Niveshak Sanjay Kundan द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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Niveshak

निवेशक

संजय कुंदन

फूलन सिंह ने अखबार से मुंह निकाला तो देखा कि उनकी बेटी पूजा तैयार हो चुकी है। वह हड़बड़ाकर उठे। उन्होंने पूजा से कहा, ‘एक मिनट रूको। हम भी जरा तैयार हो जाएं।’

‘क्यों?’ पूजा ने कहा। वह झुक कर बेड के नीचे अपनी सैंडल ढूंढ रही थी। फूलन सिंह को समझ में नहीं आया कि पूजा ने ऐसा क्यों कहा। उन्होंने जल्दी से अलमारी खोलकर अपनी पैंट निकाली। पूजा ने सैंडल पहनते हुए कहा, ‘पापा आप तैयार मत होइए। मैं अकेले चली जाऊंगी।’

‘क्या बात कर रही हो?’ फूलन सिंह जल्दी-जल्दी कपड़े बदलने लगे। यह देखकर पूजा और चिढ़ गई, ‘पापा आपको जाने की जरूरत नहीं है।’

फूलन सिंह बोले, ‘अरे तुम अकेले कैसे जा पाओगी। हम तुमको पहुंचा के आ जाएंगे।’

‘अगर आप जाएंगे तो मैं नहीं जाऊंगी।’ वह तुनककर बिछावन पर बैठ गई।

फूलन सिंह ने कहा, ‘अरे इसमें क्या दिक्कत है बेटा।’

पूजा ने कहा, ‘हमारे इंस्टीट्यूट में तो मेरठ तक से लड़कियां अकेले आती हैं, मैं क्या लक्ष्मी नगर भी नहीं जा सकती। वैसे भी हमने रास्ता तो देख ही लिया है। अब आप इतना दिन गए न, बहुत हुआ।’

फूलन सिंह को कोई जवाब नहीं सूझा। वह किचन की तरफ देखने लगे। उन्हें उम्मीद थी कि उनकी पत्नी रमा आकर उनका सपोर्ट करेगी और दोनों मिलकर पूजा पर दबाव बना देंगे। लेकिन रमा वहां नहीं थी। वह छत पर कपड़े फैलाने गई थी शायद। फूलन सिंह पूजा के साथ उसे छोडऩे जाने का कोई मजबूत तर्क ढूंढना चाहते थे। पर उन्हें मिल नहीं पा रहा था। वह मुस्कराते हुए बोले, ‘अरे इसी बहाने थोड़ा हम भी घूम लेंगे न जी।’ पूजा ने बैग उठाते हुए कहा, ‘आपको घूमने जाना है तो जाइए घूमिए। मुझे जाने दीजिए।’

पूजा झटके से बाहर निकली। फूलन सिंह की छाती धक-धक करने लगी। अरे, यह लडक़ी क्या कर रही है। यह खुद कैसे चली जाएगी। हालांकि यहां की लड़कियां तो अकेले कहां-कहां नहीं चली जातीं। पर उनकी लडक़ी की बात और है। बेचारी एक साल पहले तो गांव से आई है। स्कूल-कॉलेज का ढंग से मुंह तक नहीं देखा है इसने। हमेशा घर में ही बंद रही है। लेकिन अब ये अकेले लक्ष्मीनगर जाने की बात कर रही है। बाप रे बाप। कहीं कुछ हो गया तो....। नहीं-नहीं ऐसे कैसे उसे जाने दें। फूलन सिंह दौड़ते हुए नीचे आए पूजा के पीछे-पीछे। लेकिन तभी उन्हें लगा कि पूजा अगर सबके सामने कुछ कह देगी तो उनकी भरी हंसी होगी। वैसे ही उनका परिवार यहां मजाक का पात्र बना हुआ है। तो क्या करें। पूजा को रोक लें? नहीं एक तरीका है। वह उसे बताए बगैर उसके पीछे-पीछे चलें।

फूलन सिंह धीरे-धीरे उसके पीछे चलने लगे। उन्हें इस बात का डर सता रहा था कि कहीं पूजा पलटकर देख न ले। आज पता नहीं क्या हो गया है इसे?

सचमुच कितना बदल गई है यह लडक़ी। कितना अंतर आ गया है उसके बोलने में, चलने में। क्या यह सब अंग्रेजी का कमाल है? महीना भर हो गए उसे इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स के लिए जाते हुए। उनका दोस्त जितेंद्र उर्फ जानू ठीक ही कहता है कि अंग्रेजी आदमी की जिंदगी बदल देती है। वह मनुष्य को देवता बना देती है। जो अंग्रेजी जान रहा है वह स्वर्ग में है जो नहीं जान रहा है वह नरक में है। सचमुच अंग्रेजी जानते ही आदमी का सब कुछ बदल जाता है। उसमें गजब का साहस आ जाता है। पूजा कैसे फटर-फटर बोलने लगी है। हर बात में उनको जवाब दे देती है। गांव में तो कभी उन्होंने उसकी बोली तक नहीं सुनी। यहां आने के बाद भी वह हाल तक गुमसुम ही रहती थी।

वह कभी-कभार कल्पना करते थे कि पूजा जब बड़ी हो जाएगी तो साड़ी पहने कैसी लगेगी। लेकिन अब तो जीन्स और टॉप पहने वह एकदम अलग ही लगती है। बिल्कुल दिल्ली की लड़कियों की तरह। पूजा के कपड़े, जूते, मोबाइल पर अब तक बीस हजार रुपये से ज्यादा का खर्च हो चुका है। ऊपर से उसे अंग्रेजी सिखाने में भी पचास हजार तक पड़ेगा। लेकिन पूजा पर इतने खर्च के बदले फूलन सिंह को जो मिलने वाला है, उसकी कीमत तो करोड़ों में होगी शायद।

कल ही तो जानू ने कहा था-‘यार पूजा पर तुम जो इन्वेस्ट कर रहे हो उसका कई गुना रिटर्न तुमको मिलनेवाला है।’

तो क्या सचमुच पूजा भी उनके लिए एक प्रॉपर्टी है? जैसे उन्होंने मुनाफे के लिए एक मकान खरीदा, चिंट फंड कंपनी में पैसे लगाए, शेयर बाजार में पैसे डाले... यह सोचते ही उनका मन थोड़़ा बेचैन हुआ। घबराकर उन्होंने सामने देखा तो पूजा कहीं नहीं थी। हे भगवान। तो क्या वह अकेली ही चली गई। उन्हें अपने आप पर गुस्सा आया। पता नहीं वह कहां खो गए थे। अगर रमा सुनेगी कि पूजा अकेली चली गई है तो वह पागल हो जाएगी। क्या करें वह। दौडक़र पहुंच जाएं उसके इंस्टीट्यूट। हो सकता है वह रास्ते में ही कहीं दिख जाए।

वह तेजी से चलने लगे, फिर अचानक उन्होंने खुद को संभाला। वह बेकार ही परेशान हो रहे हैं। कभी तो वह अपने बल पर चलेगी। अरे उसे विदेश जाना है। बड़े लोगों के बीच उठना-बैठना है। इसके लिए उसे कभी न कभी तैयार तो करना ही होगा। वह अगर दस-बारह किलोमीटर अकेले ही चली गई तो क्या दिक्कत है। उसे अकेले छोडऩा ही होगा। यह सोचकर फूलन सिंह रुक गए। फिर वे पान की दुकान की तरफ मुड़ गए।

पूजा को इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स कराने का फैसला करीब डेढ़ महीना पहले जानू के घर पर किया गया था। उस दिन जानू ने उन्हें बताया कि ठाकुर बिरादरी के एक एनआरआई हैं केपी सिंह। वह अपने लिए संस्कारवान सुशील भारतीय बहू (अनिवार्यत: राजपूत) की तलाश में भारत आ रहे हैं। वे जानू के मित्र के मित्र हैं। जानू चाहे तो पूजा की शादी केपी सिंह के बेटे से करा सकता है। बकौल जानू यह एक ऐसा अवसर है जिसे फूलन सिंह को लपक लेना चाहिए। क्योंकि केपी सिंह भारत में कुछ पैसा इन्वेस्ट करना चाहते हैं। अगर फूलन सिंह उनके समधी बन गए तो केपी सिंह उन्हें अपना बिजनेस पार्टनर बना सकते हैं, अपने भारतीय कारोबार का सारा जिम्मा दे सकते हैं।

यह सब बताते हुए जानू ने फूलन सिंह को हमेशा की तरह एक बार फिर खूब सपने दिखाए। जानू का कहना था कि हो सकता है कि अपने समधी के सहारे ही फूलन सिंह रातोंरात बड़े उद्योगपति बन जाएं। उसके बाद उसने दो-चार मिसालें भी दे डालीं। फूलन सिंह एक बार फिर जानू की बातों में आ गए। हालांकि वे तो यह तय करके गए थे कि अब जानू साले के झांसे में नहीं आना है। लेकिन जानू का कहना था कि फूलन सिंह जैसे और सब इन्वेस्टमेंट कर रहे हैं वैसे एक और इन्वेंस्टेमेंट करके देख ही लें। क्या जानें यह दांव चल निकले। आखिर निवेश के क्षेत्र में तो ऐसे ही दांव आजमाए जाते हैं। लेकिन फूलन सिंह ने कुछ बुनियादी समस्याएं रख दीं। आखिर केपी सिंह फूलन सिंह जैसे चिरकुट व्यक्ति के यहां रिश्ता क्यों करेंगे। भारत भूमि पर संपन्न राजपूत ललनाओं की कमी हो गई है क्या? इस पर जानू की दलील थी कि केपी सिंह उसके मित्र की सलाह ही मानेंगे और वह मित्र जानू की बात टालेगा नहीं। फिर एक राज की बात यह है कि एनआरआई लोग मिडल क्लास की लडक़ी को ज्यादा प्रेफर करते हैं। फिर पूजा बिटिया जैसी सुंदर और संस्कारवान लडक़ी और कहां मिलेगी?

