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BARIATRIC SURGERY

मोटापा और लैप्रोस्कोपिक बेरियाट्रिक सर्जरी

गंंभीर रूप से मोटापा तथा उससे होने वाली बीमारियों से परेशान लोगों के लिए की जानेवाली सर्जरी को बेरियाट्रिक सर्जरी या वेटलास सर्जरी कहते हैं.यह एक लाईफ अल्टरिंग डिसीजन है.क्योंकि सर्जरी के बाद इंसान केा लाइफ स्टाइल में आमूलचूल परिवर्तन करना पड़ता है. फ्रांस,इंगलैंड,नीदरलैंड,बेल्जियम,इटली,जर्मनी,अस्ट्रिया,स्पेन,तर्की,लेबनान,इजराइल,हांगकांग,ताइवान,अस्ट्रेलिया कोस्टारिका, कोलंबिया की तुलना में भारत में यह सर्जरी ज्यादा संख्या में इसलिए हो रही है क्योंकि यहां के बेरियाट्रिक सर्जन काफी दक्ष और कुशल माने जाते हैं. दूसरा कारण कॉस्ट इफेक्टिवनेस भी है. दूसरे विकसित देशों की तुलना में यहां आधे खर्चे पर यह सर्जरी बेहतर तरीके से हो जाती है.इसीलिए दुनियाभर से काफी संख्या में मरीज इस ऑपरेशन के लिए भारत आ रहे हैं.

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केस एक—

पचास वर्षीय गुप्ता जी एक सरकारी दफ्‌तर में बाबू हैं. वजन इतना कि यदि लिफ्‌ट खराब हो तो ऑफिस की तीसरी मंजिल के लिए सीढ़ी चढ़ते हुए सासों से धौंकनी की आवाजें निकालने लगती हैंं. और ऑफिस में घंटा दो घंटा बीतने के बाद से ही उंघने और खर्राटा का दौर शुरू हो जाता है. पेट नौ माह की प्रेग्नेंसी इतना निकला हुआ. ऑफिस में जब तक रहते है देह खुजलाते रहते हैं. मन इतना सुस्त तथा दिमाग कंफ्‌यूज्‌ड कि कोई काम समय से नहीं निपट पाता. बॉस की त्योंरियां इनको देखते ही चढ़ जाती हैं. सहकर्मी इन्हें गेंडा कहकर संबसेधित करते हैं. घर में भी इन्हें चैन नहीं मिलता. खर्राटे के कारण हमेशा पत्नी से झगड़ा होते रहता है. डायटिंग तथा मॉनिंग वॉक इनसे होता नहीं. डॉक्टर इन्हें सर्जरी की सलाह दे चुके हैं किंतु इतना पैसा नहीं कि अस्पताल जाने को सोंचें. डायबिटीज तथा उच्च रक्तचाप के कारण क्या खायें और क्या छोड़े इसके लेकर घर में हमेशा तनाव रहता है.

केस—दो—

उसी ऑफिस के एडिशनल डायरेक्टर की भी एक साल पहले तक कमोवेश यही स्थिति थी. मोटापा ऐसा कि दस कदम चलने के बाद ही पसीना—पसीना हो जाते थे. दस कदम पैदल चलना इनके लिए मुहाल था. बीच में हार्ट अटैक भी झेल चुके हैं.डॉक्टर का कहना था कि इनका पुनर्जन्म हुआ है, समय रहते जो अस्पताल पहुंच गये थे. अन्यथा इनकी अर्थी ही निकलती. बीमारियां इतनी कि भुंजा की तरह गोलियां खाते थे. लेकिन, सर्जरी के बाद तो इनका पूरा हुलिया ही बदल गया है. बदन एकदम छरहरा हो गया है. फूर्ति इतनी कि तीसरी मंजिल के लिए कभी भी लिफ्‌ट पर नहीें चढ़ते. पूरे आफिस में चर्चा है कि मोटापा कम करनेवाला जो सर्जरी कराये हैं, काफी रकम खर्च हुई है. लेकिन इतना तो लोग मानते हैं कि साहब के चेहरे पर रौनक आया है और बदन एकदम हल्का हो गया है.

