किताब
पिछले कुछ दिनों से वह अपने जीवन से काफी मायूस हो चला था। साला! यह भी कोई जीवन है। सुबह उठो, बच्चे को स्कूल बस में बिठाने ले जाओ, फिर आओ, नहाओ-खाओ और दफ्तर के लिए चल दो। बस स्टैंड पर वही मारामारी, धक्कामुक्की। किसी तरह लद-फद के ऑफिस पहुंचो और वहां भी कम्प्यूटर पर खटर-पटर करते रहो। फिर शाम में मुंह लटकाए चले आओ। आते ही बच्चा तैयार कि होमवर्क कराओ या परीक्षा की तैयारी कराओ। फिर यह सब करते-कराते खाने का समय... टीवी पर न्यूज या कुछ सीरियल देखते हुए खाना, फिर सो जाना। सुबह फिर वही। छुटट्ी के दिन एक तो सुबह जल्दी उठने का जी नहीं करता। उठने के बाद पत्नी और बच्चे की फरमाइश पहले से तैयार रहती है कि यहां चलना है वहां जाना है फलां से मिलने।
उसे लगता है कि पिछले कुछ समय से जिंदगी में उसकी मर्जी का कुछ भी नहीं हो रहा। वह तो बस दूसरों के लिए जी रहा है। अरे थोड़ा तो स्पेस हो अपने लिए भी...कुछ तो अलग हो। नहीं, इस तरह वह सरेंडर नहीं करेगा। बहुत समझौते किए उसने जिंदगी में। अगर यही सिलसिला चलता रहा तो वह जीवन से ऊब जाएगा पूरी तरह। अपने लिए जगह तो निकालनी ही होगी। क्यों न अपने पुराने शहर हो आया जाए। लेकिन फिर अपने घरेलू बजट का ख्याल आ गया। बेटे की परीक्षा भी बाधित हो सकती है। बाद में यह विकल्प आजमाया जाएगा। क्यों न अच्छी, मनपसंद फिल्में देखी जाएं। फिर वही बजट की अड़चन, समय का अभाव...। नाटक देखे जाएं। लेकिन दफ्तर से नाटक देखने जाने और फिर लौटने में दस तरह की दिक्कतें हैं। खैर, एक तात्कालिक रास्ता है कि किताबें पढ़ी जाएं। हां, फिलहाल यह तो हो ही सकता है।
उसे पुराने दिन याद आ गए। खूब साहित्य पढ़ा करता था वह। इतिहास का छात्र होने के बावजूद कहानी और उपन्यासों में गहरी रुचि थी उसकी। कई अच्छे उपन्यास पढ़ डाले थे उसने। कॉलेज के दिनों में किताबों के कारण ही उसकी एक सीरियस छवि थी। लेकिन नौकरी के लिए महानगर में आने के बाद पढ़ना धीरे-धीरे खत्म हो गया। धीरे-धीरे वह यह भूल भी गया कि कभी किताबें उसके जीवन का अभिन्न हिस्सा थीं।
...नहीं उसके भीतर जो अशांति है, जो बेचैनी है, वह किताबों से बढ़ती दूरी के कारण ही पैदा हुई है। उसकी आत्मा को खुराक की जरूरत है और वह कोई किताब ही दे सकती है। और वह एक किताब ले आया। पहले उसने सोचा था कि कोई नई किताब खरीदी जाए। लेकिन फिर सोचा क्यों पैसे खर्च किए जाएं। पढ़ना ही तो है, मांग के भी लायी जा सकती है। उसे याद था कि कुछ दिनों पहले उसने दफ्तर के एक सज्जन के हाथ में एक किताब देखी थी। बातचीत में पता चला कि वह भी कभी-कभार कुछ लिख-पढ़ लेते हैं। उन्हीं से उसने वह किताब मांगी। वह एक कहानी संग्रह था। उसने तय किया कि बीच-बीच में समय निकालकर कहानियां पढ़ता रहेगा।
दफ्तर से आया तो उसने बैग से निकालकर टेबल पर किताब रख दी। सोचा कि सोने से पहले किताब पढ़ने की शुरुआत करेगा। जब बिस्तर पर गया तो उसने किताब उठाई। लेटकर पढ़ने का अभ्यास छूट गया था। सो थोड़ी दिक्कत हुई। प्रस्तावना पढ़ने की शुरुआत की तो अचानक आंखों में जलन सी महसूस हुई। दो-तीन पंक्तियां पढ़ते ही सिर में दर्द होने लगा। उसने सोचा इस वक्त पढ़ना मुश्किल है। कल वह जल्दी उठेगा तो बाथरूम में पढ़ेगा। यह सोचकर वह सो गया। सुबह देर से नींद खुली। पत्नी ने झकझोरकर उठाया। उसने देखा उसका बच्चा तैयार हो चुका था। वह जल्दी-जल्दी उसे लेकर नीचे आया। उसे छोड़कर आते ही उसने रोज की तरह अखबार उठाया और टॉयलेट में घुस गया। अखबार में होम लोन की ब्याज दर बढ़ने की खबर थी जिसे पढ़ते ही वह कांप उठा। होम लोन पर रेट बढ़ने का मतलब था उसके मकान की मासिक किस्त का बढ़ना यानी उसके पूरे बजट का गड़बड़ाना। यह इसी चिंता में बाहर निकला और थोड़ी देर में तैयार होने लगा। वह किताब के बारे में भूल गया।