लेकिन यहां फिर फूलन सिंह ने आपत्ति पटकी- लेकिन पूजा तो पढ़ी लिखी भी नहीं है। वह थोड़े दिन गांव की पाठशाला गई है। उसने प्राइवेट से मैट्रिक पास किया है। उसे आगे पढ़ाने के बारे में तो वे कुछ तय ही नहीं कर पाए हैं। असल में यहां की फीस और डोनेशन की भारी रकम सुनकर फूलन सिंह के होश उड़ गए थे, इसलिए उन्होंने अपने दो बेटों और दोनों बेटियों की पढ़ाई का मामला अभी स्थगित कर रखा था। लेकिन जानू ने इसका हल निकाला और कहा कि डिग्री से कोई खास फर्क नहीं पड़ता है। डिग्री का तो इंतजाम हो जाएगा। असल चीज है इंग्लिश। आज ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में जो फर्राटेदार अंग्रेजी बोलेगा वही राज करेगा चाहे वह अंगूठा छाप क्यों न हो। इस तरह तय हुआ कि पूजा का इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स में दाखिला करा दिया जाए। वह बस अंग्रेजी बोलना और अंगेजीदां लोगों के चाल-चलन सीख ले तो काम बन जाएगा।

मगर जानू की हिदायत यह भी थी कि अगर किसी एनआरआई का समधी बनना है तो फूलन सिंह को पूजा के साथ-साथ पूरे परिवार का प्रोफाइल बदलना होगा। सबसे पहले तो पूजा को आधुनिक कपड़े, सैंडिल वगैरह पहनाए जाएं। उसे हर दो दिन पर ब्यूटी पार्लर भेजा जाए और जिम भी। उसे हर रोज दूध-अंडे केले वगैरह मिलें। और भाभीजी यानी फूलन सिंह की पत्नी भी अपना हुलिया बदलें। सबसे पहले तो वह बाल कटवाएं और बॉब हेयर रखना शुरू करें। फिर साड़ी की जगह जीन्स नहीं तो कम से कम सलवार-सूट जरूर पहनें। फूलन सिंह भी अपनी मक्खी कट मूंछ से पीछा छुड़ाएं और क्लीन शेव्ड हो जाएं। संभव हो तो कोई बड़ी गाड़ी खरीद लें, सेकेंड हैंड ही सही। घर का फर्नीचर बदला जाए। कम से कम ड्राइंग रूम का रंग-ढंग तो बदले ही। लेटेस्ट सोफा और बढिय़ा कालीन तो लिया ही जा सकता है। कुल मिलाकर दो लाख की चपत और लगने वाली थी।

फूलन सिंह के लिए यह एक और धक्के की तरह था। जब से वे जानू के कहने पर निवेशक बनने चले थे तब से धक्के पर धक्का ही खा रहे थे। डीलक्स जिंदगी का ख्वाब धूल में मिलता नजर आ रहा था। लेकिन क्या करते। ओखल में तो सिर डाल ही दिया था उन्होंने। सो आखिरी कड़वे घूंट की तरह उन्होंने पूजा की शादी के प्रोजेक्ट के लिए हामी भर दी। क्या ठिकाना, जानू की यह बात सही निकल जाए कि कोई निवेश पलक झपकते ही अपना कमाल दिखा सकता है। इन्वेस्टमेंट के समुद्र में जो जहाज लडख़ड़ाता-डूबता हुआ नजर आता है वह अचानक दन्न से संभलता है और लहरों की छाती को चीरता हुआ मंजिल की ओर बढ़ चलता है। वह इसी आशा में तो इतना आगे निकल आए थे। जानू के हाथों में उन्होंने अपनी जिंदगी की पतवार सौंप दी थी।

जानू को जानू नाम फूलन सिंह ने ही दिया था। वह उनके कॉलेज का दोस्त था। उनके साथ कुछ दिन हॉस्टल में भी रहा था। तब वह पिद्दी सा डरपोक लडक़ा था। फूलन सिंह कॉलेज के दादाओं में से थे। जानू उनकी चमचागीरी करता था। वह उन्हें और उनके दोस्तों को अपने पैसे से चाय सिगरेट पिलाता। सिनेमा देखने का प्लान बनता तो जानू को टिकट कटाने दौड़ाया जाता। वह फूलन सिंह के प्रतिद्वंद्वी ग्रुप के लडक़ों की जासूसी भी करता। इस तरह उसने फूलन सिंह का दिल जीत लिया था। लेकिन जिला स्तर के उस कॉलेज को छोडक़र वह दिल्ली पढऩे आ गया और फूलन सिंह से उसका संपर्क टूट गया। फूलन सिंह भी कॉलेज में ज्यादा दिन नहीं टिक पाए। उनका मन पढ़ाई में लगता नहीं था। बार-बार फेल हो रहे थे। एक दिन जब कैंपस में सबके सामने कॉलेज के नए उभर रहे दादा पुलकित यादव ने उन्हें खदेड़-खदेडक़र मारा तो उन्हें लग गया कि उनकी दादागीरी अब और नहीं चलने वाली। बस फूलन सिंह ने बोरिया-बिस्तर बांधा और गांव चले आए। गांव के लोगों ने इसका कुछ और ही अर्थ लगाया। असल में कुछ ही दिन पहले उनकी शादी हुई थी। लोगों को लगा कि अपनी नवविवाहिता पत्नी के बिना वे रह नहीं पा रहे। अगले कुछ सालों तक उन्होंने बच्चा पैदा करने के सिवा और कुछ खास नहीं किया। हालांकि वह तो हम दो हमारे दो के हिमायती थे। परिवार नियोजन के तमाम साधनों से परिचित थे और उनका इस्तेमाल करने को लेकर उत्सुक भी, लेकिन द ग्रेट इंडियन जॉइंट फैमिली के आगे उनकी एक न चली।

उनकी मां का कहना था कि बेटा रहना बहुत जरूरी है सो बेटे की चाह में पहले दो बेटियां पैदा हुईं फिर एक बेटा हुआ लेकिन फूलन सिंह की माताजी ने फिर यह फरमान जारी किया कि अकेला लडक़ा दुनिया का सामना कैसे कर पाएगा, उसकी पीठ पर एक सहोदर भाई का रहना जरूरी है सो फूलन सिंह को एक और चांस लेने को कहा गया। इस तरह एक और बेटा हुआ। मां-बाप और बड़े भाई सबका यही कहना था कि फूलन सिंह इस बात से बेफिक्र रहें कि उनके बच्चों का लालन-पालन कौन करेगा। यह जिम्मेदारी तो पूरे परिवार की है। इस बीच फूलन सिंह के पिताश्री निकल लिए। अब घर की जिम्मेदारी उनके बड़े भाई झूलन पर थी। फूलन छोटे होने के कारण घर के दुलरुआ थे लेकिन पिता के गुजरते और मां के बीमार होते ही उनकी हैसियत बदल गई। अब वह सीधे-सीधे भाई के मातहत की तरह हो गए। अब उन्हें आटा-दाल का भाव समझ में आने लगा। अब वह किस्सा कमजोर पडऩे लगा कि गांव में उनके दादा जोगी सिंह के पेशाब से दीया जलता था। अब तो खेती-बारी भी ढीली पड़ रही थी और झूलन सिंह को ठेकेदारी मिलने में भी बाधा आने लगी थी। उन्हें बमुश्किल छोटी-मोटी ठेकेदारी मिल पा रही थी जिससे परिवार की शानो-शौकत में भारी कमी आ गई। अब झूलन सिंह यह अपेक्षा करने लगे कि फूलन सिंह या तो खेती में सक्रिय भागीदारी निभाएं या फिर कोई नौकरी हासिल करें। लेकिन दोनों ही मोर्चों पर फूलन सिंह के पांव लडख़ड़ा रहे थे। खेती उन्हें समझ में आती नहीं थी और नौकरी को लेकर वे भारी दुविधा में रहते थे। पहले तो वे यही नहीं तय कर पाते थे कि वे कौन सी नौकरी करें। जब वे सुनते थे कि गांव के ठाकुर और ब्राह्मण के लडक़े अब चपरासी या सेल्स मैन बन रहे हैं तो उनका दिल बैठ जाता था। वे किसी छोटी नौकरी के लिए मन से तैयार नहीं हो पाते थे। आखिर जोगी सिंह का पोता कोई ऐरी-गैरी नौकरी कैसे कर सकता है? एक बार बड़ी मुश्किल से यह जुगाड़ लगा कि फूलन सिंह अगर रेलवे की लिखित परीक्षा पास कर जाएं तो एक लाख देकर वे क्लर्क हो सकते हैं। रिश्वत देने के लिए उनकी मां ने अपने गहने बेचने की पेशकश कर दी थी। पर फूलन सिंह लिखित परीक्षा पास करें तब न...। वे कोई छोटा-मोटा धंधा शुरू करने की अपने भाई की सलाह को भी पचा नहीं पा रहे थे। इसी ऊहापोह में वर्षों निकल गए। वे खुद को घर और घाट के बीच कहीं झूलता हुआ महसूस कर रहे थे कि तभी उनकी जिंदगी में जानू की दूसरी बार इंट्री हुई। लेकिन इस बार बाजी पलटी हुई थी, भूमिका बदल गई थी।

