वहीं सुहाना और विधुर के घर बेटे का जन्म हुआ, सारा घर खुशियों से झूम उठा था। खूब जशन मनाया गया सभी रिशतेदार आकर बधाई देने लगे। विधुर की तो खुशी का ठिकाना ही नहीं था उसको पापा कहने वाला जो आ गया था। ऐसे ही खुशियों से दिन बीतने लगे थे और सुहाना अपने परिवार में व्यस्त थी। वहीं अमन भी कभी कभार आया करता था। विधुर की अमन के साथ बहुत बनती थी। सुहाना को भी अमन अच्छा इन्सान लगता था जो अभी किस्मत के साथ झूझ रहा था पर हार नहीं मानी थी। विधुर रोज़ समय से अपने काम पर चला जाता था और खूब मन लगा कर काम करता था। सास ससुर जी को भी खेलने के लिए मानव जैसा पौता मिल गया था उनका वक्त उसके साथ रौनक में अच्छा व्यतीत हो जाता था। धीरे धीरे समय बीतने लगा मानव अब बड़ा होने लगा था उसकी शरारतों और खेल से सारा घर खुशनुमा हो जाता था। मानव सारा दिन पापा की रट लगाकर रखता था उसको बस पापा से मिलना होता था। जब विधुर घर आता तो वो भाग कर पापा के साथ लिपट जाता और कोई चीज़ दिलाने री जिद्द करने लगता था। विधुर भी उसकी फरमाइशें पूरी करने में कोई कसर नहीं छोड़ता। कुछ सालों बाद सुहाना के घर एक और बेटे का जन्म हुआ माही जिसे पाकर मानव को लगा कि उसे कोई खिलौना मिल गया है और सुहाना और विधुर को लगा कि अब मानव के साथ कोई खेलने वाला आ गया है।ऐसे ही दिन बीतने लगे थे। मानव अब स्कूल भी जाने लगा था और माही भी बड़ा होने लगा था। मानव और माही अब स्कूल जाते थे। ज़िन्दगी ऐसे ही हंसते खेलते,रूठते मनाते अपनी रफ्तार से चली जा रही थी। सभी अपनी अपनी जगह खुश थे। मानव अब दसवीं कक्षा में पहुंच गया था और माही अभी छठी कक्षा में था। अचानक एक दिन विधुर यहां काम करता था वहीं उसके ऊपर गोदाम में रखी भारी भारी चीज़ें गिर गईं। वो नीचे दब गया उस समय वहां कोई भी मौजूद नहीं था सभी बाहर काम में लगे थे। विधुर की वहीं मौत हो गई, जब काफी देर तक विधुर बाहर नहीं आया तो दुकान पर काम कर रहे लड़कों ने गोदाम में जाकर देखा तो विधुर मर चुका था जल्दी ही घर पर संदेश भेजा गया था। घर में तो गम का माहौल बन गया था सुहाना तो बेहोश हो गई थी । बच्चे भी स्कूल से आकर पिता को इस तरह देखकर फूट फूट कर रोने लगे थे। सुहाना के परिवार पर तो गमों का पहाड़ टूट पड़ा था। बड़ी ही मुशकिल से संस्कार की सभी रस्में पूरी की गई थी । घर तो जैसे काटने को दौड़ रहा था। मां बाप का तो सहारा उनसे छिन गया था पर सुहाना, मानव और माही की तरफ देखकर वो सब्र कर रहे थे। कुछ दिन बीतने पर अब दुकान पर कौन बैठे उन्हें समझ नही आ रहा था। गौदाम और दो दुकानों का काम संभाल पाना ससुर जी के बस की बात नहीं थी वो तो वैसे भी बीमार रहते थे। सुहाना भी नहीं बैठना चाहती थी और न ही बच्चों को दुकान पर बैठाकर उनकी पढ़ाई के साथ कोई समझौता करना चाहती थी। एक दिन अमन अपनी बुआ से मिलने आया हुआ था तो बातों बातों में दुकान को संभालने और चलाने बात चली तो अमन जो आगे ही काम की तलाश में था दुकान पर बैठने के लिए