भारत में मोटापा एक संक्रामक रोग की तरह फैलता जा रहा है. यह चिंता की बात है.यह केवल भारत ही नहीं, दुनियाभर के देशों के लिए चिंता की बात है.ब्राजील,चीन,मैक्सिको,रूस तथा साउथ अफ्रीका जैसे देश भीअपने नागरिकों के ओवरवेट से परेशान हैं.मैक्सिको में 10 में सात पुरूष ओवरवेट या फिर मोटापा की गिरफ्‌त में हैं जबकि ब्राजील,रूस तथा साउथ अफ्रीका में पचास फीसदी के करीब.भारत और चीन में प्रतिशत अपेक्षाकृत कम है. परेशान करनेवाली बात यह है कि इसका ग्रोथ तेजी के साथ गलत दिशा की ओर बढ रहा है.कम और मघ्य इन्कम वाले देशों में हेल्थकेयर संसाधन की कमी से मोटापा—संबंधित कैंसर,डायबिटीज तथा हृदय—रोग जैसी जटिलताओं की संख्या में बेतहाशा बृद्धि हो रही है. मेडिकल जर्नल लैंसेट में प्रकाशित शोध के अनुसार पूरी दुनिया में सन्‌ 2030 तक सत्तर फीसदी मैांतें कैंसर,डायबिटीज,ह्‌दय रोग तथा श्वसन संबंधित रोगों से होंगीं. इनमें 80 फीसदी भारत जैसे देशों के नागरिक होंगे.भारत में इसकी संख्या 20 फीसदी की दर से बढ रही है..कुछ शहरी क्षेत्रों में तो इसका प्रतिशत चालीस फीसदी तक है.विशेषज्ञों की माने तो भारत और चीन में ये आंकड़े विशालकाय हाथी की तरह बढते जा रहे हैं.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े के अनुसार भारत में मूलतः ह्‌दयरोग,डायबिटीज,कैंसर, तथा श्वसन संबंधित पुराने रोगों से सन्‌ 2005 में 35 मिलियन मौंतें हो चुकी हैं जो पूरी दुनिया की मौंतों का 60 फीसदी है. इनमें 80 फीसदी मौत उपर बतायी बीमारियों की वजह से हुइर्ं. और आनेवाले दस सालों में 17 फीसदी की दर से इसमें बृद्धि होने का अनुमान है.

पंजाब में महिलाओं की कुल आबादी की 40 फीसदी ओवरवेट या मोटापा की शिकार हैं. इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन द्वारा जारी डाटा के अनुसार पूरी दुनिया का हर छठा डायबिटीज मरीज भारतीय है.इसीलिए भारत को पूरे विश्व का डायबिटीज कैपिटल कहा जा रहा है.समय रहते इलाज नहीं कराने पर स्थिति भयावह और परेशान करनेवाली हो सकती है. अत्यधिक मोटे लेागों का औषधीय इलाज काफी लंबा चलने के बावजूद कोई विशेष फायदा नहीं होता.नब्बे फीसदी संभावना दुबारा होने की होती है. ऐसी स्थिति में सर्जिकल प्रोसिड्‌योर ही एकमात्र उपाय बचता है जिसे बेरियाट्रिक सर्जरी कहा जाता है.

बेरियाट्रिक सर्जरी क्या है?

बेरियाट्रिक ग्रीक शब्द है. इसका अर्थ होता है—वजन अौर इलाज. इसका संबंध कारण, बचाव तथा ट्रीटमेंट से भी है. गंंभीर रूप से मोटापा तथा उससे होने वाली बीमारियों से परेशान लोगों के लिए की जानेवाली सर्जरी को बेरियाट्रिक सर्जरी या वेटलास सर्जरी कहते हैं.यह एक लाईफ अल्टरिंग डिसीजन है.क्योंकि सर्जरी के बाद इंसान केलाइफ स्टाइल में आमूलचूल परिवर्तन करना पड़ता है. फ्रांस,इंगलैंड,नीदरलैंड,बेल्जियम,इटली,जर्मनी,अस्ट्रिया,स्पेन,तर्की,लेबनान,इजराइल,हांगकांग,ताइवान,अस्ट्रेलिया कोस्टारिका, कोलंबिया आदि देशों में इस विकसित टेक्नोलॉजी के द्वारा सर्जरी की जा रही है.

भारत में यह सर्जरी ज्यादा संख्या में इसलिए हो रही है क्योंकि यहां के बेरियाट्रिक सर्जन काफी दक्ष और कुशल माने जाते हैं. दूसरा कारण कॉस्ट इफेक्टिवनेस भी है. दूसरे विकसित देशों की तुलना में यहां आधे खर्चे पर यह सर्जरी बेहतर तरीके से हो जाती है.इसीलिए दुनियाभर से काफी संख्या में मरीज इस ऑपरेशन के लिए भारत आ रहे हैं.