फूलन सिंह दूर के अपने एक रिश्तेदार की बारात में दिल्ली आए हुए थे। मूल मकसद दिल्ली घूमना था। इसी दौरान वह दिल्ली के कनॉट प्लेस में घूम रहे थे कि उनकी मुलाकात जानू से हुई। फूलन सिंह तो उसे एक नजर में पहचान ही नहीं पाए। जानू ने ही उन्हें पहचाना। फूलन सिंह उसे देखते ही रह गए। यह कोई और ही जानू था। भरे-पूरे शरीर वाला, चमकते चेहरे वाला। ब्रांडेड कपड़ों और शानदार जूतों में सजा-धजा। परफ्यूम से नहाया। देखने और बात करने की उसकी अदा बदल गई थी। जानू ने बताया कि वह सीए हो गया है और कई लोगों को फाइनेंसियल कंसल्टेंसी देता है। उसने अपना फ्लैट खरीद लिया है, गाड़ी ले ली है। फूलन सिंह को यह सब किसी और ही दुनिया की बात लग रही थी। वह भकर-भकर जानू को ताकते रहे। जब जानू ने उनसे पूछा कि वे आजकल क्या कर रहे हैं तो वे जैसे जमीन में गड़ गए। फिर बड़ी हिम्मत करके बोले, ‘यार यहां कोई नौकरी दिला दो न।’

‘नौकरी!’ जानू हंसकर बोला, ‘तुम्हारे जैसा बड़ा आदमी कहीं नौकरी करता है। नौकरी तो हमारे जैसे साधारण लोग करते हैं या बेवकूफ। तुम तो गांव के जमींदार हो, तुम्हारे पास एसेट है। बस कमी सिर्फ यह है कि तुम्हें ढंग की कंसल्टेंसी नहीं मिली। तुम्हें अपने एसेट को मैनेज करना नहीं आता है। तुम गांव के उन पिछड़े भूमिपतियों में से हो जिसका एसेट नॉन प्रॉडक्टिव होता जा रहा है। वह हमारी इकॉनमी के किसी काम नहीं आ रहा।’

फूलन सिंह ने कहा- ‘क्या कह रहे हो, जरा हिंदी में समझाओ न।’

इस पर जानू ने सवाल किया- ‘तुम्हारे पास कितनी जमीन है? ’

फूलन सिंह इस सवाल से घबरा गए। सोचने लगे कि आखिर उनके पास कितनी जमीन है? वो तो पिताजी से यही सुनते आ रहे थे कि उन लोगों के पास सौ बीघा के आसपास जमीन है।

वे कहने लगे-‘हमलोगों के पास...।’

जानू ने टोका, ‘हमलोग नहीं... यह बताओ कि तुम्हारे हिस्से में कितनी जमीन है...।’

फूलन सिंह फिर हिसाब करने लगे। 10 एकड़ 15 ...।

जानू ने फिर कहा, ‘हमको एकड़ या बीघा मत समझाओ। यह बताओ कि अगर उस जमीन को बेच दिया जाए तो तुम्हारे पास कुल कितना पैसा आएगा।’

फूलन ङ्क्षसह ने बड़ी मुश्किल से हिसाब लगाकर कहा- ‘करीब बीस-पचीस लाख तो हो ही जाएगा।’

जानू उछल पड़ा, ‘अरे भाई इतना पैसा अगर तुम मार्केट में लगा दो, तो तीन से चार साल में उसका दोगुना हो जाएगा, फिर तिगुना फिर...।’ फूलन सिंह को यकीन नहीं हुआ।

जानू ने उन्हें समझाया, ‘यहां पैसे से पैसा बनाया जाता है। एक मकान खरीदो फिर उसे बेच दो और दूसरा खरीद लो। इसमें भी फायदा है। पैसा शेयर बाजार में लगा दो। कई कंपनी है जो पैसे डबल करके लौटाती है उसमें लगा दो।’

फूलन सिंह ने उससे पूछा, ‘यह शेयर बाजार क्या चीज है?’

जानू ने उन्हें जो समझाया उससे उन्हें लगा कि यह तो जूआ खेलना हुआ। वे थोड़ा सहमकर बोले, ‘यह तो जूआ है यार।’

जानू ने समझाया, ‘यह जूआ नहीं है दोस्त, इन्वेस्टमेंट है इन्वेस्टमेंट। जो इन्वेस्ट करेगा वही राज करेगा।’ फिर जानू ने कई बड़ी-बड़ी कंपनियों के मालिक की सफलता की रंगीन कहानियों का पिटारा खोला और बताया कि देखो आज वह अरबों का मालिक है लेकिन उसने अपना सफर पांच हजार से शुरू किया था...और वह तो बस एक अटैची लेकर दिल्ली आया था और आज यहां का सबसे बड़ा बिल्डर है। और वो साला तो बस में घूम-घूमकर कंघी बेचता था .... आज एक बड़े कॉरपोरेट हाउस का मालिक है।

अचानक फूलन सिंह को लगा जैसे आंखों के आगे से असंख्य रंगीन गुब्बारे उडऩे लगे हों। उन्हें लगा कि इतना बड़ा सपना वे बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे। उन्हें अपच हो जाएगा। उन्होंने अपने सपने पर ब्रेक लगाया। अगली मुलाकात में जानू ने उनके सामने ऐक्शन प्लान पेश किया जिसे सुनकर लगा कि उनके चीथड़े उड़ जाएंगे। लेकिन उन्होंने मन को समझाया कि भाई अगर बड़ा कुछ बनना है तो त्याग तो करना पड़ेगा। जानू ने कहा, ‘तुम्हें काफी कठोरता से काम लेना होगा। एक इन्वेस्टर को कठोर बनना पड़ता है। दिल से नहीं दिमाग से काम लेना पड़ता है। और हां, सबसे बड़ी बात...रिस्क लेना पड़ता है। बिना जोखिम के दुनिया में कुछ भी नहीं मिलता बॉस।’

तो प्लान यह बना कि फूलन सिंह गांव जाकर जमीन वगैरह बेचकर दिल्ली चले आएंगे। यहां आकर वे पूंजी बाजार में कूद जाएंगे। यहीं उनके बच्चे पढ़ेंगे-लिखेंगे और आदमी बनेंगे। यह सब क्रांति करने के समान था। लेकिन जानू ने उनके भीतर ऐसा जुनून पैदा कर दिया था कि वे कुछ भी करने को तैयार बैठे थे। सबसे पहले तो घर में बंटवारे का माहौल बनाया और मांग की कि उनके हिस्से की जमीन उन्हें सौंपी जाए। मां ने कहा कि उनके जीते-जी ऐसा नहीं हो सकता। तो फूलन ङ्क्षसंह ने बुद्धि से काम लिया। कहा कि वे जमीन नहीं बेचेंगे अगर उन्हें पचीस लाख रुपये दे दिए जाएं। उन्होंने ऐलान कर दिया कि वे निवेशक बनेंगे। घर में भारी कलह-कोहराम मचा। पत्नी को समझाना भी आसान नहीं था। वहां उन्होंने दूसरा दांव चला। उन्होंने कहा कि गांव में रहके बच्चों का कोई भविष्य नहीं है। शहर में रहेंगे तो आदमी बनेंगे। फिर उन्होंने शहरी जीवन के सुखों की सविस्तार चर्चा की तो पत्नी ने साथ देने का फैसला किया।

खैर, किसी तरह बंटवारा हो गया। लेकिन अगला काम था-जमीन बेचकर कैश जुगाड़ करना। गांव में खरीदार ढूंढना मुश्किल था वह भी अपनी बिरादरी में। अंत में पिछड़ी जाति के दो नवोदित भूमिपति आगे आए और उन्होंने आधी-आधी जमीन खरीद ली।

