हेयर ट्रांसप्लांटेशन : बाल प्रत्यारोपण
बाल प्रत्यारोपण के द्वारा गंजेपन का इलाज डॉक्टर तथा मरीज दोनों की दक्षता तथा काबिलियत पर निर्भर करता है.इसके लिए सही कारणों का पता लगाना जरूरी है. इसका भी अनुमान चिकित्सक को ही लगाना होगा कि ग्राफ्ट के बाद रिजल्ट कैसा होग.उदाहरण के रूप मे यदि ललाट के उपरी हिस्से के गंजेपन को ग्राफ्ट से ठीक कर दिया गया और कुछ वषोर्ं के बाद उसके बगल के हिस्से के बाल गिरने लगे तो एक आम मरीज की उलझन समझी जा सकती है.उसके मन में डॉक्टर के प्रति किस तरह का गुस्सा,आक्रोश और तनाव होगा,इसका अनुमान लगाना आसान होगा.अतः मरीज तथा चिकित्सक दोनों को बाल गिरने की प्रकृति को ध्यान में रखकर बाल प्रत्यारोपण का प्लान भविष्य को ध्यान में रखकर बनाना चाहिए.
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जड़ यानी त्वचा समेत जीवित बाल के गुच्छे को एक जगह से दूसरी जगह प्रत्यारोपित करने को हेयर ट्रांसप्लांटेशन या बाल प्रत्यारोपण कहते हैं. यह कास्मेटिक सर्जरी के अंतर्गत आता है क्योंकि बाल स्मार्टनेस की पहचान माना जाता है. इसे पुरुषों के गंजेपन के इलाज की अंतिम कड़ी भी माना जाता है. आजकल आंखों की पुतली, भौहें, दाढ़ी,छाती में बालों के प्रत्यारोपण के साथ—साथ कई बार सर्जरी के निशान को छिपाने के लिए भी इसका सहारा लिया जाता है.
यह पूरी तरह सुंदरता से जुड़ी सर्जरी है, अतः काफी सावधानी तथा दक्षता की दरकार होती है. पूरी दक्षता से किये गये प्रत्यारोपण के बाद प्राकृतिक तथा प्रत्यारोपित बालों में अंतर करना मुश्किल होता है. यह नयी जगहों पर उसी तरह व्यवहार करते हैं, जहां पहले मूल स्थान पर करते थे. बिल्कुल प्राकृतिक और स्वाभाविक रूप से. बड़ा होने पर कांट—छांट कर सकते हैं, शैंपु, साबुन, तेल लगा सकते हैं. जरूरत पड़ने पर डाई भी कर सकते हैं. बढने तथा स्वस्थ रहने के लिए किसी भी तरह की दवा की भी जरूरत नहीं पड़ती. प्राकृतिक रूप से बृद्धि करता रहता है. पूरी तरह मुंडन कराने के बाद भी इसका बढ़ना मूल जगहों की तरह जारी रहता है.
ट्रांसप्लांटेशन के पीछे मूल उद्देश्य होता है सहजता. सामान्यतः बाल एक से चार के गुच्छे में उगते हैं. प्रत्यारोपण के लिए इसी गुच्छे को जड़ सहित निकाला जाता है. चूंकि अत्यंत स्वस्थ तथा अच्छे गुच्छे को प्रत्यारोपण के लिए निकाला जाता है. अतः देखने पर किसी भी तरह से कृत्रिमता का आभास नहीं देता.
प्रत्यारोपण के लिए जिन जगहों के बालों का चुनाव करते हैं,वहां घने बाल होने चाहिए.तभी बालों का चुनाव ग्राफ्ट के लिए किया जा सकता है.जहां घने बाल नहीं होते,वहां के बाल ग्राफ्ट के लिए नहीं लिये जा सकते. खोपड़ी के पिछले तथा किनारे के हिस्से के बाल काफी घने होते हैं. आमतौर पर इसे ही ग्राफ्ट के लिए लिया जाता है. लेकिन,कई बार खोपड़ी के पिछले हिस्से में भी बाल बहुत कम होते हैं,ऐसी स्थिति में छाती,पीठ तथा जांघों से ग्राफ्ट लिया जाता है लेकिन,इसमें काफी दक्षता की जरूरत होती है.
