Daridra Ashok Gupta द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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Daridra

दरिद्र

प्लांटरूम के बगल वाले कॉरिडोर से जाने वाली लिफ्ट सीधे दूसरे तल पर रूकती है और वहीँ ठीक सामने है कमरा नंबर दो सौ आठ, जिसमें मिसेज़ अरुंधती देशपांडे बैठती हैं.

नहीं.. यह कमरा अकेले अरुंधती देशपांडे का नहीं है. रिसर्च डिवीज़न के तीन और लोग भी इसी कमरे में हैं. यानी.. विनायक घोषाल, मिसेज़ कुमुदिनी सहगल और अरुण कपूर. इन लोगों से भी अगर मुलाकात करनी हो तो इसी कमरा नंबर दो सौ आठ में आना होगा.

यह चार प्राणी, जो देश की बड़ी फार्मास्युटिकल कंपनी के चार खम्भे माने जाते हैं, इसी कमरे में बैठते हैं. इसी तल पर कंप्यूटर कंट्रोल का केन्द्रीय सेल है और यहाँ तक किसी दूसरे विंग की लिफ्ट नहीं पहुँचती. ज़ाहिर है कि यह तल बेहद गोपनीय और महत्वपूर्ण जानकारी का सुरक्षित भण्डार है. नई दवाओं के खोज संबंधी प्रयोग और उनकी रिपोर्ट देश भर से सीधे यहीं आती है, और यहीं उनके परिणामों की गहरी छानबीन होती है. इसी तल पर आने वाले नए उत्पादों का भविष्य तय होता है.

यहाँ इन चारों में कोई किसी का बौस नहीं है. सब अपने अपने प्रोजेक्ट्स पर स्वतंत्र रूप से काम करते हैं. मिसेज़ अरुंधती सबसे सीनियर है. यहाँ आने से पहले सात साल उन्होंने अमरीका में बिताये हैं. यहाँ भी उनका अमरीका जाना साल में एक दो बार हो ही जाता है.

अरुण, विनायक और मिसेज़ सहगल भी अपने काम में कमतर नहीं हैं, तभी तो इनके कमरे का एयर कंडीशनर सबसे बढ़िया है. कमरा पूरी तरह साउंड प्रूफ है इस तरह बाहर का कोई शोर इस कमरे में प्रतिबंधित है. सबने अपने अपने इन्तेर्कौम की घंटी एक दम धीमीं कर रखी है.सबके कंप्यूटर के प्रिंटर अत्याधुनिक हैं जो जरा भी चूँ किये बगैर अपना काम किये चलते हैं.

ऊपर का सारा ब्यौरा एकदम सच है, लेकिन यह कहना ज़रा भी सच नहीं है कि इस कमरा नंबर दो सौ आठ में एकदम चुप सन्नाटे का माहौल है.सच तो यह है कि इसकी चारों मेजों पर अपने अपने शोर का भरपूर समुद्र है.और उसमें शोर की सिर्फ लहरें ही नहीं हैं, बल्कि ज्वार-भाटा भी आते हैं.

विनायक घोषाल जितना फार्मास्युटिकल में उतरा है, उतना ही गहरा नशा उस पर ज्योतिष का सवार है. वह ग्रहों की चाल, शनि, सूर्य या ब्रहस्पति, इन सब का रहस्य भी बताता है. पुराण कथाओं का तो भण्डार है उसके पास. अभी पांच मिनट पहले ही वह बता रहा था कि जब धर्म युद्ध जीत कर पांडव स्वर्ग पहुंचे तो भाइयों की हत्या का आरोप सुना कर उन्हें स्वर्गवंचित कर दिया गया. फिर किसी नें सुझाया कि पांडव शिव से मिलें, वही उनकी व्यवस्था स्वर्ग में करा सकते हैं. शिव के लिए यह संभव तो था लेकिन वह इस रिस्क भरे निर्णय से बचना चाहते थे. उन्हों नें तुरंत एक भैंस का रूप धरा और नदी पहाड़ और न जाने कहाँ छिपते फिरे. पांडव भी उनकी खोज में कम नहीं थे. उन्होंने नदी में एक जगह भैंस का कूबड़ देखा और पहचान गये और शिव को धर पकड़ा. आज का केदारनाथ वही जगह है.

विनायक जब शुरू हुआ तो मिसेज़ सहगल कूद कर उसके पास पहुँच गईं और बताने लगीं कि अपनें बुढऊ के चलते तो वह केदारनाथ कभी नहीं पहुँच पातीं. वह तो अरुण का साथ मिला तो यह अरमान पूरा हुआ. ऐसे मौकों पर विनायक चुटकी लेता है,

" अपना अरुण अरमान पूरे करने में कभी नहीं चूकता है, देखिये और भी कितने अरमान पूरे किये हैं इसनें..."