इस तरह परिवार से विद्रोह कर अपने गांव से रिश्ता-नाता तोडक़र फूलन सिंह ढेर सारे बैंक बैलेंस के साथ दिल्ली के उपनगर वैशाली पहुंचे, निवेशक बनने का सपना लेकर। जानू ने उनके लिए किराये का मकान ले रखा था। उसी में शुरू हुई उनकी नई जिंदगी। एक तरह से यह उनका पुनर्जन्म था। अब वे फाइनेंशियल कंसल्टेंट जानू के एक क्लाइंट बन गए थे, जिसने उन्हें किराये का मकान दिलाने में पंद्रह दिन का किराया बतौर कमिशन लिया। उसका कहना था कि वैसे तो एक महीने का किराया बनता है, लेकिन मित्र होने के कारण उसने उन्हें डिसकाउंट दिया। इसी के साथ उसने नसीहत भी दी कि पूंजी की दुनिया में कोई किसी का सगा नहीं है। उसने यह भी बताया कि कुशल निवेशक वह है जो अपनी हर चीज को निवेश में बदलना जाने। यहां हंसना भी एक निवेश है और रोना भी। कोई किसी से गर्मजोशी से मिल रहा है तो वह भी निवेश है, कोई किसी का हालचाल पूछ रहा है तो यह भी निवेश है।

फूलन सिंह का माथा चकरा गया। लेकिन उन्होंने ठान लिया था कि वे कुशल निवेशक बनकर रहेंगे। पर उनके सपनों के रंगीन गुब्बारे एक के बाद एक फूटने शुरू हो गए। जानू ने उन्हें सबसे पहले जमीन का एक प्लॉट खरीदवाया और कहा कि फूलन सिंह इसे खरीदकर भूल जाएं क्योंकि अगले दस सालों में यह उन्हें दस गुना पैसा वापस करेगा। फूलन सिंह इसे खरीदकर सचमुच भूलने ही वाले थे कि कुछ लोग उन्हें इसकी याद दिलाने पहुंच गए। वे कोई मामूली लोग नहीं थे।

एक दिन जब वे पान की दुकान पर खड़े थे कि तभी एक बड़ी सी गाड़ी उनके ठीक सामने आकर रुकी। उन्होंने सोचा कोई पान खाने आया होगा। तभी गाड़ी के चारों दरवाजे एक साथ खुले। उनमें से चार एक तरह के आदमी निकले। सभी लंबे तगड़े थे। सभी ने सफेद हाफ कमीज और सफेद पैंट पहन रखी थी और काला चश्मा लगा रखा था। लग रहा था जैसे कंप्यूटर में एक कमांड देकर चार प्रिंट निकाल लिए गए हों।

फूलन सिंह की आंखों के सामने अपनी जवानी के दिनों में देखी गई कुछ फिल्मों के दृश्य कौंधे। उनमें से एक ने फूलन सिंह के कंधे पर हाथ रखकर कहा, ‘कहिए फूलन सिंह जी, क्या हालचाल है?’

फूलन सिंह कुछ कहते उससे पहले दूसरे ने कहा, ‘वो नहर के बगल वाला प्लॉट आपने ही खरीदा है न?’

फूलन सिंह को मौका दिए बगैर तीसरे ने कहा, ‘ऐसा है कि वह प्लॉट टिंगू भइया खरीदना चाहते हैं। उसके आजू-बाजू का प्लॉट वो ले चुके हैं। बस यही बचा है। वहां वह स्कूल खोलना चाहते हैं। बच्चों को शिक्षा देना चाहते हैं।’

फूलन सिंह ने थूक निगलते हुए प्रश्नवाचक मुद्रा में कहा, ‘टिंगू भइया।’ वे चारों उन्हें देखकर हंसे, कुछ इस अंदाज में कि अरे, ये टिंगू भइया को नहीं जानता! तभी अचानक उनमें से एक थोड़ा टेढ़ा हुआ फिर उसने अपना पेट खुजाने के लिए अपनी कमीज थोड़ी उठाई। फूलन सिंह समझ गए। उसने पैंट में रिवॉल्वर खोंस रखी थी। खुजली करने के बाद भी उसने कमीज सीधी नहीं की। फिर उसने बड़े प्यार से कहा, ‘भइया अब एजुकेशन का मामला है। हर किसी को थोड़ा सहयोग तो करना ही पड़ेगा। स्कूल खुलेगा तो आपके बच्चे भी उसमें पढ़ेंगे।... तो ऐसा है कि टिंगू भइया किसी काम को लटकाते नहीं है। तीन दिन का समय है। आप आकर सेटल कर लीजिए। राजू डीलर के पास हमीं लोग आपसे मिलेंगे। वैसे आपका मोबाइल नंबर भी मेरे पास है।’

राजू डीलर का नाम सुनकर फूलन सिंह के होश उड़ गए। उसी के जरिए जानू ने उन्हें जमीन दिलवाई थी। वे चारों कब गाड़ी में बैठे और गायब हो गए, यह फूलन सिंह को पता तक न चला। काफी देर बाद वह खुद को सामान्य बना पाए। जब जानू को उन्होंने यह सब बताया तो उसका मुंह उतर गया। हर बात में फटर-फटर करने वाले जानू के मुंह में जैसे दही जम गया। फूलन सिंह के बार-बार कोंचने के बाद उसने कहा कि टिंगू भइया इस एरिया का बाहुबली नेता है। वह पिछली विधानसभा में एमएलए था। लेकिन हर सरकार में उसके लोग होते हैं। एकमात्र रास्ता यही है कि फूलन सिंह उसे यह जमीन बेच दें। ऐसे लोगों से पंगा लेने का कोई अर्थ नहीं है। पूंजी बाजार रूपी समुद्र में मगरमच्छों से बैर लेकर चलना ठीक नहीं होता। यह तो गनीमत है कि टिंगू भइया जमीन खरीदने को तैयार है, वह तो जमीन कब्जा तक लेता है।

जानू ने फूलन सिंह को दिलासा दिया कि बाद में वह उनके लिए कहीं और प्लॉट या फ्लैट देख लेगा। लेकिन मामला केवल यही नहीं था कि जमीन बेच देनी है। असल दिक्कत यह थी कि रेट फूलन सिंह की मर्जी का नहीं बल्कि टिंगू भइया की मर्जी का लगना था। राजू डीलर का कहना था कि एक महीने में अचानक जमीन का रेट गिर गया है। उसने जो कारण बताए वे फूलन सिंह को समझ में नहीं आए। पर वे लाचार थे। जब जानू की ही हवा खिसकी हुई थी तो वे क्या करते। करीब चालीस हजार के नुकसान पर वह जमीन उन्होंने दे दी। लगा जैसे उनके शरीर से ढेर सारा खून निकाल लिया गया हो। वे कई दिनों तक बिस्तर से ही नहीं उठ पाए।

एक दिन वे लेटे-लेटे टीवी देख रहे थे कि तभी उनकी नजर एक समाचार पर अटकी। लोग एक चिट फंड कंपनी के ऑफिस पर तोडफ़ोड़ कर रहे थे। पता चला कि कंपनी वाले लोगों से करोड़ों रुपये वसूलकर चंपत हो गए हैं। फूलन सिंह का माथा ठनका। यह तो वही कंपनी थी जिसमें उन्होंने जानू के कहने पर दो लाख रुपये जमा कर दिए थे। कंपनी का कहना था कि तीन साल के भीतर उन्हें पांच लाख वापस करेगी। फूलन सिंह को लगा कि उनकी आंखों के आगे अंधेरा छाता जा रहा है। उन्होंने जानू को फोन मिलाया। जानू ने उन्हें ढांढस बंधाते हुए कहा कि सरकार इस मामले में जरूर कुछ करेगी क्योंकि इसमें कई लोगों का पैसा फंसा हुआ है।

फूलन सिंह के सारे उत्साह पर पानी फिरता जा रहा था। उन्होंने जानू की सलाह पर काफी पैसे शेयर बाजार में डाल दिए थे। जानू का कहना था कि उन्हें सब्र से काम लेना होगा क्योंकि शेयर बाजार का फायदा उन्हें थोड़े दिनों के बाद मिलेगा। वे रोज अखबारों के बिजनेस पेज में आंखें धंसाए रहते। अकसर यही होता कि जो शेयर उन्होंने सौ रुपये में खरीदे होते थे उसका भाव पांच रुपये तक पहुंच जाता। जिस दिन वह पांच से सात हो जाता उस दिन वह खुश होते लेकिन अगले ही दिन वह फिर तीन रुपये पर पहुंच जाता था। यह देख वे अखबार पटक देते थे। उन्हें समझ में नहीं आता था कि यह कैसी भूलभुलैया है। जब जानू से वे इसकी चर्चा छेड़ते तो वह अर्थशास्त्र का अपना ज्ञान उन पर उड़ेल देता था। वे उसकी ओर एकटक ताकते रहते और वह बताता रहता, ‘देखो विश्व में अभी मंदी छाई हुई है। विदेशी निवेशक अब निवेश करना बंद कर रहे हैं। उन्होंने सारा पैसा शेयर बाजार से उठा लिया है।’