कब और क्यों जरूरी?

इस सर्जरी के पहले दो तरह के प्रश्न उठते हैं कि कब अौर क्यों यह जरूरी है. क्या मोटापा के शिकार सभी लोगों को यह सर्जरी करानी चाहिए?

मोटापा की वजह से कई तरह की बीमारियां होने की संभावना होती है, जिनमें उच्च रक्त चाप, हृदयरोग, डायबिटीज, अर्थ्राइटिस, पित्त की थैली में पथरी, लीवर डिजीज, गठिया, गाइनोकालाजिकल समस्या, सांस की परेशानियां,खर्राटा आदि शामिल हैं. इसकी वजह से कैंसर भी होने की संंभावना होती है. इन सारी समस्याओं से निजात पाने का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपाय बेरियाट्रिक सर्जरी है. इस सर्जरी का मुख्य उद्देश्य वजन कम करना है.

कुछ सर्जन 60 के बाद के मरीजों को इसकी सलाह देते हैं,तो कई किशोरवय में ही यह ऑपरेशन करवाना ज्यादा लाभदायक मानते हैं. चूंकि यह सर्जरी मोटापा के इलाज की अंतिम कड़ी है. अतः यह जाहिर है कि पहले बहुत सारे पारंपरिक उपाय अपनाने के बावजूद किसी तरह का फायदा न होने की स्थिति में हारकर कोई मरीज इस आपरेशन के बारे में सोचता है. कारण मोटापा से संबंधित कई तरह की स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं से जूझ रहे होते हैं.

मोटापा की वजह से कई तरह की परेशनियों के साथ—साथ पुरुष का वजन 100 पौंड तथा महिलाओं का 80 पौंड से ज्यादा वजन हो. इसके साथ—साथ बीएमआई अर्थात्‌ बाडी मास इंडेक्स 40 से ज्यादा हो तो सर्जरी के लिए सोचना चाहिए.यदि मरीज का वजन 80पौंड तथा बीएमआई 35 से ज्यादा हो इसके साथ—साथ मोटापा से संबंधित कोई गंंभीर बीमारी जैसे डायबिटीज या कोई खतरनाक ह्‌दय—रोग,सांस की समस्या या स्लिप एप्निया हो तो भी मरीज को बेरियोट्रिक सर्जरी करवा सकता है. इसके लिए मरीज के हायर सेंटर में जाना चाहिए, जहां बेरियाट्रिक सर्जरी के विशेषज्ञ तथा सर्जरी की विशेष सुविधा है.

लेप्रोस्कोपिक बेरियाट्रिक सर्जरी के प्रकार

यह कई तरह से किये जाते हैं.इनके अलग—अलग रिस्क फैक्टर्स तथा फायदे हैं और अलग—अलग मरीजों में अलग—अलग विधि अपनायी जाती है.किस विधि का उपयोग किस मरीज में करना है,इसका निर्णय चिकित्सक मरीज की मेडिकल हिस्ट्री,जटिलताएं, चिकित्सक के विवेक और अनुभव पर निर्भर करता है.जब कोई मरीज सर्जन से संपर्क करता है तो वे इन प्रोसिड्‌यार की चर्चा करते हैं. खासियत तथा रिस्क फैक्टर्स बताते हैं. ये भी बताते हैं कि कौन—सा प्रोसिड्‌योर उनके लिए उपयुक्त है और क्यों?

बेरियाट्रिक सर्जरी गैस्ट्रिक रेस्ट्रिक्टिव तथा माल एब्जोर्ब्टिव प्रोसिड्‌योर से किया जाते हैं. दोनों में गैस्ट्रिक रेस्ट्रिक्टिव विधि ज्यादा प्रचलित है. दोनों मिनिमाली इन्वेसिव सर्जरी है और विडियोस्कोपिक सर्जरीके भी नाम से जानी जाती है, क्योंकि इसमें एडवांस सर्जिकल टेक्नीक द्वारा विडियो कैमरा की सहायता से अत्यधिक छोटा चीरा लगाकर ऑपरेशन को अंजाम दिया जाता है.इस सर्जरी द्वारा मोटापा से होने वाले रिस्क फैक्टर को भी काफी कम किया जाता है.