उस पल मिसेज़ सहगल शरमा कर रह जातीं और अपने काम में और डूब जाता अरुण. मिसेज़ सहगल के समुद्र में उनके सात बरस के दाम्पत्य और चौंतीस बरस के जीवन अनुभव का ज्वार ठाठें मारता.. वह अपने पति को बुढऊ संबोधित करतीं और खुद अपने बारे में उनका गुमान छलकता कि वह बेहद बोल्ड हैं. तभी तो जब अरुण अपनें ई मेल बाक्स में आई हुई संभोगरत जोड़ों की तस्वीरें स्क्रीन पर सरसराते हुए देखता तो उसे वहीँ रूक देतीं मैडम कुमुदनी सहगल,

" होल्ड इट यार... जरा देखनें तो दो ढंग से, और दोनों उन तस्वीरों को देखते रहते.

अभी उस दिन ऎसी ही एक मुद्रा को देख कर कहा था मिसेज़ सहगल नें,

" क्या सचमुच ऐसे हो पाना मुमकिन है ?"

" क्यों नहीं, ठीक है, इस वीक एंड पर ट्राई करूंगा, या फिर..."

फिर गुलाबी हो आया था मेसेज सहगल का चेहरा.. विनायक उस समय कमरे में नहीं था और उन्माद के उस पल में उन्होंने अपने कंप्यूटर पर काम करती मिसेज़ अरुंधती देशपांडे को अनदेखा कर दिया था.

" उफ़... कितना इंज्वाय कर रही है यह लेडी.." स्क्रीन पर नज़रें टिकाये यकायक मिसेज़ सहगल के मुहं से निकला था, और एक भरपूर अंगडाई ली थी उन्होंने, वहीं, अरुण कपूर के सामनें.

उनकी अंगडाई में भी एक शोर था.

अरुन्धती देशपाण्डे कि मेज़ से भी यदाकदा शोर उठता था. शोर उनके भीतर से भी उठाता था, बेआवाज़, और किंचित बाहर से भी.. भीतर से इसलिए कि उन्हें इस कमरे का माहौल बेहद आपत्तिजनक लगता था, निहायत छिछला और अनप्रोफेशनल. अरुण से तो उन्हें बेहद उल्झन होती थी क्योंकि उसके पास अपनी बेहूदा गधा पचीसी के अलावा शेयर और इन्वेस्टमेन्ट वगैरह का अनर्गल धन्धा भी कम नहीं था. उपर से लगातार चल्त येह तिकडम, कि किसे इस बरस प्रमोशन मिलनें का चान्स है और किस चाल से उसे काटा जा सकता है..डायरेक्टर्स में किसके कान कच्चे हैं जो भरे जा सकते हैं..न कुछ तो कन्ट्रोल रूम में किसी तरह जुगाड लगा कर उसका डाटा बैंक उड़ा दो, डूब जाएगा साला.. अरुन्धती का बाहर का शोर उसके टेलीफोन से आता था, हर रोज, दिन में एक बार, जब वह अपनी बेटी से बात कार्ति थी. उसके स्कूल होमवर्क में मदद, दवाई खानी है इसकी हिदायत या यूं ही. यह बातचीत करीब पांच एक मिनट की होती थी, लेकिन होती थी ज़रूर.. बाकी समय अरुन्धती अपने काम में डूबी होती थी, दूसरों की तरह कॉफी की तलब भी उन्हें कैन्टीन की तरफ नहीं खींचती थी

यह जो मैनें बताया वह इस कमरे का ऐलानिया माहौल है. इस के अलावा बहुत कुछ खुफ़िया भी घटता रहता था इस कमरा नम्बर दो सौ आठ में. सचमुच कहाँ पता चल सकता था आसनी से कि वहाँ अरुण, मिसेज़ सह्गल और विनायक घोष एक पाले में हैं और अकेली अरुन्धती दूसरे पाले में.. तीनों की आँख में चुभती हुई. ..

