हवाईजहाज़ Pawnesh Dixit द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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हवाईजहाज़

हवाईजहाज

Pawnesh Dixit


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. .परिप्रेक्ष्य ध् स्वीकृति ..

ष्प्रस्तुत कहानी में चित्रित किये गए सभी —ंउचयश्य एघटनाएं एपात्र ए कहानी का शीर्षक ए सभी काल्पनिक हैं इनका किसी क्षेत्र विशेष में घटी सजीव घटना से कोई सरोकार नहीं है यदि इन घटनाओं ए पात्रों ए—ंउचयश्यों का किसी सजीव घटना से सम्बन्ध पाया जाता है तो ये महज संयोग मात्र होगा | इसमें लेखक का कोई उत्तरदायित्व नहीं होगा | कहानी की विषय वस्तु ए संवाद एआदि लेखक के स्वतंत्र विचार हैं |

हवाईजहाज

अचानक से बहुत खुश हो गयी थी जब से उसने अपने साहब के मुहं से ये सुना था कि अपनी जिंदगी में हर किसी को हीरो होना चाहिए चाहे भले उसका काम कुछ भी क्यूँ न हो ! मतलब साफ था आज जब मैला —सजय़ोने आयी आशा कुछ उखड़ी .उखड़ी थी और वह सरकारी अफसर समझ गया था कि आज कोई बात तो है जो आशा उनसे छुपा रही थी | रोज की बकबक करनेवाली वह आज चुपचाप कैसे अपना काम कर रही थी ! यह आश्चर्य की बात थी |

बहुत लम्बे समय से वह एक ही सपना देख रही थी कि एक दिन इतना पैसा कमा लेना है कि हवाईजहाज में आराम से बैठकर उड़ सके | अब गरीब थी ए तो ये भी सोच लेती थी कि शानोशौकत तो आने से रही लेकिन सपना तो सपना होता है वह गरीब अमीर की पहचान तो कर नहीं पाता |

सारी उम्मीदों पर पानी तब फिरने लगा था जब उसके पति ने उसे झिड़क दिया था यह कहकर कि बड़ी आयी हवाइजहाज में बैठनेवाली !! श्रिंगार तो —सजय़ंग से होता नहीं चली हैं महारानी उड़ते घोड़े पर सवारी करने !!

यही चिंता में डूबी थी कि कहीं उसके बचाए हुए पैसों को उसका पति उससे छीन न ले | जैसे तैसे आगे अपना मैला —सजय़ोने के काम को आगे ब—सजय़़ाते हुए दूसरे घर गयी दूसरे से तीसरे तीसरे से चौथे फिर घर आ गयी लेकिन आज वास्तव में वह परेशान हो गयी थी बिलकुल ऐसे ही और यही डायलोग उसकी माँ ने बचपन में उसे डांटते समय बोला था | उस दिन भी वह बहुत चि—सजय़़ी थी | न घर का काम किया और न खाना पीना न बाजार बस मुहं फुलाकर एक कमरे में बैठ गई थी लेकिन आज उसके सर पर जिम्मेदारियों का बोझ था अब बचपन नहीं ए जवानी का वक्‌त था |

खाना बनाते हुए यही सब सोचते हुए दिन आगे ब—सजय़ता जा रहा था और वह अपने पुराने खयालों में खोती जा रही थी और अपने काम जैसे .तैसे निपटाती जा रही थी |इधर उसका बच्चा भूख से बिलबिला रहा था उसे दूध पिलाया और अपने रोज के कामों में पुनः लग गयी |

बीमार बच्चे को डॉक्टर को दिखाने न जाना पड़े इसके लिए खुद घर पर ही देशी उपचार कर लेती है और पैसे बचा लेती है | यहाँ तक कि पति को भी फालतू नहीं खर्चने देती थी | लेकिन उसकी खराब आदतों और गराममिजाज के चलते मजबूरन उसे घरखर्च में से हर महीने पैसा देना पड़ता था | इसी के चलते कई महीनों या कहें कई सालों से वह इतना पैसा नहीं जोड़ पा रही थी कि बचपन में देखे अपने एक अरमान को पूरा कर सके | बचपन का समय ही ऐसा होता है कि कोई नयी अदभुत चीज देखते ही मन उस ओर लपक ही जाता है | ऐसा ही आशा के साथ भी हुआ था |

