दैनिक कार्ड Manju Gupta द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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दैनिक कार्ड

दैनिक कार्ड

कहानी

आकर्षक , शांत , प्राकृतिक आभा को अपने में समेटे हुए महाबलेश्वर पृथ्वी का स्वर्ग दिखाई देता है . यहाँ की प्राकृतिक छटा में तरह - तरह के जैसे अंग्रेजी माध्यम का विद्यालय , तो कोई मराठी माध्यम का , गुजराती कोई हिन्दी माध्यम का विद्यालय हैं . ऐसा ही हिंदी माध्यम

से चलने वाला विद्यालय ' जयहिंद विद्यालय ' है . यहाँ पर सभी विषयों की शिक्षा दी जाती है . किन्तु यहाँ पर एक विशेष विषय की ' प्रकृति की प्रयोगात्मक ' शिक्षा भी दी जाती है . जिससे सभी विद्यार्थी पर्यावरण , संस्कृति से जुड़े . जिससे वे प्रकृति की गतिशीलता , बीज अंकुरण से फलदार पेड़ बनने की प्रक्रिया , कार्य पद्धति की बारे में जाने . प्राकृतिक पर्यावरण का स्रोत धरती , हवा , पानी हैं . अगर यह शुद्ध रहेगा तो हम निरोगी रहेंगे और इनके प्रदूषित होने पर बीमारी आ जाएगी . पेड़ प्राणवायु का अक्षय भण्डार हैं जो हमारे जीवन के आधार हैं . पेड़ वर्षा का कारण हैं जिससे हमारे पर्यावरण की रक्षा होती है , बच्चे उनसे प्रेरित हों . शिक्षिका ने उन्हें बताया - महाकवि वाल्मीकि ने ' रामायण 'को वन में ही लिखा था . कण्व ऋषि के आश्रम में शकुंतला वृक्षों को भाई मान कर पानी पिलाती थी और पहला फूल खिलने पर उत्सव मनाती थी . पार्वती ने देवदारु वृक्ष को पुत्र मान जल से सींचती थी और हिमालय की देव भूमि पर शिवजी के आंसुओं से रुद्राक्ष अंकुरित हुआ था . हमारे पूर्वजों ने ईश्वर का रूप मानकर उनका पूजन करते थे . हनुमान जी लक्ष्मण की बेहोशी दूर करने के लिए हिमालय से संजीवनी बूटी ले आए थे , जिसमें विशल्यकरणी , सावणर्यकरणी , संजीवकरणी और संदी नाम की औषधीय वृक्ष थे , जो पर्यावरण की महत्ता को दर्शाते हैं. आज भी कुटुंब के विस्तार के लिए वट सावित्री का व्रत करने वाली स्त्री वट की पूजा करती है और पति की दीर्घायु मांगती हैं .

इसलिए हमें जंगलों की बेरहमी से कटाई नहीं करनी चाहिए . पर्यावरण को हानि पहुंचती है . आज मानव प्रकृति का दोहन कर रहा है जिससे प्राकृतिक आपदा जसे सूनामी , भूकंप , सूखा आदि आते हैं तभी एक बच्चा बोला - उत्तराखंड , कश्मीर की त्रासदी इसी का परिणाम है मेडम . ' मेडम ने हाँ में अपनी स्वीकृति दी .

