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श्यामा

श्यामा

श्यामा हाथ में एक छोटा टिफिन पकड़े हुए ठुमकती हुई गोपाल के घर आई और छोटा टिफिन गोपाल के हाथ में रख कर बोली, “माँ ने आज गाजर का हलवा बनाया है, मैं तेरे लिए लेकर आई हूँ, चल जल्दी से गर्मा गरम हलवा खा ले।”

गोपाल अभी अपना होम वर्क कर रहा था कॉपी से अपना पैन और किताब से अपना ध्यान हटाये बिना बोला “हाँ रख दे, अभी होम वर्क पूरा करके खा लूँगा, होम वर्क छूट गया तो सर कितना मारेंगे तुझे पता है ना? और हाँ तूने खाया?”

“नहीं गोपाल, मैं तो घर जाकर खाऊँगी, अब तू हलवा खा और अपनी कॉपी, किताब व पैन मुझे दे दे, मैं तेरा सारा होम वर्क कर दूँगी।” श्यामा की सलाह पर गोपाल ने अपना पैन, कॉपी व किताब उसको दे दी एवं स्वयं छोटा हलवे का टिफिन खोल कर हलवा खाने लगा, लेकिन पहले एक चम्मच हलवा श्यामा को खिलाया।

“होम वर्क ठीक ठीक करिओ, गलत कर दिया तो कल मार मुझे पड़ेगी।” गोपाल ने हलवा खाते खाते श्यामा को हिदायत दी, फिर एक और चम्मच हलवे की भरकर मुंह में डाल कर चबाने लगा और बोला, “बहुत स्वादिष्ट है मन कर रहा है कि खाता ही जाऊँ।”

श्यामा और गोपाल दोनों ही चौथी कक्षा में पढ़ते, एक साथ स्कूल जाते, साथ-साथ वापस आते और कक्षा में साथ ही बैठते।

गणित के अध्यापक उमेश जी बड़े ही कडक थे, अगर कोई होम वर्क ना करके लाये या गलत करके लाये तो उसके हाथ आगे करवा कर गिन कर डंडे मारते थे।

गोपाल अपनी कॉपी चेक करवा रहा था, कॉपी देख कर अध्यापक महोदय उमेश जी का चेहरा तमतमा गया, “सब सवाल गलत कर रखे हैं, चलो हाथ आगे बढ़ाओ।” गोपाल ने चुपचाप अपना दायाँ हाथ आगे बढ़ा दिया, उनेश जी ने मारने के लिए जैसे ही तेजी से डंडा गोपाल के हाथ की तरफ बढ़ाया तो श्यामा ने बड़ी फुर्ती से अपना हाथ बीच में कर दिया और डंडा बड़े ज़ोर से श्यामा के हाथ पर लगा।

श्यामा का हाथ नाजुक तो था ही, ज़ोर से डंडा पड़ने से कुछ ज्यादा ही लग गयी, गोपाल ने श्यामा का हाथ अपने दो नन्हें हाथों के बीच में दबा लिया और ज़ोर ज़ोर से रोने लगा, साथ में श्यामा भी रोने लगी, यह सब देख कर उमेश जी भी सकपका गए और दौड़ कर प्रधानाध्यापक के कमरे से मरहम पट्टी का सामान ले आए।

उमेश जी ने श्यामा के हाथ पर मलहम लगा कर पट्टी बांध दी एवं दोनों बच्चों से माफी मांग कर कसम खाई कि भविष्य में किसी भी बच्चे की पिटाई नहीं करेंगे।

गोपाल बोला, “जब सर मेरे हाथ पर डंडा मार रहे थे तब तू अपना हाथ क्यों बीच में ले आई?”

श्यामा बोली, “गलत होम वर्क तो मैंने किया था, गलती मेरी थी फिर सजा भी तो मुझे ही मिलनी चाहिए थी लेकिन जब तुझे डंडा लगा ही नहीं तो तू ज़ोर ज़ोर से क्यों रोया था?”

