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scarless surgery

स्कारलेस सर्जरीःसर्जरी के निशान से छुट्‌टी

वैसी सर्जरी जिसमें चीरे के निशान नहीं दिखते,स्कारलेस सर्जरी कहलाती है.सिंगल इंसीजन लैप्रोस्कोपिक सर्जरी में एक से दो सेंमी. का अत्यंत छोटा—सा चीरा नाभी के पास लगाया जाता है.इससेसर्जरी के बाद चीरा का निशान दिखाई नही देता. शरीर के प्राकृतिक छिद्र जैसे मुंह,मूत्रमार्ग,गुदामार्ग के सहारे की जानेवाली सर्जरी को ‘नोट्‌स' कहते हैं. इसमें भी शरीर के बाहरी हिस्से में चीरा नहीं लगाया जाता. स्तन की सर्जरी में स्तन के निचले और भीतर के हिस्से में या फिर कांख की त्वचा में चीरा लगाया जाता है. राइनोप्लास्टी में नाक की सर्जरी में नाक के भीतरी हिस्से में चीरा लगाया जाता है. इस तरह की स्कारलेस सर्जरी की मांग आजकल काफी बढ़ी है और दिल्ली,कोलकाता,मुंबई,बैंगलोर जैसे मेट्रोज में काफी लोकप्रिय है.

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क्या पहले यह सोचा जा सकता था कि भविष्य में कभी ऐसा भी संभव होगा जिसमेंसर्जरी के बाद मरीज के शरीर में ऑपरेशन का निशान दिखाई नही देगा.यानी स्कारलेस सर्जरी भी हो सकती है. लेकिन आजकल यहसपना साकार हो रहा है. आजकल सर्जरी भी हो रही है और निशान का भी पता नहीं चल रहा है.यह सबआधुनिक चिकित्सा के कारण होरहा है.यह केवल छोटी सर्जरी में ही,यूटरस ,प्रोस्टेट, स्तनकी बड़ी सर्जरी में भी हो रहा है.

41 वर्षीय सुजाता कोयूटरस में बड़ी—सी गांठ ;फाइब्रॉइड द्ध का पता चला. चिकित्सक के अनुसार सर्जरी जरूरी थी. लेकिन,सुजाताइसेसालभर से इसलिए टालती जा रही थी किलेप्रोस्कोपिक सर्जरी के बाद पेट में तीन—चार निशान रह जायेंगे जो उसे एकदम पसंद नहीं था.वह काफी फैशनेबल और फीगर को लेकर कांशस महिला रहीहै. हाल ही में एक शादी के सिलसिले में जब वह मुंबई गई तो वहीं पता चला कि यूटरस की सर्जरी वेजाइना ;गुप्तांग द्ध के रास्ते भी होती है. इसमें पेट में किसी तरह का चीरा लगाने की जरूरत नहीं पड़ती. गुप्तांग से ही सारी सर्जरी पूरी की जाती है. यह जानवह काफी खुश हुई और दिल्ली लौटने के एक सप्ताह के अंदर ही एक बड़े कारपोरेट अस्पताल में सर्जरी करा ली. अब, सुजाता इसलिए खुश है कि उसकी सर्जरी भी हो गई और किसी तरह का कोई निशान नहींं हुआ.

लेकिन 65 वर्षीय मोहन बाबू को पहले से पता था कि उनकी सर्जरी इंडोस्कोपिक मशीन से होगी. इसके लिए पेशाब के रास्ते का प्रयोग किया जायेगा. इसमें शरीर के किसी भी हिस्से में चीरा लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी.लेकिन वे डर रहे थे कि पता नहीं सर्जरी में क्या होगा.सर्जरी तो सर्जरी है.यही सब सोचकर अब तकवह बचते रहे थे. लेकिन पिछले माह जब रात को पेशाब करने के लिए उठे तो लाख कोशिश के बावजूद पेशाब हुआ नहीं. उन्हें सर्जन की चेतावनी याद आ गई—‘‘समय रहते यदि सर्जरी नहीं कराई तो कभी भी पेशाब रूक सकता है. और इमरजेंसी मं भर्ती होना पड़ेागा.'' उसने आनन फानन में घर के लोगों को जगाया और शीघ्र अस्पताल ले जाने को कहा.

पास के एक बड़े से कारपोरेट अस्पताल के इंमरजेंसी बार्ड में उन्हें भर्ती करा दिया गया. करीब चार दिनों के बाद उनकी प्रोस्टेट की सर्जरी हुई. सर्जरी की प्रक्रिया पेशाब की नली में इंडोस्कोप डालकर पूरी की गई.और तीन दिनों के बादमोहन बाबू को छुट्‌टी दे दी गई.