एक दिन मैदान में खेलते हुए उसने जब हवाईजहाज को आसमान में उड़ते देखा था तब तो डर ही गयी थी फिर अम्मा ने ही उसे बताया था कि इसे हवाईजहाज कहते हैं | बड़े लोगों की सवारी होती है आसमां में उड़ती है | बस एरेलगाड़ी और मोटरगाडी सबसे तेज चलता है और मीलों का सफर चंद घंटों में ही तय कर देता है | अगर अम्मा ने इत्ता सब बताया न होता तो वह उसे एक भयावह जीव ही समझ बैठती जो आसमान में पंख फैलाये गर्जने की ध्वनि के साथ उड़ता भी है |

ये सपना देखे अब कई वर्ष हो चले थे अब उसका सब्र का बांध टूटता ही जा रहा था वजह साफ थी उसमें बैठने की रकम न जुटा पाना | वह अब दिनों दिन इसी चिंता का शिकार होती जा रही थी कि वह कहाँ से पैसे लाये और अपने इकलौते सपने को पुरा कर सके |

वषोर्ं की घुटन अब चिडचिडेपन में तब्दील हो चुकी थी | न बच्चे की देखभाल में उसका मन लगता था न पति की सेवा में न घर के काम .काज में | ये उसी की कारगुजारी थी कि बीमार बच्चे का इलाज —सजय़ंग से नहीं करवाया और मौत के मुहं में झोंक दिया |

इसी गम में पति भी दारू की लत का शिकार हो गया बजाय उसे बचाने के वह पक्की धुनी हो चुकी थी अपने सपने को पूरा करने में सोते जागते उठते बैठते यही सपना कई वषोर्ं से देखा था एक अजीब सी सनक कह ले या दीवानापन था अपने सपने को हकीकत बनाने में | वह अपनी और सहेलियों की तरह पति की सेवा और बच्चे को मेवा खिला खिला कर चूल्हा .चौका में अपना समय नहीं गंवाना चाहती थी |जल्द ही पति भी अल्ला को प्यारा हो गया | अब वह दुःख मनाती या समाज आस पड़ोस के ताने सुनती या फिर घर द्वार छोड़ छाड़कर निकल पड़ती अपने इकलौते सपने को पूरा करने |

स्वेच्छा से वही चुनाव किया जो उसे बहुत पहले ले लेना चाहिए था जब न तो उसकी शादी हुयी थी न बच्चा था कम से कम वे मौत के मुहं में तो न जाते | अक्सर ऐसा ही होता है जब तक इंसान स्वयं से जुड़े किसी मजबूत फैसले पर पहुँचता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है और उसकी जिंदगी के साथ और कई लोगों की जिंदगी दांव पर लग चुकी होती है |

दूसरे शहर जाकर एक छोटी मोटी नौकरी की और अपने सपने को पूरा करने के जुगत भिड़ा ही मारी दो तीन महीनों में ही इत्ता पैसा हो गया कि वह हवाईजहाज का टीकेट खरीद सके |

टीकट खरीदने से पहले बहुत लम्बी सांस भरी और जैसे ही अपना पाँव हवाईजहाज के डेक पर रखा ऐसा लगा उसे कि जन्नत मिल गयी हो लेकिन चेहेरे पर वह खुशी नहीं थी जो होनी चाहिए थी शायद अपने पति बच्चे को याद कर रही हो या अपने उन सहेलियों के मजाक को जो उन्होंने उससे कहा था .एक वक्‌त में गरीब लोग हवाईजहाज को उड़ते ही देखकर बैठ लेते हैं | ज्यादा ऊँचे खवाब देखेगी तो हवाईजहाज छोड़ सर पर भी एक छत नहीं बचेगी | आज उसे अपने घर की छत तो नहीं लेकिन हवाईजहाज की छत जरुर दिखाई दे रही थी | जिंदगी से खुश थी या नहीं लेकिन अपना इकलौता सपना पूरा करने की खुशी जरुर थी |श्ये सब देख कलियुग पास खड़ा जरुर हंस रहा होगा ||