Pita ne patra me Prakat ki antim ichchha books and stories free download online pdf in Hindi

पिता ने पत्र में प्रकट की अंतिम इच्छा

Jahnavi Suman

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अंतिम विनती बेटा।

वृद्धा आश्रम

बाबा खड़क सिंह मार्ग

नई दिल्ली

तिथि ११ अप्रैल २०१६

प्रिय सुपुत्र अक्षय

आशा करता हूँ, अपने परिवार के साथ अफ्रीका में प्रसन्नचित व् स्वस्थ होगे। मैं अब कुछ दिन का मेहमान हूँ ,डोक्टर ने एक इशारा सा दे दिया कि ,मुझे अब पैकप कर लेना चाहिए।

मेरे जाने के बाद आश्रम वाले तुम्हे मेरा सामन सुपुर्द करेंगे। बेटा मेरी सफ़ेद कोट की अंदर वाली जेब में तुम्हें एक तंबाकू की डिबिया मिलेगी। तंबाकू के पाउडर को ध्यान से हटाना। उसके नीचे एक पुराना सिक्का मिलेगा। उसे संभाल कर रख लेना और मेरे पैत्रिक गाँव 'सीतापुर' ले जाना। वहाँ हनुमान मंदिर पर एक भिखारी रामप्रसाद ,भजन गाता हुआ भीख माँगता है ,यह सिक्का उसको दे देना और मेरी तरफ से बहुत बहुत माफ़ी मांगना। यह मेरी अंतिम विनती है तुम से।

इस सिक्के का रहस्य बताने के लिए तुम्हारे ताऊ जी की डायरी के कुछ पृष्ठ कोपी पेस्ट कर रहा हूँ।

डायरी २१-०४-१९९४ आज भया क्रिकेट मैच

गाँव सीतापुर में आज सुबह से ही अच्छी खासी चहल-पहल है, अजी क्यों न हो, आज का दिन कोई मामूली दिन थोड़ी न है। आज का दिन तो बहुत विशेष है। आज सीतापुर गाँव का क्रिकेट मैच रामगढ़ गाँव से जो होने जा रहा है। यूँ तो सीतापुर की तरह रामगढ़ भी एक छोटा सा गाँव है, लेकिन सीतापुर वाले गाँव को ऐसे जोश से सजा रहे थे, जैसे कि, उनके गाँव में रामगढ़ की नहीं बल्कि आस्टेृलिया की टीम मैच खेलने आ रही हो।

इस मैच का प्रसारण किसी चैनल वाले तो नहीं कर रहे हैं, हाँ स्थानीय केबल ऑपरेटर ‘शम्भु’ के साथ यह तय हुआ है, कि शम्भु मैच के मुख्य अंश शाम को अपने केबल पर प्रसारित करेगा। अब हम अधिक क्या बताएँ? मैच शुरु होने ही वाला है

छग्गन मियां-जिनका गला और जुबान दोनो ही बहुत साफ़ है, दूसरे शब्दों में कहें तो , वह इस गाँव के ‘अमीन स्यानी’ हैं। कमेन्टृी देने को तैयार हैं। आइए सीधा मैदान में ही चलते हैं।

छग्गन मियां सीतापुर के बड़े मैदान में लकड़ियों के ऊँचे ढेर पर खड़े होकर ऐसी जगह तलाश कर रहे हैं, जहाँ से पूरा मैदान साफ़- सा़फ़ नज़र आ जाए। इस समय वह अपने आप को ‘सुनील गवासकर’ से कम नहीं समझ रहे हैं। रामगढ़ की टीम मैदान में पहुँचने ही वाली है। सीतागढ़ की टीम अभ्यास करने में जुटी हुई है। सारे खिलाड़ी थपड थपड घोड़े की तरह दौड़ कर, धूल उड़ा रहें हैं।

नुक्कड़ का पनवाड़ी ‘बनवारी’ एक छोटी सी थलिया मैं पान लगााए मैदान के आस-पास डोल रहा है। आने-जाने वालों के आगे थलिया घुमाकर मीठा सा आग्रह कर रहा है-‘बनारसी पान, पाँच रुपए में।’ आज तो उसे एक अच्छी खासी रकम जेब में ढूंस जाने की उम्मीद है, उसकी आँखों में सितारे झिलमिला रहे हैं।

