े काम करने के लिए मन मे विश्वास होना चाहिए, दृड़ निश्चय होना चाहिए और सच्ची लगन होनी चाहिए।” गौरी की बातें प्रताप को अच्छी लग रही थी, उसने तभी आश्वासन दिया, “हाँ, चाची मौका मिलेगा तो मैं भी करूंगा कोई बड़ा काम”। गौरी कहने लगी, “मौका तो मिल गया, मानव ने सभी के समक्ष घोषणा की है कि वह नोबल पुरस्कार मे मिली धनराशि से गाँव में अस्पताल बनवाएगा”। “प्रताप अब तुम सब भाइयों का कर्तव्य बनता है कि मिल कर यहाँ पर एक बढ़िया अस्पताल बनवाओ। प्रताप तुरंत बोला, “हाँ, चाची और अस्पताल का नाम हम ‘गौरी’ रखेंगे।” सब ने एक स्वर मे प्रताप की बात का समर्थन किया, ऐसे गौरी को एक पहचान मिल गयी। जीवन की कठिनाईयों की आग मेँ तप कर गौरी और उसके बच्चे खरा सोना बन गए थे इसलिए अब गौरी को अपने जीवन से कोई शिकायत नहीं थी।