Manju Gupta
लव मैरिज यानि प्रेम विवाह
सदियों से लेकर आज भी भारतीय सभ्यता , संस्कृति में विवाह को हमारी संस्कृति में सोलह संस्कारों में से एक संस्कार माना जाता है . जो आध्यात्मिक कार्य है , जिसमें दो आत्माओं यानी स्त्री पुरुष का मिलन होता है जिसे पवित्र संस्कार माना जाता है . भारतीय मान्यताओं के अनुसार विवाह धर्म, परिवार समाज का जरूरी अंग है . पाश्चात्य तथा भारतीय संस्कृतियों ने भी माना है कि युगल अर्थात स्त्री पुरुष की जोड़ी यानी उनका विवाह संबंध स्वर्ग से धरा पर बन कर आता है . ईश्वर के द्वारा ही लड़के लड़कियों की जोड़ी निश्चित और निर्धारित होती है . समाजशास्त्रियों ने विवाह को सामाजिक संस्था सामाजिक बंधन और सामाजिक समझोता माना है . ताकि समाज में योनाचार अराजकता न व्याप्त हो . विवाह कुल वंश की संतति बढ़ाने का माध्यम है . सन्तति के खून के संबंध शुद्ध बने रहें . जिससे परिवार को स्वस्थ आकार दिया जा सके .
आज भारतीय समाज में मुख्य रूप से दो प्रकार के विवाह प्रचलित हैं
1 अरेंज मैरिज यानी सर्वसम्मति या माता पिता की सहमती से तय किया लड़के या लड़की का विवाह .
२ लव मैरिज यानि प्रेम विवाह अर्थात लड़का या लड़की अपने जीवन साथी का खुद चुनाव करते हैं।
वक्त के परिदृश्य में मैं तो प्रेम विवाह की पक्षधर हूँ। शताब्दी दर शताब्दी विकास करती मानवता आज इक्कीसवीं सदी की दहलीज पर आ खड़ी हुई है। आज के परिवेश में समाज बहुत सी सामाजिक कुरीतियों जैसे दहेज़ प्रथा , स्वार्थ लालच , संकीर्ण मानसिकता, , रूढ़ियों और दोषों से भरा हुआ है।
ऐसे में प्रेम विवाह इक्कीसवीं सदी की दहलीज पर पाँव पसार रहा है। दहेज की उछाल लहरें आकाश को छूने लगी हैं। माता - पिता को दहेज न देना पड़े इस के कारण अपने मन पसंद अपने प्यार करनेवाले जीवन साथी से प्रेम विवाह की बाढ़ आ गई है। वर्तमान हालात में माता- पिता द्वारा तय किया गया रिश्ता अनुपयोगी सिद्ध हो रहे हैं। दहेज की लालच में कितनी लड़कियों को अपनी आत्महत्या करनी पड़ रही हैं , कितनों को मारा जा रहा है। उनका शोषण उत्पीड़न हो रहा है। अखवार दूरदर्शन इन वारदातों से पटा पड़ा है। ऐसे में माता - पिता अपनी बेटी को अपने घर वापस बुलाते भी नहीं हैं। उनकी अर्थी ही वापस आती है। मानव में स्वार्थ लोलुपता के कारण मानवीय आदर्शों के मूल्य ख़त्म हो रहे हैं वर पक्ष के लिए विवाह व्यापार बन गया है। लड़का एक बैंक ड्राफ्ट होता है। एक लॉटरी होता है। शादी के समय केश कराया जाता है। वर पक्ष कन्या पक्ष से यही उम्मीद रखता है कि शादी के बाद समय समय पर सब मांगें उसकी पूरी होती रहें। इन घिनौनी प्रथा से छुटकारा पाने के लिए प्रेम विवाह सार्थक है।
आज तकनीकी हाईटेक युग में पढ़े - लिखे आत्म निर्भर युवक - युवतियां में सकारात्मक बदलाव आए हैं।समाज की इन शोषण की रूढ़ियों को तोड़ दिया है। अपनी पंसद से अपने जीवन साथी का खुद चुनाव कर लेते हैं और शादी से पहले आपस में एक दूसरे की मानसिकता , गुण , अवगुण को समझ लेते हैं। आपसी पसंद , नापसंद , रुचियों को जान लेते हैं. समाज की दकियानूसी मान्यताओं को तोड़कर प्रेम विवाह कर लेते हैं।
मेरे विचानुसार उपर्युक्त विषय प्रेम विवाह , लव मैरिज अपने में सार्थक पूर्ण और व्यापक है। प्रेम का अर्थ प्रियता स्नेह ,अनुराग , प्यार , स्त्री जाति और पुरुष जाति का पारस्परिक स्नेह जो बहुधा रूप , गुण , स्वभाव कारण होता है आदि ।
विवाह का अर्थ वह संस्कार जिसमें पुरुष और स्त्री यौनाचार्य तथा संतान की उत्पत्ति के लिए परस्पर संबद्ध किए जाते हैं।
अगर दोनों अर्थों को मिला दिया जाए कहानी भी है की आदम और ईव के प्रेम संबंधों से सृष्टि की उत्पति हुई। इसलिए जीवन में प्रेम आवश्यक है प्रेम पर ही टिकते हैं। हर पुरुष - स्त्री प्रेम की शक्ति को जानती है। कवि के अनुसार -
' प्रेम हरि कौ है , ज्यो हरि प्रेम स्वरूप।
द्वैय यौं लसे , ज्योँ सूरज अरु धूप। '
तुलसी ने कहा -