प्रत्यारोपित बाल कितने घने होंगे, यह प्रतिवर्ग सेंटीमीटर में ग्राफ्ट की संख्या पर निर्भर करता है. एक आम आदमी के सर में एक वर्ग सेमी में 80 फॉलिकुलर यूनिट से ज्यादा होते हैं. अतः गंजे सर में 40 से अधिक फॉलिकुलर यूनिट ग्राफ्ट करने पर घना दिखेंगे. प्राकृतिक लुक के लिए इससे भी अधिक होना जरूरी है. लेकिन, ग्राफ्ट के नियम के इस लक्ष्य तक पहुंचना कठिन है. दस में काफी दक्षता की जरूरत होती है. गंजे सर पर अधिक घने बाल केा ग्राफ्ट करने को डेंस पैकिंग कहते हैं.
यदि बड़े एरिया में बाल को प्रत्यारोपण कई सत्र में किया जाता है. एक ही सिटिंग में अधिक संख्या में ग्राफ्ट करने पर इसे मेगा अौर सुपर मेगा सेशन कहते हैं. मेगा सेशन में एक ही सिटिंग में 2000 फॉलिकुलर यूनिट तथा सुपर मेगा सेशन में 2800 यूनिट का ग्राफ्ट किया जाता है, जबिक गिगा सेशन में 5000 यूनिट से भी अधिक बाल ग्राफ्ट किये जाते हैं.
आजकल हेयर प्रत्यारोपण का जो मॉडर्न टेकनीक अपनाया जा रहा है. इसकी शुरूआत सन् 1930 ई. से हो गयी थी.तब सर्जन भौंहे तथा आंखों की पुतली में प्रत्यारोपण करते थे. गंजापन दूर करने के लिए इसका प्रयोग नहीं किया जाता था. पचास के दशक में पश्चिमी देशों के कॉस्मेटिक चिकित्सकों में सबसे पहले न्यूयार्क के नोरमन ओरेंट्रेच नामक त्वचारोग विशेषज्ञ ने गंजेपन के इलाज के लिए पुरुषों में इस विधि का उपयोग किया. पहले ऐसा विश्वास किया जाता था कि नयी जगह पर बाल को प्रत्यारोपित करने पर विशेष फायदा नहीं होता. इसकी वृद्धि पुरानी जगहों जैसी नहीं होती, लेकिन ओरेंट्रेच ने बताया कि ग्राफ्ट के बाद नये स्थान पर बाल पुरानी जगहों की तरह ही बढ़ते हैं अौर पुरानी जगहों की तरह ही टिके रहते हैं. काफी वर्षों तक बालों को छोटे से भाग को ही प्रत्यारोपण के लिए प्रयोग में लाया जाता रहा. लेकिन, अस्सी के दशक में ब्राजील में छोटे—छोटे कई टुकड़ों का प्रत्यारोपण लोकप्रिय होने लगा, जबकि यूनाइटेड स्टेट्स के रोसमैन नामक डर्मेटोलाजिस्ट ने ग्राफ्ट के हजारों टुकड़े को एक साथ प्रत्यारोपित करना शुरू किया.
अस्सी के दशक में ही लीवर नामक वैज्ञानिक ने स्टिरियो माइक्रोस्कोप का अविष्कार किया. इससे छोटे माइक्र्रोग्राफ्ट लेने में काफी आसानी होने लगी. इतना ही नहीं, रिकवरी टाइम में कमी के साथ—साथ मामूली दर्द का अहसास होने लगा. आज न तो बालों का प्रत्यारोपण के बाद न तो आराम की जरूरत पड़ती है. न ही अस्पताल में भर्ती रहने की . आज ट्रांसप्लांट आउटडोर प्रोसेस के रूप में किया जाता है. इस विधि के दौरान मरीज को लोकल एनेस्थेसिया दिया जाता है. ऑपरेशन के पहले सर को शैंपु से धोया जाता है, उसके बाद जहां का बाल निकालना होता है, वहीं एंटीवैक्टेरियल एजेंट लगाया जाता है.