स्कारलेस सर्जरी क्या है?

आम बोलचाल की भाषा में वैसी सर्जरी को स्कारलेस सर्जरी कहते हैं जिसमें सर्जरी के बाद चीरे के निशान नहीं दिखते. इसमें अत्यंत छोटा चीरा लगाया जाता है जो बाद में धीरे—धीरे समाप्त हो जाता है या फिर वैसी जगहों पर चीरा लगाया जाता है जो किसी दूसरे हिस्से से निशान ढ़क जाता है. जैसे कांख में,नाभी में या स्तन के निचले हिस्से में.आजकल चिकित्सा के क्षेत्र में इस तरह की सर्जरी काफी लोकप्रिय हो रही है.सिंगल इंसीजन लैप्रोस्कोपिक सर्जरी को स्कारलेस सर्जरी भी कही जाती है. इसमें चीरा नाभी के एकदम पास लगाया जाता है ताकिबाद में नाभी के कारण निशान दिखाई न दे.पेट,आंत, पित्त की थैली की पथरी,अपेंडिक्स आदि की सर्जरी भी आजकल इस विधि से बहुत बड़ी संख्या में मेट्रोज के कारपोरेट अस्पतालों में हो रही हैं.

शरीर के प्राकृतिक छिद्र जैसे मुंह,मूत्रमार्ग,गुदामार्ग के सहारे की जानेवाली सर्जरी को ‘नोट्‌स' यानीनेचुरल ओपेनिंग ट्रांसल्युमिनल इंडोस्कोपिक सर्जरी कहते हैं. मोहन बाबू की प्रोस्टेट की सर्जरी इसी विधि से की गई थी.शरीर के बाहरी हिस्से मेेंं चीरा न लगाकर मूत्र—मार्ग के द्वारा एक विशेष प्रकार की मशीन इंडोस्कोप को प्रोस्टेट तक पहुंचाई गई. और फिरसर्जरी की सारी प्रक्रिया पूरी की गई.

आजकल कई बड़े अस्पतालों में पित्त की थैली की पथरी की सर्जरी मुंह के माध्यम से इंडोस्कोपिक विधि की जा रही है. इसमें भी पेट के बाहरी हिस्से में चीरा लगाने की जरूरत नहीं पड़ती. महिलाओं में यूटरस निकालने के लिए वेजाइनल हिस्ट्रेक्टोमी किये जा रहे हैं. इसमें पेट के निचले हिस्से में चीरा लगाकर यूटरस निकालने की जगह गुप्तांग का सहारा लिया जाता है.

एक अन्य प्रकार की सर्जरी में चीरा वैसी जगह में लगाया जाता है ताकि बाहर से दिखाई न दे. महिलाओं में स्तन को सुडौल बनाने के लिए जो सर्जरी की जाती है, वह भी स्कारलेस सर्जरी कहलाती है. इसमें चीरा स्तन के निचले और भीतर के हिस्से में या फिर कांख में लगाया जाता है. इसे मैमोप्लास्टिक सर्जरी कहते हैं. स्तन को सुडौल बनाने के लिए यह सर्जरी बड़े—बड़े अस्पतालों में काफी हो रही है.

23 वर्षीय सुलेखा एक कारपोरेट कंपनी में अच्छे ओहदे पर है. देखने में अच्छी,स्मार्ट और गुड लुकिंग है. लेकिन उसका सारा स्मार्टनेस बड़े और बेडौल स्तन के आगे फीका पड़ जा रहा था. धीरे—धीरे उसके मन में आत्महीनता और डिप्रेशन का भाव भी घर करता जा रहा था. काफी दिनों से वह मैमाप्लास्टी कराना तो चाह रही थी किंतु यह सोचकर डॉक्टर से संपर्क करने से कतरा रही थी पता नहीं सर्जरी सफल होगी कि नहीं. यदि सफल हो भी गई तो चीरे का निशान जिंदगी भर मुंह चिढ़ाता रहेगा.

