तीन दस्तक Ratan Chand Ratnesh द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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तीन दस्तक

तीन दस्तक

‘‘आप क्या सोच रहे हैं ?’’ थानेदार ने पूछा, ‘‘आपने क्या उस आदमी को पहचाना नहीं?’’

यह एक नया विचार था। काश वह उस आदमी को न पहचान पाता ?...... और पहचान भी लिया है तो क्या फर्क पड़ता है। इस समय वह कह सकता है कि उसने नहीं पहचाना?

पर इस विचार के दिमाग में ठीक से बनने के पहले ही उसके संस्कारों ने उसे दबोच लिया और अंदर का सच मुँह के रास्ते बाहर निकल आया, ‘‘हाँ, वही आदमी है यह।’’

जवाब सुनते ही थानेदार व्यस्ततापूर्वक वहाँ से हट गया। सब-इंस्पेक्टर कुछ देर तक उसकी आँखों में आँखें डालकर उसे घूरता रहा, फिर कहा ‘अब आप घर जा सकते हैं। जिस चाकू से वार किया गया था उसकी शिनाख्त के लिए आपको फिर से एक बार तकलीफ दी जाएगी।’ वह भी उसे अकेला छोड़ वहाँ से ओझल हो गया।

वह अपने में उलझा हुआ थाने से बाहर आया। बाहर की तेज खुली धूप में उसने अपने आप को बहुत असुरक्षित और उपेक्षित-सा महसूस किया। लगा, जैसे वह अपना बहुत कुछ उस कमरे में छोड़ आया हो--- कल तक का सारा संघर्ष, रेशमा का चेहरा और आगे की योजनाएँ। फुटपाथ, सड़क और खंभे पहले कभी उसे इतना सपाट और नंगे नहीं लगे थे। सामने जो पहली इमारत नज़र आ रही थी, और जिसकी ओट में जाकर वह अपने आप को कुछ ढका हुआ महसूस कर सकता था, वह भी सौ गज से कम फासले पर नहीं था। खुले में चारों तरफ से सबको दिखाई देते हुए उतना फासला तय करना उसे असंभव लग रहा था। ‘अब मैं उस इलाके में नहीं रह पाऊँगा, उसने सोचा।’ और वह घर छोड़ देना पड़ा तो और कहाँ रहूँगा ? नौकरी तो अब तक मिली नहीं।

उसने एक असहाय नज़र से चारों तरफ देख लिया। एक खाली टैक्सी पीछे से आ रही थी। उसने जेब के पैसे गिने और हाथ देकर टैक्सी को रोक लिया। फिर चोर नज़र से आसपास देखकर उसमें बैठ गया। टैक्सीवाले को घर का पता देकर वह नीचे की ओर झुक गया, जिससे कि खिड़की के बाहर से कोई उसे देख न सके।

पाँव में खुजलाहट बहुत बढ़ गई थी। वह उसी तरह झुका-झुका काँपती उँगलियों से जूते के तस्मे खोलने लगा।

‘‘इस भीड़-भड़ाके वाले शहर में कुछ दूर की दूरी भी कितनी लम्बी हो जाती है,’’ उसने मन-ही-मन सोचा और जूते का तस्मा खोलने के बाद उसने उस पाँव का बूट उतारा जिसमें खुजली हो रही थी। जूता उतारते ही उसे लगा कि उसने अब तक अपने पाँव में आग का शोला कैद करके रखा था जो बाहर निकलकर टैक्सी में चारों तरफ फैल गया है। मोजे के ऊपर से ही उसने खुजलाहट की जगह पर हाथ फेरा। हाथ फेरते ही वह जगह जैसे गहरी नींद से भड़कर अचानक जाग गई और अब वह मोजे के आवरण को भी उतार फेंक देने को व्याकुल हो गई हो। उसने उस स्थान को अपनी उँगलियों से धीरे से खुजलाया। इससे खुजली और भड़क उठी। चमड़ी के उस स्थान से दिमाग तक जाते किसी तंतु के तार जैसे खिंच गए।

टैक्सी एक तिराहे के सिगनल पर रुकी। उसने मोजे को जितनी तेजी से उतारा, उतनी ही तेजी से उस स्थान को खुजलाने लगा और थोड़ी ही देर में वहाँ रक्त की बूँदे उभर आयीं। उसने उन बूँदों को अपनी तर्जनी से छुआ। रक्त की बूंदें तर्जनी के अग्रभाग पर आकर टिक गईं। उसने गौर से उन रक्त- बूंदों को देखा। बूंदें पनियल थीं। उसे निराशा हुई। मन-ही-मन सोचा, उसके खून में पानी की मात्रा बढ़ती जा रही है। दो साल पहले तक कॉलेज में उसका खून कितना गाढ़ा था ! एक बार क्रिकेट खेलते हुए एक कैच की ओर लपका था तो मैदान में गिरने पर कोई पत्थर का तीखा टुकड़ा उसके घुटने में बिंध गया था हालांकि उसने कैच बेकार नहीं जाने दिया था।

