रणथम्भौर का नवजात बोल्ट Manju Gupta द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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रणथम्भौर का नवजात बोल्ट

Manju Gupta

writermanju@gmail.com

रणथम्भौर का नवजात बोल्ट

( बाल – कहानी )

मंदिरों का नगर गंगा नदी के किनारे बसे ऋषिकेश में चंदा और तारा अपने माता – पिता के साथ रहती थीं .

खूबसूरत , विदूषी , मेहनती चंदा कक्षा आठवीं में और कुशाग्र बुद्धि तारा छठी में पढ़ती थी .

हर गर्मी की छुट्टियों में दोनों बहनें अपनी माँ के साथ नानी के घर जाया करती थीं .हाल ही में नाना जी की तबादला राजस्थान के सवाई माधोपुर में हुआ था . वे वन विभाग में डीएफओ थे .

"इस बार राजस्थान नहीं जा पाउँगी . तुम्हारे पिता जी के दिल का आपरेशन है ." माँ ने आपनी लाडली बेटियों चंदा – तारा से कहा .

यह सुन चंदा घबराकर कहने लगी , "माँ ! हम नानी के घर नहीं जाएंगे . हम आपकी मदद करेंगे ."

माँ ने ढाढस बांधते चंदा को कहा , "चंदा चिंता मत करो , ईश्वर सब ठीक करेगा ."

नानी तुम दोनों की अच्छी देख - भाल करेगी .

तब माँ ने सोलर ऊर्जा से चलने वाली प्रौग्रामिंग की हुई स्वचालित कार में चंदा – तारा को बिठाकर नानी के घर के लिए विदा किया . चंदा गीत गाते हुए गुनगुनाने लगी

ओ मेरी हमजोली

चल – चल ओ मेरी कार !

चल – चल मेरे संग

खेले हम आँख मिचौली

जिधर कहूँ उधर को चल

चल – चल ओ मेरी कार !

दोनों बहनें मस्ती करती हुईं , हिंदी कविताओं , गीतों की अन्ताक्षरी खेलती हुई और तरह – तरह के वीडियो खेल खेलती थीं . ‘ किनडल ’ पर महाभारत , पंचतन्त्र , ज्य हनुमान की नैतिक कहानियाँ को आनन्द ले कर उत्तरप्रदेश , हरियाणा राज्यों की सीमाओं को पार कर राजस्थान के सवाई माधोपुर में सीधे नानी के घर जाकर कार रुकी .

इन्तजार करते हुए नानी – नाना उन्हें देख खुशी के मारे फूले नहीं समा रहे थे . उन दोनों को गोदी में उठाकर नाना – नानी ने खूब प्यार किया . ख़ुशी की लहर उनके चेहरे पर साफ़ दिख रही थी . धेवतियों की समय से पहले परिपक्वता , निडरता , साहस और कर्मठयता के वे दोनों दीवाने हो गए . राह की चुनौतियों को मात कर अकेली

यहाँ पर आ गईं . बच्चे छोटे जरूर होते हैं , हमें उन्हें छोटा नहीं समझना चाहिए .

नानी ने चंदा – तारा को चाकलेट का दूध पिला के , भर पेट नाश्ता कराके नाना ने उनकी फोटो , वीडियो खींच कर

इन सुंदर फोटो को अपनी बेटी किरन के व्हाट्स एप पर कुशल मंगल की सूचना के साथ संदेश भेज दिया .

व्हाट्स एप पर बेटी किरन ने तुरंत माँ – पिता को नमन कर अपनी उपस्थति दर्ज करा दी और अपनी लाडलियों , माँ – पिता को देख खुश हुई , बचपन के जज्बातों में डूब गई .

उधर नानी ने चंदा – तारा को नहा – धोकर रास्ते की थकान दूर करने के लिए आराम करने को कहा और

अपनी चंदा – तारा के लिए स्वादिष्ट व्यंजन बनाने में जुट गई . रोज रात में उन दोनों को लोक गीत , कहानियां सूना कर सुलाती थी .