तभी प्राचार्य बोले बच्चों ! आज ' वन महोत्सव ' भी है और पर्यावरण का मित्र वृक्षारोपण है. विद्यार्थियों को अपने घरों में तुलसी , पत्थरचट्टा , कड़ीपत्ता नीम आदि के औषधीय पेड़ लगाने चाहिये और अपने स्कूल परिसर में ध्वनि प्रदूषण रोकने के लिए आम , नीम , अशोक , साल , चीड़ , सिरस शीशम , सैन , वाकली वृक्षों को लगाना चाहिये . प्रदूषण रोकने के लिए सभी बच्चे पेड़ लगाने के लिए उत्सुक हुए , सबने पेड़ लगाकर अपने नाम से उन पेड़ों का नामकरण किया .तभी कक्षा दसवीं का छात्र बोला - इनके लगाने से हमें शुद्ध हवा पानी मिलेगी . धरा हरी - भरी होने से जल स्तर में वृद्धि होगी , मौसम चक्र में सुधार आएगा , जिससे मौसम सामन्य हो जाएगा , ग्लोबल वार्मिंग से जगत में जो खतरा हो रहा है कम हो जाएगा और सुंदरता में भी वृद्दि होगी . सबने प्रसन्नता से उसे अपनी सहमती जताई . इस तरह से बच्चों को प्रकृति के साथ जोड़ा जाता है और प्राकृतिक सान्निध्य से अनूठी ज्ञानवर्द्धन शिक्षा का सभी बच्चे व अध्यापक आनंद लेते हैं .

यहाँ पर हरी - भरी घाटियाँ , बहुरंगी फूलों की बहार , ऊँची - नीची पहाड़ियाँ , उषा की रंग - बिरंगी छटा पक्षियों का मधुर कलरव , शीतल मंद सुगन्धित वायु और नीला आकाश मन को पुलकित कर देता है . पल - पल बदलता मौसम वहाँ के परिवर्तन को दर्शाता है . अचानक बादलों का स्थान धीरे - धीरे फैलती धूप ने ले लिया . धूप की तरह रोशनी वाला ऐसा ही परिवर्तन कक्षा पांच के मयंक , छठी के मानव , सातवीं की रीता, आठवीं की गीता और कक्षा नौवीं के मनोज में आया .

ये बच्चे शैतान , पढ़ते नहीं , झूठ बोलते , आलसी , कहना नहीं मनाते , लड़ते - झगड़ते , कक्षा की काॉपियाँ अपूर्ण और गृह कार्य भी नहीं करते थे . सभी बच्चों को महीने एक बार ' दैनिक कार्ड ' दिया जाता था . जिसमें अभिभावक व माता - पिता को हाँ याँ नहीं में निशान लिखने होते थे जैसे -

१ . आप का शिशु सुबह जल्दी उठता है . हाँ / नहीं

२ आप का शिशु भगवान का नाम लेता है . हाँ / नहीं

३ आप का शिशु सच बोलता है . हाँ / नहीं

४ आप का शिशु नाख़ून काटता है . हाँ / नहीं

5 आप का शिशु गृहकार्य खुद करता है . हाँ / नहीं

६ आप का शिशु जूतों पर पॉलिश करता है . हाँ / नहीं

७ आप का शिशु अपना बस्ता खुद लगाता है .

हाँ / नहीं

८ आप का शिशु अपना समान जगह पर रखता है . हाँ / नहीं

९ आप का शिशु अपनी ड्रेस खुद पहनता है . हाँ / नहीं

१० आप का शिशु रोज नहाता है . हाँ / नहीं

जब शिक्षिका बच्चों का यह कार्ड देखती तो अधिकतर बच्चों के निशान हाँ में होते थे , कुछ बच्चों के निशान ' हाँ ' और ' नहीं ' में होते थे ,लेकिन मयंक , मानव , रीता , गीता और मनोज के ' दैनिक कार्ड ' में निशान ' नहीं ' में होते थे . वे सब कटु बोलते थे , निंदा , चुगली करते थे ,खूब झगड़ते थे, कक्षा के बच्चों को चिढ़ाते थे , अपने गुरुओं की नकल करते थे . अध्यापकों के समझाने पर भी उनका कहना नहीं मानते थे . अध्यापक वर्ग , माता - पिता इन बच्चों के कारनामों से परेशान थे . सभी असमंजस में पड़ गए कि कैसे इन्हें सुधारा जाए ? नादानी , अज्ञानता का आवरण इन बच्चों पर चढ़ा हुआ था . इन बच्चों की इस विद्रूपता , कुरूपता , खराबी को हटाना अध्यापको का लक्ष्य और चुनौती बन गई थी . प्राचार्य ने अध्यापकों के सहयोग से इन्हें सही राह पर लाने का बीड़ा उठाया .