वो राज़ी हो गया था। पर रोज़ रोज़ अपने घर से बुआ के घर आता था तो बहुत समय लगता था जिससे मुशकिल हो रही थी । फिर उन्होने अमन को वहीं रहकर काम करने की सलाह दी। बुआ और फूफा जी तो वैसे ही काम नहीं कर पाते थे अब बेटे के गम ने उन्हें और बीमार कर दिया था। ऐसे मे अमन का उनके घर में यूं रहना कुछ लोगों को खल रहा था। अमन तो मजबूर था काम के हाथों और कहीं न कहीं उसके मन में दुकान को अपना बनाने का लालच भी घर कर गया था। सुहाना अमन के खाने पीने का पूरा ख्याल रखती थी। सास ससुर जी की सेवा में भी कोई कसर नहीं थी। बच्चो को भी पूरा प्यार मिल रहा था कहीं सुहाना अमन को न चाहते हुए भी पसंद करने लगी थी। अमन को तो सुहाना बहुत अच्छी लगती थी पर पुनर्विवाह जैसे फैसले पर उसने कुछ नहीं सोचा था। धीरे धीरे घर के काम, बुआ जी फूफा जी को डाक्टर के पास ले जाना जैसी देखभाल करने लगा था । यहां तक रि बच्चों के स्कूल की फीस या जाना कोई काम वो सब में दिलचस्पी से करने लगा था और विधुर की एक तरह से जगह ले ली थी। पहले तो सास ससुर जी ने सुहाना को समझाने की कौशिश की कुछ कड़वी बाते भी सुनाने लगे थे । पर वो डरते भी थे कि कहीं सुहाना घर छोड़कर बच्चों को लेकर न चली जाए। उसके घरवाले उसका पुनर्विवाह न करा दे। पर बच्चों को भी यह सब पसंद नहीं था यूं अमन का उनकी मां से खुलकर बात करना उनके पसंद नहीं आ रहा था। सुहाना के मन में कशमकश सी चल रही थी वो विधुर से बहुत प्यार करती थी पर अपने बच्चों और सास ससुर को अकेले संभाल पाना उसे बहुत मुशकिल सा लग रहा था। अमन का यूं घर पर रहने आना वो न चाहते हुए भी अमन को बच्चों के जरूरतों के सामान और घर की जरूरतो का सामान मंगवाने लगी थी। फिर यह बात फैलते देर नहीं लगी कि अमन तो बिन फेरे ही सुहाना का दूसरा पति बन गया है। बात तो अमन और सुहाना तक भी पहुंच गई थी । सास ससुर जी भी जान चुके थे और बेबस से लग रहे थे । वहीं लोगो ने तो मुंह पर भी बोलना शुरू कर दिया था कि शादी भी करा दो अब। पहले तो बुआ और फूफा जी थोड़ा हिचकिचा रहे थे कि सुहाना को दो बेटे के संग क़्या अमन अपनाएगा भी। पर जब हिम्मत कर के उन्होंने बात की तो अमन राज़ी हो गया । वो तो वैसे भी हालात का मारा था उसे दुकाने,घर और सुहाना जैसी पत्नि मिल रही थी। सुहाना भी मान गई तो उनकी शादी हो गई। शायद बच्चों से पूछना वो भूल गए थे। मानव और माही अमन को पापा के रूप नहीं अपना पाए और मां और अमन का पुनर्विवाह उनके लिए अभिशाप सा लग रहा था। मानव और माही ने मां से बात करना ही बंद कर दिया। अमन को पापा बुलाना या समझना तो बहुत दूर की बात थी। सास ससुर जी भी बीमारी से चल बसे। समय बीतता गया पर मानव और माही मां से दूर होते जा रहे थे। उन्हें लगता था अमन से शादी कर के मां ने उनका भविष्य खराब कर दिया है। वहीं अमन के चाहते हुए भी सुहाना ने कभी भी किसी बच्चे को नहीं पैदा होने दिया और ज़िन्दगी यूंही अधूरी अधूरी सी हर किसी के लिए चलती रही। ।।।
समाप्त !