Uska Sapna Sanjay Kundan द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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Uska Sapna

उसका सपना

संजय कुंदन

आंख खुलते ही सौरभ बिस्तर से कूदा। वह चहकता हुआ किचन में आया जहां उसकी पत्नी सुनयना चाय चढ़ा रही थी।

‘अरे यार, कमाल हो गया।’ सौरभ जोर से बोला।

‘क्या हुआ?’ सुनयना ने उसकी ओर बिना देखे कहा।

‘मिल गया, मिल गया वही जो मैं पिछले कुछ दिनों से खोज रहा था। बिल्कुल एकदम वही आइडिया जो मैं चाह रहा था। ’

‘क्या कह रहे हो तुम?’ सुनयना ने जम्हाई ली।

‘जानती हो मैंने सपने में क्या देखा। एक आदमी अपने घर के सामने खड़ा है। उसने रिमोट निकाला और उसे अपने घर की तरफ करके स्विच दबाया। उसका घर धीरे-धीरे सिकुड़ने लगा फिर वह एकदम छोटा गया कुछ-कुछ स्लिपिंग बैग की तरह। उसने उसे अटैची में रखा और चल पड़ा दफ्तर। है न कमाल का आइडिया।’

सुनयना चाय चढ़ाकर कमरे में आई। सौरभ भी पीछे-पीछे आया। वह उसी रौ में कहता गया, ‘यह कितना अच्छा विज्ञापन है। है न। मैं पिछले कई दिनों से इस पर माथा खपा रहा था पर आज यह सूझ गया।’

‘मैं कुछ समझ नहीं सकी।’

‘देखो, यह एक बिल्डर का विज्ञापन है। यह बता रहा है कि आपका घर बिल्कुल आपकी मर्जी का है एकदम आपकी इच्छाओं के मुताबिक। मेरा बॉस कुछ ऐसा ही यूनिक आइडिया चाह रहा था। चलो, सपने में मैंने इसे पा लिया। ग्रेट।’

सौरभ के अतिरिक्त उत्साह पर सुनयना कुछ खास प्रतिक्रिया नहीं दिखा रही थी। उसने बुझे स्वर में कहा, ‘ठीक है तैयार हो जाओ।’

‘बॉस पिछले कुछ दिनों से मुझसे बहुत खुश नहीं था। वह कह रहा था कि मेरा दिमाग बैठता जा रहा है। लेकिन आज मैं बताऊंगा कि वह कितना गलत है।’ सौरभ यह कहता हुआ बाथरूम में घुस गया। आज वह काफी उत्साह से दफ्तर गया। दफ्तर पहुंचने के थोड़े ही देर उसने सुनयना को फोन पर लगभग चीखते हुए बताया, ‘यार मैंने बताया था न कि यह आइडिया उसे बहुत पसंद आएगा। लेकिन मैंने उसे यह नहीं बताया कि यह मुझे सपने में आया है।’

इस बार सुनयना ने प्रसन्न होकर कहा, ‘चलो यह तो बहुत अच्छा है।’

दूसरे दिन भी ऐसी ही घटना घटी। सौरभ की नींद एक आइडिया के साथ खुली। उसने दौड़कर सुनयना को इसकी जानकारी दी, ‘अरे यार आज फिर मैंने एक अजीब सपना देखा। मैंने देखा कि एक ड्रैगन उड़ता चला आ रहा है तभी एक छोटा प्यारा सा हाथी दौड़ता हुआ आया और उसने ड्रैगन को खदेड़ना शुरू किया। फिर ड्रैगन हांफता हुआ लेट गया और हाथी ने सूंड़ ऊपर उठा लिया। यहां ड्रैगन चीन का प्रतीक है और हाथी भारत का। भारत जीत गया। हम दरअसल एक खिलौना कंपनी का विज्ञापन बना रहे हैं। ज्यों ही हाथी जीतेगा एक छोटा बच्चा आएगा और ताली बजाएगा। आज बॉस को मैं यह सब बताऊंगा।’