जानू बताता, ‘देखो बड़ी-बड़ी कंपनियां अपने फायदे के बारे में झूठे आंकड़े पेश कर अपने शेयर के भाव बढ़वा देती हैं लेकिन बाद में उनका शेयर औंधे मुंह गिर पड़ता है और निवेशक अपने को ठगा महसूस करता है।’

जानू से ही उन्होंने समझा था कि सत्तारूढ़ गठबंधन के सबसे बड़े सहयोगी दल का नेता जब प्रधानमंत्री को हडक़ा देता है तो शेयर के भाव नीचे आ जाते हैं। जब दो उद्योगपति भाइयों में झगड़ा होता है तब भी यही होता है। कई बार कोई कंपनी सरकार से मिलीभगत कर अपने शेयर के भाव बहुत दिन तक चढ़वाए रखती है। कुल मिलाकर यह गणित फूलन सिंह को समझ में नहीं आता था। वह खीझकर कहते, ‘हमको इस दलदल से बाहर निकालो यार। इस पर जानू शरारतपूर्ण हंसी हंसते हुए कहता,‘ निकल जाओ। बेच दो सारे शेयर। एक लाख रुपये डाले हो, अभी बेचोगे तो तीस-पैंतीस हजार मिलेगा।’ फिर वह दिलासा देते हुए कहता, ‘देखो इकोनॉमी का हालत हरदम ऐसा नहीं रहेगा। कभी न कभी सब ठीक हो जाएगा।’ लेकिन इससे उन्हें राहत नहीं मिलती थी। वे मानकर चलने लगे थे कि शेयरों का उनका इन्वेस्टमेंट डूबने वाला है। फिर मकान किराया से लेकर रोज के खाने-पीने में पैसा तेजी से खत्म होता जा रहा था। वे बचत की बहुत कोशिश करते लेकिन घर का खर्च 20 से 25 हजार हो ही जाता था। वे हिसाब लगाते कि उनके पास बैंक में दस बारह लाख रुपये है जिन्हें वे चार-पांच साल में खा जाएंगे। उसके बाद क्या होगा... वो निवेशक बनने आए थे लेकिन उन्हें बार-बार लग रहा था कि उन्हें नौकरी करनी ही होगी। नौकरी की बात सोचते ही अपने दादा जोगी सिंह का चेहरा सामने आ जाता, जिनके पेशाब से गांव में दीया जलता था। फूलन सिंह सोचते कि जोगी सिंह का पोता होकर वह कौन सी नौकरी करें। अपने पड़ोसी गांव के कई पढ़े-लिखे लोगों को वह यहां सोसाइटी का गार्ड बने देख चुके थे। कुछ लोगों ने दुकानें भी खोल ली थीं। कई बार उनके दिमाग में आता था कि ब्रेड और अंडे की छोटी-मोटी दुकान खोलकर बैठ जाएं। फिर सोचते थे कि भूले-भटके कहीं कोई अपने गांव का आदमी आ गया और उसने उन्हें दुकान पर बैठे देख लिया तो क्या होगा।

वैसे यहां आने के बाद कुछ लोगों से उनकी जान पहचान हो गई थी। साइबर कैफे चलाने वाले उनके एक पड़ोसी माथुर साहब ने उन्हें अपना कैफे संभालने का ऑफर दिया था। वह दस हजार तक देने को तैयार थे। बस फूलन सिंह को काउंटर पर बैठे रहना था। पर वह दुविधा में थे कि क्या करें। बार-बार पछताते थे कि जानू की बात बेकार ही मान ली। कहीं यह उन्हें बेवकूफ तो नहीं बना रहा। ऐसे ही निराशा भरे एक दिन में जानू ने पूजा की शादी की बात कर दी और यह एनआरआई वाली बात लेकर आ गया। लेकिन वह जो कुछ कह रहा था उस पर काफी खर्च होना था। लेकिन फूलन सिंह यह सब सह सकते थे क्योंकि इससे उनकी नहीं तो कम से कम पूजा की जिंदगी तो संवर ही सकती थी। क्या ठिकाना पूजा के जरिए उनका भाग्य भी चमक जाए। उन्हें याद है जब पूजा पैदा हुई थी तो उसकी जन्मकुंडली बनाने वाले पंडित ने कहा था कि यह पिता के लिए भाग्यशाली साबित होगी। हो सकता है वह भविष्यवाणी सही साबित हो।

रात में रमा ने रोज की तरह उन्हें फिर सवालों के कठघरे में खड़ा करते हुए कहा, ‘अरे आप जो पूजा के ऊपर आंख मूंदकर खर्च किए जा रहे हैं उसका कोई अंदाजा है आपको। क्या मिलेगा इससे।’

फूलन सिंह ने बात टालने की कोशिश की। वे आम तौर पर रमा की बातों का कोई जवाब नहीं देते थे, बस चुपचाप उसे सुन लिया करते थे। पर आज पता नहीं क्या हुआ कि भडक़ गए, ‘तुम चुप रहा करो। हमारे काम में दखल मत दिया करो।’

रमा आज दूसरे ही मूड में थी। उसने भी तमक कर कहा, ‘कैसे चुप रहें। हमारी बेटी का मामला है। जमीन लुटा दिए, पइसा लुटा रहे हैं। अब बेटी को भी दांव पर लगा रहे हैं।’

‘अरे पागल हो तुम। हम जो कर रहे हैं उसकी भलाई के लिए न कर रहे हैं। सोचो, एक बड़े परिवार में उसकी शादी होगी। उ विदेश जाएगी। मामूली बात है क्या। कोई गया है तुम्हारे खानदान में विदेश।’

रमा ने कुछ सोचा फिर कहा, ‘आपको क्या लगता है कि उ केपी सिंह आएंगे और इसी को पसंद कर ही लेंगे। यहां और किसी को देखेंगे ही नहीं। मान लीजिए उ लोग पूजा को पसंद नहीं किया तो...।’

रमा की बात में दम था। फूलन सिंह को कोई जवाब नहीं सूझा। बोले, ‘अब नहीं किया तो क्या कर सकते हैं। लेकिन कोशिश करने में क्या हर्ज है?’

‘लेकिन इस कोशिश में आप अपने लिए मुसीबत पैदा कर रहे हैं।’

‘मुसीबत, कैसी मुसीबत?’ फूलन सिंह ने हैरान होकर पूछा।

‘अरे पूजा अंग्रेजी सीख रही है। उसका चाल-ढाल बदल गया है। उ मोबाइल पर गिटपिटाती रहती है। उसका दिमाग जमीन पर रह गया है क्या? अगर जानू भइया उसकी शादी नहीं करवा पाए तो हमलोग जहां चाहेंगे वहां शादी करने के लिए उ तैयार हो जाएगी क्या?’

‘अरे यार ये सब फालतू की बात क्यों सोचती हो।’ फूलन सिंह ने झल्लाकर कहा।

रमा उनसे भी तेज आवाज में बोली, ‘केपी सिंह का बेटा जो विदेश में रहता है आप ही जैसे कंगाल की बेटी से शादी करेगा। आप जानू भइया के चक्कर में अपनी बेटी को बर्बाद करने में लगे हुए हैं।’

‘क्या बर्बाद करने पर लगे हैं? क्या अंगरेजी पढ़ाना बर्बाद करना है?’

‘अभी तक तो आप उसको पढ़ाने के लिए तैयार नहीं थे। पूजा कॉलेज जाना चाहती थी तो आप उसको घर में बैठा दिए। आपको डर लगा कि कॉलेज कैसे जा पाएगी। आप कहते थे कि उसको दिल्ली का हवा लग जाएगा। अब जब आपको अपना फायदा नजर आने लगा तो आप बदल गए। आपको सब ठीक लगने लगा।’

फूलन सिंह कोई जवाब देते इससे पहले ही बगल का दरवाजा धड़ाक से खुला और पूजा बाहर आई। उसने जोर से कहा, ‘प्लीज डोंट फाइट। डोंट बोदर फॉर मी, आई विल डिसाइड व्हाट आई हैव टू डू। यू माइंड योर ओन बिजनेस।... आज मैं आप लोग को बता देना चाहती हूं। मेरी जिंदगी के बारे में फैसले लेने का किसी को कोई अधिकार नहीं है। जो करूंगी मैं करूंगी।’

फूलन सिंह पूजा का मुंह देखते रह गए। उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि कि यह वही लडक़ी है, हमेशा सिर झुकाकर रहने वाली। जिसकी आवाज तक सुनने के लिए वे तरस जाते थे। जानू ठीक कहता था। वह कमाल का इंस्टीट्यूट है। उसका ट्यूटर एक महीना में आदमी को क्या से क्या बना देता है। फूलन सिंह भौंचक देखते रह गए। अरे गजब! उनकी लडक़ी सचमुच सीख गई इंग्लिश बोलना। उन्हें इसकी उम्मीद नहीं थी। वे तो यही सोच रहे थे कि पूजा अधिक से अधिक यस नो थैंक यू वगैरह बोल लेगी। ... उन्हें भले ही उसकी बात समझ में न आई हो पर वे मन ही मन गदगद हुए। लेकिन रमा को यह अच्छा नहीं लगा। वह मुंह छुपाकर रोने लगी।

