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DAY CARE SURGERY

डे—केयर सर्जरीः सुबह सर्जरी, शाम को छुट्‌टी

चिकित्सा विज्ञान की इस एकदम नई विधि में सेलेक्टेड मरीज की सर्जरी कर 24 घंटे के अंदर अस्पताल से छुट्टी दे दी जाती है. इसमें इमरजेंसी और कंप्लीकेटेड सर्जरी नही की जाती. इसीलिए यह प्लांड सर्जरी कहलाती है. यह डे—केयर सर्जरी, एंबुलेटरी सर्जरी, वन—डे सर्जरी, डे—सर्जरी, डे केश सर्जरी, मेजर—माइनर एंबुलेटरी सर्जरी, डे आवर्स सर्जरी, इन एंड आउट सर्जरी, ओपीडी प्रोसिड्योर आदि नामों से भी जानी जाती है इसकी खासियत यह है कि इस सर्जरी के बाद मरीज जल्दी चलने—फिरने लगता है और अपने काम पर लौट जाता है. बच्चे ज्यादा मानसिक तनाव नहीं झेलते क्योंकि उसे ज्यादा समय के लिए अस्पताल में भर्ती की जरूरत नहीं पड़ती. व्यस्त मरीजों को समय की कमी की वजह से सर्जरी बार—बार कैंसिल नहीं करना पड़ता. फिल्म स्टार, बड़ी—बड़ी कंपनियों के सीइओ, राजनेता से लेकर दूसरे व्यस्त लोगों के लिए ही डे—केयर सर्जरी का कंसेप्ट विकसित हुआ. इसीलिए आजकल इसका डिमांड काफी बढ़ गया है.

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34 वर्षीय डॉली की अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट से पता चला कि उसके एक ओवरी में ट्‌यूमर है. इसी वजह से पेट के निचले हिस्से में दर्द होता रहता है. ‘‘सर्जरी नहीं कराने पर इसके बढ़ते जाने और खतरनाक होने की संभावना बनी रहेगी. इसलिए अब्बल है कि जल्द से जल्द सर्जरी करा ली जाए.''—ऐसा लेडी डॉक्टर का कहना है. इसको लेकर डॉली थोड़ा नर्वस है.इसलिए शीघ्र सर्जरी कराकर इस मुसीबत से छुटकारा पा ले चाहती है. उसके पति अशोक की भी यही राय है. अगले सप्ताह ही डॉली अपने पति के साथ शहर के एक डे—केयर सेंटर में गई. सारी रिपोर्ट देखने के बाद डे—केयर सेंटर के सर्जन ने अगले शनिवार को सुबह आठ बजे सर्जरी करने के लिए समय दे दिया.

डॉली शनिवार को सेंटर अशोक के साथ पहुंची. लैप्रोस्कोपिक सर्जरी से ट्‌यूमर निकाल दिया गया और शाम को उसे छुट्‌टी दे दी गई. उधर ट्‌यूमर को बायाप्सी के लिए लैब भेज दिया गया जहां से एक सप्ताह के बाद रिर्पोट आयी कि ट्‌यूमर कैंसर नहीं है.

कुछ इसी तरह की बात शेखर के साथ भी देखने को मिली. आधी रात को जब शेखर का पेट दर्द अचानक तेज हो गया तो शहर के एक बड़े कारपोरेट अस्पताल से एंबुलेंस मंगवाकर इमरजेंसी बार्ड में भर्ती होना पड़ा. पूरी जांच के बाद चिकित्सक ने अपेंडिक्स में सूजन होना दर्द का कारण बताया.पेट दर्द ठीक होने और पूरी तरह स्वस्थ होने के बाद शेखर को जल्द से जल्द सर्जरी करा लेने की सलाह देकर छुट्‌टी दे दी गई.शेखर ने जब यह जानना चाहा कि इस सर्जरी में कितने दिनों तक एडमिट रहना पड़ेगा तो यह जानकर सुखद आश्चर्य हुआ कि भर्ती रहने की जरूरत नहीं पड़ेगी. सुबह सर्जरी कर शाम तक छुट्‌टी दे दी जायेगी. सर्जन ने बताया कि सर्जरी लैप्रोस्कोपिक विधि से की जायेगी जिसे डे—केयर सर्जरी कही जाती है.

शेखर अगले ही रविवार को सुबह भर्ती हुए और सर्जरी कराकर शाम केा घर लौट गये.

डे—केयर सर्जरी क्या हैं?