गंजेपन के कारण
बाल झड़ने या गिरने की समस्या पुरूषों में ही नहीं ,महिलाओं में भी देखने को मिलती है.पुरूषों में यह समस्या कम उम्र में ही शुरू हो जाती है और इसका संबंध जीन से है.अनुवांशिक कारण भी इसके लिए कम जिम्मेदार नहीं हैं. पुरूषों में इसकी शुरूआत ललाट के उपरी हिस्से से होती है और धीरे—धीरे आगे की ओर बढता जाता है. बाल झड़ने की क्रिया तबतक जारी रहती है,जबतक सर का आधा बाल समाप्त न हो जाऐ.
बाल गिरने के कई कारण होते हैं खासकर खासकर वैसी जगहों में जो अक्सर सामान्य से अलग होता है. उदाहरण के रूप में लिया जाए तो सर का बाल झरना सामान्य है किंतु,चेहरे या शरीर के दूसरे भागों का बाल झरने लगे तो इसके कई मेडिकल कारण हो सकते हैं. अतः इसका इलाज समय रहते करा लेना चाहिए अन्यथा आगे चलकर कई तरह की परेशानियां होने की संभावना हो सकती हैं. सामान्य रूप से थायराइड की समस्या,त्वचा में संक्रमणसेक्स हार्मोन्स का असामान्य स़्त्राव ,पालिसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम,आयरन की कमी जैसी बीमारियों मेें बाल गिरने की शिकायतें होती हैं. यदि इन बीमारियों का इलाज समय रहते करा लिया जाए तो बाल का गिरना रूक जाता ही है, दुबारा नये बाल उगने भी लगते हैं.बीमारी की वजह से बालों का झड़ना अस्थायी होता है. रोग के इलाज के बाद यह समस्या सदा के लिए दूर हो जाती है.
ग्ांजेपन का इलाजः
गंजेपन का इलाज डॉक्टर तथा मरीज दोनों की दक्षता तथा काबिलियत पर निर्भर करता है.इसके लिए सही कारणों का पता लगाना जरूरी है. इसका भी अनुमान चिकित्सक को ही लगाना होगा कि ग्राफ्ट के बाद रिजल्ट कैसा होग.उदाहरण के रूप मे यदि ललाट के उपरी हिस्से के गंजेपन को ग्राफ्ट से ठीक कर दिया गया और कुछ वषोर्ं के बाद उसके बगल के हिस्से के बाल गिरने लगे तो एक आम मरीज की उलझन समझी जा सकती है.उसके मन में डॉक्टर के प्रति किस तरह का गुस्सा,आक्रोश और तनाव होगा,इसका अनुमान लगाना आसान होगा.अतः मरीज तथा चिकित्सक दोनों को बाल गिरने की प्रकृति को ध्यान में रखकर बाल प्रत्यारोपण का प्लान भविष्य को ध्यान में रखकर बनाना चाहिए.
बाल गिरने के कारणों की जांच करते वक्त माता तथा पिता दोनों के परिवारों की जांच जरूरी है तभी सही—सही कारणों का पता लगाया जा सकता है.
पुरूषों में गंजेपन के मूल कारण अनुवांशिक होते हैं.सामान्यतः शुरूआती दौर में बाल पतले होने लगते हैं और जड़ें कमजोर हो जाती हैं.जड़ों की बृद्धि तो रूक ही जाती है और नये बालों का उगना भी बंद हो जाता है.उम्र बढने के साथ बाल का बढना रूक जाता ह.ै ऐसा उम्र बढने के कारण सेक्स हार्मोन्स का स़्ा्राव होना बंद हाने के कारण होता है.
सर्जरी तथा बालों का प्रत्यारोपण इलाज की अंतिम कड़ी मानी जाती है.शुरूआती दिनों में मेडिकल ट्रीटमेंट कई बार फायदेमंद होता है.कई बार इस कारण सर्जरी की जरूरत नहीं पड़ती.