अब पाँव में खुजली की जगह दो उंगलियों के बीच में जलन होने लगी थी। खुजली कम होती जा रही थी। कई बार ऐसा हुआ है। घर जाकर वह उस स्थान को अच्छी तरह धोकर डिप्रोवेट लगाएगा। कुछ दिन आराम रहेगा और फिर से यही कांड, जब तक यह गर्मी का मौसम है। लक्षण पूरी तरह सल्फर के हैं, पर कई बार सल्फर 30, 200 और 1 एम की पोटैंसी में भी खाकर देख लिया। यह ठीक नहीं हो पाया। लक्षण हालांकि पूरी तरह नहीं मिलते थे, पर फिर भी ग्रेफाइटस और सोराइनम भी आजमाकर देखा। तनाव के दिनों में यह कुछ अधिक ही तंग करता है जैसे कि इन दिनों। रेशमा कहती है मुझे कुछ नहीं हुआ है, बस एक गंदी आदत बन गई है। वह यह भी कहती है कि उसे मोजा हर रोज धोकर पहनना चाहिए, पर कहाँ हो पाता है उससे। हफ्ता निकल जाता है। किसी पार्क या झील के एकांत में रेशमा जब जानबूझकर उससे चिपककर बैठती है, तब भी उसकी उँगलियाँ पाँव की तरफ रेंगने लगती हैं। रेशमा की नज़र उसकी एक-एक हरकत पर रहती है। वह इतनी सूक्ष्मता से उसका अध्ययन करती है मानो वह कोई दिलचस्प उपन्यास हो। कभी-कभी वह उसकी आँखों में झाँककर उसे रोकने की कोशिश करती है, ‘‘तुम्हारे दिमाग में खुजली होने लगी है।’’

उसने गौर किया कि टैक्सी-ड्राइवर अपने रियर-मिरर से उसे न जाने कब से घूरे जा रहा है। उसकी आँखें, मुँह, मूंछ और दाढ़ी उसमें साफ-साफ नज़र आ रही थी। वह घबरा गया। जाना-पहचाना चेहरा। हाँ, वही तो है राम मुहम्मद सिंह। वह बुरी तरह डर गया। वे आँखें मानो उससे कह रही थी, ‘साले मेरी शिनाख्त करेगा ? तुझे नहीं पता, ये पुलिसवाले मेरे हफ्तों पर ही पलते हैं। इनके ही आसरे तो मेरा आतंक इस इलाके में फैला हुआ है। तुम्हारे ‘हाँ, वही आदमी है यह’ कहते ही थानेदार ने अपने कमरे से बाहर आकर सिपाहियों से मेरी हथकडि़याँ यह कहकर खुलवा दी थीं कि यह नहीं है वह। छोड़ दो उसे। साथ ही उसने मुझे इशारे से समझा दिया था कि अब तुम्हारे साथ क्या करना है !’

टैक्सी रोकने के लिए कहे पर क्या फायदा ! अब यह मुझे जिंदा नहीं छोड़ेगा। वही बेढंगा-सा दिखनेवाला चाकू अब भी उसके पास होगा। इस टैक्सी को एक किनारे पर कहीं सूनसान जगह पर ले जाएगा और वह चाकू मेरे पेट में उतार देगा।

अचानक एक झटके से टैक्सी रुकी। वह सर से पाँव तक काँप गया। उसे अचानक रेशमा का खूबसूरत चेहरा अपनी आँखों के सामने नज़र आया। वह अंतिम बार उसे याद कर लेना चाहता था। वह चेहरा कहीं दूर बादलों के पार आसमान से उतरता हुआ लगा। वह दोनों बाँहें फैलाए उसकी ओर उतरी आ रही थी। सफेद लिबास में एक परी जैसी। उसके सुनहरे बाल हवा में फैल गए थे।