1.गैस्ट्रिकरिस्ट्रिक्टिव प्रोसिड्‌योर—

इसमें भोजन की मात्रा बाधित की जाती है.किंतु, सामान्य पाचन क्रिया में किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं किया जाता. सर्जन पेट के ऊपरी भाग में एक छोटा पाउच अर्थात्‌ बेबी स्टोमक बनाते हैं. इसी में खाना खाने के बाद भोजन पहुंचता है. यह काफी लचीला होता है. शुरूआत में इसमें मात्र एक अौंस ही भोजन की जगह होती है, जो बाद में इतना फैल जाता है कि दो से तीन अौंस तक भोजन की जगह बन जाती है. ऊपर तथा नीचे का हिस्सा एक छोटे आउटलेट से जुड़ा होता है जिसके द्वारा भोजन धीरे—धीरे निचले हिस्से में पहुंचता है. निचले हिस्से में भोजन के पहुंचने के बाद मरीज को पेट भर जाने का अहसास एवं संतुष्टि मिलती है.

ऐसा देखा गया है कि आपरेशन के एक साल के भीतर करीब 77 फीसदी अतिरिक्त वजन में कमी होती है और दस से पंद्रह वषोर्ं में पचास से साठ फीसदी. यह सर्वाधिक सामान्य गैस्ट्रिक बाइपास विधि ह.ै लेप्रोस्कोपिक एडजस्टेबुल गैस्ट्रिक बैंडिंग विधि उस मरीज के लिए अपनायी जाती है, जिसका बाडीमास इंडेक्स 40 या इससे ज्यादा होता है. 35 अौर 40 के बीच बीएमआई वाले मरीज को यदि इसके साथ—साथ दूसरी जटिलताएं जैसे स्लीप एप्निया, डायबिटीज, ओस्टियोअर्थ्रार्इटिस गैस्ट्रो इसोफफेजियल रिफ्लैक्स, उच्च रक्तचाप या मेटाबोलिक सिंड्रोम या फिर कोई अौर जटिलताएं हो तो भी यह सर्जरी की जाती है. यह आपरेशन यूरोप में वर्षों से अपनाये जा रहे हैं.

इस विधि मेंपेट के ऊपरी भाग में बैंड की सहायता से एक छोटा पेट;बेबी पेटद्ध बनाया जाता है, जिसमें खाना की थोड़ी मात्रा ही रह सके. छोटे भाग के नीचे पेट का बड़ा भाग होता है, जिसे एक दूसरे के साथ कृत्रिम बैंड के सहारे जोड़ा जाता है. इससे भोज्य पदार्थ ऊपरी भाग से धीरे—धीरे नीचे के भाग में जाता है. ऐसा होने पर मरीज के पेट भरे होने का अहसास काफी देर तक बना रहता है. बैंड एडजस्टेबुल होता है, जिसे वजन घटने के साथ घटाया—बढ़ाया जा सकता है. इस आपरेशन की सर्वप्रमुख खासियत यह है कि पेट की रचना में किसी भी तरह का परिवर्तन नहीं किया जाता है. बाद में बैंड को हटाया भी जा सकता है . वर्टिकल बैंडेड गैस्ट्रोप्लास्टी पूरी दुनिया में जाना पहचाना है. कई लोग इसे स्टोमक स्टैप्लिंग के नाम से भी जानते हैं.