शाम में घर लौटने के बाद उसने ज्यों ही टेबल पर घड़ी खोलकर रखी उसकी नजर किताब पर पड़ी। उसने सोचा अभी तुरत एक कहानी पढ़ ली जाए। फ्रेश होकर लौटा तो घर से फोन आ गया। पता चला कि उसके पिताजी बीमार हो गए हैं। वह उन्हें यहां लाने और इलाज कराने के बारे में सोचने लगा। उसने यह सोचते हुए उस किताब की ओर देखा। किताब टेबल पर पड़ी जैसे उसका इंतजार कर रही थी। किताब के एक ओर उसकी घड़ी रखी थी और दूसरी ओर उसका परिचय पत्र। उसने किताब उठा ली। ज्यों ही उसे खोलने को हुआ, पत्नी आ गई और घर से आए फोन के बारे में पूछने लगी। बातचीत में खाने का समय हो गया। एक बार फिर वह किताब नहीं पढ़ सका। इसी तरह तीन दिन निकल गए। हर बार वह योजना बनाता और कोई न कोई बाधा खड़ी हो जाती। वह सोचने लगता कि आखिर कौन सा सही और उपयुक्त समय है जब वह उस किताब को पढ़ सकता है। अक्सर ऐसा होता था कि बीच रात में उसकी नींद खुल जाती थी। उसने सोचा अब जब वह जगेगा, एक कहानी पढ़ डालेगा। मगर अब ऐसा नहीं हुआ। उसकी नींद खुली ही नहीं। उसने तय किया कि इस बार इतवार को जरूर इस किताब को पढ़ना जरूर शुरू कर देगा।
संडे को सुबह उसकी नींद खुली तो उसने देखा उसकी पत्नी और बच्चे अभी उठे नहीं हैं। यह अच्छा मौका है। उसने सोचा क्यों न अभी पढ़ डाली जाए। वह किताब उठाकर बाथरूम में घुसा। लेकिन तभी लाइट चली गई। बाहर थोड़ी धुंध थी इसलिए अंदर रोशनी नहीं आ पा रही थी। उसमें पढ़ना नामुमकिन था। वह किताब लेकर बाहर आ गया। तब तक पत्नी जाग चुकी थी और उसने बताया कि गैस खत्म हो चुकी है। उसके बाद एक लंबा समय सिलेंडर के इंतजाम में बीता और आखिरकार उस दिन भी वह पढ़ नहीं पाया। उस दिन उसने किताब खिड़की पर रख दी थी। अगले दो दिनों तक फिर कुछ ऐसी ही व्यस्तता रही कि उसे किताब का ध्यान तक नहीं रहा। तीसरे दिन दफ्तर में देर तक रुकना पड़ा और वह थककर चूर घर लौटा। आते ही किताब पर उसकी नजर पड़ी। उस पर काफी धूल जम चुकी थी। जी में आया कि सबसे पहले उसे साफ करे फिर कोई काम करे पर साहस न जुटा सका। थक कर सो गया। अगले दिन फिर ऐसा ही हुआ। दफ्तर जाने के पहले उसकी नजर किताब पर पड़ी उसने सोचा धूल हटा दे लेकिन तभी ख्याल आया कि अगर और देर हुई तो अगली बस एक घंटा बाद मिलेगी। वह किताब को उसी हाल में छोड़कर निकल पड़ा।
शाम को जब घर आया तो एक बार फिर उसे किताब की सुध न रही। उस रात एक अजीब घटना घटी। आधी रात को अचानक उसकी नींद टूटी। एक अजीब सी आवाज खिड़की से आ रही थी। उसने उस ओर अंधेरे में देखने की कोशिश की। ऐसा लग रहा था कि कोई चिड़िया पंख फड़फड़ाकर उड़ने की कोशिश कर रही हो। वह समझ गया कि यह आवाज किताब से आ रही है। उसे लगा कि किताब खुल गई है। फिर पलक झपकते ही उसमें से कुछ लोग बाहर कूदे। ऐसा लग रहा था जैसे वे धूल भरे किसी गड्ढे से निकलकर आए हों। वे सारे लोग उसे घेरकर खड़े हो गए। एक ने उसके सिर पर हाथ फेरा। दूसरा उसकी नब्ज टटोलने लगा। तीसरे ने जेब से थर्मामीटर निकाला। चौथा एक गीली पट्टी तैयार करने लगा। वे लोग आपस में फुसफुसा कर बात कर रहे थे। उसने सुनने की कोशिश की पर कुछ समझ में नहीं आया।
वे दरअसल उस किताब में संकलित कहानियों के पात्र थे जो इस बात पर मंत्रणा कर रहे थे कि उसे किस अस्पताल में भर्ती कराया जाए।