वे न होते Manju Gupta द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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वे न होते

प्रेषिका - मंजु गुप्ता

१९ , द्वारका . प्लाट – ३१

सेक्टर ९ A , वाशी , नवी मुम्बई

पिनकोड ४००७०३

फोन – ०९८३३९६०२१३

अगर वे न होते

कहानी

“ चिट्ठी ‘ हाँ ’ में आई . माँ ने अपनी बेटी जानकी को बताया . क्योंकि जानकी लड़केवालो को पसंद आ गयी थी --------.” समय के पहिए पर कालचक्र चलता रहता है . हर पल परिवर्तन होता रहता है . कोई मिलता है , कोई बिछुड़ता है . मिलन खुशी की प्रगाढ़ता को दर्शाता है , तो बिछुड़ना वियोग यानी दुःख के भावों को बताता है . समय का धागा मानव को कठपुतली बन नचाता है . संसारिक सुख – दुःख समय के चक्र को संतुलन को जन्म देते हैं .

मृगनयनी – सी सांवली , सलोनी , छहररी काया और स्वतंत्र व्यक्तित्व जानकी अपने आप को भाग्यशाली समझ रही थी , जब उसका विवाह मुंबई के धनाढ्य परिवार में इंजीनियर जनक के साथ हुआ . शादी से पूर्व जानकी हरिद्वार के राजकीय माध्यमिक कन्या विद्यालय में शिक्षिका थी .

कोडइकेनाल की हरी – भरी मनोरम वादियों में जहाँ मौसम पल- पल धुंध से बनते – बिगड़ते बादलों के साथ आँख मिचोली खेलते हैं . वहाँ दस दिन की लम्बी छुट्टी लेकर जनक – जानकी अपनी शादी के बाद की नई जिन्दगी का हर दिन नए – नए होटल बदल कर झीलों में वोटिंग कर नई जिन्दगी का लुत्फ़ ले रहे थे , एक दूसरे की पसंद , नापसंद और एक दूसरे की कमजोरी को जान रहे थे . पलक झपकते ही खुशियों से भरे दिन मेट्रो की गति - से यों ही गुजर गए और जनक – जानकी अपना हसीन हनीमून मना कर मुम्बई अपने घर वापस आ गए .

जानकी इन सुखद यादों में अक्सर खो जाती थी . जानकी को सुधि तब होती जब उसकी सासू माँ झिझोड़कर उसे बोलती ,

“ बहू चाय बना लाओ , चाय पीने का समय हो गया .”

तब जानकी बेमन से उठ कर सबके लिए चाय बनाकर लाई . तभी रसोई की खिड़की से झाँक कर नई , बाहरी दुनिया का दीदार करने लगी और देखा गौरैया अपने बड़े झुण्ड के साथ फुदक – फुदक कर , ची - ची की आवाज कर बाजरे का दाना चुग रहे थे . . इस झुण्ड को देख कर उसे लगा कि ससुराल का कुनबा भी गौरैया के लश्कर की तरह बड़ा है . सास – ससुर , नन्द , देवरों , से भरपूर संयुक्त परिवार था , घर की बड़ी बहू होने के कारण सभी कामों को बड़ी जिम्मेदारी के साथ करती थी . कहीं सासू माँ कोई कमी न निकाले . सुबह पांच बजे उठना और नहा कर रसोई में जाकर सबके लिए बेड टी बनाकर सबके हाथों में देना , फिर नाश्ता – खाना आदि बनाते - बनाते रात ग्यारह बजे सोना उसका नित्य धर्म बन गया . हरिद्वार से आए लिफ़ाफ़े को अपने कमरे की मेज पर देख कर अपनी बचपन से लेकर जवानी की यादों में जानकी गोता लगाने लगी . लिफाफा खोलते ही वह अपनी प्रिय सखी दर्शन की याद में खो गई , जो उसके साथ उसी विद्यालय में सह शिक्षिका थी . जानकी अपनी तनाव ग्रस्त और कुंठित जिन्दगी की वजह से दर्शन को उत्तर न दे सकी . उसे अपनी असहनीय शोषित जिन्दगी बोझ लगने लगी .