2. माल एब्जोर्ब्टिव प्रोसिड्‌योर—

इसमें पाचन क्रिया को बाधित करनेवाली सर्जरी की जाती है ताकि भोजन का पाचन हो तथा पचित भोजन का अवशोषण कम से कम हो और अपचित बाकी भोजन मल के साथ बाहर निकल जाए.ऐसा मोटापा के शिकार वैसे मरीजों के लिए किया जाता है, जो इससे साथ—साथ दूसरी जटिलताओं से भी पीड़ित होते हैं. पेट के छोटे भाग को छोटी आंत के दूरस्थ भाग से जोड़ा जाता है अौर डूयोडिनम तथा जेजुनम से बाइपास किया जाता है. पित्त तथा पैनक्रियेटिक डायजेस्टिव जूस को पहले ही मिक्स करने के लिए अलग से एक चैनल बनाया जाता है. इस ऑपरेशन के बाद कैलोरी तथा पोषक तत्व का अवशोषण नहीं होने के कारण मरीज का वजन तेजी से घटता है. इस प्रोसिड्‌योर को दो भागों में विभक्त किया जाता है पहला लिमिटेड गैस्ट्रोक्टोमी कहलाता है. इसमेेंं भोजन में कटोती की जाती है. खासकर प्रथम एक वर्ष के लिए. दूसरे भाग में 50 सेमी लंबे चैनल के साथ राक्स इन बाइ का निर्माण किया जाता है.यह ऑपरेशन की आधुनिक विधि है, जिसमें नार्मल भोजन करते हुए वजन घटा सकते है.इस विधि में कुछ कुपोषण की जटिलताएं जैसे पतला दस्त, बदबूदार हवा के साथ—साथ प्रोटीन तथा कैल्सियम जैसे लवण की कमी जैसी जटिलताएं देखने को मिल सकती हैं. इससे बचने के लिए मरीज को विटामिन की गोलियों के सेवन की सलाह दी जाती है, ताकि कुपोषण तथा हड्डी की कमजोरी से बचा जा सके.

अध्ययन तथा अनुसंधान से पता चला है कि इन आपरेशनों तथा अनुसंधान से पता चला है कि लंबे समय के बाद मरीज के वजन में काफी कमी होती है तथा इसकी वजह से होनेवाली दूसरी बीमारियां जैसे डायबिटीज तथा हृदयरोग के रिस्क फैक्टर में काफी सुधार होता है. ऐसा देखा गया है कि इस इलाज से मरीजों की मृत्युदर 40 फीसदी से घटकर 23 फीसदी हो जाती है.

सर्जरी के पहले की तैयारी

लोगों की ऐसी धारणा है कि यह सर्जरी एकदम सरल तथा आसान है. आप जाइये, ऑपरेशन करवाइये अौर सुपर माडल, सुपर स्मार्ट बन जाइये. लेकिन सच्चाई यह नहीं है. आपरेशन के पहले कई तरह की तैयारियां करने की जरूरत होती है. ऑपरेशन के बाद भी कई तरह के परहेज करने तथा सर्जन के निर्देशों का पालन करना पड़ता है ताकि ज्यादा से ज्यादा वजन बिना कोई परेशानी या समस्या के कम हो जाये. इनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं— डाइट, लाइफस्टाइल तथा रिकवरी टाइम का प्लान.यदि कोई मरीज यह सर्जरी कराने की योजना बनाता है तो मरीज को कई तरह के मेडिकल तथा साइकोलॉजिकल इवैल्युयेशन की दौर से गुजरना पड़ता है.इसके लिए आपको दृढ निश्चय करना होता है कि सर्जरी के बाद चिकित्सकों द्वारा बताये जानेवाले सारे निर्देशों का पालन सख्ती से करेंगे.इसमें ढील देने या कोताही बरतने के बारे में सोचेंगे भी नहीं.कई सर्जन चाहते हैं कि ऑपरेशन के पहले मरीजों को पूरी तरह मोटिवेट करने की जरूरत है और ऑपरेशन के बाद वे अच्छी तरह समझ लें कि उन्हें जीवन भर खानपान,एक्सरसाइज तथा मेडिकल गाइड लाईन का पालन सख्ती से करेंगे. चिकित्सकों की सलाह पर इसकी तैयारी पहले से शुरू कर देनी चाहिए, जैसे—

अभी से ही डाइटिंग शुरू कर देंः— अधिकतर चिकित्सक इसकी सलाह देते हैं. सर्जरी के पहले से ही डाइटिंग की शुरूआत करने की हिदायत देते हैं. इनका मानना है कि सर्जरी के पहले जितना वजन कम होगा, ऑपरेशन के बाद शरीर पर इसका दबाव उतना ही कम होगा. इसलिए ऐसे मरीजों को डायटिंग शुरू कर देनी चाहिए.

लाइफ स्टाइल में बदलाव : वजन कम करने के साथ—साथ सर्जरी के पहले से ही अपने लाइफ स्टाइल में भी बदलाव लाने की शुरूआत कर देनी चाहिए. यदि आप चाहते हैं कि सर्जरी के पहले अधिक से अधिक वजन कम हो तो डाइटिंग के साथ—साथ लाइफ स्टाइल में बदलाव लाना जरूरी है. इसके लिए डाइट के साथ—साथ भोजन तथा एक्सरसाइज के बारे में भी विचार करना चाहिए.