आजकल मार्केट में कई तरह के प्रोडक्ट्स उपलब्ध हैं जो पतले,रोगग्रस्त बालों में कई तरह से फायदेमंद होते हैं.कई तरह के तेल,लोशन आदि कमजोर तथा रोगग्रस्त बालों की जड़ों से मृत बालों को साफ कर देते हैं तथा नये बालों को निकलने में सहायक होते हैं. इन दवाओं को प्रयोग विशेषज्ञों की सलाह पर सावधानीपूर्वक किया जाए तो 40 फीसदी से ज्यादा फायदा होने की गुंजाइश होती है . कई बार सर्जरी की जरूरत ही नहीं पड़ती.
सर्जरी कितने प्रकार की
गंजेपन के इलाज के लिए आजकल चिकित्सा—विज्ञान में बहुत सारे विकल्प उपलब्ध हैं. इसकी सहायता से प्राकृतिक बाल पुनः प्राप्त किये जा सकते हैं. यह बात कोई मायने नहीं रखती सर का कितना हिस्सा गंजा हो गया है या सर का कौन—सा हिस्सा गंजा हो गया है. पूरा सर ही गंजा हो गया है तो भी घबड़ाने की कोई जरूरत नहीं है. छाती,पीठ या जांघ के बालो को भी प्रतिरोपण के लिए लिया जा सकता है.अतःआजकल किसी भी स्थिति में सर पर घने,काले बालों को उगाया जा सकता है.नये टेक्नीक के आने के बाल प्रतिरोपण काफी सरल और आसान हो गया है. इसमें समय की भी काफी बचत होती है.
डोनर हेयर दो भिन्न तरीके से प्राप्त किये जा सकते हैं.—स्ट्रिप हार्वेस्टिंग तथा फालिकुलर यूनिट एक्ट्रेक्शन से.
स्ट्रिप हार्वेस्टिंग— इसमें स्थानीय त्वचा को सुन्न कर छोटे टुकड़े निकाल कर जरूरत वाले स्थान पर प्रत्यारोपित किया जाता है. जहां से त्वचा सहित बाल निकाला जाता है, वहां टांका लगा दिया जाता है. मरीज को ठीक होने में लगभग दो सप्ताह लगता है. स्ट्रिप मेथड में आजकल आधुनिक टेक्नीक अपनायी जाती है अौर ट्राइकोफाइटिक क्लोजर द्वारा टांका लगाने पर निशान कम से कम बनता है.
फॉलिकुलर यूनिट एक्ट्रेक्शन— इसमें बाल को फॉलिकल यानी जड़ सहित निकाला जाता है. इसके लिए महज 0.6 मिमी से 1.2 मिमी का चीरा लगाया जाता है. फिर, इस टुकड़े को जरूरत वाली जगहों पर प्रत्यारोपित कर दिया जाता है. चूंकि इस प्रक्रिया में अलग—अलग फॉलिकल निकाला जाता है. इसलिए वहां छोटा दाग रह जाता है अौर अॉपरेशन के बाद दर्द या परेशानी कम से कम होती है. इस ऑपरेशन में टांका हटाने की जरूरत नहीं पड़ती. मरीज एक सप्ताह में ठीक हो जाता है.
इसमें बालों के गुच्छे को त्वचा की ऊपरी परत सहित निकाला जाता है. ऐसा सर के पिछले हिस्से जहां घऩे बाल होते हैं, जिसे डोनर एरिया कहा जाता है, से लिया जाता है. इन स्थानों से फॉलिकुलर यूनिट को स्टिरियो माइक्रोस्कोप की मदद से निकाला जाता है. फिर उसे उस स्थान पर ग्राफ्ट किया जाता है, जहां बाल उगाने की जरूरत होती है. इस हिस्से को रेसिपियेंट एरिया कहा जाता है. इस विधि से एक ही सत्र में अधिक से अधिक बाल को ग्राफ्ट के लिए निकाल जाता है. यदि डोनर एरिया ठीक ठाक हो तो एक बार में 5000 से भी अधिक फॉलिकुलर यूनिट को निकाला जा सकता है. जिन सेंटरों में स्टिरियो माइक्रोस्कोप की सुविधा होती है, वहां ग्राफ्ट के नष्ट होने की संभावना कम होती है. इसमें डोनर एरिया में गहरे निशान पड़ जाते हैं. इससे बचने के लिए ट्राइकोफाइटिक क्लोजर का सहयोग लिया जाता है.