लेकिन सालभर पहले एक दिन सुबह—सुबह जब अखबार में मैमाप्लास्टी से संबंधित एक लेख पढ़ रही थी तो उसमें इस बात का भी जिक्र था कि आजकल यह सर्जरी स्कारलेस विधि से भी होती है जिसमें पेट के खुले हिस्से की जगह स्तन के भीतरी हिस्से में चीरा लगाया जाता है. इसे अंडर ब्रेस्ट सर्जरी कहते हैं. इसकी खासियत यह होती है कि इसमें सर्जरी के बाद निशान एकदम दिखाई नहीं देते. इसीलिए इसे स्कारलेस सर्जरी कही जाती है. इतना पढ़ना थाकि उसकी बांछें खिल गईं. मानों मन मांगी मुराद पूरी हो गई हो. वह चाहती भी यही थी यानी स्कारलेस सर्जरी. फिर क्या था, नेट खंगालना शुरू कर दी कि यह सुविधा किस अस्पताल में है और इसमें खर्च कितना आयेगा. सौभाग्य से उसे विशेष भटकना नहीं पड़ा. दिल्ली के ही एक बड़े कारपोरेट अस्पताल में इस तरह की सुविधा का पता चला. और सप्ताह बीतते—बीतते उसने अपनी सर्जरी करा ली. इसमें मात्र ग्यारह हजार रूपये खच हुए. और जब से वह सर्जरी कराकर आई है, उसके मन में किसी भी तरह की न तो हीनता का भाव है और न ही डिप्रेशन की शिकारहै. अब वह सभी तरह के मानसिक और मनोवैज्ञानिक तनाव से मुक्त है. उनके सहयोगी भी इस बात को स्वीकारने लगे हैं कि मैडम पहले से अब ज्यादा स्मार्ट लग रही है.

नाक को खूबसूरत बनाने के लिए भीसर्जरी आजकल खूब हो रही है.इसे राइनोप्लास्टी कहते हैं. इसमें नाक के भीतरी हिस्से में चीरा लगाया जाता है. ताकि सर्जरी के बाद चीरे का निशानदिखाई न दे. आजकल फिल्म स्टार,मॉडल तथा बड़े—बड़े कारपोरेट अस्पतालों में काम करनेवाली लड़कियां ही नहीं,पुरूष भी इस विधि का भरपूर फायदा उठा रहे हैं.

सिंगल की—होल के सहारे स्कारलेस सर्जरी

लेप्रोस्कोपिक सर्जरी की यह एकदम नयी विधि है. इसमें मात्र एक से दो सेमी. का एकचीरा लगाकर ऑपरेशन की प्रक्रिया पूरी की जाती है. इसकी शुरूआत एक दशक पहले ही हो गयी थी.लेकिन आजकल मेट्रोज तथा कारपोरेट अस्पतालों में यह काफी लोकप्रिय है और इसकी मांगदिनोंदिन तेजी के साथ बढ़ती ही जा रही है.

पारंपरिक लैप्रोस्कोपिक सर्जरी में पेट में तीन से चार जगहों पर चीरा लगाया जाता है जबकि सिंगल इंसीजन लेप्रोस्कोपिक सर्जरी में डेढ़ से दो सेमी. का एक छिद्र नाभी के नीचे बनाया जाता है .फिलहाल,भारत में इस विधि से गॉल ब्लाडर,;कोलीसिस्टेक्टोमीद्ध,अपेंडिक्स, ;अपेंडिसेक्टोमीद्ध,इंसिजिनल हर्निया का रिपेयर,ओवरी, ;उफरेक्टोमीद्ध,डायग्नोस्टिक लेप्रोस्कोपिक सर्जरी तथा वायोप्सी करने केे लिए इस विधि का उपयोग किया जाता है.

नेचुरल ओपेनिंग ट्रांसल्युमिनल इंडोस्कोपिक सर्जरी

सिंगल इंसीजन के बाद शरीर के बाहरी हिस्से में चीरा लगाने के बजाए शरीर के प्राकृतिक छिद्र जैसे मुंह,गुदा मार्ग,मूत्र मार्ग या योनि—मार्ग के जरिये ऑपरेशनपर विचार होने लगा. इसमें भारत के ही दो चिकित्सा—वैज्ञानिकों ने बाजी मारी. हैदराबाद के एशियन इंस्टीट्‌यूट ऑफ गैस्ट्रोलॉजी के दो भारतीय चिकित्सक डॉ. जी.वी. राव तथा डॉ.डी. एन. रेड्‌डी ने पहली बार सन्‌ 2004 ई में मुंह से इंडोस्कोप की सहायता से अपेंडिक्स की सर्जरी करने में सफलता पाई. वर्षों सुअरों और इंसानी लाशों पर अनुसंधान के बाद इन्हें इसमें सफलता मिली. उसके बाद इन दोनों ने अपेंडिक्स तथा महिलाओं के फॉलोपियन ट्‌यूब के लाइगेशन जैसी कई सर्जरी की. उसके बाद मार्क ने अपने सहयोगियों के साथ इसी टेक्नीक से एक मरीज के पेट के रोगग्रस्त हिस्से को निकालने में सफलता पायी.