अगले दिन सुबह नहाकर के चंदा – तारा को खूबसूरत वास्तुशिल्प से गढ़े विघ्न बाधाओं को दूर करने वाले गणेश के मंदिर में ले गयी . सबने हाथ जोड़ क्र गणेश स्तुति का श्लोक गाया -

"गजाननम भूत गणादि से वितम्

कपिथ जंबू फलचारु भक्षणम् . "

नानी ने अपने दामाद चंदा – तारा ने अपने पिता के सही आपरेशन होने के लिए प्रार्थना की . पंडित जी से ईश का आशीर्वाद , प्रसाद ले के और दुकानों से कलाकारों की बनी ऊंट , बाघ , चिड़ियाँ की खूबसूरत वाल हैंगिंग ले के घर वापस आ गए .

अगले दिन नाना जी अपने गार्ड के साथ चंदा – तारा को अपने वन प्रदेश यानि भारत का विश्व विख्यात ‘ रणथम्भौर वन्य जीव अभयारण्य ’ में ले गए . जिसे १९८० में राष्ट्रीय पार्क का दर्जा मिला . जो बाघ (टाइगर) संरक्षण के लिए विश्व में प्रसिद्ध है . गाड़ी की बंद काँचवाली खिड़कियों से कुदरत के खजाने की सुंदरता को चंदा अपने मोबाइल में कैद कर रही थी . साफ़ – सुथरी सड़कों के दोनों ओर हरे – भरे जंगली पेड़ों के सघन वृक्ष छाया देते हुए उनके स्वागत में नत मस्तक हो रहे थे .लिलियसी प्रजाति के जलीय पौधे जसे कमल , लीली आदि खिल कर प्राकृति का वैभव बता रहे थे . रास्तों पर लंगूर दुम हिलाते हुए समूह में नजर आ रहे थे , कोई भागता हुआ , कहीं भालू अपने परिवार के साथ नाचता हुआ दिखाई देता था , एक साथ कई मगरमच्छ जल में अठखेलियाँ करते हुए इधर – उधर भाग रहे थे .

नाना जी ने लाडलियों चंदा – तारा को बताया – "मादा मगरमच्छ अंडे देने के लिए जमीन के पास तीन- चार गड्ढे खोद कर हर गड्ढे को ढक देती और उनमें से किसी एक गड्ढे में अंडे देकर ढक कर चली जाती है , फिर ६० दिनों बाद अंडे सेंहने आती थी जिनमें से उनके नन्हें बच्चे निकलते हैं . कुछ पेड़ों पर मिट्टी के रंग वाले उड़ने वाले सांप भी हैं और घणस साँप, अजगर , कोबरा , रेपटाइल

प्राजाति आदि के हैं . " आश्चर्य से दोनों ने इन अजूबों के लिए हाँ में गर्दन हिलाई .

तभी वहां से जंगली सूअर अपनी थूथनी उठाए चले जा रहे थे . नाचते मोर , रंग – बिरंगी चिड़ियाँ , जंगली गाय , लोमड़ी , हाथियों के झुण्ड , बारहसिंगे , चीतल और हिरन के समूह को भी देखा .

प्राचीन सबसे लम्बे वट वृक्ष के नीचे सियार को देख वे आश्चर्य चकित हुईं . कुछ दूरी पर पीले - पीले से तन पर काली धारियों वाले हरी - -हरी आँखोंवाले बाघों के समूह को देख वाह – वाह निकल गया .ईश ने अपना कमाल इन जंगली जानवरों पर बरसाया . कौतूहलवश तारा – चंदा ने नानाजी से प्रश्नों की झड़ी लगा के चंदा ने पूछा , "बाघ क्या – क्या खाते हैं ?" नाना जी ने कहा – "ये मांसाहारी होते हैं . खुद पशुओं को मार कर खाते हैं , ये बहुत फुर्तीले होते हैं. "

तारा ने पूछा , "ये समूह में क्यों रहते हैं ?"