विद्यालय में प्रकृति की प्रयोगात्मक शिक्षा हर महीनें में एक बार होती थी . बच्चों को वनस्पति यानी पेड़ - पौधों का ज्ञान कराने ' अर्बोरेटुम ' ले जाते थे जहाँ शीतल छाँवदार सघन वृक्ष आम , नीम , बरगद , पीपल , बेल आदि के नीचे बैठकर ' प्रश्न पहेली ' स्पर्धा करते थे तो कभी अन्ताक्षरी खेलते थे . इनकी आयुर्वेदिक उपयोगिता छाल , लकडी , औषधी आदि के बारे में बताते थे .

कभी ' फर्न पार्क ' ले जाते थे , जहाँ पर विभिन्न प्रकार की प्रजातियों की फर्न होती थी . कभी ' वनस्पति उद्यान ' ले जाते थे .

जहाँ पर कई सौ वर्ष पुराने पेड़ गगन छूते दिखाई देते हैं . वहीं पर बारह राशियाँ जैसे मेष , वृष , मिथुन आदि के नामांकित पेड़ पर राशियों की जानकारी अंकित थी . सब आपनी राशि पढ़ने का मजा लेते थे . कभी झीलों को दिखाने ले जाते थे , जहाँ सूर्योदय , सूर्यास्त का मनोहर दृश्य देखने को मिलता और प्राकृत संपदा के साथ - साथ नौकाविहार करते थे . हाइकिंग भी ले जाते जहाँ प्रकृति की विहंगम दृश्यों की दृश्यावलियाँ दिखाई देती थी . कभी सुदूर जंगलों में ले जाते थे , जहाँ पर बच्चे पेड़ों की विभिन्न प्रकार की लकड़ियों से तरह - तरह के पशु - पक्षी की आकृति बनाते थे , वहाँ से तरह - तरह की फूल - पत्तियाँ ला के ' हरबेरियम ' सजाते थे और उत्सुकतापूर्वक बधाई कार्ड पर चित्ताकर्षक डिजाइन बनाकर रचनात्मक क्षमता का परिचय देते थे .वार्षिक परीक्षा में इन प्रोजेक्ट के अंक भी शिक्षक वर्ग देते थे . कभी स्ट्राबेरियों के मौसम में खेतों में ले जाते थे . इनकी पौध जमीन को छूती हुईं लाल - गुलाबी स्ट्राबेरियाँ बिजली की लड़ियों - सी धरा को जगमग करती हुई प्रतीत होती थी . कभी ऐसा बिम्ब दिखाई देता जैसा की धरा ने हरे - लाल की फुलकारी कढ़ाई की ओढ़नी ओढ़ी हो .

अतः सभी बच्चे इस दिन का बड़ी बेचैनी से इंतजार करते थे . घूमने को तो मिलता था , साथ ही प्राकृतिक धरोहर का लाभ उठाते थे . जिससे उनका सृजनात्मक , मानसिक , भावनात्मक औए बौद्धिक विकास होता था .

विद्यालय में शैतान छात्रों की काली सूचि में मयंक , मानव , रीता .गीता , मनोज का नाम था , इसलिए इस बार ' प्रकृति का प्रयोगात्मक ' सैर में शामिल नहीं किया और सजा के तौर पर लिखित गृहकार्य और प्रोजेक्ट्स भी ज्यादा दे दिए . इनको मन ही मन बहुत बुरा लगा . ये पाँचों छात्र घूमने , आनंद , मस्ती , मनोरंजन से वंचित रह गए .

वापस आकर जब बच्चे प्रकृति के नजारों, सौंदर्य , पर्यावरण , पेड़ों की जानकारी , कहानी , रोचक बातें बताते तो उन्हें बहुत अच्छा लगता व उत्सुकता होती थी इनके साथ जाने की .

