कर्मों का फल Ved Prakash Tyagi द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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कर्मों का फल

कर्मों का फल

रात के खाने के बाद बहू बोली, पिताजी आज दूध तो फट गया है, आज तो दूध नहीं मिलेगा और मेरी दायीं आँख भी फड़क रही है कहीं कोई अपशकुन न हो जाए। विक्रम सिंह ने कहा कोई बात नहीं बेटा मैं तो बस अपने पोते को लेकर घेर में जा रहा हूँ इसे कहानी सुनकर सो जाऊंगा तुम लोग अपना ख्याल रखना। अचानक विक्रम सिंह बंदूक की गोली चलने की आवाज सुनकर जाग गया था। उसने झांक कर देखा कि कोई स्त्री किसी बंदूकधारी के पैरों मे गिरकर गिड़गिड़ा रही है, अपने पति के प्राणों की भीख मांग रही है, जबकि उस के पति को एक गोली लग चुकी थी। बंदूकधारी चिल्ला रहा था कि नहीं हम इसे जिंदा नही छोड़ सकते, अगर यह जिंदा रहा तो हमारे लिए खतरा बन जाएगा। उस महिला ने बंदूकधारी के पैर और भी कस कर पकड़ लिए एवं कहने लगी कि मैं इसका इलाज़ चुपचाप करवा लूँगी, हम किसी को कुछ नहीं बताएँगे, आप हमे माफ कर दो, मेरे पति के प्राणों की भीख मुझे दे दो, बदले में मेरे सभी गहने, मेरा सारा धन एवं मेरी मान मर्यादा जो भी तुम्हें चाहिए सब ले लो लेकिन मेरे पति को छोड़ दो। बंदूक हाथ में थामे वह व्यक्ति कोई शातिर अपराधी, डाकू या लुटेरा नहीं था वह तो अपने भाइयों को साथ मे लेकर उस व्यक्ति को मारने आया था जिसका उस इलाके में आतंक था और जिसके डर से लोगों ने खेतों मे जाना भी छोड़ दिया था। वह दुर्दांत अपराधी विक्रम के पड़ोस मे ही रहता था लेकिन विक्रम व उसके परिवार वालों का उस खौफनाक गुंडे से कोई भी संबंध नहीं था और न ही वे उससे किसी तरह का मतलब रखते थे। उस दुर्दांत खौफनाक गुंडे ने बंदूकधारी व्यक्ति के बड़े भाई को कुछ दिन पहले ही ट्यूब वेल पर सोते समय गोली मार दी थी जिससे वह वंही पर मर गया था। उसी का बदला लेने के लिए बंदूकधारी अपने भाइयों को साथ लेकर उस दुर्दांत गुंडे को मारने आया था। विक्रम सिंह ने धीरे से दरवाजा खोला एवं दबे पाँव उस बंदूकधारी के पास पहुँच गया जहां वह स्त्री विलाप कर रही थी उसका करुण रुदन विक्रम सिंह को विवश कर रहा था कि वह उसकी और उसके पति कि रक्षा करे। पास मे एक नौजवान बंदूक की गोली से घायल खून में लथपथ कराह रहा था एवं वह स्वयं भी विनती कर रहा था कि मुझे छोड़ दो मैं किसी को कुछ नहीं बताऊंगा। विक्रम सिंह ने आवाज पहचानी जो उसके अपने बेटे की आवाज थी और उसके देखते-देखते ही बंदूकधारी बदमाश ने उसके बेटे के सीने मे दूसरी गोली उतार दी। विक्रम सिंह के बेटे को गोली मार कर एवं अपनी पूरी तसल्ली कर के कि वह मर चुका है बंदूकधारी अपने साथियों सहित वहाँ से चला गया। वह तो वास्तव मे उस व्यक्ति को मारने आया था जिससे उनकी दुश्मनी थी उसी के लिए वह लोग घात लगाकर बैठे थे लेकिन जैसे ही विक्रम सिंह का बेटा रात मे घर से बाहर निकला तो उन्होने उसको ही अपना दुश्मन समझ लिया एवं गोली दाग दी, गोली उसके बाएँ हाथ मे जा घुसी और वह वहीं जमीन पर गिर कर शोर मचाने लगा। उसकी आवाज सुनकर उसकी पत्नी दौड़ कर बाहर आई एवं बाहर का दृश्य देखकर घबरा गयी। युवक की आवाज जब बंदूकधारी ने सुनी तो वो समझ गए कि गोली गलत आदमी को मार दी है, और विचार किया कि अब अगर इसको जिंदा छोड़ा तो हम सब पकड़े जाएंगे। उसकी पत्नी उनके पैरों में गिरकर अपने पति के प्राणों कि भीख मांग ही रही थी कि उस बंदूकधारी ने एक और गोली उस युवक के सीने मे उतार दी और अपने बाकी साथियों के साथ वहाँ से चला गया, अपने पीछे छोड़ गया एक युवक की लाश, एक बिलखती हुई युवती और एक बेबस बाप जो कभी अपने पुत्र की लाश की तरफ देखता एवं कभी बिलखती हुई पुत्रवधू की तरफ, वह रो भी नहीं सका बस हतप्रभ खड़ा देखता रह गया। उसका सिर चकराने लगा था जब उसके सामने ऐसा ही एक तीस साल पुराना दृश्य घूमने लगा और अनायास ही वह कह उठा काश उस दिन मैंने भी उस नवविवाहिता की विनती सुन ली होती और उस नवविवाहित युवक को जीवित छोड़ दिया होता तो आज मेरा बेटा भी जिंदा होता। आज मेरे कर्मों का फल ही मुझे मिला है, जो मैंने बोया था आज काट लिया, भगवान ने मुझे मेरे कर्मों का फल इसी जन्म मे दे दिया। यह सोचते-सोचते वह वहीं जमीन पर बैठ गया और वह तीस साल पुराना दृश्य उसकी आँखों के सामने ऐसे घूमने लगा जैसे सब कुछ उसके सामने दोबारा घटित हो रहा हो। हालांकि उस घटना ने विक्रम के पूरे परिवार को तितर-बितर कर दिया था लेकिन फिर भी संभालने की कोशिश मे पूरा परिवार लगा रहा। विक्रम सिंह को याद आ रही थी उन दिनों की वे सब बातें जिनसे विक्रम सिंह के जीवन मे भूचाल सा आ गया था।