तब नाना जी ने उन्हें समझाते हुए बताया , "समूह में ये इसलिए रहते हैं अगर कोई हिंसक जानवर इन्हें मारने आए तो मिलकर सामना कर अपना बचाब कर सकते हैं . "

तभी कहावत भी बनी है – एक और ग्यारह होते हैं , मिल कर रहने में शक्ति होती है . एकता में शक्ति होती है .

नाना जी ने बताया कितने शिकारी वन अधिकारियों को छलावा दे के, चोरी - छिपे कुछ पेड़ों पर मचान बनाकर हांका भी लगाते हैं और गोली मारकर बाघ का शिकार करते हैं . जो की जुर्म है. तभी गोलियों की ठांय – ठांय की आवाज आई .

तभी नाना जी देखा बाघिन अपने नवजात दो शावकों के साथ घायल होकर भाग रही थी . उनमें से एक शावक के भी चोट आई . वह चल नहीं सका, उस शावक को वहीं पर छोड़ कर नो दो ग्यारह हो गई .

कैसे – तैसे शिकारी को पकड़ा नाना जी, गार्ड ने . उस शिकारी को गाड़ी में अपने साथ बिठाया और उस शावक को भी . उन्हें लेकर सीधे वन विभाग के अपने कार्यालय के प्रमुख फारेस्ट कंजरवेशन आफिसर स्वतंत्र के पास ले गए . शिकारी और घायल शावक की व्यथा का चित्रण किया .उन्होंने शिकारी को जेल की हवा खिलाई .

चंदा – तारे के नाना जी अनिल जो वहां के डीअफओ थे , आफिसर स्वतंत्र ने उनको कहा - " तुम पशु प्रेमी हो , मारनेवाले बचाने वाला बड़ा होता है , तुमने इसके प्राण बचाए हैं . तुम इसकी देखभाल करके तन्दुरस्त कर दोगे . तुम इसे अपने साथ लाकर नेक काम किया है , जीवन परहित में काम आए तो वही लोग संसार में महान होते हैं . यह नन्हीं जान हिंसक पशुओं की शिकार हो जाती .

यह सुन कर आफिसर अनिल का , तारा – चंदा की खुशी का ठिकाना न रहा . रहनुमा अनिल उस नन्हें नवजात शावक को ले कर जंगल से सटे अपने घर ले आए .

गांववालों में यह खबर आग की तरह फैल गई . लड़कियां , बड़ी बूढ़ी , औरतें , बच्चे , युवा , बूढ़े उस शावक को देखने आने लगे . सब अपनी – अपनी राय देने लगे . भीड़ ने मेला का रूप ले लिया . कोई उस सहमे डरे हुए शावक के लिए दूध , फल , ब्रेड ,गुड ला रहे थे .

अपरिचित स्थान , अजनबियों की भीड़ के बीच मूक , निरीह , कंपकपाते पंजों को सिकुड़ते हुए – से , भयभीत शावक अपनी अधबंद आँखों से से अपनी जन्मदात्री माँ को खोज रहा था .

इतने में पास ही के मोहल्ले से नानी की सहेली गीता

निपल वाली बोतल में दूध को पिलाने का प्रयास करने लगी . शावक ने मुंह अपना भींच लिया . जो उसकी व्यथा को व्यक्त कर रहे थे . उधर स्नेह गिलास चम्मच से पानी पिलाने लगी . घंटों से प्यासे शावक ने पानी पी के जान में जान आई .

शाम भी ढलने लगी . अँधेरा छाने लगा . मुस्कुराता हुआ चाँद नई सुबह का आगाज कर रहा था .

तारा – चंदा ने शावक को अपने पास ही सुलाया , नानी की कहानी सुनते हुए वह हारा - थका शावक भी सो गया .

अगले दिन शुभ मुहूर्त्त में चंदा – तारा , गीता ने उस शावक का नाम बोल्ट रख दिया . बोल्ट की पतली लम्बी टाँगे जो विश्व प्रसिद्ध धावक उसैन बोल्ट का प्रतिनिधित्व कर रही थीं .