उमर में करीब पैंतालिस की अरुन्धती, बत्तीस की मिसेज़ सह्गल और दोनो लड़के बस, तीस के आस पास. अरुन्धती अमरीका के तक्नीकी कामकाजी माहौल में ढली महाराष्ट्र की एक घरेलू महिला, ग्रेड में सबसे सीनियर और बाकी तीनों मंझोले परिवार परिवेश में जन्मे पले, किंचित मेधावी और भाग्यशाली लोग जो यहाँ इस संस्थान में हुए तो पांचतारा हो गए, वर्ना वही निन्दा पुराण इनका सुख और प्रपंच इनकी संस्कृति... कुमुदनी सह्गल को अक्सर अरुन्धती के इस कमरे में होने से कई कारणों से असुविधा होती... अरुण अक्सर अपने किस्म के जोक सुनाते सुनाते, अरुन्धती पर नज़र पड़ते ही ठिठक जाता, और विनायक से तो कहाँ ही था अरुन्धती नें एक बार,

" घोष, तुम क्यों डराते हो इन्हें बेकार में अपने शनि ब्रहस्पति से... और इक्कीसवीं सदी में भी यह सब इनके चक्करों में पड़े रह्ते हैं.. और अगर सचमुच डर है इनका, तो फिर अपनें कर्म ऐसे रखो जो निडर बनाए रखें.. या तो डरें नहीं, या डर है तो आचरण ठीक रखें.. क्या मैने गलत कहाँ मिस्टर विनायक..?"

वह दिन खास था जब मिसेज़ अरुन्धती छुट्टी पर थीं

और अगले ही दो दिन बाद बोर्ड की सालाना मीटिंग होनी थी. उस दिन तीनों जनों ने सिर जोड कर मन्त्रणा की थी.

" कुछ प्वाइंट बना कर इरफान साहब के कान भरो कि यह देशपाण्डे इस कमरे से चलता की जाय... या भार्गव साहब को ही कुछ उल्टा सीधा पढ़ाओ.."

" मुश्किल है.." घोष का संशय था. " तीन बडे प्रोजेक्ट्स की प्रोग्रामिंग इसी के पास है, जो सीधे चिदम्बरम देख रहा है और वही सबका चीफ़ है.. तीनों वाइस प्रेसिडेन्ट इसके काम पर भरोसा रखने वाले हैं. ..."

...

" .. लेकिन कोशिश कर के देख्नें में क्या हर्ज़ है..? इरफान साहब से बात कर सकते हैं..."

ठीक मीटिंग वाले दिन मिसेज़ अरुन्धती देशपाण्डे छुट्टी से लौटीं. तब तक तीनों अपनी गोट चल चुके थे और बुलबुला फूटनें का इन्तजार कर रहे थे.

कॉफी ब्रेक के दौरान चिदम्बरम साहब अचानक कमरा नम्बर दो सौ आठ में आए. उस समय अरुन्धती फोन पर थीं और अपनी बेटी को कुछ समझा रही थीं.

चिदम्बरम साहब के कमरे में आते ही अरुण, विनायक और कुमुदिनी सह्गल नें एक दूसरे को कनखियों से देखा और चिदम्बरम साहब नें इस देख्नें को नोट भी कर लिया.

ठीक अरुन्धती के सामने एक कुर्सी पर वैठ गए चिदम्बरम और अरुन्धती नें संक्षेप में बात खतम कर के फोन बन्द कर दिया.

".... और मेडम देश पाण्डे, क्या चल रहा है.. सब ठीक तो है न घर पर ?"

" यस सर, बेटी का फोन था. दरिंदा शब्द का अर्थ पूच्छ रही थी. "

" दरिंदा.. दरिंदा क्या माने..?"

" इसका मतलब है खतरनाक जंगली जानवर." मेसेज सह्गल नें जवाब दिया. " हैं न मिसेज़ देशपाण्डे, यहि तो बताया था न आपने अभी"

" इन्टेरेस्टिंग... और क्या पूछ रही थी आपकी बेटी ?"

हंसी अरुन्धती.

" बहुत सवाल करती है सर. पूछ रही थी कि दरिंदा और दरिद्र दोनो का एक ही मतलब होता है क्या मम्मी ..?

" तो क्या बताय आपनें मेडम.."

" उसे क्या बताती, लेकिन जाने तो अभी जान ले यही ठीक है. "

"क्या.."

" यही कि एक ही होता है. दरिद्रता चाहे आर्थिक हो या मानसिक, दरिंदगी उसकी एक हद होती है. क्या मैनें गलत कहाँ सर..?"

किंचित मुस्काए मिस्टर चिदम्बरम और उठ खडे हुए. जाते जाते उन्होनें तीनों को बेहद तीखी नज़रों से देखा ओत इत्मिनान से कमरे के बाहर चले गए.

उनकी इन्क्वायरी पूरी ही गई थी. मन ही मन उन्होनें खुद से कहा,

" नो..मिसेज़ अरुन्धती देश पाण्डे कहीं शिफ्ट नहीं होंगी.. उनका यहाँ होना अब और भी ज़रूरी है. "

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