सिंगल फॉलिकुलर यूनिट को खोपड़ी के पिछले हिस्से से जड़ सहित निकाल कर गंजे स्थानों में ग्राफ्ट किया जाता है. इसके लिए वैसी जगहों का चुनाव किया जाता है, जहां पूरी तरह घने बाल हों. स्वस्थ तथा घने बाल नहीं होने की स्थिति में ग्राफ्ट की सफलता में संदेह होता है. ग्राफ्ट की सफलता के लिए पावर एसिस्टेड फालिकुलर यूनिट एक्ट्रेक्श जैसे आधुनिक टेक्नीक का सहारा लिया जाता है. इस विधि में अत्यंत छोटी यूनिट को सावधानीपूर्वक निकाला जाता है, ताकि ग्राफ्ट के बाद घाव किसी भी तरह की विकृति पैदा न करें.
ट्राइकोफाइटिक क्लोजर के साथ—साथ ट्रिपल लेयर क्लोजर से निशान का पता नहीं चलता. सामान्य रूप से ट्रिप मेथड का पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा अपनाया जाता है, क्योंकि इस विधि में अधिक गंजे एरिया के लिए एक ही सत्र में ज्यादा ग्राफ्ट को प्रत्यारोपित किया जाता है. भारत में भी कास्मेटिक सर्जन इस विधि के आधुनिकतम रूप को ज्यादा से ज्यादा अपना रहे हैं. इस विधि से अधिक से अधिक मरीज फायदा उठा रहे हैं. इसका रिजल्ट अच्छा अौर कम खर्चीला के साथ—साथ मरीज तथा सर्जन दोनों को कम परेशानी होती है.
पहले तीन मिमी बालों का गुच्छा डोनर एरिया से निकाला जाता था. इसके लिए खोपड़ी के पिछले हिस्से का इस्तेमाल किया जाता था.क्योंकि पिछले हिस्से में घने बाल होते हैं.उसके बाद बालों के गुच्छे को गंजे स्थान में प्रतिरोपित किया जाता था.यह कार्य कई सेशन में संपन्न होता था.प्रत्येक सेशन में सर्जन बालों के सैंकड़ों गुच्छे का ग्राफ्ट कतार में करते थे.इसमें काफी समय लगता था.और मरीज तथा सर्जन दोनों को काफी परेशानी होती थी.लेकिन,हाल के वषोर्ं में इस विधि में काफी बदलाव आया है और इनमें काफी बारीकियां भी आयी हैं.और ग्राफ्ट के लिए छेाटे—छोटे मिनी और माइक्रोग्राफ्ट का प्रयोग किया जाने लगा है.इस विधि में बालों के इन्हीं गुच्छों को छोटे—छोटे भागों में अलग किया जाता है.और फिर उसे प्रतिरोपित किया जाता है.बालों के छोटे टुकड़ों के होने से बालों की संख्या कम हो जाने से ग्राफि्ंटग में आसानी होती है.
मिनी ग्राफ्ट में मूलतः तीन से चार मिलीमीटर का गुच्छा होता है.इसे छेाटे टुकड़ों में बांटा जाता है.और प्रत्येक गुच्छे में छह से सात बाल होते हैं.माइक्रोग्राफ्ट में मात्र एक से दो बाल ही होते हैें. इस तरह के ग्राफ्ट काफी जटिल होते हैं और इसमें समय भी काफी लगता है.
सामान्य रूप से सर्जन एक सेशन में विभिन्न आकार के 200 से 400 बालों के गुच्छे जड़सहित निकालकर प्रतिरोपित करते हैं.एक सेशन में अमूमन चार से पांच घंटे का समय लगता है.प्रतिरोपित बाल कुछ माह तक सुषुप्तावस्था में रहने के बाद बृद्धि करने लगते हैं और छह से आठ माह के बाद रिजल्ट दिखने लगते हैं.दूसरें सेशन में पहलेवाले ग्राफ्ट के बीचवाले खाली हिस्से बालों का प्रत्यारोपण करते हैं.