फूलन सिंह के लिए रमा को साथ लेकर चलना अब आसान नहीं रह गया था। यहां आने के कुछ दिन बाद तक उसमें काफी उत्साह था। उसे अचानक स्वतंत्रता और नई तरह की जिंदगी का जो आस्वाद मिला था, उसका वह सुख ले रही थी, लेकिन एक के बाद एक झटकों ने उसे तोड़ दिया था। अब वह हर चीज पर संदेह करने लगी थी। वह कई व्यावहारिक सवाल उठा रही थी, जिनका जवाब फूलन सिंह के पास नहीं था। वे तो बस जानू के सहारे जी रहे थे। उनके मन में कोई भी शंका उठती तो वे उसे जानू के पास रखते और जानू के पास तो हर समय रेडीमेड जवाब तैयार रहता था। उन्होंने वह सवाल भी जानू के सामने रख दिया, ‘यार केपी सिंह के लडक़े ने अगर पूजा को पसंद नहीं किया तो...।’

जानू ने कहा, ‘अरे भाई उन्होंने खुद ही मेरे दोस्त अनंत को कहा है कि मेरे बेटे का अच्छी जगह रिश्ता करा दीजिए। अब वो हमारी बात को मानेंगे ही... और अगर किसी कारण से बात नहीं भी बनी, तो क्या पूजा बिटिया की शादी ही नहीं होगी?’

‘अरे वो बात नहीं है भाई। पूजा बदल गई है। अब उसका स्टैंडर्ड बढ़ गया है यार। अब वह किसी ऐरे-गैरे से शादी थोड़े करेगी। और हमारे पास इतना माल कहां है कि...।’

जानू ने कहा, ‘अरे यार अब हर चीज में इतना सोचोगे तब तो हो गया।’

‘हमको एक और डर लग रहा है... हमको नहीं... रमा को। पूजा जहां-तहां जाने लगी है। कहीं कोई ऊंच-नीच हो गया तो...।’

‘क्या?’ जानू ने हैरत से फूलन सिंह को देखा तो उन्होंने जानू को समझाया, ‘मतलब यार किसी लडक़े से उसकी दोस्ती वगैरह न हो जाए... कोई उसको गलत रास्ते पर न ले जाए...।’

जानू ने थोड़ा सीरियस होकर कहा, ‘देखो उसे खुला मत छोड़ो उस पर नजर रखो। उसे इंस्टिट्यूट छोडऩे जाया करो। फिर उसे साथ लेकर आओ। उसके मोबाइल पर ध्यान रखो। देखो कि किससे बात करती है। देखो कि अकेले में गुनगुनाती तो नहीं रहती या बाथरूम में ज्यादा समय तो नहीं बिताती।’

‘अब क्या बताएं। यही तो नहीं समझ रहे हो तुम। अब वो मेरे साथ नहीं जाना चाहती। कुछ कहो तो इंग्लिश में डांट देती है। मां को तो अब लगाती ही नहीं। एक महीना में इतना कैसे बदल गई वो।’

‘चिंता की बात नहीं है। ज्यादा होगा तो उसके पीछे जासूस लगा देंगे। प्राइवेट डिटेक्टिव।’

‘क्या बात रहे हो। अपनी बेटी के पीछे जासूस लगाएंगे।’

‘क्यों नहीं। यहां के लिए यह आम बात है। बीवी अपने पति की जासूसी करवाती है, बाप बेटे-बेटी पर जासूस लगवाता है। कहोगे तो बात करेंगे। है एक जान-पहचान वाला। वो पैसा कम कर देगा।’

‘अब पइसा का बात मत करो यार। बहुत पइसा फेंक दिए पानी में।’

‘अभी तो और बहुत कुछ खर्च करना है। अभी तक तुमने गाड़ी नहीं ली। फर्नीचर तक नहीं बदले। वैसे एक हैं हमारे मित्र। उनका ट्रांसफर हो गया है। एकदम नया फर्नीचर है उनका। तुम चाहो तो ले सकते हो।... भाई, थोड़ा बहुत खर्चा करके तुम्हारी बेटी और तुम्हारा भविष्य संवर जाए तो इसमें गलत क्या है।’

बात तो सही थी, लेकिन पूजा को संभालना इतना आसान नहीं था। फिर भी फूलन सिंह जानू के निर्देशों का यथासंभव पालन में जुट गए। वे पूजा की जासूसी करने लग गए। वे उसके जाने के टाइम के थोड़ा पहले ही घर से निकल लेते और अपने अपार्टमेंट के बाहर छुपकर खड़े रहते, फिर पूजा के निकलते ही दूसरे किसी ऑटो में बैठकर उसके इंस्टीट्यूट पहुंचते। वहां इधर-उधर चक्कर काटते रहते। लौटने के समय भी वैसा ही करते। लेकिन जल्दी ही इससे ऊब गए। उन्होंने सोचा कि अब जो होना होगा सो होगा, वे बेकार परेशान हो रहे हैं। वैसे जब भी पूजा का कोई फोन आता तो वे आसपास मंडराते और यह जानने की कोशिश करते कि क्या बात हो रही है। वे बेसब्री से इंतजार कर रहे थे कि कब पूजा का कोर्स खत्म हो और कब जल्दी से केपी सिंह आकर शादी की बात करें। लेकिन चीजें इतनी आसान नहीं थीं। जैसे उनका सारा निवेश डगमगा रहा था वैसे ही पूजा का मामला भी मुश्किल होता जा रहा था।

एक दिन पूजा ने ऐलान किया कि उसका कोर्स तो पूरा हो चुका है पर वह उसी इंस्टीट्यूट के नए कोर्स में दाखिला लेगी ताकि वह अपनी अंग्रेजी को मांज सके। अब उसे ग्रुप डिसकशन की क्लास करनी है। फूलन सिंह ने साफ मना कर दिया कि अब वे और पैसा नहीं फेंक सकते। शादी के लिए जितनी अंगरेजी चाहिए थी उतनी उसे आ गई, अब और जानने का कोई मतलब नहीं है। उसे इंग्लिश का प्रोफेसर तो बनना है नहीं। फूलन सिंह ने रास्ता यह निकाला कि जानू पूजा का इंटरव्यू लेगा अगर उसने पूजा को पास कर दिया तो नए कोर्स में उसका दाखिला नहीं होगा। जानू ने वही किया जो फूलन सिंह चाहते थे। उसने कहा कि पूजा काम लायक अंग्रेजी जान चुकी है। बस उसे घर में ही प्रैक्टिस करनी है। काम बन जाएगा। वह समय-समय पर खुद आकर उससे अंग्रेजी में बात करेगा। लेकिन पूजा ने जिद ठान ली कि वह तो नया कोर्स करके रहेगी। और उसके अगले दिन जो हुआ वह फूलन सिंह के लिए किसी तूफान की तरह था।

सुबह-सुबह जब घर का कॉलबेल बजा तो 27-28 साल का एक लडक़ा सामने खड़ा था। उसने बताया कि उसका नाम साकेत है और वह उस इंस्टीट्यूट का डायरेक्टर है जिसमें पूजा पढ़ती है। फूलन सिंह ने बेमन से उसे अंदर आने और बैठने को कहा। वह युवक सीधा-सादा लेकिन आत्मविश्वास से भरपूर दिख रहा था। फूलन सिंह थोड़ा सहमे हुआ थे। पता नहीं क्यों उनके सामने वह दृश्य कौंध गया जब टिंगू भइया के लोगों ने उन्हें घेर लिया था। तो फिर कोई कुचक्र?

उस लडक़े ने बिना किसी भूमिका के अपनी बात शुरू की, ‘सर मुझे यह जानकर अफसोस हुआ कि आप पूजा को हमारे नए कोर्स में नहीं पढ़ाना चाहते।’

‘आपको कैसे मालूम?’ फूलन सिंह ने सवाल दागा। वे अपने आपको सामान्य बनाने की कोशिश कर रहे थे।

साकेत ने आगे कहा, ‘यह बहुत ही बढिय़ा कोर्स है। इसमें हम ग्रुप डिसकशन करवाते हैं ताकि अंगरेजी बोलने में और कॉन्फिडेंस बढ़े।’

‘लेकिन पूजा तो अंगरेजी बोलना सीख गई है।’

‘सिर्फ बोल लेना ही काफी नहीं है। कॉन्फिडेंस के साथ बोलना एक अलग चीज है। अब पूजा को अलग-अलग फील्ड के लोगों के साथ कन्वरसेशन करना होगा जैसे कोई आईएएस की तैयारी कर रहा है कोई मैनेजमेंट कोर्स कर रहा है।’

फूलन सिंह इस बात से सहमत होते जा रहे थे लेकिन वे समझ नहीं पा रहे थे कि उसकी बात को काटने के लिए कौन सा तर्क ढूंढे। अचानक उन्हें कुछ सूझा, ‘देखिए हमारे एक दोस्त हैं जितेंद्र जी। वो सीए हैं। पानी की तरह इंग्लिश बोलते हैं। उनका कहना है कि पूजा को काम भर अंगरेजी आ गया है।’

अचानक साकेत ने टोका, ‘काम भर क्यों? मैं यही तो कहना चाहता हूं कि सिर्फ कामचलाऊ ज्ञान से कुछ नहीं होने वाला है। जब आप सिखा ही रहे हैं तो ढंग से सिखाइए। उससे क्या फायदा है?’