अगले महीने फिर बच्चों को ' दैनिक कार्ड ' मिला तो प्रार्थना सभा में सभी बच्चों की कार्ड की जांच की गई . प्राचार्य ने इन पाँचों बच्चों को अपने पास बुलाया , उनका दैनिक कार्ड देखा तो इन बच्चों के नहीं में निशान थे . तब प्राचार्य ने उन्हें डांटा और सात दिनों के लिए स्कूल से निलम्बित कर दिया . सब के समाने इन बच्चों को अपना अपमान लगा . शर्म के मारे उन्होंनें अपनी गर्दन झुका ली .

उसी क्षण उनकी चेतना जागी और उनके भावों के उतार चढ़ाव में परिवर्तन आया . उन्होंने प्राचार्य से माफी मांगते हुए कहा - हम भी अच्छे बच्चे बनेंगे . आज से हम आपको शिकायत करने का कोई मौका नहीं देगें , हम सबका कहना मानेंगे . दैनिक कार्ड की सभी बातें हाँ में स्वीकारेंगे . हम अपनी संकल्प शक्ति के द्वारा सदाचार का अभ्यास करेंगे . कहावत भी - ' करत - करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान . ' समाधान की रोशनी ने सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण किया . जिससे खराब काम , अवगुणों का अँधेरा उनके जीवन से दूर भागा . संकल्प साधना से उन्हें नए व्यक्तित्त्व को बल मिला .

फिर समय व्यतीत हुआ , अगला महीना आया . प्रार्थना सभा में सभी बच्चों के ' दैनिक कार्ड ' देखे तो उन पाँचों छात्रों के कार्ड में ' हाँ ' का निशान था , प्यार से प्राचार्य ने उन्हें अपने पास बुलाया , उनके सिर पर प्यार से हाथ फेरा , मीठे वचनों व उदारता से उनकी प्रशंसा की . इन बच्चों में इतना बड़ा बदलाब , सुधार आया था जैसे अंगुलीमाल का बौद्ध के सान्निध्य से . अब वे झूठ नहीं बोलते थे ., कटु नहीं बोलते , निंदा नहीं करते और सब का कहना मानते थे . सभी शिक्षकगण ने उनके व्यवहार में आए परिवर्तन की तारीफ़ की और उन्हें ' प्रकृति के प्रयोगात्मक शिक्षा ' में जाने की अनुमति दे दी . उनके सम्मान में प्राचार्य ने मैडल भी दिया और कक्षा का मोनिटर भी बना दिया .

विद्यालय की छुट्टी होने पर चारों ओर इन बच्चों की चर्चें हो रहे थे .अभिभावकों , माता - पिता व शुभचिंतकों को अध्यापकों , प्राचार्य पर गर्व हो रहा था . इन बच्चों के माता - पिता ने उनका आभार व्यक्त किया , धन्यवाद दिया . नेकी - प्रयास से सभी को सच्चा सुख मिलता है . कहने का तात्पर्य यह है कि अगर बार - बार पानी को मथे तो उसमें बिजली पैदा हो जाती है और गरम को दूध को एक गिलास से दूसरे गिलास में डाल के झाग बनाएँ तो उसमें प्राणवायु और विद्युत शक्ति बढ़ जाती है . ऐसे ही संकल्प शक्ति से संजीवन क्षमताएं बढ़ जाती हैं . अगर दण्ड ,प्यार और प्रोत्साहन की प्रभावी नीति से काम लें तो सफलता मिलती है . नई ऊर्जा , प्रेम , विधयाक भावों की निर्झरणी उनमें बह रही थी . नन्दन वन से महकते हुए वे वनस्पति - सृष्टि , पर्यावरण प्रेम , संरक्षण का संदेश दे रहें थे .

प्रेषिका – मंजु गुप्ता

19 , द्वारका , प्लाट - 31

सेक्टर 9 A , वाशी , नवी मुम्बई .

पिन कोड - 400703

फोन – ०२२ -२७८८२४०७ / ०९८३३९६०२१३