कुछ सर्जन अपने सहायकों की बड़ी टीम लेकर एक साथ एक हजार गुच्छों को प्रतिरोपित करने की व्यवस्था करते हैं.इनमें मिनी तथा माइक्रो दोनों तरह के ग्राफ्ट शामिल होते हैं.इुर्भाग्यवश इतना करने के बावजूद इस टेक्नीक से ज्यादा बाल उगाने मे ज्यादा सफलता नहीं मिलती.लेकिन,इस विधि में समय की काफी बचत होती है.
इस विधि में बड़े गुच्छे के साथ मिनी तथा माइका्रेग्राफ्ट मिलाकर प्रतिरोपित किया जाता है तो बाल प्राकृतिक रूप से दिखने लगतेे हैं.प्राकृतिक तथा ग्राफ्ट बालों में विशेष अंतर नही होता. यहां यह भी बता दें कि सभी सर्जन अपनी सुविधानुसार बाल ग्राफ्ट के लिए अपने अपने फामूर्ला अपनाते हैं.सर्जन के ये तरीके बाल झड़ने की प्रकृति तथा गंजेपन की स्थिति पर निर्भर करता है. इसमें डॉक्टर के अनुभव,दक्षता तथा कार्यकुशलता साफ—साफ देखा जा सकता है.
यहां यह भी बताना जरूरी है कि कोई भी सर्जन किसी भी गंजे के सर पर नये बालों का निर्माण नहीं करता.बल्कि एक जगह के बाल को निकालकर दूसरी जगह पर मात्र प्रतिरोपित करता है. यहां भी डाक्टरों की एक सीमा होती है. क्योंकि सभी गंजों के सर पर बाल प्रतिरोपित नहीं किये जा सकते.
डोनर एरिया की गुणवत्ता
निम्न बातों पर निर्भर करती हैं
0 बालों का घनापन प्रतिवर्ग सेमी.
0 बाल की मोटाई.
0 बाल की प्रकृति— घुंघराले बाल अच्छे माने जाते हैं.
0 गंजे एरिया से डोनर एरिया बड़ा हो.
0 मेडिकल कंट्राइंडिकेशन न हो.
प्रत्यारोपित बाल का ग्रोथ सर्जरी के आठ माह के बाद अच्छी तरह दिखाई पड़ता है. बालों को पूरी तरह घना होने में एक से डेढ़ साल लग जाते हैं. अच्छी गुणवत्ता के ट्रांसप्लांट के लिए बाल प्राकृतिक रूप से उगे न कि उसे दुबारा सर्जरी कराने की जरूरत पड़े.
सावधानियां
0 सर्जरी के दो दिनों के बाद बाल में शैंपु लगाने के लिए कहा जाता है. यह ग्राफ्ट के एरिया से बाल को झड़ने से रोकता है.
0 दो से तीन माह के बाद ग्राफ्ट बाल से नये बाल निकलने लगते हैं. अौर छह से नौ माह के दौरान बाल मोटे अौर मजबूत होने लगते हैं.
0 बाल पुराने स्थानों से झड़ते हैं.
0 कुछ मरीज पुराने बालों को झड़ने से रोकने के लिए दवाइयों का प्रयोग करते हैं, जबकि दूसरे मरीज झड़नेवाली जगह पर नये प्रत्यारोपण की तैयारी करते हैं.
ग्राफ्ट को प्राप्त करने के लिए कई तरह के टेक्नीक अपनाये जाते हैं. सभी की अपनी—अपनी खूबियां तथा खराबियां हैं, जिस किसी भी टेक्नीक को अपनाया जाये, सभी का एक ही उद्देश्य होता है कि ग्राफ्ट वाले बाल को नुकसान न पहुंचे. चूंकि बाल त्वचा से सीधे निकलते नहीं, तिरछे निकलते हैं. उसी को ध्यान में रखकर उसी कोण से बाल का निकाला जाये. ऐसा करने से बाल को नुकसान होने की संभावना नहीं होती है.