जनक को हँसमुख जानकी के व्यक्तित्व में परिवर्तन नजर आने लगा . हँसमुख जानकी अब उदास रहने लगी , खुशियाँ उसको चिढ़ा रही थी . जनक जानकी का दिल हल्का करने , मनोरंजन कराने के लिए मुम्बई के बालीबुड के सितारों की शुटिंग , जुहू चौपाटी की सैर कराने , गेटवे ओफ इंडिया , हैंगिग गार्डन ले जाता था और वहाँ के मशहूर छविगृहों में चलचित्र दिखाने ले जाता था . भयभीत , कुंठित जानकी पिक्चर का मजा न ले पाती थी . तनाव , और घुटन महसूस करती थी , उसे ऐसा लगता कि आँसुओं से लथपथ जिन्दगी बहुत बड़ा उपहास कर रही हो .

धीरे – धीरे समय अपने रफ्तार से चलने लगा . जानकी अपने आपको सबसे जोड़ने का प्रयास करती रहती थी . उस वातावरण में अपने आप को ढालने का सोचती वह उतना ही उलझती चली जाती थी . उस भीड़ में अपने आप को सबसे दूर , अकेली महसूस करने लगी . रुढ़िवादी परिवार की दकियानुसी , नुक्ताचीनी आदतों पोंगा पंथी और संकुचित माहौल में आजादी का अभाव खलने लगा . जैसे की उसने निजी जिंदगी उनके पास गिरवी रख दी गई हो .

तनावों से दूर होने के लिए जानकी ने नौकरी करने की सोची , तभी उसने मेज पर पड़ा अखबार में विज्ञापन पढ़ा . ट्रेंड ग्रेज्युट शिक्षिका की आवश्यकता है जो अनुभवी हो . विज्ञापन को पढ़कर जानकी ने साहस जुटा कर जनक से नौकरी करने के लिए पूछा , “क्या मैं यही पास के विद्यालय में पढ़ाने जा सकती हूँ ? ”

जनक ने नकारात्मक रवैया अपनाकर कहा , “ माता श्री – पिता श्री से पूछ लो .”

मर्यादित , रुढ़िवादी सास – ससुर से पूछने पर सासू माँ ने कहा , “ बहू का काम गृहस्थी संभालना है , घर की चार दीवारी में रहना है न की बाहर मर्दों की बराबरी करना है . ”

असहमति का जवाब सुन निरुत्साहित जानकी हीन भावना से ग्रस्त होकर दबी – दबी , बुझी – बुझी रहने लगी . हँसी , मुस्कान ने साथ छोड़ दुःख , घुटन की जंजीरों ने दामन बाँध लिया . ससुरालवालों की खुशियों में अपनी इच्छाओं का गला घोंट लिया ,उसका मन कमजोर हो गया . सह शिक्षिका सहेली दर्शन समय – समय पर जानकी को पत्र लिखती रहती थी , जिससे उसे मैत्री का अभाव न लगे . लेकिन प्रतिकूल परिवेश में जानकी अपने आप पर अत्यधिक दबाव महसूस करती , मनोबल टूट गया . मानसिकता पर आघात लगने की वजह से बीमार रहने लगी .

अब जानकी घुटन भरे माहौल में रहने की आदी हो गयी . माँ – पिता ने डोली में बिठाते हुए कहा था , “ लाडली बेटी जानकी ! दुःख के कांटे मिले या सुख की हरियाली , वही तुम्हारा घर है . बस वहाँ से तुम्हारी अर्थी ही उठेगी . ” हाँ में गर्दन हिला कर अपना नया घर के लिए जनक संग विदा हुई .

जानकी समय के साथ अपने आप को समय के पूर्व प्रौढ़ समझने लगी .