‘‘बाबू जी, हम आगे तो नहीं निकल आए ?’’ टैक्सी-ड्राइवर का स्वर उसे किसी अंधेरी गुफा से आता सुनाई दिया। उसने आव देखा न ताव, दरवाजा खोलकर बाहर निकल आया। उसका सारा शरीर पसीने से नहा उठा। वह इस बार भी भागकर अपने आप को बचा लेना चाहता था पर न जाने क्यों ड्राइवर को चेहरा एक बार देख लेना चाहा। जब उसके पाँव तपती सड़क पर जलने लगे तो उसे अहसास हुआ कि वह नंगे पाँव है और उसके जूते और मोजे टैक्सी के अंदर रह गए हैं। शायद इसी विवशता के चलते उसके दिमाग के किसी सकरात्मक न्यूरॉन ने उसे ड्राइवर के चेहरे को देखने के लिए उद्दत किया। घबराहट से उसे थोड़ी-सी राहत मिली। ड्राइवर वह नहीं था। उसे अपने आप से खीझ हुई। बुरी तरह डर गया है वह। इतना ही डरना था तो शिनाख्त करते समय ना ही कह देते। उसने अपने-आप से कहा और ड्राइवर का किराया चुकाकर संदेहास्पद दृष्टि से इधर-उधर दूर-दूर तक देखने लगा। कोई उसका कत्ल करने की ताक में न हो। जूते उसने अपने पाँव में जैसे-तैसे फँसा लिए और मुचड़े काले मोजे उसकी मुट्ठी में बंद थे।

कुछ देर तक उसे समझ में नहीं आया कि वह शहर के किस रास्ते के किनारे खड़ा है। टैक्सी-ड्राइवर की गाड़ी को वह वहाँ खड़ा तब तक जाते देखता रहा जब तक वह एक मोड़ पर आँखों से ओझल न हो गई। फिर उसने सावधानी से आसपास देखा। ऊँची-ऊँची इमारतों की लम्बी कतारें जिनके सामने बौने से दिखते पेड़, लैम्प-पोस्ट, खंभे। भीड़ से जुदा-जुदा थी सड़क। आवाजाही भी कम थी। वह और डर गया। यहाँ उसका कत्ल हो जाय तो एक लावारिस मौत होगी। उसका सारा शरीर फिर से पसीने से नहा उठा। मोजे रहित पाँव के नीचे जूते भींगे-भींगे से लगे। बिना समय गँवाए वह एक पागल-सी मनोस्थिति में सामने की इमारत के साथ बनी गली में भागता-सा चला गया। गली पार करते समय वह कुछ अधिक सतर्क रहा और अपने आसपास, आगे-पीछे की आहट पर कान टिकाए रहा। गली आगे जाकर जहाँ मुड़ती थी, वहाँ एक लेटर-बॉक्स था। लेटर-बॉक्स उसे जाना-पहचाना-सा लगा। उसने अपने दिमाग पर जोर डाला। लगभग चार महीने पहले उसने रेशमा के दफ्तर के पते पर एक प्रेम-पत्र डाला था। यों ही प्रेम-पत्र लिखने का सुख अनुभव करने की इच्छा हो आई थी। वैसे हर रोज वह उससे मिलता ही है। जब नौकरी नहीं है, टैक्सी पर आने-जाने का किराया वही तो देती है। रेशमा आशान्वित है कि बसों के धक्के से वे हमेषा बचे रहेंगे। लेटर-बॉक्स को पहचाते ही उसे अपने किराये के कमरे की दिशा भी मिल गई। बेजान चीजें भी भटके हुए को रास्ता दिखाती हैं।

जैसे ही उसने अपने ठिकाने की राह पकड़ी कि पीछे से एक टैक्सी झटके से उसके पास आकर रुकी। उसकी साँस ऊपर की ऊपर टंग गई। उस ओर बिना देखे वह तेजी से आगे दौड़ पड़ा। दौड़ा भी इतनी तेजी से कि उसे लगा कि वह सड़क से एक फुट ऊपर उड़ता चला जा रहा है। राह में कई लोगों से टकराते-टकराते बचा। उसकी बदहवासी से राह चलते लोग सहम कर एक ओर होते चले गए। वे कयास लगाने लगे कि हो न हो यह कोई जुर्म करके भाग रहा है। पर किसी क हिम्मत नहीं हुई कि उसे पकड़े। भागते-भागते वह अपनी बिल्डिंग का मुख्यद्वार पार कर गया और सीढि़याँ चढ़कर तीसरे माले तक पहुँच गया। अपने कमरे के बाहर उसने पैंट की जेब में हाथ डाला। उँगलियाँ चाभी छू रही थीं, पर वह इतना घबड़ाया हुआ था कि उन्हें निकाल पाने में काफी जद्दोजहद करनी पड़ी। हृदय यों उछाले मार रहा था जैसे वह किसी भी वक्त मुँह के रास्ते बाहर आकर वहाँ सीढि़यों से लुढ़कता हुआ बिल्डिंग के ग्राउन्ड फ्लोर में चला जाएगा और राम मुहम्मद सिंह उसे गेंद की तरह अपने हाथों में लेकर मसल देगा।