उन दिनों विक्रम सिंह ने अपना एक छोटा सा गैंग बनाया हुआ था और रास्ते में लोगो को लूटा करता था लेकिन उसका मकसद कभी किसी कि हत्या करना नहीं था। एक दिन एक युवक अपनी पत्नी को गौना करके विदा करा कर ला रहा था, पत्नी के सुन्दर मुख को देख-देख कर और बड़ी प्रसन्नता के साथ बैलों को हांक रहा था। उन दिनों रथ शाही सवारी हुआ करती थी, सुन्दर पीतल की मेख से जड़ा हुआ रथ और उस पर बनी हुई सुन्दर पालकी एवं पर्दे, दो सजे हुए बैल, बैलों की शानदार झूल, सींगों पर पीतल की टोपी एवं गले मे बजते हुए घुंघरू। जब बैल चलते तो उनके टापों की आवाज, उनके गले मे लटकते घुंघरुओं की मधुर स्वर लहरी और रथ मे लगे छोटे-बड़े घुंघरुओं से निकलती मधुर आवाज से लगता था जैसे कोई सुमधुर गीत गाता हुआ जा रहा है। उसी रथ की आवाज विक्रम सिंह के कानों मे भी पड़ी। विक्रम सिंह अपने साथियों को लेकर गन्ने के खेत मे छुपकर बैठा था एवं प्रतीक्षा कर रहा था कि कोई आए और वह उसको लूट ले। रथ और बैलों के घुंघरुओं के आवाज सुनते ही विक्रम सिंह और उसके साथी खुश हो गए एवं गन्ने के खेत से निकल कर रास्ते में आ गए, आने वाले का रास्ता रोकने के लिए, उसको लूटने के लिए। रथ में बैठा युवक इस सब से बेखबर था, वह तो अपनी नई नवेली दुल्हन के रूप को देख कर प्रसन्न हो रहा था। अपनी नई नवेली दुल्हन के साथ पूरे रास्ते अकेला रहने के लिए तो उसने रथवान को भी उतार दिया था और वह स्वयं ही रथ हाँकने लगा था। विक्रम सिंह ने आगे बढ़ कर बैलों की नाथ पकड़ कर रथ रोक दिया एवं उन दोनों को नीचे उतरने को कहा। अनायास इस तरह कि परिस्थिति से युवक घबरा गया लेकिन उसने अपनी पत्नी को ढाढ़स बंधाया कि तुम डरना मत मैं देखता हूँ इनको। युवक रथ से नीचे उतरा एवं उतर कर सीधा विक्रम सिंह से उलझ गया। विक्रम सिंह ने कड़क आवाज मे कहा कि युवक हमसे उलझ मत नहीं तो जान से हाथ धोना पड़ेगा, हमे तो सिर्फ नकदी और जेवर, जो भी तुम्हारे पास है निकाल कर दे दो। युवक कुछ भी देने को तैयार नहीं था और उसने विक्रम सिंह को ज़ोर से धक्का दे दिया, विक्रम सिंह संभल तो गया लेकिन उसके मुंह से नकाब हट गया। विक्रम सिंह के मुंह से नकाब हटते ही युवक ने उसको पहचान लिया एवं बोल पड़ा विक्रम चाचा तुम, तुम यह काम करते हो? युवक का इस तरह विक्रम सिंह को पहचान लेना ही उसकी मृत्यु का कारण बन गया एवं विक्रम सिंह उसके सीने पर बंदूक कि नाल गड़ा कर ट्रिगर दबाने लगा, तब तक उसकी नवविवाहिता पत्नी रथ से उतर कर दौड़ते हुए आई एवं विक्रम सिंह के पैरों में गिरकर गिड़गिड़ाने लगी, अपने पति के प्राणों कि भीख मांगने लगी। उस युवती ने अपने सारे जेवर उतार कर विक्रम सिंह के पैरों मे रख दिये एवं गिड़गिड़ा कर कहा मेरा सब कुछ ले लो मगर मेरे पति के प्राण छोड़ दो। विक्रम सिंह ने कडक कर कहा कि इसे हम जिंदा नहीं छोड़ सकते, इसने हमे पहचान लिया है, अगर ये जिंदा रहा तो हम सब पकड़े जाएंगे। युवती ने फिर गिड़गिड़ा कर कहा कि हम किसी को कुछ नहीं बताएँगे, बस आप मेरे पति के प्राण छोड़ दो और सब कुछ ले जाओ मगर विक्रम सिंह का हृदय जरा भी नहीं पसीजा और उसने ट्रिगर दबा दिया। ट्रिगर दबते ही तेज आवाज के साथ गोली युवक के सीने मे जा घुसी एवं वह वहीं ढेर हो गया। विक्रम सिंह और उसके साथी उनसे लूटे हुए सारे जेवर और नकदी लेकर फरार हो गए और अपने पीछे छोड़ गए एक नवयुवक की लाश और बिलखती हुई नवविवाहिता, नववधु युवती जो अभी तक अपनी ससुराल भी नहीं पहुँच सकी थी। युवती उस सुनसान जंगल मे अपने पति की लाश का सिर अपनी गोदी मे रख कर विलाप कर रही थी कि घर वाले ढूंढते-ढूंढते उस रास्ते से आ पहुंचे और लेकर गए।