' हरि व्यापक सर्वत्र समाना , प्रेम प्रकट होंहि मैं जाना। '
प्रेम परम शक्ति है जिसके द्वारा नफरत , द्वेष , क्रोध , अशांति , क्रूरता को रोका जा सकता है। यह ऐसी शक्ति जो पूरे समाज, देश, संसार को जोड़ सकती है। प्रेम पुरुष की आत्मा का गुण है , विकास के साथ जुड़ा हुआ है।
निस्वार्थ प्रेम सुखद, सुंदर , शांतिपरक , विकासमान होता है , -नैतिक मानवीय गुणों से ओतप्रोत होता है। जो मैत्री भावों में बदल देता है। जिससे नकारात्मक भाव काम , क्रोध ,नफरत , राग , द्वेष मिट जाते हैं।
प्रेम की व्यापकता के मेरे स्वरचित दोहे -
प्रेम पीड़ा को हरता , कुल - जग देता तार।
भेद भाव के भेद से , नर समरस हो जाय।
खुदा के बन्दे हैं ये , ईश्वर इनमें होय।
करें हैं जो प्रेम इन्हें , खुदा उसे है सौंह।
प्रीति की यही पहचान , दो रंग होय एक।
हल्दी -चूने के साथ , बन रंग लाल नेक।
- मंजू गुप्ता
खुसरो ने कहा -
खुसरो 'औ ' पी एक हैं , देखन में हैं दोय।
मन से मन को तौलिए , दो मन कभी न होय।
रहीम ने कहा -
रहिमन प्रीती सराहिए , मिल रंग होत दून।
ज्योँ जरदी हरदी तजै , तजै सफ़ेदी चून।
भारत में धर्म की नींव प्रेम है। जग को प्रेम का चिंतन दिया।
जग में कोई भी विवाह हो उसका आधार प्रेम ही होता है। प्रेम तो जोड़ता है ना कि तोड़ता। विश्वामित्र और मेनका का प्यार से ही शकुंतला हुई। शकुंतला ने अपने प्यारे दुष्यंत को दिल दे कर प्रेम विवाह किया था। मुग़ल काल में अकबर और जोधा। तुलसी का अमर प्रेम पत्नी से मिलने रस्सी का सहारा लिया। श्री कृष्ण रुक्मणी का प्रेम कौन नहीं जानता है। आधुनिक संदर्भ में राजीव गाँधी और सोनिया गाँधी प्रेम विवाह की मिसाल हैं।
अतः प्रेम विवाह एक ऐसी संजीवनी बूटी है जिससे विकास - सृजन होता है ,मन - वचन कर्म से प्रेममय जीवन जीता है। सारा संसार सत - चित - आनंद और सत्यम - शिवम - सुंदरम लगता है।
आज इंटरनेट , विज्ञापन आदि प्रेम विवाह को बढ़वा दे रहे हैं , जो मुझे सही भी लगता है।इनके द्वारा लड़के - लड़कियां अपने जीवन साथी खुद ही चुने और चुनते भी हैं। परिणाम तो सुखद भी हैं। भारतीय अदालत ने नियम बना दिया है कि लव मैरिज करनेवाले प्रेमी जोड़ी को अपनी शादी रजिस्टर्ड कराने के लिए किसी परिवार वाले लोग की मौजूदगी जरूरी नहीं होगी अब इस तरह की मुसीबत नहीं झेलनी होगी। कभी - कभी ऐसा भी देखा है प्रेमी जोड़े में शादी के बाद एडजेस्टमेंट नहीं हुआ तो कभी - कभी परिणाम शादी के गलत भी हो जाते हैं।
विवाह व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए जो तोड़ी न जा सके। आमरण पति पत्नी के संबंध होने चाहिए। प्रेम करने वाले एक दूसरे के निमित्त बड़े से बड़ा कष्ट सहन कर कठिनाइयों को पार कर जाते हैं। किसी सुंदर लड़की को देख कर पहली नजर में प्रेम हो गया। ' love at first sight ' के मानने वाले जाति , वर्ण , देश काल आदि को नहीं मानते हैं, क्योंकि प्रेम में व्यापकता होती है।
लैला - मजनूं ,शीरी -फराह , सोनी - महिवाल आदि का प्यार जगत विख्यात है। तन - मन एक हो जाते हैं। लेकिन उनके प्रेम में समाज बाधक बना और उन्हें मार डाला . उनका विवाह नहीं किया। मेरे अनुसार -
' प्रेम विवाह से ही मौत की बेड़ी कट जाती।
सावित्री सत्यवान को यम से ले आयी। '
' सृष्टि ही ईश्वर की , प्रेम की है अभिव्यक्ति।
जड़ - चेतन भी , ईश से परिभाषित हैं। '
प्रेम के मधुर धार में , एक से अनेक होते हैं
सर्वत्र व्याप्त सृष्टि में , श्रृंगार , करुणा हास्य होते।
- मंजू गुप्ता
समाज में कभी - कभी प्रेम विवाह द्वेष विवाह भी बन जाता है जिससे रिश्ता टूट जाता है। प्रेम ख़त्म हो जाता है यानी तलाक। लेकिन कभी कभी इन प्रेमियों को अपनी जाति से अलग जाति में विवाह करने से माता पिता , परिवार वालों का विरोध भी सहना पड़ता है और हिंसा का भी सामना करना पड़ता है। इसलिए प्यार का ढाई अक्षर में प आधा है ,शेष यार ही बचता है।
अंत में कालका जी का शेर -
' प्यार वालों का प्यार ही मजहब ,
दुश्मनी कैसी दोस्ती कैसी। '