रिकवरी टाइम प्लान बनाना जरूरी : बेरियाट्रिक सर्जरी कराने के पहले रिकवरी टाइम का प्लान नहीं करना एक बहुत बड़ी भूल मानी जाती है. हालांकि आपरेशन के कुछ दिनों के बाद अस्पताल से छुट्टी दे दी जाती है. लेकिन आगे का प्लान बनाना बेहद जरूरी होता है. हालांकि ऐसा करते हुए थोड़ी परेशानी तथा डिप्रेशन के साथ—साथ ज्यादा खाने का मन करता है, लेकिन धीरे—धीरे सबकुछ ठीक हो जाता है. जो भी हो चिकित्सक आपको इस संदर्भ में पूरी जानकारी देंगे, ताकि कम से कमपरेशानी हो.

बेटलास सर्जरी पूरे जीवन में बदलाव लाने का निर्णय है, जिसमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण है लाइफ स्टाइल में सदा के लिए परिवर्तन लाना. इसमें शरीर में वसा का अत्यधिक जमाव हो जाता है. मोटापा के लिए की जाने वाली सर्जरी हमेशा अनुभवी चिकित्सक से कराना जरूरी है, जिसे अत्याधुनिक टेक्नोलाजी के प्रयोग की पूरी जानकारी हो. अर्थात सर्जन को अत्याधुनिक टेक्नोलाजी की पूरी जानकारी होनी चाहिए. ताकि सफलतापूर्वक वे इसका इलाज कर सके अौर मरीज को किसी भी तरह की परेशानी भी न हो. ओवेसिटी सर्जरी दुनिया के कई विकसित देशों में होते हैं, लेकिन जो देश सर्वाधिक मरीजों का इलाज करता हैं, वह भारत है. अर्थात्‌ भारत में पूरी दुनिया की तुलना में सबसे ज्यादा मोटापा के शिकार के मरीज का इलाज किया जाता है. इसका कारण यह है कि यहां के सर्जन्स काफी एक्सपेरियेंस हैं अौर दूसरे देशों की तुलना में इलाज भारत में सस्ता है. यहां के इलाज का स्टैंडर्ड विश्वस्तरीय है.

आपरेशन के बाद खान—पान तथा सावधानियां

ऑपरेशन के बाद डाइट में अपेक्षित बदलाव लाना होता है, क्योंकि आपरेशन में पेट की रचना में कई तरह का परिवर्तन किये जाते हैं. इसके लिए चिकित्सक द्वारा खानपान में बताये निर्देशों का कड़ाई से पालन करना होता है जैसे :—

धीरे—धीरे भोजन को अच्छी तरह चबायें, ताकि भोज्य पदार्थ अत्यधिक महीन टुकड़ों में बदल जायें. मीट आदि खाने से पहले उसे पीस लें.

दो कौर के बीच में दो से तीन मिनट का अंतराल रखें.

खाना खाने के बाद पानी पीयें. ऐसा करने पर भोजन करने के दौरान बीच में ही पेट भरने का अहसास न हो. कई बार उल्टी होने की भी संभावना होती है.

अत्यधिक मीठे तथा वसीय भोज्य पदार्थों जैसे जूस, कोल्ड ड्रिंक, मिल्क सेक से परहेज करें.

प्रोटीन वाले भोज्य जैसे मछली, डेयरी प्रोडक्ट्‌स, मीट, बीन को प्राथमिकता दें. हरी सब्जी तथा फल का सेवन ज्यादा करें.

शराब में सावधानी बरतें. इससे पेट में अल्सर होने का खतरा रहता है.

अपने खान—पान को प्लान कर लें. स्नेक्स खाने से बचें. प्रतिदिन एक बार खाने की जगह थोड़ा—थोड़ा खायें, क्योंकि पेट का आकार छोटा हो गया है.

भोजन में ऐसी चीजों का समावेश करें, जिसमें कैलोरी की मात्रा कम हो. प्रोटीन की गुणवत्ता में भी परिवर्तन करने की जरूरत होती है. जैसे भोजन में हाइ क्वालिटी प्रोटीन तथा वसा का प्रयोग कम से कम करने की जरूरत होती है. कार्बोहाइड्रेट के लिए मोटे तथा छिलका सहित अनाज का सेवन करना चाहिए. आटे से चोकर को अलग न करें. अधिक मात्रा में रेशेदार फल तथा हरी सब्जियों का ही सेवन के साथ—साथ वैसे भोज्य पदार्थों के सेवन से बचें, जिनमें कम पोषक तत्व हों, जैसे महीन आटा अौर चीनी से बने सामान.