सौरभ फिर उसी जोश के साथ दफ्तर गया। कुछ देर बाद सुनयना ने सोचा कि कल की तरह ही वह आज भी फोन कर सकता है और ऐसा ही हुआ। कल वाले समय पर उसका फोन आ गया। सौरभ की आवाज में वही खनक थी, ‘यार यह आइडिया भी बॉस को पसंद आ गया। उसमें थोड़ा सा चेंज करेंगे। आज मैं देर से आऊंगा। बॉस पार्टी देने वाला है।’

रात में जब वह लौटा तो काफी रोमांचित था। उसने उससे फुसफुसाते हुए कहा ‘ मेरे भीतर कोई पावर तो नहीं आ गया है? कोई रहस्यमय शक्ति? वह एक फिल्म देखी थी न हमने क्या नाम था उसका... जिसमें हीरोइन को हर आने वाली घटना की जानकारी सपने में मिल जाती है। कहीं ऐसा तो नहीं कि अब हर आइडिया अब मुझे सपने में मिला करेगा।’

‘ठीक है सो जाओ’, सुनयना ने उसे एक थपकी देते हुए कहा। पर सौरभ काफी देर तक सो नहीं सका। बार-बार सपने की बात दोहराता रहा। सुबह जब सौरभ उठा तो सुनयना ने उसे उत्सुक नजरों से देखा। सौरभ ने आंखें मलते हुए कहा ‘आज का सपना तो कुछ अलग है। मैंने देखा कि मैं बॉस के साथ किसी साइट पर गया हूं। वहां मैंने उसे एक सलाह दी है। मैंने उससे कहा है कि वह ऑटोमोबाइल की एक मैगजीन निकाले और उसने मान भी लिया। वह तैयार हो गया। क्या यह भी सच होगा? आज मैं उसे यह एडवाइज देता हूं। अगर वह मान गया तो समझ लो मैं वाकई एक चमत्कारिक व्यक्ति बन गया हूं। काश सपने में मुझे रोज इसी तरह के आइडियाज आएं।’

‘ ठीक है तैयार हो जाओ’, सुनयना ने कहा। वह सौरभ की बातों में कोई खास रुचि नहीं ले रही थी।

‘क्यों तुम्हें यह सब एक्साइटिंग नहीं लग रहा है।’ सौरभ ने पूछा।

सुनयना ने कोई जवाब नहीं दिया। वह चाय का पानी चढ़ाने लगी। सौरभ ने फिर कहा,‘ मेरी जिंदगी में ऐसे मोमेंट कभी नहीं आए।’

‘रीयली?’ सुनयना ने घूरते हुए पूछा और टोस्टर का प्लग लगाने लगी।

‘क्यों? तुम्हें ऐसा महसूस नहीं होता।’

‘तुम्हें क्या हो गया है सौरभ? ’

‘क्यों?’ सौरभ कुछ समझ नहीं सका।

‘तुम्हें क्या लगता है यह सब जो हो रहा है वह बड़ी अच्छी बात है? तुम जिसे चमत्कार समझ रहे हो वह तुम्हारी बहुत बड़ी हार है। तुम इसकी क्राइसिस को देख नहीं पा रहे हो।’ यह कहकर सुनयना ने टोस्टर का प्लग ऑफ कर दिया।

सौरभ कुछ देर सुनयना को देखता रहा। फिर उसने कहा, ‘मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूं।’

‘हां, वाकई तुम कुछ समझ नहीं पा रहे हो।’

‘अरे यार इसमें प्रॉब्लम क्या है?’