डॉली और शेखर दोनों की सर्जरी सुबह हुई और शाम को छुट्‌टी दे दी गई. किसी को भी भर्ती रहने की जरूरत नहीं पड़ी. मिनिमली इन्वेसिव सर्जरी में मरीज को दूसरे—तीसरे दिन छुट्‌टी दे दी जाती है. चिकित्सा—वैज्ञानिक इस पर गंभीरता से विचार करने लगे कि क्यों नहीं ऐसी विधि विकसित की जाए जिसमें मरीजों को एडमिट रहने की जरूरत ही नहीं पड़े. क्योंकि कई लोग सर्जरी इसलिए नहीं करा पाते कि उनके पास समय नहीं है. बड़े—बड़े बिजनस मैन,कंपनी के उच्चाधिकारी,राजनेता,कलाकार सालों साल तक पित्त की थैली में पथरी,अपेंडिक्स,पाइल्स जैसी तमाम बीमारियों को पाले रखते ह.ैं इनके पास समय की काफी कमी होती है.

इन्हीं लोगों केा ध्यान में रखकर डे—केयर सर्जरी कंसेप्ट विकसित किया गया. यह चिकित्सा विज्ञान की नई विधि है.इसमें सेलेक्टेड मरीज का ऑपरेशन कर 24 घंटे के अंदर अस्पताल से छुट्टी दे दी जाती है. इस विधि में इमरजेंसी और न ही कंप्लीकेटेड सर्जरी की जाती हैं. इसीलिए यह प्लांड सर्जरी कहलाती है.

इसमें एनेस्थेटिक्स अल्ट्रा मॉडर्न मार्डन पेनकिलर मेडिसिन्स तथा अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी की भूमिका महत्वपूर्ण होती है.ऐसी सर्जरी मेेंं मरीज को अल्पकालिक बेहोशी की जरूरत पड़ती है. इसके लिए कई तरह की मेडिसिन्स मार्केट में आ गई है जिसके अंतर्गत मरीज उतनी ही देर वेहोश रह सकता है जितनी देर तक जरूरत रहती है या सर्जरी चलती रहती है. इस सर्जरी में अत्यधिक माडर्न अौर पावरफुल पेनकिलर का प्रयोग ऑपरेशन के पहले ही इसलिए शुरू कर दिया जाता है ताकि सर्जरी के पहले और बाद में किसी तरह की कोई परेशानी न हो.

मरीज का चुनाव

इस सर्जरी के अंतर्गत सभी तरह की बीमारियों के मरीजों को शामिल नहीं किया जा सकता. मेडिकली फिट मरीजों का चुनाव काफी सावधानीपूर्वक किया जाता है. पेट का पहले ऑपरेशन हो चुके मरीजों को अमूमन डे—केयर सर्जरी के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता. अत्यधिक दुबले—पतले या काफी मोटे मरीज भी इसके लिए अनुकूल नहीं होते. हार्ट डिजीज, उच्च रक्तचाप, कार्डियक फेल्योर, दमा, मोटापा का शिकार और एक्यूट रेस्पीरेटरी इन्फेक्शन, ब्रोंकाइटिस, इम्फाइस्मा जैसी श्वसन तंत्र की बीमारियो के भी मरीजो की सर्जरी इस विधि से संभव नहीं है. इंसुलिन डिपेंडेंट डायबिटीज के मरीजों के लिए भी डे—केयर सर्जरी नहीं है.. ऐसे मरीजों को मानसिक तथा मनोवैज्ञानिक रूप से एकदम स्वस्थ होना चाहिए. तनाव, उलझन, डर, भय तथा साइकोसिस के मरीजों को भी यह सर्जरी नहीं की जाती.

इन बीमारियों में यह सर्जरी उपयुक्त

डे—केयर सर्जरी की शुरूआत गाइनी में की गई थी. प्रजनन अंगों के रोगों की डायग्नोसिस के लिए. शुरूआत में इस विधि से ऑपरेटिव सर्जरी नहीं होती थी. लेकिन जैसे—जैसे मेडिकल साइंस में अनुसंधान और विकास होता गया, गाइनी के साथ—साथ चिकित्सा के दूसरे विभाग जैसे यूरोलॉजी,जेनरल सर्जरी,स्कीन, आंख,नाक,कान,गला जैसे विभागों में भी यह सर्जरी होने लगी. अब तो लगभग सभी विभागों में डायग्नोस्टिक से लेकर ऑपरेटिव दोनों तरह की सर्जरी में इसका सहारा लिया जा रहा है. विदेशों की बात करें ता ेयूनाइटेड किंगडम में 55 फीसदी इलेक्टिव सर्जरी डे केयर बेसिस पर आजकल हो रही है. अमरीका में 500 से भी अधिक ऐसे सेंटर खुले हुए हैं. भारत में यह अभी शैशवावस्था में है. देश के बड़े—बड़े शहरों में मात्र 20 फीसदी ही इस विधि का सहारा लिया जा रहा है. आंकड़े बताते हैं कि इनमें 27 फीसदी आंखों की, 23 फीसदी गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी तथा बाकी 10 फीसदी में आर्थोपेडिक, गाइनी, प्लास्टिक सर्जरी, जनरल और डेंटिस्ट्री की सर्जरी होती है. किंतु ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि 2020 तक चकित्सा के सभी क्षेत्रों में 75 फीसदी सर्जरी डे—केयर बेसिस पर ही होगी.

