ईश विधान Manju Gupta द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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ईश विधान

प्रेषिका - मंजु गुप्ता
१९ , द्वारका , प्लाॅट - ३१
सेक्टर - ९ अ ,
वाशी , नवी मुंबई
पिनकोड - ४००७०३
फोन ०९८३३९६०२१३

आदरणीय मातभारती टीम

नमन

मैं प्रकाशित करने के लिए कविता प्रेषित कर रही हूँ

1 ईश विधान

रास्ते रोज के जाने पहचाने
जिंदगी ख़्वाबों को सजाने
नई मंजिल पाने के लिए
नई राह जोड़ने चल दी ।

नए पलों को न मालूम था
ईश का विधान
क्या होने वाला है
अनहोनी होनी हो गई
कार दुर्घटना की दस्तक ने
तन - मन को घायल कर
दुखों की खूनी सुनामी बहा दी ।

लाचारी , विकलांगता ने
सृजना की दास्तां गढ़ दी
काल कष्टों से कलवरित
पतझड़ी पड़ाव
ठूंठ जीवन का
कालखंड
मानवीय करों के संग
सेवा , करुणा , प्यार
जीवन का हमदम बन
बसंती बहार ले आया ।

खुशियों की ऋतु चहकने लगी
कष्टों , दुःख ,पीड़ा की अमावस्या
पूनम की चांदनी बिखेर रही
जीवन की हर सांस
मानव सेवा गुनगुनाने लगी
ईश गुण ' मंजु ' गाने लगी ।

2 जब प्रेम संग - संग चला

जब प्रेम संग - संग चला

अँधेरी राहें हुई उजली

जब प्रेम संग - संग चला।

जब मिले थे मैं - तुम पहली बार

लाए थे प्रेम का नजराना

बेला के गजरे - हार

महका था तब प्यार

कम्पित हाथों से गजरा

जब तुमने मेरे

केश कुंज में सजाया था

तब उड़ी दिल की फुलकारी

सुरभित हुई प्यार की फुलवारी

और

पास आने लगी

धड़कनों की धड़कनें

तुम मेरे अपने लगने लगे

तारावलियाँ बतियाती थीं

चंदा - मंगल की सैर कराती थीं

तेरी साँसों की आभा

भू से नभ को चमकाती थी

कामदेव ' औ ' रति बन

साँसों के बिम्बों में बेला ने

प्रेम वसंत महका दिया

अँधेरी राहें हुई उजली

जब प्रेम संग - संग चला।

3 आरक्षण की आग

आरक्षण की आग से

देश सारा झुलस रहा

६५ सालों की आरक्षण की परिधि

बाँहें फैलाए पाँव पसार रही

जाति - धर्म की भांग खिलाके

योग्य प्रतिभाओं का हनन करे

खींच के जाति - धर्म भेद की दीवार

अल्प ज्ञानी बाजी रहे मार

आरक्षण का जुल्म से

प्रतिभाओं का न करें शिकार

करें मंथन हम सब मिलके

करें पुनर्रचना समाज की

नीर - क्षीर विवेक से करें हल

विकसित देश भारत तभी बनेगा

आरक्षण पर कसे नकेल

योग्यिता बल से करें विकास

करें देश का नव निर्माण .

4 हे प्रियतम शांति निर्माण !

जीवन - बेला में प्रियतम !

सूर्यग्रहण होते देखा

घनघोर अंधकार छाते देखा

राहुग्रस्त हुआ विश्व आज

ऐसे अंधकार के क्षणों में

स्वर्णबेला प्रकाशित होने का

कौन दे सकता है प्रिय ! बुलंद उद्घोष ?

मात्र कवि , साहित्य सृजक ही

नयी चेतना साहित्य की

जगा सकती भावों को

क्या कोई भुला पाया -

व्यास , तुलसी , सूर को

जिनके मूल्यों की संस्कृति ने -

भाईचारा , प्रेम शक्ति , शान्ति

और प्रभु भक्ति का

दिया अमर संदेश

विश्व में उमड़ते युद्ध के बादल

आतंकवाद का जहरीला फन

अस्त्र , शस्त्र , बम , बारूद को

विध्वंस करा दो ,शमन करा दो

भक्ति गीतों , काव्य- रचनाओं का अलख जगा दो

विश्व में धधक रही युद्ध की चिंगारियाँ

ग्रसित हुआ आज सारा संसार

ज्वालाओं में जल रही धरती प्यारी

रो रहीं कोखें सारी

देश - विदेश , नगर - गाँव ,

जग सीमाओं पे

डाला विनाश शास्त्रों ने घेरा

नित्य नए रूप लिए

मृत्यु खेलती फाग

माँ धरा होती लाल

श्वान , गिद्ध और चीलें

मँडराती लाशों पर

भोज्य बनी मानव की लाशें

मानव की आँखों पर

भौतिकता , अनैतिकता , हिंसा का

चढ़ गया आवरण

देख रहा खून का तांडव

मौन स्तब्ध वैधव्य प्रकृति

गगन देख रहा प्रलय लीला

मौत का सुनता हाहाकार !

मग्न हुआ अमानवीयता में मानव

अवसादित हुआ संसार

मानव के कंधों पर मानव की लाशें

मानव है ढ़ो रहा

प्रियतम क्या ?