‘क्या तुम्हें इस बात का अहसास है कि तुम कहीं के नहीं रहे। तुम्हारा सारा वक्त तुम्हारी हंसी-खुशी पहले ही छिन गई थी। अब तो तुम्हारा सपना भी छिन गया। एक सपना ही तो तुम्हारा अपना था इस जिंदगी में, वह भी अपना न रहा। क्या तुम्हारी जिंदगी में अब विज्ञापन, आइडियाज और बॉस के अलावा और कुछ रह गया है? क्या तुम यह भूल चुके हो कि तुम्हारी एक अपनी भी लाइफ है।’

सौरभ जैसे आसमान से गिरा। उसने तो इस एंगल से सोचा ही नहीं। सुनयना कहे जा रही थी, ‘तुम्हें याद है पहले तुम क्या सपने देखते थे। तुम अपने घर को देखते थे। अपने लोगों को देखते थे। याद है एक बार तुमने देखा था कि पिताजी बीमार हैं। तुमने घर फोन किया तो पता चला वे वास्तव में अस्वस्थ हैं। तुम अक्सर देखते थे कि तुम और मैं कहीं उड़कर जा रहे हैं। मैं सोचकर संतोष करती थी कि तुम मुझे वैसे भले समय न दो पर सपने में तो मेरे साथ रहते हो। पर अब तुम सिर्फ बॉस को देखते हो। उसे खुश करने में लगे रहते हो। यही तो चाहता है तुम्हारा बॉस कि तुम सिर्फ उसके होकर रहो। मतलब यह कि तुम रात-दिन एक प्रोफेशनल बन कर रहो इंसान बनकर नहीं। आखिर जीवन में कुछ तो तुम्हारा अपना हो, क्या तुम्हारे सपने पर भी तुम्हारा कोई हक नहीं।’ यह कहते हुए सुनयना का चेहरा तमतमा गया। वह चुपचाप टोस्ट और चाय निकलाकर ले आई।

सौरभ को कोई जवाब नहीं सूझ रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे उसके भीतर बह रही एक धारा को किसी ने अचानक रोक दिया हो। कुछ जमने सा लगा था उसके भीतर। सुनयना की बातों में उसे सच नजर आ रहा था। वह सुनयना से नजर नहीं मिला पा रहा था। आज वह भारी मन से दफ्तर के लिए निकला। उसने बॉस से सपने के बारे में कोई बात नहीं की।

शाम में घर लौटने के बाद वह गुमसुम बैठा रहा। सुनयना भी अपने में बंद-बंद रही। रात होते ही सौरभ को एक अजीब सी बेचैनी सताने लगी। वह देर तक टीवी खोले बैठा रहा। खाना खाने के बाद भी वह इधर-उधर टहलता रहा। बालकनी में जाकर खड़ा हो गया और आकाश की ओर देखता रहा। ज्यों-ज्यों नींद आ रही थी, उसके भीतर एक आतंक सा पसरता जा रहा था। आखिरकार सुनयना ने चुप्पी तोड़ी ‘तुम सो क्यों नहीं रहे हो।’

‘मुझे नींद नहीं आ रही।’

‘झूठ मत बोलो तुम्हारी आंखें तो नींद से लाल हुई जा रही हैं।’ यह कहकर सुनयना उसका हाथ पकड़कर कमरे में ले आई।

‘सो जाओ चुपचाप। ’ सुनयना ने आदेश के स्वर में कहा।

सौरभ को लगा जैसे उसका दम घुटने लगा हो। वह उठकर खड़ा हो गया,‘ मैं सो नहीं पाऊंगा।’

‘मैं सुला देती हूं।’ सुनयना ने उसे अपनी ओर खींच लिया। तभी सौरभ की आंखों में आंसू आ गए, ‘सुनयना, क्या मैं सचमुच बदल गया हूं?’

‘छोड़ो इन बातों को।’ सुनयना उसके सिर पर हाथ फेरने लगी। सौरभ की आंखों से आंसू गिरते रहे। थोड़ी देर में उसकी आंखें बंद हो गईं। उस रात उसे कोई सपना नहीं आया।

…..