साकेत ने कहा, ‘आज कई जॉब ऐसी है जो सिर्फ अंगरेजी बोलने के कारण मिलती है। जैसे कॉल सेंटर की नौकरी जैसे..। ’ फूलन सिंह को अचानक ध्यान में आया कि किस तरह फोन करके कोई लडक़ी उन्हें इंश्योरेंस करवाने के लिए बोलती है या क्रेडिट कार्ड बनवाने के लिए... तो क्या पूजा यही काम करेगी। नहीं-नहीं ।

फूलन सिंह ने कहा, ‘अरे वो नौकरी-वौकरी थोड़े ही करेगी। अरे भाई उसकी शादी होने वाली है एनआरआई के बेटे से... तो अंग्रेजी आना चाहिए न।’ फूलन सिंह को लगा कि शायद यह बात उन्हें नहीं बतानी चाहिए थी।

साकेत ने कहा, ‘अगर पूजा को विदेश जाना है तब तो उसको यह क्लास जरूर करनी चाहिए।’ फूलन सिंह साकेत को कुछ कहकर टरकाने ही वाले थे कि पूजा चाय लेकर आ गई। फूलन सिंह ने बड़ी मुश्किल से अपने क्रोध पर काबू किया। उन्हें यह मंजूर नहीं था कि इस लौंडे को चाय पिलाएं। लेकिन क्या करते...। वे बैठ गए। पूजा अंदर चली गई। साकेत ने चाय की एक चुस्की लेते हुए पूछा, ‘पूजा ने कभी रेगुलर पढ़ाई की ही नहीं?’

‘प्राइवेट से मैट्रिक किया है। बीए भी कहीं से करवा देंगे।’ यह कहते हुए फूलन सिंह ने नजरें झुका लीं। फिर कुछ देर तक दोनों चुपचाप चाय पीते रहे। तभी साकेत ने कहा, ‘देखिए पूजा बहुत ही टैलेंटेंड लडक़ी है। आप ने उसको सीरियसली पढ़ाया होता तो वह बहुत अच्छा करती लेकिन..।’

इस बात ने फूलन सिंह का मूड बदला। साकेत के प्रति कड़वाहट थोड़ी कम हुई। मन में लगा जैसे कुछ सवाल अचानक एक-दूसरे को धकिया कर अचानक बाहर आ जाना चाहते हों। साकेत ने चाय खत्म कर कहा, ‘एक बार फिर सोच लीजिए। पूजा जैसी समझदार लडक़ी के लिए मैं आपको फीस में रिबेट भी दे सकता हूं।’

तभी पीछे से रमा की आवाज आई, ‘नहीं नहीं अब हमलोग इसको आगे नहीं पढ़ाएंगे।’

लेकिन फूलन सिंह ने कहा, ‘सोचते हैं।’ वे साकेत के पीछे-पीछे आने लगे। साकेत ने थोड़ा आश्चर्य से उन्हें देखा।

फूलन सिंह ने सकुचाते हुए पूछा, ‘अगर पूजा ढंग से पढ़ती-लिखती तो कुछ बन सकती थी न।’

साकेत ने कहा, ‘कुछ भी बन सकती थी, डॉक्टर, इंजीनियर अफसर बहुत कुछ। अब भी देर नहीं हुई।’

फूलन सिंह अब साकेत के प्रति सहज होते जा रहे थे। उन्होंने पूछा, ‘आप कहां से पढ़े-लिखे हैं?’

‘यहीं से। मैंने इंग्लिश लिटरेचर में एमए किया है। विदेश जाकर रिसर्च करना चाहता था। लेकिन पिताजी की असमय मौत हो गई। मां, एक भाई और बहन की जिम्मेदारी थी, सो सोचा जल्दी से कोई काम शुरू कर दूं। लगा और क्या कर सकता हूं सो इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स शुरू कर दिया। स्टूडेंट्स आने लगे। काम जम गया है। मन में संतोष है।’

फूलन सिंह के मन में और सवाल आया कि कहां के हो, किस जात के? लेकिन वह चुप रहे। साकेत ने उलटकर उन्हीं से पूछ डाला, ‘आप क्या करते हैं?’

एक कठिन सवाल! इसका जवाब देना फूलन सिंह के लिए कभी आसान नहीं रहा। उन्होंने थूक घोंटते हुए कहा, ‘मैं इन्वेस्टर हूं। मतलब ....फाइनेंसर मतलब शेयर....।’

‘ब्रोकर...।’ साकेत ने जवाब पूरा किया।

‘नहीं- नहीं...।’ फूलन सिंह कुछ कहना चाहते थे मगर साकेत ही बोल पड़ा, ‘पूजा के लिए सोचिएगा। ऐसा कोर्स सिर्फ हमारे यहां है। आप चाहें तो पता कर लें।’ यह कहकर उसने मोटर साइकिल स्टार्ट की और चला गया।

फूलन सिंह बाइक से उड़ी धूल को कुछ देर देखते रहे फिर धीरे-धीरे लौटे। दरवाजे पर पूजा खड़ी थी। उत्सुक आंखों से उन्हें निहारती, उन्हें पढ़ती हुई। फूलन सिंह ने महसूस किया कि उनके भीतर अचानक कुछ सवाल खौलने से लगे है। उन्होंने पूजा से पूछा,‘ इसको तुम बुलाई थी?’

‘नहीं।’

‘तो फिर ये कैसे आ गया?’

‘पता नहीं।’

‘अरे जब तुम कुछ बोली ही नहीं तो ये कैसे आ गया।’

पूजा ने कहा, ‘सर हमसे पूछ रहे थे कि तुम नए कोर्स में एडमिशन लोगी कि नहीं? मैंने कहा नहीं तो ये बोले कि हम तुम्हारे पापा से बात करेंगे।’

फूलन सिंह भुनभुनाए, ‘चला आया घर पर बिजनेस बतियाने। साला तेल लगा रहा था हमको। अरे इ लोग को खाली पइसा कमाने से मतलब है।’

‘और आपको किस चीज से मतलब है...।’ यह कहकर पूजा तेजी से भीतर भागी।

फूलन सिंह सन्न रह गए। ये क्या...। उनकी बेटी तो उनके ऊपर बम गिराकर चली गई। उन्हें थोड़ी देर के लिए लगा कि उनकी सांस फूलने लगी है। वे वाशबेसिन के पास पहुंचकर जल्दी से अपने चेहरे पर पानी के छींटे मारने लगे। उन्हें अफसोस होने लगा कि बेकार ही पूजा से साकेत के बारे में कुछ कहा। सिर्फ इतना कह देते कि पूजा को नए कोर्स में वे नहीं पढ़ाना चाहते। लेकिन अब क्या करें...मुंह से तो बात निकल ही गई।

क्या करें वह। यही होता है उनके साथ। भीतर से जैसे एक दुष्ट तूफान उठता है और उनसे बहुत कुछ करवाकर चला जाता है। वे घर में आए तो देखा पूजा तकिए में मुंह छिपाए औंधी लेटी थी। उन्हें उससे कुछ कहने का साहस नहीं हुआ।

अब तक वे जो कुछ भी कर रहे थे उसमें उनका परिवार भी साथ था। पर जब से पूजा की शादी का मामला सामने आया था तब से सब कुछ बदल गया था। कोई उनसे खुश नहीं रह रहा था। हां, पूजा जरूर कुछ दिनों से प्रसन्न रहने लगी थी। लेकिन अब फूलन सिंह ने उसकी प्रसन्नता पर पानी फेर दिया।