सर्जरी के बाद कई चीजों को पचाने की क्षमता कम हो जाती है. माल एब्जार्विटिव सर्जरी के बाद पेट में गैस बनने की शिकायत आमतौर पर होती है. दूध अौर दूध से बने पदार्थों के सेवन करते हैं तो डायरिया होने की शिकायत होती हैं, क्योंकि लैक्टोज के प्रति एलर्जी होती है, जो आगे चलकर ठीक हो जाती है.

आपरेशन के फायदे

मोटापा की वजह से पेट का आपरेशन इसकी जटिलताओं को कम करने के लिए किया गया है. ऑपरेशन के बाद मरीजों को इससे कई तरह के फायदे होते हैं. रक्त में कोलेस्टेराल, उच्च रक्तचाप, डायबिटीज तथा कोरोनरी आर्टरी डिजीज में काफी फायदा होता है. इसके अतिरिक्त पाचन क्रिया, इंडोक्राइन तथा इम्यून सिस्टम में काफी फायदा होता है. यह ऑपरेशन वैसे मरीजों के लिए काफी लाभदायक है, जो ईमानदारीपूर्वक वजन कम करना चाहते हैं. इसके लिए वे अपना लाइफ स्टाइल भीचेंज करना चाहते हैं. ऑपरेशन के बाद ऐसे मरीजों का 60 फीसदी वजन कम हो जाता है. स्वास्थ्य की दूसरी समस्याएं दूर हो जाती है. इसके फायदे को संक्षेप में इस रूप में गिनाये जा सकते हैं.

मोटापा से संबंधित परेशानियों में फायदा

मोटापा से संबंधित बीमारियों का बचाव

ऊर्जा में बढ़ोतरी

उम्र काफी बढ़ जाना

आत्मविश्वास में बढ़ोतरी

वजन कम होना.

अध्ययन के आधार पर देखा गया है कि आपरेशन के बाद 96 फीसदी तरीजों को कमर दर्द,स्लीप एप्निया,उच्च रक्तचसप डायबिटीज तथा डिप्रेशन में फायदा हुआ है.

जटिलताएं अौर समाधान

हालांकि लेप्रौस्केपिक विधि से जानलेवा मोटापे को दूर करने के लिये किये जानेवाले बेरियाट्रिक सर्जरी में जटिलताएं होने की न्यूनतम संभावनाएं होती हैं, लेकिन इसमें कौन—कौन सी अौर किस प्रकार की जटिलताएं होती हैं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि सर्जरी के लिये कौन सी विधि अपनाई गयी है.

पाठकों की सुविधा के लिये होने वाली कुछ जटिलताओं पर चर्चा कर देना जरूरी है. आपरेशन के दौरान मुख्यतः रक्तस्राव , संक्रमण, इससिजिनल हर्निया, गैस्ट्रिक पौच, डूयोडिनल अल्सर तथा बडी रक्तनलिकाओं में परफोरेशन आदि जटिलताएं होने की संभावनाएं हो सकती हैं. किंतु अच्छे अस्पतालों में योग्य अौर कुशल चिकित्सकों के हाथों ऑपरेशन कराने पर इस प्रकार की समस्याएं प्रायः देखने को नहीं मिलती हैं.

ऑपरेशन के बाद होने वाली जटिलताओं को 2 भागों में विभक्त किया जा सकता है. पहली शॉर्ट टर्म जटिलताएं, जो आपरेशन के बाद होती हैं अौर दूसरी न्यूट्रिशनल या मैटाबोलिक जटिलताएं, जो कई वर्षों के बाद देखने को मिलती हैं.सर्जरी अौर उसके बाद वजन कम होने के दौरान होने वाली जटिलताओं में उलटी की शिकायत प्रमुख हैं. यह कुछ महीनों के बाद देखने को मिलती हैं. यह मुख्यतः अधिक खाने या ठीक से भोजन नहीं चबाने के कारण होती है. कई बार यह शरीर में थायमीन की कमी के कारण होती है. खाना खाने के समय भोजन ठीक से चबाने अौर बाहर से थायमीन की आपूर्ति करने पर यह समस्या स्वतः दूर हो जाती है. यदि लगातार उल्टी हो रही हो या पाचन क्षमता छह माह तक ठीक न हो तो यह किसी दूसरी समस्या के संकेत हैं.