गोपाल बोला, “तुझे इतनी ज़ोर से डंडा लगा, तुझे कितना दर्द हुआ होगा बस यही सोच कर मैं रोने लगा।”

कुछ दिन बाद स्कूल में जन्माष्टमी पर्व मनाने की धूम थी, नृत्य नाटिका के लिए राधा जी और कृष्ण जी की खोज शुरू हुई तो गणित के अध्यापक उमेश जी ने कहा, “नृत्य नाटिका राधा जी और कृष्ण जी के लिए श्यामा और गोपाल से ज्यादा उपयुक्त पात्र और कोई हो ही नहीं सकता, मैंने इन दोनों बच्चों का आपस का प्यार देखा है तभी से मुझे तो इनमे राधा जी और कृष्ण जी नजर आते हैं।”

श्यामा और गोपाल जब राधा जी और कृष्ण जी के रूप में स्कूल के मंच पर आए तो पूरा प्रांगण तालियों को गड़गड़ाहट से गूंज उठा, बाद में दादी ने दोनों बच्चों को गले लगा लिया और अनगिनत बलाइयाँ लेते हुए ढेर सारे आशीर्वाद दे डाले।

साथ साथ खेलते हुए, पढ़ते हुए दोनों बच्चे विश्व विद्यालय जा पहुंचे, पढ़ाई पूरी होने को थी कि श्यामा के लिए एक बहुत बड़े खानदान से रिश्ता आया। लड़का सुशील, सुंदर, हश्ट्पुष्ट व अच्छा पढ़ा लिखा था तो जल्दी ही शादी कर दी, और श्यामा विदा होकर ससुराल चली गयी।

श्यामा के ससुराल चले जाने के बाद गोपाल एकदम शांत सा रहने लगा, अब उसको श्यामा की बहुत याद आती थी, श्यामा के बिना उसको अपना जीवन अधूरा-अधूरा लगने लगा, वहाँ पर उसका मन भी नहीं लगता था, बूढ़ी बीमार माँ को अकेला कैसे छोडता।

माँ ने कई बार गोपाल से शादी करने को कहा, रिश्ते भी आ रहे थे, अच्छी नौकरी भी थी और सुंदर सुडौल शरीर का मालिक था, लेकिन शादी की बात पर वह हमेशा टाल जाता था। पिता के गुजर जाने के बाद माँ ने आस पड़ोस के घरों में चौका बर्तन करके ही गोपाल को पाला था, गोपाल तो इतना छोटा था कि उसको अपने पिता का चेहरा भी ठीक से याद नहीं था।

श्यामा एक अच्छे खाते पीते घर से थी, शहर के व्यस्त बाज़ार में श्यामा के पिता की सोने चाँदी के गहनों की बहुत बड़ी दुकान थी जहां पर कई नौकर व कारीगर काम करते थे। श्यामा को ससुराल में सब कुछ वैसा ही मिल गया जैसी सुख सुविधाएं उसके घर पर थी। दिनेश, श्यामा का पति श्यामा से बहुत प्यार करता था, दुकान से आकर घुमाने ले जाना, छुट्टी वाले दिन मोटर साइकल पर बैठा कर लम्बी दूरी तक तेज रफ्तार से शहर के बाहर जाना, बाहर ही खाना खाना देर रात तक घर आना, घर आकर श्यामा को कस कर अपनी बाहों में भर लेना और ढेर सारा प्यार करना लेकिन पता नहीं क्यों श्यामा को गोपाल की बहुत याद आती थी और उसको अपने पति का प्यार महसूस ही नहीं होता था।

एक छुट्टी वाले दिन दिनेश श्यामा को अपनी बाइक पर बैठा कर दूसरे शहर जाने वाली चौड़ी सड़क पर दूर निकल गया, बाइक पूरी रफ्तार पर थी तभी दिनेश बोला, “श्यामा, इस रफ्तार में तुम्हारा एक प्यार मिल जाए तो रफ्तार का मजा दोगुना हो जाएगा,” और उसने अपना चेहरा पीछे बैठी श्यामा की तरफ घुमा दिया, श्यामा कुछ कह पाती इससे पहले ही बाइक एक खड़े हुए ट्रक से जा टकराई, तेज रफ्तार बाइक कई फीट ऊपर उछल गयी और वे दोनों सड़क पर जा गिरे।