विक्रम को बचपन से ही कुश्ती लड़ने का बड़ा शौक था और वह अपने इलाके का नामी पहलवान बन गया था। अखाड़े में बड़े पहलवानों को धूल चटा देता था विक्रम, और लोग उसको फूल मालाओं से लाद देते थे, रुपयों का तो उसके सामने ढेर लग जाता था। धीरे धीरे विक्रम को अपनी ताकत और शौहरत का घमंड होने लगा और फिर उसको कुछ ऐसे लोगों का साथ मिल गया जो उसको गलत राह पर ले गए। शुरू शुरू मे तीन चार दोस्त मिल कर हंसी ठिठोली के लिए लोगों का सामान छुपा देते थे और फिर उसको दे भी दिया करते थे लेकिन धीरे धीरे यह प्रवृति अपराध मे बदलने लगी और वे लोग सामान के बदले पैसे लेने लगे, बाद में तो लूटपाट शुरू कर दी ज्यादा से ज्यादा धन इकठ्ठा करने की चाह ने विक्रम को एक शातिर अपराधी बना दिया। कहावत है कि पाप का घड़ा भर जाए तो फूटता है और उस दिन जब विक्रम ने लूटपाट करने के इरादे से अपने ही भतीजे को मार डाला तो उसके पाप का घड़ा भी भर गया था। अब विक्रम को आत्मग्लानि हो रही थी एवं एक अपराध बोध उसको चैन नहीं लेने दे रहा था अतः उसने अपने साथियों सहित थाने जाकर आत्म-समर्पण कर दिया विक्रम के आत्म-समर्पण करने के बाद उसकी पत्नी अपने बेटे को लेकर अपने मायके चली गयी और भाई के पास रह कर ही अपने बेटे का पालन पोषण किया। विक्रम को उम्र क़ैद की सजा हुई। जेल मे जब विक्रम ने अपने पापों के बारे मे सोचा तो उसको स्वयं पर बड़ा पछतावा हुआ और उसका व्यवहार पूरी तरह से बादल गया, अच्छे व्यवहार के कारण ही उसकी सजा भी जल्दी खत्म हो गयी।

