तीन खबरें
सेठ गंगाप्रसाद की हवेली के पिछवाडे में एक छोटा सा बगीचा था,जिसे सेठ गुप्त और व्यक्तिगत मसलो के लिए इस्तेमाल करता था। सेठ का मानना था कि यह दुनिया की सबसे सुरक्षित जगह है, जहां परिंदा भी उसकी मर्ज़ी के खिलाफ दाखिल नहीं हो सकता है। वो बात अलग थी कि कभी कभी कुछ कबूतर सेठ की बगैर मर्ज़ी दाखिल हो जाते थे। यहाँ पर सेठ कुछ खास किस्म के लोगों से ही मिलता था । इस बगीचे में सेठ के गुप्त वार्तालाप में उनका नौकर रामुडा भी मौजूद रहता था। जिसकी सूरत देखने से ही पता चलता था की उसे सेठ ने भगवान को विशेष तौर पर रिश्वत देकर अपने लिये बनवाया है, क्योंकि वो सेठ के हर आदेश को उनकी आँखों से समझ लेता था। सेठ कभी कभार मजाक में कहा करता था कि रामुडा और मेरी आँखों के कनेक्शन एक है जिसे दुनिया में हम दोनों के आलावा कोई नहीं समझ सकता है । सेठ की दुनियाँ भी तो उसी कस्बे तक सीमित थी और उसका मानना था कि इस कस्बे को लूटने का पटा उसे खुद भगवान ने दिया है जिसका कोई लिखित दस्तावेज नहीं है और अगर है भी तो भगवान की भाषा आम आदमी के समझ में नहीं आती। वो तो सिर्फ दुनिया के चंद सेठ जैसे ज्ञानियों के ही समझ की बात है। फिर भी सेठ दिखने में बहुत ही सज्जन लगता था और उसके चेहरे की चमक को देख कर तो एक बार रात में चाँद की चमक भी फीकी पड़ गयी थी जिसे पंडितों ने चंद्रग्रहण की संज्ञा दी थी। इसिलए सेठ आजकल चाँद पर रहम करके रात को अपने कमरे से बाहर नहीं निकलते और अगर निकलते भी है तो चेहरे पर नकाब लगा कर ताकि दुनियाँ को रोटी मिले या न मिले कम से कम चाँद तो नसीब हो जाये। जिसे भूखे बच्चे मामा समझ कर रोटी मांगें और रात भर इंतजार करके सो जाये क्योंकि रोटी तो सेठ की तिजोरी में बंद थी जो सड तो सकती थी मगर भूखे को नहीं मिल सकती थी। सेठ जी सुबह सुबह पूजापाठ करके बगीचे में आकार बैठ गये और फिर उन्होंने जिस तरह से रामुडा को पुकारा उस आवाज से साफ जाहिर था कि आज कोई गंभीर वार्तालाप होने वाला है। रामुडा आकर बोला,श् सेठ जी आज अखबार में आया है कि सरकार ने शराब पर पाबंदी लगा दी है श्. सेठ जी गंभीर मुद्रा में कुछ देर शांत रहे जैसे मुहँ से कोई अमृत धारा निकलने का रास्ता तलाश रहीं हो, फिर बोले,श् सतयुग में तो देवता भी सोमरस पीते थे और वो सोमरस का प्रसाद जनता को जरुर मिलना चाहिए, उसे हम सरकारी कानून को तोड़ कर भी जनता को उपलब्ध कराएँगे। यही हमारा धर्म और व्यवहार दोनों है.श्। वैसे तो सेठ जी की कोशिश हमेशा रहती थी कि वो धर्म को व्यवहार में उतारे मगर उनकी इच्छा इतनी प्रबल थी कि व्यवहार आखिर विजय पाता जिसे धार्मिक आचरण की संज्ञा देने के लिए वो तीन ब्राह्मण परिवारों का पालन पोषण करते थे। हुआ यूँ कि सेठ गंगा प्रसाद और प्रेम लाडखानी उसी पिछवाडे के बगीचे में बैठ कर अवैध शराब बनाने कि योजना बना रहे थे। पास खडा रामुडा चुप चाप देख रहा था। दोनों ने तय किया कि कस्बे के बहार प्रेम लाडखानी कि जमीं है जो चारों ओर से टीलो से घिरी हुई है , वहां शराब बना कर सेठ की उस गोदाम में भरी जायेगी जिसकी जानकारी वो तीनो के अलावा कोई नहीं रखता। शराब निर्माण जोर शौर से शुरू हुआ। भारतीय पुलिस को तो सेठ जैसे लोगो ने पैसे की थेली से नपुंसक बना दिया है। बिना वैज्ञानिक विधि के शराब बना कर सेठ की गोदाम में भर दी गयी और धीरे धीरे बिक्री शुरू हुई । आज पहले ही दिन की बिक्री काफी हुई तो पैसे का हिसाब लगाते लगाते रात के 2 बज गए इसलिए रमुडा को घर लोटने में देरी हो गयी थी।. दूर से ही उसे रोने चिल्लाने की आवाज सुनाई दी। रामुदा की जान निकल गयी। असमान में मोरो के चिल्लाने की आवाज से कलेजा फट रहा था। पीछे से किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा और कांपती आवाज में बोला,श् तुम्हारा ....सुरेश..नही .... जहरीली शराब..श्. रामुदा की मुठियाँ बंद हो चुकी थी पैरों में घोडे की ताकत आ गयी थी वो एक चीख के साथ वापस दोड़ा,श् सेठ..ठ..ठ ..ठ .श् मोहन हकाबक्का देखता रह गया न पीछे दोड़ सका न रो सका.।
सुबह अखबार में तीन खबर थी—
—1. जहरीली शराब से 250 लोगो की मौत
2. सेठ गंगा प्रसाद की गोदाम में आग — लाखों का नुकसान
3.प्रेम लाडखानी के खेत के पास एक लावारिस लाश मिली।