उसे सीढि़यों पर किसी के कदमों की आवाज सुनाई पड़ी। उसने अपने आपको संयत किया और मंदिर के उस अजीबोगरीब मूरत को याद करने लगा जिसमें एक बार रेशमा उसे जबरन ले गई थी। चाभी उसके हाथ में थी। उसने दरवाजा खोला और अंदर घुसते ही कुंडी लगा ली। दरवाजे के पार उसके कान बाहर लगे हुए थे। मैजिक-आई पर उसने अपना हाथ रख दिया। उसे यह भी ख्याल नहीं रहा कि मैजिक-आई से उसे कोई भी बाहर से नहीं देख सकता बल्कि यह अंदर के लोगों के लिए है ताकि वे दरवाजे के बाहर खड़े उस व्यक्ति को अच्छी तरह देख सकें। सीढि़यों पर चढ़ते कदम उसे दरवाजे के बाहर ही आकर रुके। दरवाजे पर तीन दस्तक हुए। वह और अधिक घबरा गया।

‘‘साले ने रेशमा द्वारा प्रयुक्त दरवाजे का संकेत भी मालूम कर लिया है। उसने मैजिक-आई पर अपनी हथेली का दबाव और भी अधिक बढ़ा दिया। बंद कमरे में उमस इतनी अधिक थी कि उसे लगने लगा कि थोड़ी ही देर में वह बर्फ की सिल्ली की तरह पिघल जाएगा। सामने दीवार पर सूजा के नकल की कोई पेंटिंग थी। पेंटिंग की रेखाओं से उसे कोई भयावह शक्ल बनती नज़र आ रही थी। रेशमा पर उसे बेहद गुस्सा आया। उसी ने यह पेंटिंग कहीं से लाकर उसे दी थी।

कुछ देर बाद फिर से तीन दस्तक उस दरवाजे पर हुए। दस्तक देने का ढंग बिल्कुल रेशमा जैसा ही था। और कोई दूसरा वक्त होता तो वह दरवाजा खोलने में तनिक भी देर नहीं करता, पर इस वक्त खोलने का मतलब था अपनी जान से हाथ गँवाना। राम मुहम्मद सिंह ने टैक्सी बिल्कुल उसके पीछे ही रोकी थी। रोकी क्या थी, वह मुझ पर टैक्सी चढ़ाकर मुझे कुचल देना चाहता था। उसने मन ही मन कहा, भला हो उस फुटपाथ का जो सड़क से कुछ ऊँचाई पर वहीं पास ही था और ब्रेक की चिचियाहट के साथ-साथ वह मशीनी गति से उस पर चढ़ गया था। ठीक वैसा ही या कहें कि उससे कहीं बड़ा चाकू लेकर वह उसके पीछे दौड़ा होगा। रास्ते में लोग किस तरह डर के मारे एक ओर हुए जा रहे थे, पर बिना मोजे के जूतों में भी वह कितनी तेजी से दौड़ आया। बस कुछ ही हाथ का फासला रहा होगा वरना वह चाकू अब तक मेरी पीठ में धँस चुका होता।’

एक तेज गति के चलचित्र की तरह उसके दिमाग में कुछ देर पहले की सारी घटना गड्डमड्ड हो रही थी। कभी कुछ सामने आता, कभी कुछ। मानो चलचित्र की फिल्म टुकड़े-टुकड़े कहीं पड़ी हो और वह उन्हें एक-एक कर देख रहा हो। इन टुकड़ों में उसने अपने मोजे भी ढूँढने की एक असफल कोशिश की।

‘‘दरवाजा क्यों नहीं खोल रहे?’’ फिर से दस्तक हुई। उसे लगा जैसे रेशमा उसके कानों में फुसफुसा रही है। उसे अपने पाँव में खुजली की हरारत हुई। अपना हाथ वहाँ तक ले जाने के लिए उसने मैजिक-आई से हाथ सरकाया। उसकी उँगलियाँ पाँव पर रेंगने लगीं। आँखें मैजिक-आई पर थीं। बाहर रेशमा का गुलाबी चेहरा रक्तिम हुआ जा रहा था। उसने झट से दरवाजा खोल दिया, पर बाहर कोई नहीं था।

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