डोनर की जगह से ग्राफ्ट के लिए बाल निकलने के लिए स्ट्रिप एक्सीजन हार्वेस्टिंग टेक्नीक का सहारा लिया जाता है. इसके लिए सिंगल, डबल या ट्रिपल ब्लेड वाले स्कालपेल का प्रयोग किया जाता है. डोनर वाली जगह पर चीरा लगाते हुए इस बात का ध्यान रखा जाता है कि बाल को किसी तरह का नुकसान न हो. टीसू सहित बाल को निकालने के बाद उसे छोटे—छोटे टुकड़ों में अलग कर फालिकुलर यूनिट को अलग किया जाता है.
फॉलिकुलर यूनिट एक्ट्रैक्शन विधि से ग्राफ्ट या तो एक ही बार में प्राप्त किया जा सकता है या फिर थोड़े—थोड़े अंतराल पर लिया जाता है. इस विधि में कितना समय लगता है, यह सर्जन के अनुभव, दक्षता तथा काबिलियत पर निर्भर करता है. इस टेक्नीक की खासियत यह है कि इसमें अत्यंत छोटा निशान पड़ता है अौर ऑपरेशन के बाद दर्द या असुविधा कम होती है. यह अलग बात है कि इस विधि में अधिक समय के साथ खर्चीले ज्यादा होते हैं.
जटिलताएं
बाल के पतले होने को शॉक लास कहते हैं. यह सामान्य साइड इफेक्ट है जो थोड़े समय के लिए रहते हैं.
सर तथा ललाट में सूजन की भी समस्या होती है. इससे परेशानी होने पर सर्जन से संपर्क कर दवा लेनी चाहिए. यदि मरीज को सर में खुजली होने लगे तो सावधान होने की जरूरत है, उंगलियों के नाखून से ग्राफ्ट वाले स्थान पर ज्यादा नुकसान होने की संभावना होती है. इससे बचने तथा राहत पाने के लिए माश्चराइजर या मसाज शैंपु का प्रयोग करना चाहिए.
1.ग्राफ्ट की शुरूआत में बाल घने नहीं दिखते.यह समस्या दूसरे सेशन में मिनी तथा माइक्रो ग्राफ्ट के बाद स्वतः दूर हो जाती है.
2.कई बार बाल कम घने होते है और कई बार ग्राफ्ट रिजेक्ट भी हो जाते हैं. और थोड़े दिनों के बाद ही झड़ जाते है. किंतु नब्बे से पंचानवे फीसदी केशों मेंं समय के साथ प्रतिरोपित बाल बढने लगते हैं.
3.कई बार डॉक्टर की कोशिशों के बावजूद सही दिशा में बाल नहीं उग पाते. इसकी बृद्धि विपरीत दिशा में होने लगती है.ऐसा ग्राफ्ट सही तरीके से नहीं होने तथा जड़े ढीली होने के कारण होता है.ढीले ग्राफट की वजह से कई बार इस तरह की समस्या देखने को मिलती है.
4.कई बार ग्राफ्ट किये गये बाल में बृद्धि होने के बाद उसकी रचना तथा प्रकृति में काफी अंतर दिखने लगते हैं.सर के बाल तथा प्रतिरोपित बाल में अंतर दिखता है. इसकी प्रकृति तथा गुणवत्ता में परिवर्तन के सही—सही कारणों को पता नहीं चल पाता.
5. कई बार ललाट के उपर की हेयर लाईन एक सीध में समान नहीं होती. अत्यधिक पतला या जरूरत से ज्यादा घना होते हैं. कई बार ग्राफ्ट के निशान स्पष्ट रूप से दीखने लगते हैं जो काफी कुरूप और भद्दे लगते हैं.,अच्छे टेक्नीक का सहारा लेकर इसे दूर किया जा सकता है.शुरूआती समय में भी चीरा केा इस तरह डिजाइन किया जाता है कि निशान की लाइन से ही बालों का ग्रोथ हो.ऐसा होने से घने बालों के पीछे निशान छिप जाते हैं.