हलवाई खुरचन प्रसाद, एक टोकरे में गर्मागर्म समोसे व कचौड़ी सजाए, मैदान के बाहर, बड़े से पत्थर पर जमा बैठा है। उसका नौकर कालूराम आलू की सब्जी का भगोना लेकर ज़मीन पर चटाई बिछाए बैठा है। पत्ते के दोनो में आलू की सब्जी परोसकर, ग्राहकों को आकर्षित करने में पूर्णरुप से सफ़ल हो गया है। सुबह सवेरे घर से खाली पेट, घर से मैदान की ओर लपक कर आने वालों को तो मानों उन पर टूट ही पड़ने का निमन्त्रण दे रहा है। खाने वालों की भी कमी नहीं है। आज इतना महत्त्वपूर्ण मैच होने वाला है। भला घर में चूल्हा फ़ूँकने का या खाना खाते हुए खटिया तोड़ने का क्या औचित्य है।

शहनाई व ढोल बज उठे। लगता है, रामगढ़ की टीम आ गई। अरे नहीे, यह तो सरपंच महोदय आ रहें हैं, अपने चम्म्मचों से घिरे हुए। गाँव की सुन्दरियाँ घाघरा चोली के ऊपर चुनरियाँ लहराती हुई गुलाब की पंखुंड़ियाँ बरसा रही हैं। सफ़़ेद धोती कुर्ता और मैंचिग टोपी पहने सरपंच महोदय सबसे आगे चले जा रहे हैं। नगाड़े बज रहे हैं। सुन्दरियाँ थिरक रही हैं। लाल गलीचे पर नाचती थिरकती हुई सुन्दरियाँ, सरपंच को मैदान में बिछे सो़फ़ा सैट की तरफ़ ले गईं। सरपंच चमचों सहित वहाँ पर पसर गए हैं।

यह क्या हुआ अचानक मैदान मैं दोगुने खिलाड़ी कैसे हो गए। अरे-अरे यह क्या? लगता है, रामगढ़ की टीम आ पहुँची। सुन्दरियाँ सरपंच को रिझाने में ऐसी मस्त हुईं कि रामगढ़ की टीम का स्वागत -सतकार करना ही भूल गईं। टीम कब मैदान में आई पता ही नहीं चला। वो तो छग्गान मियाँ ने स्थिति को सँभाल लिया वरना गाँव से बारात का वापिस लौट जाना या किसी क्रिकेट टीम का रुठ जाना - गाँव वालों के लिए भयानक अपमान का विजय बन जाता है।

माईक पर छग्गन मियां की कमेन्टी शुरु हो गई।

‘लाल जर्सी में सीतापुर की टीम है और नीली जर्सी में रामगढ़ की टीम है। रामगढ़ की टीम के स्वागत में ज़ोरदार ताली बजाएँ। कप्तान से आग्रह है, कि मैदान के बीचों बीच पहुँचे।

दोनों टीम के कप्तान मैदाान के बीचों-बीच पहुँच गए हैं।

दोनों एम्पायर भी मैदान के बीचों बीच पहुँच कर खड़े हुए हैं। सरपंच के मैदान में आने की प्रतीक्षा हो रही है। सरपंच सिक्का उछालकर घोषणा करेंगे की कौन सी टीम ने बाज़ी मारी है। (अर्थात कौन सी टीम यह सोचने के लिए स्वतंत्र होगी, कि पहले गेंदबाजी या पहले बल्लेबाजी?

संरपंच महोदय बस सिक्का उछालने ही वालें हैं। सरपंच महोदय ने हाथ बढ़ा कर सिक्का माँगा और दोनों एम्पायर अपने जेब टटोलने लगे, लेकिन किसी के पास सिक्का नहीं मिला है। सब एक दूसरे का मुँह ताक रहे हैं। रामगढ़ की टीम के कप्तान हीरा लाल अचानक दौड़ने लगे हैं। सब लोगों की निगाहें भी उनके साथ दौड़ रहीं हैं। हीरालाल मैदान में खड़े भिखारी के पास पहुँचे, उन्होंने उसके कटोरे में से एक सिक्का उठाया और वापिस एम्पायर के पास दौड़ कर आ रहें हैं। भिखारी अपनी सीधो हाथ की दोनों उंगलियों (तर्जनी व मध्यम से अंग्रेजी का ‘वी’ बनाकर कैमरे को दिखा रहा है। वी यानि विजय। आज वह स्वयं को विजयी महसूस कर रहा है। उसने आकाश की तरफ़ देखा। कुछ बुदबुदा कर ईश्वर से भी बात-चीत की। शायद आज पहली बार कोई भिखारी के पास भीख माँगने आया था।

सरपंच साहब ने सिक्का उछाला, सिक्का आसमान की ओर लपका और दूसरे ही क्षण धरती की ओर तेजी से मुड़ गया। वहाँ उपस्थित जनसमूह की गर्दनें भी सिक्के का अनुसरण कर रही हैं।