रुढ़िवादी परिवार में जानकी ने दो – दो सालों के अंतराल में दो पुत्रियों को जन्म दिया . हर प्रसव पर पुत्र की आशा की जाती थी . समय – समय पर व्यंग्य , ताने कस के माता श्री कहती थी , “ बहू ! वह कोख ही क्या जिसने पुत्र को न जना ? ” यह सुन मन मसोस के आंसुओं की झड़ी लग जाती थी .

हर दिन रात न होती , कभी न कभी सवेरा आएगा . इसी आशा के साथ ईश द्वारा दी गई अमूल्य निधियों सरस्वती , दुर्गा , लक्ष्मी – सी बेटियों से घर में बहार आ गयी . तभी समय ने करवट बदली . जब जनक का तबादला नेरुल , नवी मुम्बई के लिए हुआ . उस पर पदोन्नति . जानकी की खुशी का ठिकाना न रहा . ऐसा महसूस किया कि जैसे पक्षियों ने स्वतंत्र मुक्त गगन में हौंसलों की उड़ान भरी हो , जीवन की बगिया में खुशियों के फूल झूम रहें हो. हवा भी खुशगवार लगने लगी .घुटनपूर्ण जिन्दगी में नई स्फूर्ति का संचार हुआ . सब कुछ नया – नया , सुंदर और अपना लगने लगा . टूटे हुए सपनों में सच देखने लगी .

नेरुल में जानकी ने समुद्र के किनारे कम्पनी के चार कमरों वाले फ्लेट को अपनी इच्छानुसार व्यवस्थित रूप से सजा के अपने आपको वातावरण के अनुकूल ढ़ाला . आने वाला हर दिन खोई आजादी का अहसास दिलाता था . सूर्य रश्मियाँ ऊर्जा , गतिशीलता , स्फूर्ति का नया सवेरा और नया संदेश ले कर आती थीं . दोनों पुत्रियाँ समय की रफ्तार के साथ अंगूर की बेल सदृश बढ़ने लगी . बड़ी पुत्री स्वरा छटी कक्षा में और छोटी पुत्री सुरभि चौथी कक्षा में थी . दोनों प्रतिभाशाली और यथा रूप तथा गुण चरितार्थ होता था .किन्तु दोनों को दादा – दादी , चाचा , बुआ के आभाव की रिक्तता महसूस होती थी .

जिन्दगी में उतार – चढ़ाव आते रहते हैं . सुख के बाद दुःख , दुःख के बाद सुख सृष्टि का नियम है . परिवर्तन ही गतिशीलता , संतुलन को जन्म देती है . विचारों में खोई हुई जानकी जानकी सोच रही थी , तभी उसकी नजर वहाँ के स्थानीय अखबार ‘ वाशी टाइम्स ’पर गई . जिसमें वह अपने लिए नौकरी ढूंढनए लगी , तभी उसकी नजर विज्ञापन पर पड़ी जिसमें लिखा था , ‘ कान्वेंट हाई स्कूल में हिंदी शिक्षिका चाहिए , जो अनुभवी , डायनमिक और सांस्कृतिक कार्यों में कुशल हो . ’

उसने अपने आप को इस योग्य समझा और जनक से पूछे बिना उस स्कूल में अर्जी दे आई .

अर्जी देने के बाद जानकी ने जनक से पूछा , “ मैं अब शिक्षण कार्य फिर से करना चाहती हूँ .” जनक नए रोब जमाते हुए उसे कहा , “ स्वरा , सुरभि अभी छोटी हैं जब बड़ी हो जाएं तब तुम नौकरी कर लेना . ”

कुछ दिनों बाद स्कूल से जानकी के नाम इंटरव्यू पत्र आ गया . विदुषी जानकी इंटरव्यू में सफल हो गई और शिक्षिका के पद के लिए नियुक्त कर दिया . नियुक्ति से तारा खुश हुई . लेकिन कुंठित जानकी ने प्रधानाध्यापक को नौकरी से न कर दिया और उन्हें कहा , “ मेरे पति नहीं चाहते कि