गइनी की बात करें तो बायोप्सी, परिवार नियोजन, ओवरी के सिस्ट, फाइब्रॉयड निकालने से लेकर यूट्‌रस निकालने के लिए डे केयर सर्जरी हो रही है. इन्फर्टिलिटी के इलाज के दौरान इसका प्रयोग काफी ज्यादा होता है. ब्लॉक ट्यूब को खोलने, ओवरी से अंडा न निकलने की स्थिति में ओवेरियन ड्रिलिंग अौर रोगग्रस्त ओवरी के निकालने से लेकर मायोमेक्टोमी अौर ट्यूबल प्लास्टी इस विधि से की जा रही है.

जेनरल सर्जरी के क्षेत्र में अपेंडिक्स,पित्त की थैली में पथरी और सूजन,यूरीनरी ब्लैडर की पथरी,हर्निया के रिपेयर, बबासीर, लीवर, लिम्फनोड वायोप्सी के लिए भी इसका सहारा लिया जा रहा है. इसके अतिरिक्त दूसरी छोटी—छोटी सर्जरी जैसे सर्कमसिजन, ट्यूमर, टान्सिल, नाक की विकृति को दूर करने के लिए भी इसका सहारा लिया जा रहा है. यूरोलाजी में भी गाइनी तथा जेनरल सर्जरी की तरह ही बहुत बड़ी संख्या में सर्जरी हो रही है. किडनी की बायाप्सी,किडनी तथा उसकी नली में पथरी और दूसरी खराबी की स्थिति में इसे निकालने के लिए भी इसका सहारा आजकल लिया जा रहा है. इसके अतिरिक्त और भी कई ऐसे रोग हैं जिसमें इस सर्जरी का प्रयोग किया जा रहा है. आंख तथा नाक,कान,गला में भी इसका सहारा लिया जा रहा है. आंखों की फेको,लॉसिक सर्जरी आजकल इसी विधि से की जा रही है. इसमें मरीज को घंटा दो घंटा में छुट्‌टी दे दी जा रही है. कॉस्मेटिक सर्जरी में मोटापा दूर करने के लिए बेरियाट्रिक सर्जरी,फेस अपलिफ्‌टिंग,मैमोप्लास्टी और टेढी मेढी नाक को ठीक करने के लिए राइनोप्लास्टी तक आजकल डे—केयर सर्जरी के अंतर्गत हो रही है.

क्या हैं फायदे?े

इस सर्जरी से मरीज के साथ—साथ हॉस्पिटल को भी कई फायदे हैं. पहले से तारीख तय हो जाने के बाद सर्जरी कैंसिल होने की संभावना नहीं होती, न अधिक दिनों तक इंतजार करना पड़ता है. ऑपरेशन के बाद मरीज जल्दी चलने—फिरने लगता है. संक्रमण की न्यूनतम संभावना के कारण मरीज जल्दी ठीक होकर अपने काम पर लौट आता है. बच्चों को मानसिक तनाव ज्यादा नहीं झेलना पड़ता. दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि परिवार के सदस्य भी इस सर्जरी को प्राथमिकता देते हैं क्योंकि अस्पताल में मरीजों को देखभाल की जरूरत नहीं पड़ती. काफी व्यस्त लोगों के लिए यह सर्जरी काफी उपयोगी है. समय की कमी की वजह से सर्जरी को बार—बार टालना नहीं पड़ता. फिल्म स्टार, बड़ी—बड़ी कंपनियों के सीइओ, राजनेता से लेकर दूसरे व्यस्त लोगों के लिए ही डे—केयर सर्जरी का कंसेप्ट विकसित हुआ.