वे मरीज जिनकी गैस्ट्रिक बाईपास विधि से सर्जरी की जाती है, उनमें वैसे भोज्य पदार्थ जिन में चीनी की मात्रा ज्यादा होती है, उनसे उन्हें कई तरह की जटिलताएं हो सकती हैं, जैसे पेट दर्द, मितली, डायरिया, सिरदर्द, हृदय की धड़कन का तेज होना अौर अत्यधिक पसीना आना.

इन समस्याओं से निजात पाने के लिए यह जरूरी है कि मीठे भोज्य पदार्थ, फल के रस से परहेज करें. ताजे फल, दूध से बने पदार्थ तथा हरी सब्जियों के सेवन से ये समस्याएं नहीं आतीं. वे सभी सर्जरियां, जिनमें वजन की कमी तेजी से होती है, उनमें पित्त की थैली में पथरी की संभावना हो सकती है. कई सर्जन बेरियाट्रिक सर्जरी के दौरान पित्त की थैली को निकाल देते हैं. वे मरीज जिनकी पित्त की थैली नहीं निकाली जाती, उन्हें पित्त को पतली करने वाली दवा दी जाती है. यदि किसी कारणवश पथरी हो जाती है, तो उसे ऑपरेशन कर निकाल दिया जाता है.

न्यूट्रिशन तथा मैटाबोलिक जटिलताएं

ऐसे मरीजों में ये जटिलताएं कई तरह से प्रदर्शित हो सकती हैं. इनमें जीवनशैली से लेकर जानलेवा तक शामिल हैं. कई लोगों में किसी तरह की जटिलता देखने को नहीं मिलती. कुछ खास समस्याएं जैसे आयरन, कैल्सियम, विटामिन डी, विटामिन बी कांप्लेक्स, प्रोटीन अौर फौलिक एसिड की कमी से हो सकती है. फॅलिक एसिड, आयरन तथा विटामिन की कमी से खून की कमी, कैल्सियम तथा विटामिन डी की कमी से ओस्टियोपोरोसिस तथा हड्डी की बीमारियां हो सकती हैं. जिसकी आपूर्ति बाहर से कर देने पर इस तरह की शिकायक दूर हो जाती है. वे मरीज जिनकी माल एब्जार्विटिक विधि से सर्जरी की जाती है, उन्हें न्यूट्रिशनल डेफिशिएंसी होने की संभावना रिस्ट्रिक्टिव सर्जरी की अपेक्षा ज्यादा होती है. चाहे जो भी हो, बेरियाट्रिक सर्जरी वाले मरीज को हमेशा चिकित्सकों की निगरानी में रहने की जरूरत पड़ती है.

जरूरत काउंसिलिंग की

इस तरह के मरीजों में मनोवैज्ञानिक अौर भावनात्मक परिवर्तन के साथ—साथ कई नई तरह की समस्याएं जैसे किसी पुरानी आदतों के प्रति जुड़ाव देखने को मिलते हैं. इससे लड़ने अौर दूर के करने के लिए काफी मशक्कत करने की जरूरत होती है. इससे निबटने के लिएबेरियाट्रिक सर्जरी के बाद मरीज को काउंसिलिंग की जरूरत होती हैं.ऐसे मरीजों में कई तरह के मानसिक तनाव आ घेरते हैं. इन सभी समस्याओं का हल काउंसिलिंग द्वारा ही संभव है.

वजन को स्थिर बनाये रखने के लिए डाइट रिस्ट्रिक्शन के साथ—साथ नियमित व्यायाम जरूरी है. बेरियाट्रिक सर्जरी के बाद निश्चित रूप से मरीज का वजन घटता है. इसके लिए कई कारक जिम्मेदार होते हैं जनकापालन ईमानदारीपूर्वक करना चाहिेए. यदि मरीज की उम्मीद के अनुसार वजन घट जाता है तो उसे निराशा नहीं होगी. चिकित्सक के लिए यह भी जान लेना जरूरी है कि उसकी जिंदगी अौर लाइफस्टाइल में हो रहे परिवर्तन के प्रति मरीज का दृष्टिकोण क्याा है? इसी के अनुसार काउंसेलिंग करना जरूरी है.