घर का तनाव अब और गहरा गया। रमा अचानक बहुत कमजोर और दुखियारी दिखने लगी। वह कुछ बोलती तो नहीं थी पर उसे देखकर ही लग रहा था कि उसके भीतर भारी उथल-पुथल चल रही है। वह अब ज्यादा से ज्यादा समय पूजा-पाठ में बिताने लगी। फूलन सिंह और पूजा से उसकी बातचीत तो बंद ही हो गई थी और बच्चों से भी वह कुछ नहीं कहती थी। पूजा के चेहरे पर आई रौनक जैसा बिला गई। वह बिना कुछ कहे पहले की तरह घर के काम करने लगी। बल्कि वह एक-एक काम को खूब देर लगा-लगाकर करती। जैसे घर मे पोंछा मारती तो घंटों उसी में लगी रहती। अपने भाई-बहनों को रगड़-रगडक़र नहलाती। दोपहर ढलते ही उन्हें लेकर सोसाइटी के पार्क में चली जाती और अंधेरा होने पर ही लौटती। कई बार उसका मोबाइल बजता तो वह जैसे उससे अनजान रहती। बड़ी देर बाद उठाती और रौंग नंबर कहकर काट देती। कई बार फूलन सिंह ने बात शुरू करने की कोशिश की पर उसने हां हूं के अलावा कुछ नहीं कहा। फूलन सिंह समझ नहीं पा रहे थे कि इस स्थिति को कैसे संभालें। क्या उन्हें पूजा से उसी तरह बात करनी चाहिए जिस तरह उन्होंने टिंगू भइया के गुंडों से हाथ जोडक़र कहा था कि वे उनकी जमीन सही रेट पर बिकवा दें? क्या वे यह कहें कि उनका जीवन पूजा के हाथों में है? या फिर सख्ती से पूजा को कहें कि वह बकवास न करे। वह उनकी बात चुपचाप माने। आखिर वह उसके बाप हैं। उन्होंने उसे हर तरह का सुख दिया है। अब उसका फर्ज है कि वह अपने पिता और अपने परिवार के लिए वह करे जो फूलन सिंह चाहते हैं। आखिर इसमें उसकी भी भलाई है। फिर फूलन ङ्क्षसंह ने अपने को समझाने की कोशिश की कि पूजा की एक बात से वह इतना परेशान क्यों हैं? अरे बच्ची है। ऐसे ही कुछ बोल गई। उसकी इतनी हिम्मत थोड़े ही है कि वह उनकी बात न माने। लेकिन पूजा का वह सवाल उनके भीतर गहरे धंसा था जिसका दर्द उन्हें बेचैन कर रहा था। वह पूजा को नहीं खुद को उसका उत्तर देना चाहते थे। पर उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था।

रह-रहकर उनके सामने एक फिल्म की तरह कई चीजें घूमती रहती थीं- जानू से वर्षों बाद उनकी मुलाकात, गांव में जमीन बेचने के लिए भटकना, फिर दिल्ली आना, टिंगू भइया के गुंडों का उन्हें घेरकर खड़ा होना, राजू डीलर के आगे उनका गिड़गिड़ाना, चिट फंड कंपनी के दफ्तर में बार-बार चक्कर लगाना, उनके खरीदे शेयरों का डूबना। सब कुछ खो रहे हैं वे... आखिर पाया क्या है उन्होंने? उनका हर इन्वेस्टमेंट डूब चुका है। वे निवेशक नहीं बन सकते। उनकी हालत हारे हुए जुआरी की तरह हो गई थी। हारा हुआ जुआरी क्या करता है? उन्हें गांव के मदन काका की याद हो आई। वे कलकत्ता गए थे कारोबार करने मगर लौटकर नहीं आए। लोगों का कहना था कि वहां वे जुए के चक्कर में पड़ गए। लगातार हार का सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाए और उन्होंने फांसी लगा ली। कुछ ही दिनों पहले उन्होंने अखबार में पढ़ा था कि दिल्ली में एक आदमी ने इसलिए अपने को गोली मार ली कि शेयर में लगाए उसके सारे पैसे डूब गए थे। जानू ने उन्हें सिर्फ सफलता की कहानियां बताई थीं, लेकिन अब फूलन ङ्क्षसह के सामने यहां की असफलताओं की कहानियां भी खुलने लगी थीं। अब पता चल रहा था कि असफलताएं सफलताओं से बहुत ज्यादा बड़ी थीं।

इसी बीच एक दिन जानू आया खुशी के मारे चिल्लाता हुआ, ‘अरे यार मजा आ गया।’

फूलन सिंह बुझे मन से उठे। जानू ने कहा, ‘देखो मैंने केपी सिंह को पूजा का फोटो मेल किया था। उनके पूरे परिवार को फोटो पसंद आ गई है। उनका कहना है कि एक बार वे लडक़ी और परिवार के लोगों से मिलकर बस निश्चिंत हो जाना चाहते हैं। ....यार समझ लो नाइंटी परसेंट काम हो गया।’

फूलन सिंह ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। उन्होंने सिर हिलाया लेकिन उनका ध्यान कहीं और था।

‘यार तुम्हारा तो काम हो गया। छा गए तुम।’ जानू ने उसी रौ में कहा।

फूलन सिंह ने कोई जवाब नहीं दिया। जानू ने आवाज लगाई, ‘भाभी जी, पूजा... कहां हो सब लोग।’

अंदर से रमा, पूजा और उसकी छोटी बहन और दोनों भाई बाहर आए। जानू ने उन्हें खुशखबरी दी, ‘अरे पूजा बिटिया का तो भाग्य चमकने वाला है। पता है, केपी सिंह के परिवार को पूजा पसंद आ गई है।’

रमा ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। पूजा ने फूलन सिंह को देखा। वे कहीं खोये हुए थे। किसी के चेहरे पर खुशी का भाव न देख जानू के चेहरे का रंग उतरने लगा। वह खीझकर बोला, ‘आप लोगों को विश्वास नहीं हो है क्या। अरे हम सच कह रहे हैं। केपी सिंह अपनी वाइफ और बेटे के साथ इस रविवार को आ भी रहे हैं। चार दिन बचा है केवल। और घर में कोई तैयारी नहीं देख रहे हैं। फर्नीचर तक पुराना है। पर्दा भी गंदा है एकदम।...अरे आप लोग को ये शादी करनी है कि नहीं। फिर उसने पूजा की ओर देखकर कहा, ‘ पूजा तुमने ये क्या हुलिया बना रखा है। लगता है बहुत दिनों से पार्लर नहीं गई हो क्या? अभी जाओ और फेशियल वगैरह करवाना शुरू करो।’

‘कोई जरूरत नहीं है। फूलन सिंह ने अचानक कहा। वह जानू के सामने उसकी आंख में आंख डालकर खड़े हो गए। जानू थोड़ा सकपकाया, ‘क्यों?’

‘क्योंकि हम अभी उसकी शादी नहीं करना चाहते हैं। मना कर दो केपी सिंह को।’

‘अरे पूजा की शादी के लिए हम इतना कुछ जुगाड़ लगा रहे हैं...।’

‘तुम क्या सोचते हो पूजा म्युचुअल फंड है... शेयर है...इंश्योरेंस है....पेंशन प्लान है?’

‘पागल हो गए हो क्या?’

‘कितना कमिशन लोगे तुम पूजा की शादी का? कितना परसेंट।’

जानू ने रमा की तरफ देखकर कहा, ‘भाभीजी, इसको क्या हो गया है।’

रमा ने कुछ नहीं कहा। वह स्थिति को समझने की कोशिश कर रही थी। पूजा की आंखें डबडबाने लगी थीं।

फूलन सिंह आज बहुत दिनों बाद जानू पर चढ़े जा रहे थे, ‘तुम क्या समझे कि तुम जो कहोगे हम करते रहेंगे। हमको बंदर समझ लिए हो कि तुम डमरू बजाते रहोगे और हम नाचते रहेंगे। एकदम नहीं।’

‘अच्छा तो अब तुम्हारा रंग बदल गया। हम तुमको क्या से क्या बनाए और तुम हो कि...।’

‘डुबा के रख दिए तुम हमको। अब निकलो यहां से दलाल कहीं के...।’

जानू को उसकी उम्मीद नहीं थी। उसने एक-एक सदस्य पर एक नजर डाली फिर एक फीकी हंसी हंसकर बोला, ‘लगता है फूलन भाई की तबियत ठीक नहीं है। ....झगड़ा-वगड़ा हुआ है क्या?’ वह कुछ देर जवाब की प्रतीक्षा में खड़ा रहा पर कोई उत्तर न पाकर झटके से वहां से निकल गया। पूजा तेजी से फूलन सिंह के पास आई और भर्राई आवाज में बोली, ‘पापा..।’

फूलन सिंह ने उसके सिर पर हाथ फेरकर कहा, ‘चिंता मत करो बेटी। सब ठीक हो जाएगा। अब तुम पढ़ोगी। कॉलेज में तुम्हारा एडमिशन होगा। हमारा हर बच्चा पढ़ेगा।’

रमा अब भी दुविधा और संदेह में घिरी थी। उसने सकुचाते हुए पूछा, ‘लेकिन इतना पइसा कहां से आएगा?’

फूलन सिंह ने मुस्कराकर कहा, ‘अरे हम काम करेंगे। जा रहे हैं माथुर साहब के यहां। उनका साइबर कैफे संभालेंगे। ...और भी कोई काम खोजेंगे।’

‘अच्छा!’ रमा ने आश्चर्य से कहा।

‘तुम क्या समझती हो हमको। फूलन सिंह कोई मामूली आदमी हैं।’ फूलन सिंह ने मुट्ठियां बांधकर कहा।

इस पर सब हंस पड़े। बहुत दिनों बाद इस घर में हंसी गूंजी थी।

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