चूंकि अस्पताल में भर्ती मरीजों का खर्चा काफी ज्यादा बढ़ जाता है. ऐसी स्थिति में डे—केयर सर्जरी में इलाज का खर्चा काफी कम हो जाता है. उसी बीमारी के लिए अपेक्षकृत कम कीमत चुकानी पड़ती है. इससे इंश्योरेंस कंपनी, व्यावसायिक संस्थानों, सर्जन सहित मरीजों को भी काफी फायदा होता है. इसमें दो मत नहीं कि डे—केयर सर्जरी से कम कीमत पर उच्च गुणवत्ता वाला इलाज होता है. ऐसे अस्पताल को मेंटेन करने के लिए काफी कम खर्चा आता है, क्योंकि अस्पताल केवल एलेक्टिव सर्जरी की ओर ही अपना ध्यान फोकस रखता है अौर केवल एंबुलेटरी पेसेंट का ही इलाज करता है. आम बड़े हॉस्पिटलों की तुलना में मरीजों का खर्चा लगभग 47 फीसदी कम होता है.

इसके अतिरिक्त और भी कई तरह के फायदे होते हैं, जैसेः—मरीजों की संतुष्टि, क्रास इंफेक्शन में आदि. दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि परिवार के सदस्य भी इस सर्जरी को प्राथमिकता देते हैं, क्योंकि ऐसी स्थिति में मरीजों की देखभाल की विशेष जरूरत नहीं पड़ती. मरीज खुद अपनी देखभाल कर सकता है. कारण मरीज को अस्पताल में रूकने की जरूरत ही नहीं पड़ती. शाम को छुट्‌टी दे दी जाती है और मरीज अपना घर चला जाता है.

भारत में लोकप्रिय न हो पाने के कारण

सर्जन्स मानते हैं कि भारत में यह उतना लोकप्रिय अभी तक नहीं हो पाया है. इसका ठीक से प्रचार प्रसार नहीं हो पाने के कारण लोगों को इसके संबंध में विशेष जानकारी नहीं है. इसीलिए समाज का बहुत बड़ा तबका इस नई तथा महत्वपूर्ण तकनीक से अनभिज्ञ है.

इसके लोकप्रिय न होने के पीछे इंश्योरेंसे कंपनी के अधिकारियों की भी अहम्‌ भूमिका है. चूंकि अधिकतर इंश्योरेंस कंपनी वाले सर्जरी के लिए खर्च राशि का भुुगतान तब तक नहीं करते, जब तक मरीज कम से कम एक रात के लिए भी भर्ती नहीं होता. अधिकतर कंपनियां इंश्योरेंस के तहत केवल एडमिटेड पेसेंट के खर्च का ही भुगतान करती हैं. इसलिए कई मरीजों को केवल भुुगतान के लिए अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है. डे—केयर सेंटर में मरीजों को भर्ती नहीं रखा जाता.शाम तक छुट्‌टी दे दी जाती है. इसीलिए मरीजों को इसका लाभ नहीं मिलता.विदेशों में ऐसी बात नहीं है. संयुक्त राज्य अमेरिका में डे—केयर सर्जरी काफी लोकप्रिय हैं. इंश्योरेंस कंपनियां अस्पताल में भर्ती मरीजों के इलाज का भुगतान करने से मना करती है. वह पता लगाती हैं कि क्या अमूक आपरेशन डे—केयर सर्जरी के माध्यम से संभव था या नहीं. विदेशों में आजकल अनावश्यक होस्पिटेलाइजेशन को हतोत्साहित किया जाता है.

इसके दूसरे कारण पूरी तरह मानसिक अौर मनोवैज्ञानिक हैं. लोगों के मन में यह धारणा है कि कोई भी बड़ी सर्जरी डे—केयर सेंटर पर संभव नहीं है.इसके लिए बड़े अस्पतालों में भरती होना पड़ता है, क्योंकि बड़ी सर्जरी के दौरान जटिलताएं होने की काफी गुंजाइश होती है. बार—बार उनके दिमाग में यह प्रश्न उठता है कि क्या इमरजेंसी से निबटने के लिए उनके पास पर्याप्त व्यवस्था होती है. यदि वहां मरीज को खून चढ़ाने या दूसरे बड़े अस्पताल में शिफ्ट करने की जरूरत पड़ी तो क्या उनके पास इसकी व्यवस्था है? यदि ऑपरेशन के बाद डिस्चार्ज होने के बाद घर में कोई प्रोब्लम हो गयी तो इससे कैसे निबटा जायेगा? ऐसी स्थिति में इन समस्याओं का समाधान कैसे कर पायेंगे? लेकिन उन्हें यह नहीं पता होता है कि इन सेंटरों में वैसे मरीजों को भर्ती ही नहीं किया जाता जिनमें आपरेशन के दौरान या बाद में जटिलताएं होने की संभावना होती है.