सब यह जानने के लिय व्याकुल हैं, कि ? सिक्के का कौन सा पहलू ऊपर की ओर है।

लेकिन यह क्या सिक्का जमीन में गिरने से पहले ही कहाँ गायब हो गया? सब चारों ओर निगाह दोड़ा रहें है, पर सिक्का कहीं दिखाई नहीं दे रहा है। यह सरपंच का पी ए , उछल-उछल कर कैसा नृत्य कर रहा है। वह सरपंज जी को भी ऐसा करने के लिए कह रहा है। सरपंज महोदय भी ताता थैया करते नाच उठे। उनके उछलते ही खन्न से सिक्का ज़मीन पर गिर गया है। जनता जनार्दन के चेहरे पर हर्ष और उल्लास देखते ही बनता है। सभी यह जानने के इच्छुक हैं, कि पासा किसके हक में पड़ा। लेकिन एम्पायर बार-बार सिक्के को उलट पुलट कर देख रहा रहा है। यह क्या भिखारी के सिक्के के दोनो पहलु यानि चित और पट एक जैसी हैं? एम्पायर ने गुस्से में सिक्के को वापिस मैदान में फ़ैंक दिया। भिखारी दौड़ा हुआ आ रहा है।

मैच शुरु हुआ नहीं और छगगन मिंयाँ का तो गला सूख गया। अब आगे की कमैंटृी हम करते हैं।

आगे का किस्सा इस प्रकार है---दसअसल भिखारी को यह सिक्का मामूली भीख में नहीं मिला था, बल्कि उसके दादा पडदादा एक मशहूर जादूगर की गली मे भीख माँगा करते थे़। एक दिन जादूगार अच्छे मूड में था, उसने अपना बेश कीमती सिक्का भिखारी को दे दिया। खनदानी परंपरा चली आ रही थी, सुबह सबसे पहले खाली कटोरे में वो कीमती चाँदी का सिक्का डालकर भीख माँगी जाती थी। आज भी परिवार की परंपरा निभाते हुए सिक्के को स्वयं अपने कटोरे में डाल दिया था, ताकि भीख देने वालों की दया, सिक्कों के रुप में हमेशा कटोर में बरसती रहे। ज्यादा से ज्यादा भीख बटोरने के लालच में भिखारी अपना भी सिक्का गवाँ बैठा। भिखारी मैदान में पसर गया है, वह सिर पकड-पकड़ कर रो रहा है, ‘हाय मेरा खानदानी, चाँदी का सिक्का।’

मैदान, जो की दर्शकों से खचाखच भरा है,अभी तक शाँत था। अब दर्शक हल्ला मचा-मचा कर कह रहे हैं, ‘मैच शुरु करवाया जाए।’ भिखारी ने अपने कटोरे को उलटा कर दिया, उस के तेज़ किनारों से वह मैदान को खोदना शुरु कर रहा है। भिखारी के लिए एक सिक्का भी कितना कीमती होता है,यह मैच देखने आई दीवानी पब्लिक क्या जाने।

एम्पायर चिल्ला रहा है--‘अबे पिच क्यों खराब कर रहा है? मैच के बाद ढूँढ लेना अपना सिक्का।’ भिखारी तो दुखी है , वह तो बैठ गया, घुटनों के बल मिट्टी में और खरगोश की तरह फुर्ती से अपने दोनों पंजो से मैदान खोद रहा है। अब तो एम्पायर आम बबुला हो गया। उसने भिखारी को मैदान से खदेड़ना चाहा, मगर दोनो के बीच जंग छिड़ गई। मैच शुरु होने का समय तो कब का निकल चुका है, मगर मैच शुरु होने में अभी समय है। चलिए तब तक हम अपने घर होकर आते हैं। ………………

बेटा अक्षय ,

इसके बाद तेरे ताऊ जी घर आए तो उनकी आँखे फटी की फटी रह गईं। भिखारी का वो सिक्का , मैदान से मैं चुरा लाया था। उनके लाख समझाने पर भी मैं नहीं माना। माँ -पिताजी का तो मैं लाडला था ही। एक दिन मुझे पता चला कि तेरे ताऊ जी ने अपनी निजी डायरी में सब कुछ लिख दिया तो ,मैंने उनकी डायरी भी चुरा ली। बेटा, अब वृद्धा आश्रम में ,अपनों से दूर ,अलग पड़ा हुआ तड़प रहा हूँ. शायद उसी भिखारी की बद्दुआ का असर है।

बेटा तुम्हें एक शिक्षा देकर जाना चाहता हूँ , "कभी भी किसी और के हक़ का एक पैसा भी अपने पास मत रखना। " दूसरों के हक़ की वस्तु क्षण भर की ख़ुशी देती है और जीवन भर का दुःख दे जाती है।

अंत में तुम सब को मेरा आशीर्वाद।

अंतिम सांस पर , तुम्हारा पिता

…बनवारी

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