उम्र क़ैद की सजा काटने के बाद विक्रम अपने बेटे बहू के साथ ही रहने लगा था, पत्नी का स्वर्गवास हो गया था और बस अकेला अपने घेर मे लेटा रहता था कुछ गाय पाल रखी थी उनकी देखभाल करता था। रात मे बेटा बहू घर मे सोते थे, उन दिनों घर मे शौचलय नहीं होते थे और लोगों को लघु-शंका वगैरह के लिए घर से बाहर ही आना पड़ता था। उस रात विक्रम का बेटा भी अपने घर के बाहर लघु-शंका के लिए निकला इस बात से बेखबर कि मृत्यु उसका इंतज़ार कर रही है। अंधेरे मे उसकी चल व डील-डौल बिलकुल वैसा ही लग रहा था जैसा कि उनके दुश्मन गुंडे का था। समय काफी गुजर गया था वे ज्यादा इंतज़ार नहीं कर सकते थेअतः उसने बंदूक उठा कर निशाना साध दिया एवं गोली सीधी जाकर विक्रम के लड़के के हाथ मे धंस गयी और वह वहीं गिर गया।

आज जब विक्रम सिंह ने वही परिस्थिति अपनी पुत्रवधू के साथ देखी जो उसने किसी दूसरे के लिए पैदा की थी तो उसको विश्वास हो गया कि वास्तव मे कर्मों का फल अवश्य मिलता है और मुझे इसी जन्म मे मिल गया। कानून ने तो मुझे उम्र क़ैद की सजा दे ही दी थी लेकिन आज भगवान ने भी मुझे मेरे बुरे कर्मों का फल दे दिया है। तभी उसको अपने पोते की याद आइ जिसको विक्रम घेर मे अकेले सोते हुए छोड़ कर आया था। आकर देखा कि पोता ठीक-ठाक अपनी चारपाई पर गहरी नींद सो रहा है तो उसने भगवान का शुक्र किया कि भगवान तूने मुझे मेरे पापों का दंड तो दे दिया लेकिन फिर भी मुझ पापी पर इतनी कृपा तो अवश्य करना कि मैं अपने पोते को अच्छे संस्कार दे कर पाल सकूँ और उसको कभी बाप की कमी न महसूस होने दूँ।

वेद प्रकाश त्यागी