इस दर्दनाक हादसे में दिनेश ने तो मौके पर ही दम तोड़ दिया लेकिन श्यामा की कुछ साँसे चल रही थी, उसको अस्पताल में भर्ती करा दिया, सभी घर वाले दौड़े दौड़े अस्पताल आए।

गोपाल को जैसे ही पता चला वह भी दौड़कर अस्पताल गया, श्यामा को ऐसी हालत में उससे देखा ना गया और वह वहीं पर ज़ोर ज़ोर से रोने लगा। ससुराल वालों ने श्यामा को उसके हाल पर छोड़ दिया, उसके अपने घर वाले अस्पताल में उसकी देख रेख करते, साथ में गोपाल भी दिन रात सेवा में लगा रहता और भगवान से श्यामा के शीघ्र स्वस्थ होने की मनोकामना करता रहता।

श्यामा स्वस्थ होकर घर आ गयी लेकिन उसका वह चुलबुलापन खत्म हो गया था अब वह एक शांत श्यामा थी। घर वाले उसको खुश रखने की काफी कोशिश करते लेकिन वह चुप थी, गोपाल भी उसको हँसाने की कोशिश करता जबकि स्वयं गोपाल बनावटी हंसी हँसता था दिखाने के लिए या श्यामा को हँसाने के लिए।

गोपाल ने कोशिश करके अपनी कंपनी में ही श्यामा की नौकरी लगवा दी, दोनों साथ-साथ आने जाने लगे। बदलाव होने से और काम में लगे रहने से श्यामा थोड़ी खुश रहने लगी। सब कुछ ठीक ठाक चल ही रहा था कि गोपाल की माँ अचानक ज्यादा बीमार हो गयी, अस्पताल में दिखाया तो उन्होने कैंसर बता दिया एवं मुंबई जाकर इलाज़ कराने को कहा।

गोपाल माँ को लेकर और श्यामा से यह कहकर मुंबई चला गया, “श्यामा, मैं माँ का इलाज़ करवा कर जल्द वापस आऊँगा, इस बीच तुम उदास मत होना, मेरे आने की प्रतीक्षा करना।”

समय गुजर रहा था, “गोपाल नहीं आया, पता नहीं कब तक आएगा, कितने दिन तक चलेगा माँ का इलाज़?” ये सवाल श्यामा के मन में उठते रहते थे।

श्यामा अपने कार्यालय से घर वापस आई तो बैठक में एक सज्जन बैठे हुए थे, घर के अंदर गयी माँ ने बताया, “बेटा! ये भले इंसान तेरा हाथ मांगने आए हैं, इनकी पत्नी एक हादसे में गुजर गयी थी, दो बच्चे हैं जिन्हे माँ का प्यार चाहिए, भरा पूरा घर है, किसी तरह की कोई कमी नहीं है, तू राज करेगी, हम ने तो हाँ कह दिया है, अब हमारा क्या भरोसा कितने दिन रहें और तू भी कब तक अकेले जीवन काटेगी, हम तो यही चाहते हैं कि तू भी हाँ कर दे।”

“लेकिन माँ, वो गोपाल! वो तो मुझे बोल कर गया थे मेरी प्रतीक्षा करना,” श्यामा ने माँ से कहा।

माँ बोली, “बेटा! उसका क्या भरोसा, वापस आए ना आए, यहाँ उसका कोई मकान तो है नहीं, किराये पर रहता है और फिर उसने कभी तेरा हाथ थामने की बात तो कही नहीं, अब तू उसको भूल जा और अपना घर नए सिरे से बसा ले, भाग्य आज तेरे द्वार पर आया है, रोज रोज नहीं खुलते भाग्य के दरवाजे, आज तू सब कुछ भूल कर इस अपने भाग्य को अपना ले।” भईया और भाभी ने भी श्यामा को काफी समझाया फिर भी श्यामा अनमने मन से बोली, “जैसा आप लोग चाहे।”

गोपाल मुंबई जाकर अस्पताल में माँ के इलाज़ का दौरान इतना व्यस्त हो गया कि एक पत्र भी श्यामा को नहीं लिख सका, टेलेफ़ोन सुविधा तो उन दिनों नाममात्र ही थी। गोपाल ने वहीं पर एक कंपनी में नौकरी भी कर ली थी जिससे उसका खर्चा चलता रहे, बीच बीच में जैसे ही समय मिलता श्यामा को याद कर लिया करता, वैसे तो श्यामा तो हर समय उसके मन में बसती थी।