मैं नौकरी करूं . ”

यह सुन प्रधानाध्यापक ने दिग भ्रमित जानकी को अच्छे से समझाया ,

“ तुम एम. ए , बी. एड हो . तुम्हारे में योग्यता है , शिक्षा की पूरी उपाधियाँ हैं , शिक्षण का भी अनुभव है , विद्यार्थियों को पढ़ाकर ज्ञान बांटकर शिक्षा का उपयोग करो . घर की चार दीवारी से निकलो . अपना नाम , अपनी पहचान खुद बनाओ . ” प्रधानाध्यापक के प्रेरणात्मक , प्रभावात्मक वार्तालाप ने भ्रमित जानकी की हीन ग्रन्थियों को झकझोर दिया और स्वनिर्णय ले , नौकरी के लिए ‘ हाँ ’ कर दिया और उसी दिन से स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया . जानकी को अध्यापन कार्य खूब बढ़िया लगने लगा , आत्म विशवास जागा और खोई हुई चेतना फिर से जागी . अक्सर जनक ओफिस के कामों से चन्नई टूर पर जाया करते थे . तब वह दस दिन के लिए चन्नई गए हुए थे . उनकी अनुपस्थिति में वह स्कूल में पढ़ाने

जाने लगी . नए – नए अनुभवों , शिक्षकों – विदयार्थियों , आयामों के साथ सुंदर दिन व्यतीत होने लगे .

जब ये टूर से वापस घर आए तो इन्हें आते ही बच्चों ने बताया , “ पापा

- पापा मम्मी तो स्कूल में पढ़ाने जाने लगी .” जानकी वहीं कमरे में

खड़ी सोच रही थी कि ये हाँ करेंगे या न . तभी उसे लगा कि मेरी नौकरी करने के प्रति जो व्यवहार ससुराल में वही बर्ताब इनका बदला नहीं होगा .

लेकिन जानकी आश्चर्यचकित रह गई . जब इन्होंने हँसकर अपनी सहमती प्रकट की . उस क्षण उसे अपर खुशी हुई कि प्रधानाध्यापक की प्रेरणा से खोई हुई पहचान , प्रतिष्ठा पुनः प्राप्त हुई .

जानकी के भ्रम जाल का जाला टूट कर हवा में बिखर कर स्वतंत्र अस्तित्व का जामा पुनः पहना . उसका मुरझाया हुआ चेहरा अपनी उपलब्धियों से कान्तियुक्त , गरिमामय हो गया .

काफी सालों के बाद अपनी इस उपलब्धी को अपनी सखी दर्शन को ख़ुशी – ख़ुशी चिट्ठी लिखी . चिठ्ठी के अंत में ‘ फिर ’ लिखा था , जो ‘ फिर ’ दूर न था .

दुनिया के अनेक समाजों में महिलाओं के व्यक्तित्व विकास में , अपने पैरों पर खड़ी होने पर संकुचित विचारधाराएं , मानसिकताएं रूढ़ियाँ एवं परम्पराएं बाधक हैं . जिनसे महिलाओं के अधिकारों का हनन होता है . उनका वहाँ जीना दुश्वार हो जाता है . जो कुंठाओं , तनावों , शारीरिक , मानसिक बीमारियों को जन्म देता है . देश , समाज , घर निर्बल बनता है .

परिवार हित और समाज , देश के विकास के लिए स्त्रियों के प्रति बुजर्गों को पूर्वाग्रहों , शोषण , उत्पीडन , और भेदभाव की लीक से हटकर विचारों में सकारत्मक सोच में व्यापकता लानी होगी .

अगर वे न होते तो उसका खोया हुआ अस्तित्व पुनः प्राप्त न होता . जानकी स्त्री सशक्तिकरण की मिसाल बन समाज को नई दिशा दी .