महावीर , अशोक , बुद्ध की शांति

गाँधी की अहिंसा - प्रेम से

युद्धों की वैराग्य संधि हो नहीं सकती

युद्ध के बाद का शांति निर्माण

युद्ध होने पहले सृजन करो

प्रियतम ! तुम्हारा बीज मेरी कोख में

जब अँगुली पकड़कर

नस्ल तुम्हारी चलेगी

क्या कहकर उसको दिलासा दूंगी ?

उससे दिलवाऊँगी

क्या तुम्हारी श्रद्धांजलि ?

5 पूर्ण हुआ जन्म का अंतिम सफर

जन्म से शुरू होता

मौत का सफर

हाँ ! माँ की अँधेरी कोख से

प्रस्फुटित बीज

पोषित - पल्ल्वित ,प्रकाशित

हो के गुजारे गुलजार जीवन के

कुल बत्तीस पड़ाव

कितनी बाधाओं ,

संघर्षों को चीरा

राह के रोड़ों को

राह के लिए हटाया

सफल हुआ बढ़ता हुआ

हौंसलों का कदम

मिल गई मंजिल

संस्कारों की नींव पर

गढ़े मानव मूल्य

बन गया वह

एक जिम्मेदार नागरिक

घर , समाज , देश का उजाला

फिर

खुशियों की शहनाई बजी

मिली जीवन को फूलझड़ी

झूमी वासंती बहार

चहुँ और वसंत के संग वसंत

किसे मालूम था ?

टूटेंगे सपने

रुठेंगे अपने

बत्तीसवीं बहार बनेगी ठूंठ

अनहोनी का अकाल हादसा

लील गया जीवन रथ

पूर्ण हो गया

जन्म का अंतिम सफर

मुक्त हो गया बंधनों से

छोड़ के संसारिक धाम

चला गया परम धाम।

6 विदा बेला

मिलन - विरह होता

नियम प्रकृति का शाश्वत

अँधेरे में उजाले की किरणें

कुदरत में छिपी रहती

कुदरत जब हटाए

काले अँधेरा का घुंघट

तब

सूर्य रश्मियाँ स्फूर्ति ,

सकारात्मकता का

लाती हर दिन नया सवेरा

फिर

संध्या होती घने अँधेरे के आगोश में

आते जाते दिन ये

जीवन मूल्य , नियम बताते

बहुत कुछ दे जाते

बहुत कुछ साथ ले जाते

काल की क्षणभंगुरता में

सपनों का जग बसाता

मित्र बन खुशियां देते

दर्द बन बिछुड़ते ये

स्मृति चित्र - से बनते

संस्मरण शेष रह जाते

यही जीवन का क्रम

यही जीवन चक्र

सांसों का मिलन - बिछोह

यही होता भाग्य चक्र

साथ रहे मित्र - परिजनों- गुरुओं संग

बिछड़ रहे विरह गम बन

क्षीर - नीर - से रिश्ते ये

पीड़ा करे आँखें नम

तुम न रहोगे

यादें हमको

यादें बन सताती रहेंगी

लौट के ना आएंगें दिन

रीति हुई संग की झोली

वंदन आप सब का

नेह- उर से

करते गुरुओं ,मित्रों , अपनों का

स्वर्णिम विदा बेला में

विदा का गीत अलबेला।

७ चलचित्र

जगत की कन्दराओं से

प्रतिध्वनित हो रही

तुम्हारे हमारे

प्रेम – विरह की गाथाएं

उन गीत , रागों में

चर्चित थे हम

चर्चाओं का जहांन बन

चर्चित विषयों पर

चर्चितों के मध्य

यादगार लम्हों की

खबसूरत लुका - छिपी

चलचित्र बन के

चित्रित हो रहे

चितवन पट पर

हर मिलन - वियोग का लम्हा

हुआ तुम से बेमिसाल

दे रहा प्रेम की मिसाल

प्रेम से जुड़ जाता संसार

बनता जग सारा अपना

सृजन होती नव सृष्टि

फिर गढ़ते जाते

न जाने कितने नव चित्र

न जाने कितनी गाथाएं , आशाएं

बनते जाते जीवन के

नए – नए अनंत चलचित्र .

८ शाश्वता के प्रमाण

धरा की अँधेरी कोख में

सुप्त बीज ने

वर्षा के सिंचन से

अंकुरित हो

आँखें खोली तभी

कहने लगा नवप्रकाश

“ ऐ नन्हा विटप

जीना है जग में

आगे बढ़ना है

तो करने पड़ेगा

प्रतिकूलताओं से संघर्ष

और

धूप ,आंधी , ओले , वर्षा के

थपेड़ों का सामना

तभी तुम अपने लक्ष्य में

हो सकोगे कामयाब

तुम्हारे तप के फूल

दूसरों को महकायेंगे

और निष्काम सेवा के फल

जग जीवन को जीवन देंगे

तभी तुम अपने पूर्वजों - से

शाश्वता के प्रमाण बनोगे

तुम्हारे परोपकार के फलों से

फलते – फूलते हैं

न जाने कितने जीवन

पर हित में अपने को न्योछावर कर

दूसरों की खुशियों में

अपनी ख़ुशी मान

जगत को देते हो

अनंत रूप , रस , गंध , स्पर्श का

अनंत आनंद - स्वाद

तुम्हारे इस नन्हें स्वरूप में

छिपी हैं अनगिनत शक्तियाँ

तुम्हारे पूर्वजों की हैं

उन्हीं की तरह अनंत

व्यापकता –उदारता – मानवता . ”