मुंह,गुदा मार्ग,मूत्र मार्ग या योनि—मार्गजैसे शरीर के प्राकृतिक छिद्र द्वारा की जानेवाली सर्जरी को ‘नोट्‌स' यानी नेचुरल ओपेनिंग ट्रांसल्युमिनल इंडोस्कोपिक सर्जरी कही जाती है. आजकल यह सर्जरीदुनिया भर में काफी लोकप्रिय है. इससे मरीजों को कई तरह के फायदे होते हैं. मात्र कुछ घंटे निगरानी के बाद मरीज को छुट्‌टी दे दी जाती है. मरीज को किसी तरह का दर्द नहीं होता और संक्रमण की संभावना भी नहीं रहती. सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें शरीर के बाहरी हिस्से में चीरे का कोई निशान नहीं दिखता. इसीलिए इसे स्कारलेस सर्जरी कही जाती है.आजकल दुनियाभर के चिकित्सक इस विधि का सहारा ले रहे हैं. यूटरस की सर्जरी को वेजाइनल हिस्ट्रेक्ट्रोमी नाम दिया गया.लैप्रोस्कोपिक सर्जरी में पेट के निचले हिस्से में तीन से चार सुराख बनाकर सर्जरी की जाती है और युटरस निकाला जाता है लेकिन वेजाइनल हिस्ट्रेक्ट्रोमी में कहीं भी सुराख बनाने की जरूरत ही नहीं पड़ती.गुप्तांग जैसे प्राकृतिक सुराख से ही सारी सर्जरी की जाती है.

अमरीका सहित कई देशों में मोटापा कम करने के लिए बेरियाट्रिक सर्जरी इसी विधि से की जा रही है. कई सर्जन योनिमार्ग से अपेंडिक्स और पित्त की थैली निकाल रहे हैं. मूत्र मार्ग से की जानेवाली प्रोस्टेट की सर्जरी को टीयूआरपी कहा जाता है.मूत्र की थैली या किडनी को मूत्र—थैली से जोड़नेवाली नली में पायी जानेवाली पथरी को इसी विधि से निकाली जाती है. किडनी की पथरी के लिए लीथेाट्रिप्सी में भी किसी तरह के चीरे की जरूरत नहीं पड़ती.

स्कारलेस सर्जरी के फायदे

स्कारलेस सर्जरी के कई फायदे गिनाये जा सकते हैं. सबसे बड़ी बात कि चीराका निशान शरीर के किसी भी हिस्से में नहीं रहता. इस तरह की सर्जरी फिल्म स्टार और व्यूटी कंशस और फैशनेबुल महिलाएं कराना ज्यादा पसंद करती हैं. दूसरी सबसे महत्वपूर्ण फायदा यह है कि इसमें मरीज को विशेष दर्द नहीं होता और घाव में संक्रमण का झंझट नहीं रहता. तीसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि अस्पताल में ज्यादा दिनों तक भर्ती रहने की जरूरत नहीं पड़ती.शीघ्र ही ठीक होकर दूसरे या तीसरे दिन मरीजअपने रूटीन काम पर लौट जाता है.

पारंपरिक लैप्रोस्कोपिक ऑपरेशन के दौरान आधा से डेढ सेंमी. कातीन से चारचीरा लगाा जाता है.सिंगल इंसीजन लेप्रोस्कोपिक सर्जरी में डेढ़ से दो सेमी का एक ही छिद्र नाभी के नीचे बनाकर आपरेशन की प्रक्रिया पूरी की जाती है.

ये सुविधा का लाभ नहीं उठा सकते.

ऐसी बात नहीं है कि इस तरह की सर्जरी सभी रोगों के लिए मुमकिन है. कुछ खास स्थितियों में ही यह विधि अपनाई जाती है. यह सर्जरी कभी भी कंप्लीकेटेड रोगों के लिए नहीं है. केवल रूटीन केसों में ही अपनाई जाती है. अत्यधिक मोटे या एकदम दुबले—पतले मरीजों के लिए यह सर्जरी उपयुक्त नहीं है.जिन्हें पहले कई बार पेट का ऑपरेशन हो चुका है, उसके लिए भी यह नहीं है या जिनका रोगग्रस्त अंग काफी बड़ा हो गया है, उसके लिए भी यह सर्जरी नहीं है.ऐसे मरीजों के लिए पारंपरिक लैप्रोस्कोपिक सर्जरी की सलाह दी जाती है.

इस सर्जरी के विडंबना यह है कि पारंपरिक लैप्रोस्कोपिक सर्जरी की तुलना में खर्चा थोड़ा ज्यादा आता है. इतना ही नहीं, इस ऑपरेशन में अपेक्षाकृत ज्यादा समय लगता है औरसर्जन को अनुभवी होना जरूरी है.