समय तो लगा पर बेटे की सेवा और चिकित्सकों के सही इलाज़ से गोपाल की माँ बिलकुल ठीक हो गयी, माँ को लेकर गोपाल वापस अपने शहर अम्बाला आ गया।

घर का ताला खोल कर साफ सफाई की और माँ को बिस्तर पर लिटा दिया, दोनों ही लम्बी रेल यात्रा में थक गए थे। माँ तो सो गयी, गोपाल दौड़ा दौड़ा श्यामा के घर गया, श्यामा को वहाँ ना पाकर उदास हो गया, सामने श्यामा की माँ खड़ी थी, गोपाल ने नमस्ते किया, “चाची नमस्ते! मैं आज ही आया हूँ, माँ अब ठीक है, दूर की यात्रा के कारण थक गयी थी इसलिए सो गयी, माँ को सुलाकर मैं यहाँ चला आया, आप लोगों से मिलने…….. श्यामा कहाँ है, दिखाई नहीं दे रही?”

“बेटा श्यामा तो अपनी ससुराल चली गयी।”माँ ने बोला।

गोपाल ने पूछा, “उसके ससुराल वाले मान गए थे उसको ले जाने के लिए? अस्पताल में तो वे लोग उसे ऐसे छोड़ कर चले गए थे जैसे उनका श्यामा से कोई रिश्ता ही ना हो।”

“नहीं बेटा! वो नहीं ले गए, हमने श्यामा की दूसरी शादी कर दी, बहुत अच्छा लड़का है, दो बच्चे हैं, अमीर घर है और क्या चाहिए था उसको, राज करेगी।” माँ ने कहा।

गोपाल दुखी होकर घर वापस आ गया, ऐसे ही कुछ दिन बीत गए, जब गोपाल से रहा नहीं गया तो श्यामा की माँ से आज्ञा लेकर एक दिन श्यामा से मिलने उसकी ससुराल चला गया।

दोनों बच्चे श्यामा को अपनी माँ मानने को तैयार ही नहीं थे और गालियां भी देते थे, पति शराब के नशे में धुत गालियां देता हुआ घर में घुसा। जिसके बारे में उसकी माँ ने सोचा था कि रानी बन कर रहेगी, वह आज नौकरनी बन गयी, सारा रंग रूप चला गया, उम्र से पहले ही बुढ़ापा झाँकने लगा। यह सब देख कर गोपाल को बड़ा दुख हुआ।

बच्चों की शिकायत पर उस अधेड़ विधुर पति ने लट्ठ उठाकर श्यामा को मारना चाहा तो गोपाल ने बीच में ही पकड़ लिया, इस पर वह और भी भड़क गया, “अच्छा! यह है तेरा यार, इसके बिना तेरा मन नहीं लगता, अगर इतना ही प्यार है तो जा भाग जा इसके साथ, कर ले इसी से ब्याह।”

श्यामा का ना जाने कब से दबा हुआ गुस्से का उबाल फूट पड़ा और बोली, “हाँ! अब मैं इससे ही ब्याह करूंगी, गोपाल करोगे ना मुझसे ब्याह?”

गोपाल बोला, “हाँ श्यामा! मैं करूंगा तुझसे ब्याह, मैं करूंगा तुझसे ब्याह, तू इससे अभी तलाक ले ले और चल मेरे साथ।”

गोपाल श्यामा को लेकर घर आ गया और सारी बातें उसकी माँ को बताई। गोपाल ने यह भी बताया कि उस व्यक्ति ने अपनी पहली पत्नी को पीट पीट कर मार दिया था, कोई हादसे में नहीं मरी थी वो और अगर श्यामा कुछ दिन और वहाँ रहती तो वो इसको भी ऐसे ही मार देता, अब चाची आप उससे तलाक दिलवा कर श्यामा का ब्याह मुझसे कर दो, मैं इसको सदा खुश रखूँगा।

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