नाना जी ने भी अपनी सहमती दे कर कहा – "फुर्तीला भी है , थोड़ा बड़ा होने पर उसी की तरह दौड़

लगाएगा ."

नानी , अडोस – पड़ौस की स्त्रियों ने सोहर भी गाए . चंदा – तारा से नानी ने सगुन के सतिये भी रखवाकर नेग में कानों के कर्ण फूल दिए . चौदह वर्ष का किंशुक ने बोल्ट के गले में लाल फीता बाँध दिया . उधर पिंकी ने बोल्ट को टी - शर्ट , नेकर पहना दिया .

सबने बोल्ट को खूब प्यार – दुलार दिया . उसके साथ बच्चे खिलौना मान के खूब खेलते थे . वह भी अपनी आँखों से एकटक देख कर उन सब के प्रति अपना प्यार छलकाता था . वह बच्चे – बड़ों के साथ घुल – मिल गया था . दूध न पीने से बोल्ट कमजोर , निढाल , उदास रहने लगा . अनिल बोल्ट की यह हालत देख के घबरा गए .

तभी उनके दिमाग में विचार कौंधा कि पास ही में अंतर्राष्ट्रीय पांच सितारा होटल एक अफ्रीकन सैफ है , क्यों न उससे पूछे शावक के खान – पान के बारे में ?

तभी अनिल ने उसे फोन लगा सारी बात बताई .

सैफ ने कहा – "सर ! दूध उसके लिए हानिकारक है . उसे मांस के टुकड़े खिलाएं . "

अनिल ने दूध बंद कर उसे मांस खिलाना शूरू कर दिया .बोल्ट बड़े चाव से खाता था . कुछ दिनों बोल्ट ह्रष्टपुष्ट – पुष्ट हो के पूर्ण स्वस्थ हो गया .

पूरे तीस दिन में शावक की आवाज पूरे बंगले में गूँजने लगी . खूब कुलांचे मारने लगा .

सुबह – सुबह टूथपेस्ट करते हुए अनिल ने सोचा अब बोल्ट को जंगल में उसकी बिरादरीवालों के पास छोड़ आता हूँ , अपने संग साथियों में इसका विकास होगा .

तारा – चंदा को यह बात पसंद नहीं आई . नानाजी ने उनको समझाया .

अनिल बोल्ट को गार्ड के संग गाड़ी में ले कर उसी रणथम्भौर के जंगल में बोल्ट को छोड़ आए .

लेकिन प्रतिभा का धनी तेज बुद्धिवाला , द्रुतगामी बोल्ट धावक उसैन बोल्ट का नाम सार्थक करते हुए दौड़ कर घर में वापस आ गया .

चंदा – तारा , नानी उसे देख कर खूब प्रसन्न हुए . वे बोल्ट को गोदी में ले के बोल्ट का माथा चूमने लगीं .

मूक , वफादार बोल्ट अपनों से बिछुड़ने की व्यथा अपनी हरी – हरी आँखों से व्यक्त कर रहा था .

शाम को आफिस से अनिल घर आए तो देखा निडर बोल्ट साहस ( बोल्ड ) के साथ अनिल से आँखें मिलाकर कह रहा हो कि अब जंगल में मुझे न छोड़ना .

नानी ने अपनी लाडली धेवतियों चंदा – तारा से कहा , "प्यार की ताकत से पशु भी अपने हो जाते हैं . बोल्ट प्यार की मिसाल है . इसलिए हम सबको सब से प्यार करना चाहिए , प्यार दिलों को जोड़ता है . प्यार अपनापन देता है . प्यार निस्वार्थ, व्याक होता है . सब सीमाओं को तोड़ देता है . पराए भी अपने हो जाते हैं . इंसान प्यार के ढाई अक्षर को समझ ले तो हर जगह प्यार , अमन , शांति छा जाएगी . "

अगले दिन उदास मन से अनिल बोल्ट को उसके हित , विकास के लिए उसी जंगल में छोड़ दिया .